Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 15 Marks ) PART- 2


11. भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास का वर्णन करें। (Describe the growth of iron and steel industry in India.)

उत्तर – भारत में हजारों वर्ष पूर्व उत्तम कोटि का इस्पात बनाया जाता था। दिल्ली का लौह-स्तंभ तथा कोणार्क मंदिर की लोहे की कड़ियाँ इसके प्रमाण है। प्राचीन काल में लोहा-इस्पात का उत्पादन घरेलू उद्योगों में होता था।
भारत में लोहा-इस्पात का सबसे पहला कारखाना 1830 में तमिलनाडु में पोर्टोनोवो (Portonovo) नामक स्थान पर स्थापित किया गया, परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण इसे बंद कर दिया गया। आधुनिक युग का पहला कारखाना 1874 ई० में पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर खुला, जिसे बाद में “बराकर आयरन वर्क्स” के नाम से जाना गया।
आधुनिक ढंग का बड़ा कारखाना 1907 ई० में झारखंड में स्वर्णरेखा घाटी के साकची नामक स्थान पर खुला। इसका नाम “टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी” (TISCO) रखा गया। इसके संस्थापक उद्योगपति जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा थे, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम जमशेदपुर या टाटा पड़ा। इसी के निकट बर्नपुर में 1919 ई० में एक कारखाना खोला गया, जो आज “इंडियन आयरन एण्ड स्टील कपनी” (IISCO) के नाम से प्रसिद्ध है। इसी में 1936 ई० में कुल्टी के “बराकर आयरन वर्क्स” को मिला दिया गया। दक्षिण भारत में 1923 ई० में कर्नाटक के भद्रावती नामक स्थान पर भद्रा नदी के किनारे एक कारखाना खोला गया, जो आज विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील लिमिटेड (VISL) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार स्वतंत्रता के पूर्व भारत में जमशेदपुर, कुल्टी-बर्नपुर तथा भद्रावती में लोहा-इस्पात के कारखाने स्थित थे। ये सभी कारखाने निजी क्षेत्र में थे, किंतु भद्रावती के कारखाना को 1963 ई० में सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोहा-इस्पात उद्योग का विकास तेजी से हुआ। भिलाई (छत्तीसगढ़), राउरकेला (उड़ीसा) और दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) के अतिरिक्त बोकारो (झारखंड), सलेम (तमिलनाडु), विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) और विजयनगर (कर्नाटक) में कारखाने खोले गए। ये सभी कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं तथा “स्टील ऑथरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के नियंत्रण में है, जिसे 1974 ई० में कायम किया गया।


12. भारत के लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास के लिए उपलब्ध भौगोलिक . दशाओं का वर्णन करें।(Describe the available geographical conditions for the growth of iron and steel industry in India.)

उत्तर – लौह-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग है। इससे विभिन्न कल-कारखानों के लिए मशीन तथा संयंत्र, कृषि के उपकरण तथा परिवहन के साधन बनाए जाते हैं। वास्तव में यह उद्योग आधुनिक सभ्यता की रीढ़ है।
भारत में लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ मिलती है। यहाँ उच्च कोटि का हेमाटाइट लौह-अयस्क, बिटुमिनस कोयला, चूना-पत्थर, मैंगनीज इत्यादि पर्याप्त मात्रा में छत्तीसगढ़, उत्तरी उडीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अर्द्धचंद्रकार क्षेत्र में उपलब्ध है। ये सभी कच्चे माल स्थूल (भार ह्रास वाले) होते हैं। अतः इस उद्योग की स्थापना कच्चे माल के इन स्रोतों के निकट हुई है। इनके अतिरिक्त जल विद्युत, सस्ते श्रमिक, रेलमार्ग तथा जलमार्ग एवं देशी तथा विदेशी बाजारों की भी सुविधा उपलबध है। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश में लौह-इस्पात उद्योग प्रारंभ में ही स्थापित कर दिया गया था।


13. उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए।(Discuss the factors of localisation of industries.).

