Class 12th Sociology ( समाज-शास्त्र ) ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2


Q.16. ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में अंतर स्पष्ट करें।

Ans ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है –

S.N ग्रामीण समुदाय नगरीय समुदाय
1. 1. आबादी कम होने के कारण इसका आकार छोटा होता है। 1. आबादी अधिक होने के कारण इसका आकार बड़ा होता है।
2. 2. इसका वातावरण प्राकृतिक होता है। 2. इसका वातावरण प्राकृतिक नहीं होता है।
3. 3. इसकी आबादी में समानता पायी  जाती है। 3. इसकी आबादी में विभिन्नता पायी जाती
4. 4. इसमें जाति के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता है। 4. इसमें वर्ग के आधार पर स्तरीकरण होता है।
5. 5. इसमें प्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है। 5. इसमें अप्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है।
6. 6. इसमें गतिशीलता कम पायी जाती है। 6. इसमें अपेक्षाकृत अधिक गतिशीलता पायी जाती है।
7. 7. इसका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। 7. इसका मुख्य व्यवसाय गैर-कृषि होता है।
8. 8. इसमें लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है। 8. इसमें जीवन स्तर उच्च होता है।
9. 9. इसमें संयुक्त परिवार पाया जाता है। 9. इसमें एकांकी परिवार पाये जाते हैं।
10. 10. इसमें लोगों के बीच प्राथमिक संबंध पाया जाता है। 10. इसमें लोगों के बीच द्वितीयक संबंध पाया जाता है।

Q. 17. भारतीय पारिवारिक व्यवस्था में होने वाले आधुनिक परिवर्तनों की चर्चा करें। अथवा, संयुक्त परिवार में वर्तमान परिवर्तनों का वर्णन करें।

Ans ⇒ औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण के फलस्वरूप भारतीय पारिवारिक व्यवस्था में अनेक परिवर्तन हुए जो निम्नलिखित हैं –

1. पहले की तुलना में संयुक्त परिवार का आकार छोटा होता जा रहा है।

2. प्राथमिक सम्बन्धों के स्थान पर द्वितीयक अथवा दिखावे के सम्बन्धों में वृद्धि हो रही है।

3. वर्तमान समय में कर्ता की स्थिति बदल गई है। अब उसकी स्थिति एक निरंकुश शासक की नहीं है, बल्कि ऐसे राजनीतिक नेता के समान है जो अपनी स्थिति
को बनाये रखने के लिए सभी सदस्यों की शक्ति के अनुसार उसकी भावनाओं का ध्यान रखता है।

4. परिवार में युवकों तथा स्त्रियों के अधिकार में वृद्धि हुई है।

5. परिवार के रूढ़िवादी धर्म और कर्मकाण्डों को अब महत्त्व नहीं दिया जाता है। फलतः धर्म के प्रति उदासीनता बढ़ी है।

6. अपनी रूचि और योग्यता के अनुसार व्यवसाय करने के कारण एक से अधिक व्यवसायों के द्वारा परिवार के सदस्य जीविका उपार्जित करते हैं।

7. पहले संयुक्त परिवार सामाजिक सुरक्षा, सांस्कृतिक सीख, धार्मिक प्रशिक्षण मनोरंजन तथा आर्थिक सुविधाएँ देने का कार्य करती थी। आज ये सभी कार्य दूसरे संगठनों और समितियों को हस्तांतरित हो गये हैं। इस प्रकार संयक्त परिवार के कार्यों में कमी आयी है।


Q. 18. नातेदारी के प्रकारों की व्याख्या करें। ‘ अथवा, नातेदारी की श्रेणियों की व्याख्या करें।

Ans नातेदारी वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत केवल रक्त संबंध ही नहीं आते हैं, बल्कि वे सभी संबंध इस व्यवस्था में शामिल है, जिन्हें समाज मान्यता प्रदान करता है।
नातेदारी व्यवस्था विभिन्न व्यक्तियों को सामाजिक निकटता के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित करती है, जो इस प्रकार हैं –
1. प्राथमिक नातेदार – जिन व्यक्तियों के बीच रक्त या विवाह का प्रत्यक्ष संबंध होता है, उन्हें एक-दूसरे का प्राथमिक नातेदार कहा जाता है। उदाहरणार्थ-पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-बहन, भाई-भाई, बहन-बहन, माता-पुत्र, माता-पुत्री आदि।

