Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 15 Marks ) PART- 1
1. मानव भूगोल को परिभाषित करें और इसके अध्ययन-क्षेत्र (विषय क्षेत्र) का सविस्तार वर्णन करें। (Define human geography and describe its areas of study in detail.)
उत्तर – मानव भूगोल भौतिक/प्राकृतिक एवं मानवीय जगत के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। इसमें मानव और प्रकृति के बीच सतत परिवर्तनशील पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न सांस्कृतिक लक्षणों की स्थिति एवं वितरण का अध्ययन किया जाता है।
अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं फिंच एवं ट्रिवार्था ने मानव भूगोल की विषय-वस्तु को दो मुख्य भागों में बाँटा है—भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण। भौतिक पर्यावरण के अंतर्गत भौतिक लक्षण जैसे जलवायु, धरातलीय उच्चावच एवं अपवाह प्रणाली तथा प्राकृतिक संसाधन जैसे—मृदा, खनिज, जल और वन आते हैं। सांस्कतिक पर्यावरण के अंतर्गत पृथ्वी पर मानव निर्मित लक्षण जैसे जनसंख्या और मानव बस्तियाँ एवं कृषि, विनिर्माण उद्योग, परिवहन आदि को सम्मिलित किया जाता है।
2. जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का वर्णन कीजिए। (Discuss the occupational structure of population.)
उत्तर – कार्यशीलता के आधार पर किसी भी जनसंख्या को दो भागों में बाँटा जाता है कार्यशील और गैर-कार्यशील। कार्यशील जनसंख्या किसी भी प्रकार के आर्थिक उपार्जन या व्यवसाय में लगी रहती है। इन व्यवसायों में कृषि, वानिकी, मत्स्यन, विनिर्माण, निर्माण, परिवहन, संचार, व्यापार तथा अन्य सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है।
इन व्यवसायों को मुख्य रूप से तीन और कुल मिलाकर पाँच खंडों में विभक्त किया जाता है। ये हैं-
(i) प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation)—इसके अंतर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य सम्मिलित किए जाते हैं। प्राथमिक कार्यकलाप करने वाले लोग लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं, दयोंकि उनका कार्य क्षेत्र घर से बाहर होता है।
(ii) द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation)— द्वितीयक गतिविधियाँ प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर उसे मूल्यवान बना देती है। कपास से वस्त्र, गन्ना से चीनी बनाना, लौह-अयस्क से इस्पात बनाना, लकड़ी से फर्नीचर बनाना इत्यादि द्वितीयक व्यवसाय हैं। इस प्रकार द्वितीयक क्रियाएँ विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण (अवसंरचना) उद्योग से संबंधित है।
(iii) तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation) —तृतीयक कार्यकलाप सेवा सेक्टर (Service Sector) से संबंधित है। इसके अंतर्गत व्यापार, परिवहन, संचार और अन्य सेवाएँ सम्मिलित होती हैं! नलसाज, बिजली मिस्त्री, तकनीशियन, धोबी, नाई, दुकानदार, चालक, कोषपाल, अध्यापक, डॉक्टर, वकील, प्रकाशक इत्यादि द्वारा किए गए कार्य तृतीयक व्यवसाय कहलाते हैं।
हाल ही में विद्वानों ने सेवा सेक्टर को चतुर्थ एवं पंचम क्रियाकलापों में विभक्त किया है।
(iv) चतुर्थ व्यवसाय (Quarternary Occupation)—चतुर्थ व्यवसाय सेवा सेक्टर के उस प्रभाग को कहा जाता है, जो ज्ञानोन्मुखी है। कार्यालय भवनों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, अस्पताल एवं डॉक्टर के कार्यालयों, रंगमंचों, लेखाकार्य और दलाली को फर्मों में काम करने वाले कर्मचारी इस वर्ग की सेवाओं से संबंध रखते हैं।
(v) पंचम व्यवसाय (Quintinary Occupation)— उच्चतम स्तर के निर्णय लेने तथा नीतियों का निर्माण करने वाले व्यवसाय को पंचम व्यवसाय कहते हैं। इन्हें स्वर्ण कॉलर व्यवसाय कहा जाता है।
3. भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना – कीजिए। (Discuss the factors responsible for the uneven distribution of population in India.)