उत्तर – उद्योगों के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदाई है –

(i) कच्चा-माल (Raw Materials)—सभी उद्योगों में कच्चा-माल का प्रयोग होता है, जिसे सस्ते दर पर उपलब्ध होना चाहिए। भारी वजन, सस्ते मूल्य एवं भार ह्रासमूलक कच्चा-माल पर आधारित उद्योग कच्चा-माल के स्रोत के समीप ही स्थित होते हैं, जैसे लोहा-इस्पात, सीमेंट
और चीनी उद्योग।

(ii) बाजार (Markets)—उद्योगों से उत्पादित माल की माँग और वहाँ के निवासियों की क्रयशक्ति को बाजार कहा जाता है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया वैश्विक बाजार हैं। द० प० एशिया के घने बसे क्षेत्र भी व्यापक बाजार हैं। ये सभी उद्योगों की स्थापना
को सहायता पहुँचाते हैं।

(iii) श्रम (Labour)- उद्योगों की अवस्थिति के लिए कुशल एवं अकुशल श्रमिक भी आवश्यक हैं। मुम्बई और अहमदाबाद के सूती वस्त्रोद्योग मुख्यतः बिहार और उत्तर प्रदेश से आय श्रमिकों पर आधारित हैं। स्विट्जरलैंड का घड़ी उद्योग और सूरत का हीरा तराशने का उद्योग कुशल श्रमिकों पर आश्रित हैं।

(iv) ऊर्जा के स्रोत (Sources of power)- जिन उद्योगों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वे ऊर्जा के स्रोतों के समीप ही लगाये जाते हैं, जैसे पिट्सवर्ग और जमशेदपुर में लोहा-इस्पात उद्योग। आजकल विद्युत-ग्रिड द्वारा जल विद्युत और पाइपलाइन द्वारा खनिज तेल दूर तक पहुँच जाते हैं और इनके उत्पादन के समीप उद्योगों को लगाना आवश्यक नहीं है।

(v) जल (Water)—सूती वस्त्रोद्योग में कपड़ा की धुलाई, रंगाई इत्यादि के लिए तथा लोहा-इस्पात उद्योग में प्रक्रमण, भाप निर्माण और लोहे को ठंढा करने के लिए जल आवश्यक है। अतः इनकी स्थापना जल स्रोत के समीप ही होती है।

(vi) परिवहन एवं संचार (Transporn and Communication)—कच्चे-माल को कारखाने तक लाने और तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ आवश्यक हैं। . (vii) प्रबंधन (Management)—यह जानना आवश्यक है कि उद्योग के लिए चुने गए स्थल अच्छे प्रबंधकों को आकर्षित करने योग्य हैं या नहीं।

(viii) पँजी (Capital)—यद्यपि बैंकिंग सेवाओं के माध्यम से देश के भीतर अब पूँजी अधिक गतिशील हो गई, फिर भी अशांत और खतरनाक क्षेत्र में उत्पादन अनिश्चित होता है और ये पूँजी के लिए कम आकर्षक होते हैं।

(ix) सरकारी नीति (Government Policy)—संतुलित आर्थिक विकास हेतु सरकार कुछ निश्चित क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करती है। देश के संसाधनों के प्रयोग से सर्वोत्तम लाभ के लिए भी विशिष्ट क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जाती है।

(x) पर्यावरण (Environment)- उद्योगों की स्थापना, उद्योगकर्मी के रहन-सहन इत्यादि की सुविधा के लिए उपयुक्त भूमि, जलवायु और पर्यावरण के अन्य तत्त्व आवश्यक हैं।


14. उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग से आप क्या समझते हैं? ये उद्योग अधिकतर देशों में प्रमुख महानगरों के परिधि क्षेत्रों में ही क्यों विकसित हो रहे हैं? (What do you mean by high tech industries ? Why are these developed in the peripheral areas of major metropolitan centres in many countries ?)

उत्तर- उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग नवीनतम उद्योग है, जिसमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्माण गहन शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इन उद्योगों के उत्पादों की गुणवत्ता में निरन्तर परिष्कार होता रहता है। यही कारण है कि इस उद्योग में अत्यंत कुशल, प्रशिक्षित और प्रतिभाशाली व्यक्तियों को ही काम मिलता है। इन्हें प्रायः स्वच्छंद उद्योग (Foot loose Industry) कहा जाता है; क्योंकि इनका स्थानीयकरण परंपरागत कारकों पर आधारित नहीं होता है।
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग प्रायः महानगरों के उपान्त क्षेत्र में स्थापित होते हैं। ये स्थान नगर के आंतरिक भागों की तुलना में कई प्रकार के लाभ प्रदान करते हैं-
(i) एक मंजिले कारखानों तथा भविष्य में विस्तार के लिए स्थान,
(ii) नगर-परिधि पर सस्ता भू-मूल्य,
(ii) मुख्य सड़क तथा वाहन मार्गों तक गम्यता
(iv) प्रदूषण रहित पर्यावरण तथा हरित क्षेत्र का अतिरिक्त लाभ और,
(v) निकटवर्ती आवासीय क्षेत्रों एवं पड़ोसी ग्रामों से प्रतिदिन आने-जाने वाले लोगों से श्रम की आपूर्ति।


15. औद्योगिक क्रांति के धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभावों का वर्णन कीजिए। (Describe the positive and negative impact of Industrial Revolution.)