2. द्वितीयक नातेदार- जो व्यक्ति हमारे प्राथमिक नातेदार के प्राथमिक संबंधी होते हैं, वे हमारे द्वितीयक नातेदार होते हैं। उदाहरणार्थ-चाचा, नाना, मामा आदि।

3. तृतीयक नातेदार – द्वितीयक नातेदारों के प्राथमिक संबंधी तृतीयक नातेदार होते हैं। उदाहरणार्थ-ममेरे, फुफेरे तथा मौसेरे भाई-बहन एक-दूसरे के तृतीयक नातेदार होते हैं।


Q. 19. जाति व्यवस्था बंद व्यवस्था है, लेकिन वर्ग खुला व्यवस्था है। कैसे ?

Ans जाति व्यवस्था का आधार जन्म है। इस कारण व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण जन्म से होता है। एक व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है उसी की सदस्यता उसे मिलती है। आजीवन वह इसमें परिवर्तन नहीं कर सकता। इस व्यवस्था के अनुसार व्यक्ति अपनी जाति या उपजाति में विवाह करता है। इस व्यवस्था के अनुसार खान-पान तथा सामाजिक सहवास से संबंधित कुछ नियम पाये जाते हैं। प्रत्येक जाति का अपना परंपरागत व्यवसाय होता है और व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने परंपरागत व्यवसाय को ही अपनाये और उसी से जीविकोपार्जन करे। अतः स्पष्ट है कि जाति बंद व्यवस्था है।
इसके विपरीत वर्ग खुला व्यवस्था है। व्यक्ति अपनी योग्यता और कुशलता से निम्न वर्ग से उच्च वर्ग में जा सकता है और अपनी सम्पत्ति गवाकर उच्च वर्ग से निम्न वर्ग में आ सकता है।


Q. 20. अनुसूचित जातियों के लिए उपलब्ध संवैधानिक प्रावधानों का विवरण दीजिए।

Ans सरकार ने अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए एक आयुक्त की नियुक्ति की है जो उसकी शिकायतों और समस्याओं से संबंधित रिपोर्ट संसद में प्रति वर्ष रखता है और इनके कल्याण के विषय में सुझाव देता है। सरकार ने इनके कल्याण के लिए निम्नलिखित कार्य किए हैं –

1. विधानमंडलों में प्रतिनिधित्व – संविधान के अनुसार इन लोगों की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा एवं विधानसभाओं में स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं। पंचायती राज संस्थाओं में भी यह व्यवस्था की गई है।

2. सरकारी नौकरियों में आरक्षण – भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को यह निर्णय लिया था कि खुली प्रतियोगिता से जो नौकरियाँ दी जाती हैं उन्हें अनुसूचित जातियों के लिए 15 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखे जायें तथा आयु सीमा व शैक्षिक सीमा में भी कुछ छूट दी जाय।

3. शिक्षा संबंधी सुविधाएँ – अनुसूचित जातियों के छात्रों की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्तियाँ, निःशुल्क शिक्षा, पुस्तकें तथा लेखन सामग्री खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है।

4. तकनीकी व व्यावसायिक प्रशिक्षण – इन लोगों के लिए मेडिकल, इंजीनियरिंग तथा अन्य औद्योगिक व व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों में कुछ स्थान सुरक्षित रखे गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने अधीन मेडिकल कॉलेजों में 20 प्रतिशत अन्य स्थान सुरक्षित किए हैं।

5. कुटीर उद्योगों की स्थापना के लिए अनुदान – इनकी दशा सुधारने के लिए इन्हें कुटीर उद्योग खोलने के लिए भी सरकार ने प्रोत्साहन दिया है।

6. गृह निर्माण – सरकार ने अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को आसान किस्तों पर मकान दिलाने तथा इनके निर्माण के लिए सहायता प्रदान की है।