उत्तर – भारत में जनसंख्या का वितरण असमान है। इसका कारण देश के प्राकृतिक स्वरूप में भिन्नता तथा वर्षा का वितरण है। स्थलरूप, मिट्टी की उर्वरता, जलवायु, सिंचाई तथा यातायात की सुविधा इत्यादि ऐसे कारक हैं जो जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। सामान्यतः उत्तरी मैदानी भागों तथा समुद्रतटीय प्रदेशों में समतल भूमि, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई तथा यातायात की सुविधा के कारण अधिक जनसंख्या पायी जाती है तो पर्वतीय, पठारी और मरुस्थलीय भागों में इन सुविधाओं के अभाव के कारण कम जनसंख्या मिलती है। उत्तर भारत में पूरब से पश्चिम की ओर वर्षा की कमी के साथ-साथ जनसंख्या की भी कमी होती जाती है। गंगा के मैदान में देश के आधे से अधिक लोग रहते हैं। उत्तरी भारत का विस्तृत मैदान तथा दक्षिण भारत के तटीय मैदान देश के एक तिहाई क्षेत्र में विस्तृत है, किन्तु इनमें देश के दो तिहाई लोग बसे हुए हैं। जनसंख्या का भारी जमाव पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब इत्यादि में हैं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी अधिक जनसंख्या पायी जाती है। दूसरी ओर उत्तरी पर्वतीय राज्य, पश्चिमी राजस्थान, गुजरात के कच्छ तथा छत्तीसगढ़ और ओडिशा के पठारी भाग विरल आबाद हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ तथा जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी है। देश में सर्वाधिक घनत्व बिहार (1102) में है जिसके बाद क्रमशः पश्चिम बंगाल (1029), केरल (859) और उत्तर प्रदेश (828) का स्थान आता है। सबसे कम घनत्व अरुणाचल प्रदेश (17) में है। इस प्रकार, मैदानी भाग मानव निवास की सुविधा के कारण सघन आबाद हैं, जबकि विपरीत परिस्थिति के कारण पर्वतीय भाग विरल आबाद हैं।
4. विश्व में जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।(Discuss the factors influencing the distribution and density of population in the world.)
उत्तर – विश्व की जनसंख्या के वितरण और घनत्व में काफी असमानता पायी जाती है। सन 2007 में विश्व की अनुमानित जनसंख्या लगभग 6.7 अरब थी। इसका 90% इसके 10% स्थल भाग में निवास करता है। विश्व की लगभग 60% जनसंख्या इसके दस सर्वाधिक आबादी वाले देशों में निवास करती हैं, इनमें से छः देश एशिया में है। इनमें विश्व के सर्वाधिक लोग 132.18 करोड़ चीन में और दूसरा सर्वाधिक 121 करोड़ भारत में रहते हैं, और ये दोनों देश मिलकर संसार के 38% लोगों के निवास स्थान हैं। विश्व की 60% जनसंख्या एशिया में और एशिया की दो-तिहाई जनसंख्या चीन और भारत में रहती है। जनसंख्या के घनत्व में भी असमानता पायी जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका का उ० पू० भाग, यूरोप का उ० प० भाग तथा दक्षिणी, दक्षिणी-पूर्वी और पूर्वी एशिया विश्व के सबसे सघन आबाद क्षेत्र हैं और इनकी जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी० से अधिक है। इसके विपरीत, ध्रुवीय क्षेत्र, ऊष्ण और शीत मरुस्थल और विषुवत रेखीय उच्च वर्षा वाले क्षेत्र सबसे विरल जनसंख्या (एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० से कम) वाले प्रदेश हैं।
लोग ऐसे स्थानों पर बसना चाहते हैं, जहाँ उन्हें भोजन, पानी, घर बनाने के लिए चौरस भूमि और उपयुक्त जलवायु मिले। जनसंख्या के वितरण और घनत्त्व को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
(i) भौतिक कारक- जल की उपलब्धता, भू-आकृति, जलवायु, मिट्टी, वन।
(ii) आर्थिक कारक- खनिज, औद्योगीकरण, नगरीकरण।
(iii) सामाजिक और सांस्कृतिक कारक – धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के क्षेत्र लोगों को अधिक आकर्षित करते हैं। धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अशांत क्षेत्रों को छोड़कर लोग अन्यत्र बस जाते हैं और वहाँ की जनसंख्या विरल हो जाती है।
5. विश्व में जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए। (Explain the trend of population growth in the world.)