उत्तर – औद्योगिक क्रांति इंगलैंड में लगभग 1750 ई० में प्रारंभ हुई । इसका तात्पर्य उद्योग के क्षेत्र में उन तीव्र परिवर्तनों से है, जो इतने प्रभावशाली थे कि उन्हें क्रांति का नाम दिया गया। इस परिवर्तन के फलस्वरूप बड़े-बड़े कारखानों में हाथ के स्थान पर मशीनों का प्रयोग होने लगा। इससे कम समय में अधिक उत्पादन होने लगा।

औद्योगिक कांति का अच्छा और बरा दोनों प्रभाव पड़ा।

अच्छा या धनात्मक प्रभाव (Good or Positive Impact) – औद्योगिक क्रांति का धनात्मक प्रभाव न केवल उद्योगों पर पड़ा, बल्कि कृषि, यातायात, संचार, व्यापार और शिक्षा भी इससे प्रभावित हुए।

(i) उद्योग पर प्रभाव (Impact on Industries)– उद्योगों में बड़े पैमाने पर शोध कार्य हुए और नई-नई मशीनों का आविष्कार हुआ । इससे मानव श्रम की आवश्यकता कम हुई और उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि हुई।

(ii) कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture)—नयी-नयी मशीनों के आविष्कार के कारण खेती के लगभग सभी कार्य मशीनों से होने लगे तथा सिंचाई के साधनों का विकास हुआ। उत्तम बीज तथा रासायनिक खाद का प्रयोग भी बढ़ा। इससे कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।

(iii) यातायात पर प्रभाव (Impact on Transport) औद्योगिक क्रांति के कारण कच्चे माल तथा तैयार माल को लाने-ले जाने के लिए यातायात के तीव्र साधन यथा मोटर वाहन, रेलइंजन और डिब्बे, जलयान, वायुयान इत्यादि का विकास हुआ।

(iv) संचार पर प्रभाव (Impact on Communication)– औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप तार, टेलीफोन, वायरलेस, मोबाइल, इंटरनेट इत्यादि का विकास हुआ। (v) व्यापार पर प्रभाव (Impact on Trade) औद्योगीकरण के फलस्वरूप चीजों का उत्पादन बढ़ा, लोगों की आवश्यकता बढ़ी और यातायात तथा संचार के साधनों का विकास हुआ। इससे व्यापार के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ।

(vi) शिक्षा पर प्रभाव (Impact on Education)-शिक्षा के क्षेत्र में भी नयी-नयी तकनीक और मशीनों (प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, इंटरनेट इत्यादि) का प्रयोग होने लगा। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति ने शिक्षा पर भी अच्छा प्रभाव छोड़ा है।

बुरा या ऋणात्मक प्रभाव (Bad or Negative Impact)

(i) बेरोजगारी (Unemployment)- औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मशीनों के प्रयोग बढ़ने से विश्व के लगभग सभी देशों में बेरोजगारी बढ़ी है।

(ii) उपनिवेशीकरण (Colonisation)—पाश्चात्य विकसित देशों ने कच्चा माल के लिए एशिया के बहुत से देशों को अपना उपनिवेश बनाया, जहाँ उन्हें कच्चा माल आसानी से मिल जाता था और तैयार माल की बिक्री हो जाती थी।

(iii) औद्योगिक देशों के बीच संघर्ष (Conflict among Industrial countries) तैयार माल की बिक्री और कच्चा माल की प्राप्ति के लिए यूरोपीय और औद्योगिक देशों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष ने जन्म लिया।

(iv) सैन्यवाद और शस्त्रीकरण (Militarisation and Armament)—साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा और नये-नये अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कार ने सैन्यवाद और शस्त्रीकरण को जन्म दिया, जिसके फलस्वरूप प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हुए।


16. “संसार के अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग केंद्र समुद्रतटीय भागों में स्थित है।” इस कथन की समीक्षा करें। (“Most of the iron and steel industrial centres of the world are located in coastal areas.” Examine this statement.)