7. योजनाओं में कल्याण कार्य – प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए धन राशि व्यय की गई है। इस वर्ग के सामाजिक आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए पर्याप्त धनराशि व्यय करने की व्यवस्था की गई है।


Q. 21. अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार हेतु सुझाव प्रस्तुत कीजिए।

Ans कानून बना देने से ही अनुसूचित जातियों की स्थिति में सुधार नहीं लाया जा सकता है। इसके लिए लोगों की मनोवृत्तियों को बदलकर स्वस्थ सामाजिक वातावरण का निर्माण करना होगा। कुछ भी हो, अस्पृश्यता के उन्मूलन एवं हरिजनों की दशा में सुधार लाने के निम्नलिखित सुझाव उपयोगी साबित हो सकते हैं –

1. शिक्षा और प्रचार-प्रसार के द्वारा जाति प्रथा के स्वरूप में परिवर्तन किया जाना चाहिए। यह कार्य धीरे-धीरे करना होगा। एकदम सफलता प्राप्त होने में संदेह है।

2. ग्रामों का विकास नवीन आधारों पर किया जाना चाहिए। ग्रामों में विद्यमान सामाजिक कुरीतियों और अन्धविश्वासों को समाप्त करना चाहिए। यह काम समाज-सुधारकों एवं समाज के उत्तरदायी व्यक्तियों की सहायता से संभव है।

3. अपवित्र व्यवसायों को मशीनीकरण द्वारा दूर किया जाना चाहिए ताकि घृणित व्यवसायों की संख्या कम-से-कम हो सके।

4. शारीरिक श्रम के प्रति सम्मान की भावना को विकसित किया जाना चाहिए।

5. अनुसूचित जाति के आर्थिक व सामाजिक सुधार के लिए सामान्य और प्रौद्योगिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाना चाहिए ताकि अज्ञानता व अन्धविश्वास का अंश हरिजनों से दूर हो सके और आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके।

6. स्वास्थ्य और नैतिक स्तर के विकास के लिए अनुसूचित जाति की उचित आवास संबंधी योजनाओं को तीव्र गति से लागू किया जाना चाहिए और इनके लिए मकान बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इनके मकान उच्च जातियों के लोगों के पास बनाए जाएँ।

7. अनुसूचित जाति के लिए मनोरंजन की सुविधा व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि अंधविश्वास एवं बुरी आदतों को दूर करके इन लोगों में नैतिकता का एक उचित मानदंड बनाए रखा जा सके। अधिकांश अनुसूचित जाति समुदाय अंधविश्वास व रूढ़िवादिता के शिकार हैं।

8. सामाजिक सुरक्षा संबंधी कार्यक्रमों पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है। इसके द्वारा अधिकांश विपत्तिग्रस्त अस्पृश्य लोगों को शारीरिक व मानसिक सुरक्षा प्रदान की जा सकेगी। भारत में आज भी अधिकांश अनुसूचित जाति के लोग जीवन की न्यूनतम जीवन-स्तर को बनाये रखने में असमर्थ हैं।

9. सभी सार्वजनिक उत्सवों, त्यौहार, मेला आदि में सब जातियों के लोगों को सम्मिलित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह कार्य नगर व ग्राम के नेताओं व सुधारकों की सहायता से संभव हो सकेगा।

10. नगर में जातियों के आधारों पर छात्रावास नहीं रहने चाहिए। सब जाति के लोगों के एक जैसे छात्रावास में रहने से अस्पृश्यता धीरे-धीरे कम होगी।


Q. 22. भारत के प्रमुख जनजातीय आंदोलनों की विवेचना करें।

Ans भारत के प्रमुख जनजातीय आंदोलन निम्नलिखित हैं-:

(i) संथाल विद्रोह – औपनिवेशिक शासन व्यवस्था तथा शोषण के खिलाफ सिद्धू कान्हू द्वारा संचालित संथाल जनजाति के लोगों ने इसका सूत्रपात किया।