उत्तर – एक निश्चित अवधि में किसी क्षेत्र विशेष में निवासियों की संख्या परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं। संसार की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। 1650 ई० से विश्व की जनसंख्या का लिखित प्रमाण मिलता है, अतः इसे विश्व जनसंख्या वृद्धि का विभाजक माना जाता है। 1650 ई० में विश्व की जनसंख्या 50 करोड़ थी, जो बढ़कर 2010 ई० में 684 करोड़ हो गई।
जनसंख्या की वृद्धि की दर में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। विश्व की कुल जनसंख्या के दुगुनी होने की अवधि के आँकड़ें से भी यह प्रतीत होता है कि आरंभ में जनसंख्या के दुगुनी होने की अवधि लंबी थी, किन्तु अब यह उत्तरोत्तर छोटी होती जा रही है। उदाहरणस्वरूप-1650 ई० में विश्व की जनसंख्या 50 करोड़ थी, जो 200 वर्षों में 1850 में 100 करोड़ हो गई । पुनः यह 80 वर्षों में 1930 ई० में 200 करोड़ और केवल 45 वर्षों में 1975 ई० में 400 करोड़ हो गई। – यह उल्लेखनीय है कि विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों की जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत कम है और कुछ विकसित देशों में तो जनसंख्या घट रही है। जनसंख्या की सर्वाधिक वृद्धि अफ्रीकी देशों में हो रही है। रूस, जर्मनी, स्पेन, इटली इत्यादि देशों की जनसंख्या की वृद्धि दर ऋणात्मक है और इनकी कुल जनसंख्या ही घट रही है।
6. जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत की विवेचना कीजिए।(Discuss Demographic transition theory.)
उत्तर – जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का प्रतिपादन जनांकिकी के विद्वान एफ० डब्लयु० नोटेस्टीन ने किया था। जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि जन्मदर और मृत्युदर पर निर्भर करती है। अविकसित देशों में जन्म दर और मृत्यु दर ऊँची रहती है। जैसे-जैसे देश विकास करता है, उसकी जन्म दर और मृत्यु दर में परिवर्तन होने लगता है। इस परिवर्तन को जनांकिकीय संक्रमण या चक्र कहते हैं। प्रत्येक देश अविकसित अवस्था से विकसित अवस्था तक पहँचते हए जनांकिकीय संक्रमण की मख्य तीन अवस्थाओं से गुजरता है। ये तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं –
(i) प्रथम अवस्था (First Stage)—इस अवस्था में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों उच्च होती है। अज्ञानता और निरक्षरता के कारण उच्च जन्म दर और महामारियों के कारण उच्च मृत्यु दर रहती है। इसके फलस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि धीमी होती है। 200 वर्ष पूर्व विश्व के अधिकांश देश इसी अवस्था में थे। वर्षा वनों के आदिवासी अभी भी इसी अवस्था में हैं।
(ii) द्वितीय अवस्था (Second stage)—इस अवस्था के आरंभ में जन्म दर ऊँची बनी रहती है, किन्तु यह समय के साथ शिक्षा के स्तर में सुधार के साथ घटती जाती है। स्वास्थ्य संबंधी दशाओं और स्वच्छता में सुधार के कारण मृत्यु दर जन्म दर की तुलना में काफी तेजी से घटती है। इस कारण जनसंख्या में आरंभ में काफी तेजी से वृद्धि होती है। चीन और भारत इसी अवस्था से गुजर रहा है। ..