उत्तर – उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में कच्चा माल की उपलब्धि, ऊर्जा और यातायात के साधन महत्त्वपूर्ण हैं।
लोहा तथा इस्पात उद्योग का मुख्य कच्चा माल कोयला और लौह-अयस्क है। कोयला ऊर्जा का भी एक साधन है। इस्पात निर्माण के लिए लौह-अयस्क से लगभग ढाई गुना अधिक कोयला की आवश्यकता पड़ती है। कोयला एक भारी खनिज है और इतनी अधिक मात्रा में इसे लौह-अयस्क के क्षेत्र में पहुँचाने में काफी खर्च पड़ता है और इस्पात का उत्पादन मूल्य बढ़ जाता है। अतः लोहे को कोयला क्षेत्र में पहुँचाकर लोहा तथा इस्पात उद्योग की स्थापना की जाती है। संसार के मुख्य कोयला क्षेत्र अटलांटिक, प्रशांत एवं अन्य समुद्रतटीय भागों में पाए जाते हैं। ये ही कोयला प्रदेश लोहा तथा इस्पात के केंद्र बन गए हैं।
समुद्रतटीय भाग जल यातायात के दृष्टिकोण से भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं । समुद्री यातायात स्थलीय यातायात से काफी सस्ता और सरल है। इस कारण समुद्रतटीय भागों में स्थापित लोहा एवं इस्पात उद्योग को कच्चा माल मंगाने और तैयार माल बाजार में भेजने में काफी आसानी होती है और खर्च कम पड़ता है। यही कारण है कि संसार के अधिकांश लोहा एवं इस्पात केंद्र समुद्रतटीय भागों में स्थित हैं।


17. पत्तन किस प्रकार व्यापार के लिए सहायक होते हैं ? (How are ports helpful for trade ?)

उत्तर – पत्तन समुद्र तट पर वह स्थान है, जहाँ दूसरे देशों से आयात किए गए माल को उतारा जाता है तथा देश के उत्पादित माल को निर्यात के रूप में बाहर भेजा जाता है। इस प्रकार यह एक “प्रवेश एवं निकास बिंद” का कार्य करता है। यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण निभाता है, अतः इसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रवेश द्वार (तोरण) भी कहा जाता है। इसी के द्वारा जहाजी माल तथा यात्री विश्व के एक भाग से दूसरे भाग को जाते हैं। पत्तन जहाज के ठहरने के लिए गोदी, सामान को लादने, उतारने तथा भंडारण हेतु सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इन सुविधाओं को प्रदान करने के लिए पत्तन के अधिकारी नौगम्य द्वारों का रख-रखाव, रस्सों व बजरों (छोटी अतिरिक्त नौकाएँ, जहाजों को खींचने वाली मशीनों, श्रम तथा प्रबंधकों इत्यादि की व्यवस्था करते है।


18. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पनामा नहर की महत्ता का वर्णन करें। (Describe the significance of Panama Canal in international trade.)

उत्तर – पनामा नहर को प्रशांत महासागर का सिंहद्वार कहा जाता है। यह मध्य अमेरिका के पनामा देश में पनामा जलडमरूमध्य के आर-पार पनामा नगर और कोलोन के बीच बनायी गयी है। यह पश्चिम में प्रशांत महासागर को पूर्व में अटलांटिक महासागर से जोड़ती है। इसका निर्माण कार्य 1904 में शुरू हुआ और 1914 में पूरा हुआ। इसपर पनामा देश की सरकार का स्वामित्व है। इसकी लम्बाई 72 किमी०, न्यूनतम गहराई 13 मीटर तथा चौड़ाई 100-330 मीटर है। इससे प्रतिदिन 80 जहाज गुजरते हैं और एक जहाज को गुजरने में 8 घंटा का समय लगता है। नहर अत्यधिक ऊँचे-नीचे क्षेत्र से होकर गुजरती है जो गहरी कटान से युक्त है। इसमें छः जलबंधक तंत्र (लॉकगेट) हैं, जिनके द्वारा कहीं जहाज ऊपर उठाये जाते हैं और कहीं नीचे लाये जाते हैं।

पनामा नहर के द्वारा न्यूयार्क से सैन-फ्रांसिस्को के बीच 13000 किमी०, न्यूयार्क से याकोहामा (जापान) के बीच 5440 किमी०, न्यूयार्क से ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) के बीच 4000 किमी० और सैन फ्रांसिस्को से लिवरपुल (यू०के०) के बीच 8000 किमी० की दूरी कम हो गई है। इससे लाभान्वित क्षेत्र उत्तरी अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्र, दक्षिण अमेरिका के पूर्वी व पश्चिमी देश, पश्चिमी यूरोप के देश तथा एशिया के पूर्वी देश हैं।


19. पत्तनों का वर्गीकरण उनकी अवस्थिति के आधार पर कीजिए। (Classifyports on the basis of location.) 