(iii) तृतीय अवस्था (Third stage)—इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों बहुत कम हो जाती हैं। अतः जनसंख्या या तो स्थिर हो जाती है या मंद गति से बढ़ती है। जनसंख्या नगरीय और शिक्षित हो जाती है तथा उसके पास तकनीकी ज्ञान होता है। ऐसी जनसंख्या विचार पूर्वक परिवार के आकार को नियंत्रित करती है। कनाडा, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका इत्यादि इसी अवस्था में हैं।
7. भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण का वर्णन कीजिए। (Describe distribution of cotton textile industry in India.)
उत्तर – वितरण यह देश का सबसे अधिक विकेंद्रीकृत उद्योग है। विशेष रूप से इसका जमाव गंगा के मैदान और प्रायद्वीपीय भू-भाग के शुष्क पश्चिमी भागों में अधिक मिलता है।
सूती-वस्त्र उद्योग हमारे देश में निम्न प्रकार से विकेंद्रित है —
(i) महाराष्ट — यह राज्य प्रथम स्थान रखता है। यहाँ पर 157 मिलें हैं, जिनमें से अकेले मुंबई महानगर में 62 मिलें हैं। इसलिए इसे सूतीवस्त्रों की राजधानी कहते हैं। इस राज्य में 3 लाख से अधिक श्रमिक इस कार्य में लगे हैं। शोलापुर, अकोला, अमरावती, वर्धा, पूना, सतारा, कोल्हापुर, नागपुर आदि सूती-वस्त्र उद्योग के केंद्र हैं।
(ii) गुजरात — यह दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है। यहां पर 110 मिलें हैं। इस राज्य में वही सब सुविधाएँ प्राप्त हैं, जो महाराष्ट्र राज्य को प्राप्त है। अहमदाबाद सूती-वस्त्रों की राजधानी है। इस नगर में 72 मिले हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण केंद्र बड़ोदरा, सूरत, भावनगर, पोरबंदर, राजकोट तथा भड़ौच हैं।
(iii) मध्यप्रदेश – यहाँ पर कपास बहुतायत से उत्पन्न की जाती है। इसके अलावा कोयला, सस्ते श्रमिक, रेल-परिवहन की सुविधा आदि प्राप्त है। यहाँ 24 मिलें हैं। प्रमुख केंद्र इन्दौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, ग्वालियर, भोपाल और जबलपुर हैं।
(iv) उत्तर प्रदेश – उत्पादन की दृष्टि से इसका चौथा स्थान है। यहाँ पर 36 मिलें है। “कानपुर उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहलाता है।” मुरादाबाद, मोदीनगर, सहारनपुर, अलीगढ़, आगरा, इटावा, वाराणसी, लखनऊ आदि प्रमुख केन्द्र हैं। यह कपास पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र राज्यों से मंगाता है।
(v) पश्चिम बंगाल—इस राज्य में यह बाजार-स्थापना उद्योग है, जबकि महाराष्ट्र में यह कच्चा-माल स्थापना उद्योग है। शेष सभी वही सुविधाएँ प्राप्त हैं जो महाराष्ट्र को है। यहाँ 45 मिलें हैं। कोलकाता के आसपास 50 किमी० की परिधि में हुगली नदी के दोनों किनारों पर हुगली, हावड़ा, चौबीस. परगना जिलों में वस्त्र-उद्योग केंद्रित है।
(vi) तमिलनाडु – इस राज्य में मिलों की संख्या सबसे अधिक 208 हैं। उत्पादन की दृष्टि से इसका स्थान छठा है। यहाँ पर कपास का यथेष्ट मात्रा में मिलना, सस्ती जल-विद्युत, पर्याप्त श्रमिक जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। “कोयम्बटूर इस राज्य की वस्त्र राजधानी है।” अन्य प्रमुख केंद्र मदुरई, चेन्नई, सलेम, पेराम्बूर, रामनाथपुरम आदि हैं।
(vii) कर्नाटक—यहाँ 30 मिलें । देवनगिरि, हुबली, मैसूर, बंगलौर आदि में बड़ी-बड़ी वस्त्र मिलें स्थित हैं। यहाँ मध्यम व निम्न किस्म के वस्त्र तैयार किये जाते हैं।
इनके अतिरिक्त आंध्रप्रदेश में 31 मिलें और केरल में 26 कारखाने हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और बिहार में भी सूती वस्त्र के कारखाने पाये जाते हैं।
निर्यात व्यापार – भारत से दक्षिणी-पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका को सिलेसिलाये कपड़े का निर्यात होता है। चीन और जापान के साथ प्रतिस्पर्धा बनी रहती है। सती-वस्त्र निर्यात वृद्धि परिषद (Cotton Textile Export Promotion Council) भारतीय वस्त्र की विदेशों में निर्यात बढ़ाने की दिशा में कार्य करती है। 1998-99 ई० में भारत से 52,720-78 करोड़ रुपये का कपड़ा निर्यात हुआ। देश के कुल निर्यात व्यापार में कपड़ा का हिस्सा 33% है। इससे स्पष्ट है कि भारत की अर्थव्यवस्था में इस उद्योग की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।
8. भारत में लौह अयस्क के वितरण का विवरण दीजिए। (Give an account of the distribution of Iron ore in India.)
उत्तर – लौह-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग है। इससे विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीन तथा संयंत्र, कृषि के उपकरण तथा परिवहन के साधन बनाए जाते हैं। वास्तव में यह उद्योग आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तेजी से हुआ। भिलाई (छत्तीसगढ़), राउरकेला (उड़ीसा) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) के अतिरिक्त बोकारो (झारखंड), सलेम (तमिलनाडु), विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) और विजयनगर (कर्नाटक) में कारखाने खोले गए। ये सभी कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं तथा “स्टील ऑथरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के नियंत्रण में है, जिसे 1974 ई० में कायम किया गया।
वितरण : भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का वितरण इस प्रकार है –
(i) टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी (TISCO)- यह मुम्बई-कोलकाता रेलमार्ग पर स्थित है। यहाँ के इस्पात के निर्यात के लिए सबसे नजदीक (लगभग 240 किमी० दूर) पत्तन कोलकाता है। संयंत्र को पानी स्वर्ण रेखा और खरकई नदियों से, लोहा नोआमुंडी और बादाम पहाड़ से, कोयला झरिया और रानीगंज से तथा जलविद्युत दामोदर घाटी से मिलती है।
(ii) इंडियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी (IISCO) -इसकी तीन इकाइयाँ कुल्टी, हीरापुर और बर्नपुर में स्थित है। ये तीनों संयंत्र दामोदर घाटी कोयला क्षेत्रों के निकट कोलकाता-आसनसोल रेलमार्ग पर स्थित है। इसे लौह-अयस्क सिंहभूम से, जल बराकर नदी से, चूना-पत्थर पलामू से तथा मैंगनीज मध्यप्रदेश से प्राप्त होता है। यह संयंत्र सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया है।
(iii) विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL)- यह कारखाना 1923 ई० में कर्नाटक के भद्रावती नामक स्थान पर स्थापित किया गया। पहले इसे मैसूर आयरन एण्ड स्टील कंपन: (MISCO) कहा जाता था। यह सार्वजनिक क्षेत्र में है। इसे बाबाबुदन की पहाड़ियों से लौह-अयस्क, निकटवर्ती क्षेत्रों से चूना पत्थर और मैंगनीज, जंगलों से काष्ठ कोयला तथा जोग और शिवसमुद्रम प्रपात से जल विद्युत मिलती है। यहाँ स्टेनलेस स्टील तथा दैनिक साज-सामान के लिए विशेष प्रकार का इस्पात तैयार किया जाता है।
(iv) राउरकेला इस्पात संयंत्र- यह कारखाना 1954 ई० में जर्मनी की सहायता से उड़ीसा के राउरकेला स्थान पर स्थापित किया गया। अन्य सुविधाओं के अतिरिक्त इसे कोइल और शंख नदियों से जल तथा हीराकुंड परियोजना से जलविद्युत मिलती है।
(v) भिलाई इस्पात संयंत्र—इसकी स्थापना 1955 में रूस की सहायता से छत्तीसगढ़ के भिलाई नामक स्थान पर हुई।
(vi) दुर्गापुर इस्पात संयंत्र- यह कारखाना ग्रेट ब्रिटेन की सहायता से कोलकाता के निकट दुर्गापुर में 1956 ई० में स्थापित किया गया।