उत्तर–अवस्थिति के आधार पर पत्तन दो प्रकार के होते हैं –

(i) अंतर्देशीय या आंतरिक पत्तन (Inland porns)—ये पत्तन समुद्र तट से दूर स्थित होते हैं, किन्तु किसी नदी या नहर द्वारा समुद्र से जुड़े होते हैं। चपटे तलों वाले जहाजों अथवा बजरों द्वारा ही ये गम्य होते हैं। मैनचेस्टर और कोलकाता इसके उदाहरण हैं। मैनचेस्टर एक नहर पर तथा कोलकाता हुगली नदी पर स्थित हैं।

(ii) बाह्य पत्तन (Out ports)—ये गहरे पानी के पत्तन हैं, जो वास्तविक पत्तन से दूर गहरे समुद्र में बनाए जाते हैं। जो जहाज अपने बड़े आकार के कारण या अधिक मात्रा में अवसाद एकत्रित हो जाने के कारण वास्तविक पत्तन तक नहीं पहुँच पाते, उन्हें बाह्य पत्तन लंगर डालने या खड़ा होने की सुविधा प्रदान कर वास्तविक पत्तनों की सहायता करते हैं। ग्रीस में एथेंस का बाह्य पत्तन पिरॉस इसका उदाहरण है।


20. भारत में परिवहन के मुख्य साधन कौन-कौन से हैं? इनके विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें। (Which are the chief means of transportation in India ? Discuss the factors influencing their development.)

उत्तर – भारत में परिवहन के मुख्य साधन स्थल, जल और वायु हैं। स्थल परिवहन के अंतर्गत सड़क, रेलवे और पाइप लाइन; जल परिवहन के अंतर्गत अंत:स्थलीय और सागरीय व महासागरीय मार्ग; तथा वायु परिवहन के अंतर्गत राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन आते हैं। इनमें सड़क परिवहन सर्वप्रमुख है, जिससे प्रतिवर्ष 85 प्रतिशत यात्री तथा 70 प्रतिशत भार यातायात का परिवहन कया जाता है। जल परिवहन ईंधन दक्ष तथा पारिस्थितिकी अनुकूल है तथा यह सस्ता साधन है और भारी तथा स्थूल सामग्री के परिवहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। महासागरीय मार्ग विदेशी व्यापार के लिए सर्वप्रमुख है; भारत में भार के अनुसार 95% और मूल्य के अनुसार 70% विदेशी व्यापार इस मार्ग से होता है।

(i) प्राकृतिक कारक (Physical factors)—मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण आसान और सस्ता होता है, जबकि पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में कठिन एवं महँगा होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों की सड़कें घनत्व और गुणवत्ता में अधिक ऊँचे, बरसाती तथा वनीय क्षेत्रों की तुलना में बढ़िया होती है। यही कारण है कि देश के उत्तरी मैदान में सड़क और रेलमार्ग का सघन जाल मिलता है, जबकि हिमालय, उ०पू० भारत और प० राजस्थान में इनका विरल जाल है।

(ii) आर्थिक कारक (Economic factors)-आर्थिक दृष्टि से विकसित क्षेत्रों में परिवहन का सघन जाल मिलता है; क्योंकि इससे उत्पादक और उपभोक्ता क्षेत्रों के बीच सामानों आदान-प्रदान होता है। भारत के मैदानी, व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्रों में रेल और सड़क दोनों मार्ग सघन है। समद्रतटीय क्षेत्रों में महाराष्ट्र-गुजरात के सूतीवस्त्रोद्योग, केरल के मसाले और पं० मार्ग के जूट उद्योग के कारण समुद्री मार्ग का भी विकास हुआ है और इन्हें आंतरिक क्षेत्र से जोड़ने के लिए रेल और सड़क मार्ग का भी।

(iii) राजनैतिक कारक (Political factors) ब्रिटिश शासन काल में रेलों का विकास प्रमुख नगरों को जोडने और शासन की सविधा के लिए किया गया, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के सर्वांगीण विकास के लिए रेल और सड़क मार्ग का विकास हुआ।


S.N  Geography लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर ( 20 Marks )
1. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6
7. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 7
8. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 8
S.N Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 15 Marks )
1. Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2.  Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3.  Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4.  Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5.  Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
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