(vii) बोकारो इस्पात संयंत्र- यह इस्पात संयंत्र रूस के सहयोग से 1964 में दामोदर नदी के किनारे झारखंड के बोकारो नामक स्थान पर स्थापित किया गया। यह भारत का सबसे बड़ा संयंत्र है।
(viii)सलेम स्टील प्लांट-इसकी स्थापना तमिलनाडु के सलेम नामक स्थान पर की गई। , इसे 1982 में पूरा किया गया। . (ix) विशाखापटनम (विजाग) स्टील संयंत्र- यह आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम बंदरगाह पर 1989 ई० में स्थापित किया गया। यह भारत का पहला पत्तन आधारित संयंत्र है, जिसे निर्यात की सुविधा प्राप्त है।
(x) विजयनगर स्टील संयंत्र-यह कर्नाटक के हॉस्पेट में स्थित है। इन मुख्य इस्पात संयंत्रों के अतिरिक्त भारत में 200 से अधिक छोटे इस्पात संयंत्र हैं, जो स्क्रैप (टूटे-फूटे रद्दी स्टील) और स्पंज लोहे का उपयोग कच्चा माल के रूप में करते हैं। भारत स्पंज स्क्रैप लोहा का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है।
9. भारत में कोयला के भंडार, उत्पादन का उल्लेख करें। (Discuss the reserves, production of Coal in India.)
उत्तर – भारत में कोयला शक्ति का प्रमुख साधन है। देश के कुल शक्ति संसाधनों का 74% कोयला से ही प्राप्त होता है। यह लौह-इस्पात उद्योग तथा अन्य उद्योगों के लिए आधार-स्तम्भ है। रासायनिक उद्योग के लिए यह कच्चा माल के रूप में काम आता है। इससे गैस, अमोनिया, अलकतरा, रंग, नायलन इत्यादि बनता है। कोयला के बढ़ते हुए महत्त्व के कारण इसे काला सोना या काला हीरा कहा जाता है।
भंडार – भारतीय भू-सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 186 अरब टन कोयले का भंडार है। इनमें से 98% कोयला गौण्डवाना तथा 2% कोयला टर्शियरी युग का है। गौण्डवाना युग का कोयला मुख्यतः बिटुमिनस तथा टर्शियरी युग का कोयला लिग्नाइट प्रकार का है। गौण्डवाना के कोयला-भंडार झारखण्ड, प० बंगाल, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में तथा टर्शियरीयुगीन कोयला-भंडार असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में है। तमिलनाडु में भी लिग्नाइट कोयला मिलता है। भारत के कुल कोयला का दो-तिहाई भंडार कवल झारखड, प० बगाल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में है।
उत्पादन – भारत में कोयला का उत्खनन 1774 ई० में प्रारंभ हुआ। किंतु, व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन 1839 ई० से हो रहा है। स्वतंत्रता के बाद कोयला के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है। 1951 ई० में कोयला का उत्पादन 3.23 करोड टन था जो बढ़कर 1981 ई० में 12.5 करोड़ टन और 1991 ई० में 22 करोड़ टन पहुँच गया। 1998-99 ई० में कुल 23.36 करोड़ टन कोयला का उत्पादन हुआ है जिसमें 2.3 करोड़ टन लिग्नाइट कोयला सम्मिलित है। इस प्रकार 1998-99 ई० में कुल 171.71 अरब रुपये के कोयले का उत्पादन हुआ, जिनमें 9.27 अरब रुपये का लिग्नाइट कोयला सम्मिलित है।
अभी भारत का स्थान विश्व के कोयला उत्पादक देशों में आठवाँ है। भारत में कोयला उत्पादक राज्यों में झारखण्ड का स्थान प्रथम है, जहाँ देश के कुल कोयला का लगभग 30% उत्पादन होता है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, प० बंगाल और आंध्रप्रदेश अन्य उत्पादक राज्य हैं। भारत सरकार ने अब कोयले का उत्पादन अपने हाथों में ले लिया है तथा सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय कोयला विकास निगम की स्थापना की है। यह देश में कोयला-क्षेत्रों का तेजी से विकास कर रहा है।
10. भारत में कोयला के वितरण का उल्लेख करें। (Discuss the distribution of Coal in India.)
उत्तर – वितरण-भारत में कोयला का उत्पादन मुख्यतः दो क्षेत्रों में -, गौण्डवाना क्षेत्र और टर्शियरी क्षेत्र।
(i) गौण्डवाना कोयला क्षेत्र—यह दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में स्थित है, जहाँ नदी-घाटियों की गौण्डवाना प्रणाली की चट्टानों में कोयला का निक्षेप केंद्रित है। इसके चार क्षेत्र हैं।
(क) दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र — यह भारत का सबसे प्रमुख कोयला क्षेत्र है, जहाँ भारत के कुल कोयला भंडार का 60% सुरक्षित है। यह झारखंड तथा प० बंगाल में स्थित है जहाँ उत्तम कोटि का बिटुमिनस तथा कोकिंग कोयला मिलता है। इसकी मुख्य खानें झारखंड में झरिया, गिरिडीह, कर्णपुरा, बोकारो, पलामू इत्यादि तथा प० बंगाल में रानीगंज में स्थित हैं।
(ख) सोन-महानदी कोयला क्षेत्र- इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा राज्य के क्षेत्र सम्मिलित हैं। छत्तीसगढ़ की कोयला खाने सिंगरौली, उमरिया, कोरबा, सुहागपुर में तथा उड़ीसा की तलचर क्षेत्र में है।
(ग) सतपुरा कोयला क्षेत्र- यह क्षेत्र मध्यप्रदेश में स्थित है। यहाँ कोयला के अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें मोहपानी और पेंचघाटी महत्त्वपूर्ण हैं।
(घ) गोदावरी-वर्द्धा कोयला क्षेत्र- यह महाराष्ट्र तथा आंध्रप्रदेश में स्थित है जिसका द० भारत के लिए विशेष रूप से महत्त्व है। महाराष्ट्र में चन्दा और आंध्रप्रदेश में सिंगरेनी प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं।
(ii) टर्शियरी कोयला क्षेत्र- इस क्षेत्र में भारत का बहुत कम कोयला प्राप्त होता है। यहाँ निम्नकोटि का लिग्नाइट कोयला मिलता है, किन्तु बिटुमिनस कोयला के अभावग्रस्त क्षेत्र में इनका महत्त्व अधिक है। टर्शियरी युग का कोयला असम, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश इत्यादि में पाया जाता है। तमिलनाडु के निवेली में भी लिग्नाइट कोयला मिलता है, जहाँ कोयला साफ करने के लिए लिग्नाइट कारपोरेशन स्थापित किया गया है।
S.N | Geography लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर ( 20 Marks ) |
1. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1 |
2. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2 |
3. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3 |
4. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4 |
5. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5 |
6. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6 |
7. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 7 |
8. | Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 8 |
S.N | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 15 Marks ) |
1. | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1 |
2. | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2 |
3. | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3 |
4. | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4 |
5. | Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5 |