(ii) बिरसा आंदोलन – बिरसा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की। इसके नेता बिरसा मुण्डा ने जनजातियों को एक नई राह दिखलाई । इन्होंने आदिवासियों में जनमत का निर्माण किया । 25 दिसम्बर, 1899 को इस आंदोलन की शुरूआत हुई है।

(iii) ताना भगत आंदोलन – ताना भगत उराँव जनजाति की एक शाखा है। यह आंदोलन कृषि अर्थव्यवस्था, जनजातीय संस्कृति तथा उसमानता से सम्बंन्धित है। इसकी शुरूआत 1914 ई. में जतरा भगत के नेतृत्व में हुई ।

(iv) झारखण्ड आंदोलन – स्वतंत्रता के बाद विभिन्न राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संगठनों के द्वारा झारखंड आंदोलन की शुरूआत की गई । इसके फलस्वरूप 15 नवम्बर, 2000 को झारखण्ड राज्य की स्थापना की गई।

(v) बोडो आंदोलन – 1950 ई० में असम के बोडो भाषायी जनजातियों ने पृथक् राज्य की स्थापना के लिए इस आन्दोलन की शुरूआत की जो अभी जारी है। इन आंदोलनों के अतिरिक्त नागा आंदोलन, मिजो आंदोलन, खासी विद्रोह, भील भगत आंदोलन आदि प्रमुख जनजातीय आंदोलन हैं।


Q. 23. जनजाति क्या है ? जनजाति के प्रमुख समस्याओं की व्याख्या करें।

Ans ‘जनजाति’ शब्द ऐसे समुदायों के लिए प्रयुक्त होता है, जो बहुत पुराने हैं और उपमहाद्वीपीय के सबसे पुराने अधिवासी हैं। जनजातियाँ ऐसे समुदाय थे, जो किसी लिखित धर्मग्रंथ के अनुसार किसी धर्म का पालन नहीं करते थे। उनका कोई संगठन नहीं था, न ही समुदाय कठोर रूप में वर्गों में बंटे हुए थे। इनकी सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि उनमें जाति जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, न ही वे हिन्दू थे और न ही किसाना। जनजातीय इलाकों व लोगों की स्थिति स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् कुछ सम्मानजनक नहीं थी। इन लोगों पर काफी दबाव था। इन इलाकों में वनों की कटाई व कारखानों की स्थापना इत्यादि के कारण यहाँ के व्यक्तियों को आश्रय स्थल छोड़ना पड़ा। परन्तु लंबे संघर्ष के बाद इन जातियों के हितों के बारे में सोचा गया है। झारखंड और छत्तीसगढ़ को अलग-अलग राज्यों का दर्जा मिल गया है। परन्तु पहले मिली असफलताओं के कारण इन सफलताओं का कोई ज्यादा सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के अनेक राज्य कई दशकों से ऐसे विशेष कानूनों के अंतर्गत जीवनयापन कर रहे हैं जिससे वहाँ के निवासियों की नागरिक स्वतंत्रताएँ सीमित हो गई हैं। झारखंड और छत्तीसगढ़ को अपने नवार्जित राज्यत्व का अभी पूरा-पूरा उपयोग करना है। इन राज्यों की राजनीतिक व्यवस्था बड़ी संरचना के शिकंजे से निकलकर स्वायत्त नहीं हुई है।
इसके अतिरिक्त मणिपुर या नागालैण्ड जैसे राज्यों को ‘उपद्रवग्रस्त क्षेत्र’ घोषित किया गया है। इन राज्यों के नागरिकों को भारत के अन्य नागरिकों की तरह अधिकार प्राप्त नहीं है। सशस्त्र विद्रोह, सरकार द्वारा इन जातियों के व्यक्तियों के दमन के लिए उठाये गये कठोर कदम और फिर भड़के विद्रोहों के दुश्चक्र में पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति को भारी हानि पहुँची है।
परन्तु इन इलाकों में सरकार द्वारा धीरे-धीरे शिक्षा का प्रचार किये जाने से इन वर्गों के लोगों व जातियों का विकास हो रहा है।


Q. 24. बाजार किस प्रकार एक सामाजिक संस्था है ?
अथवा, एक सामाजिक संस्था के रूप में बाजार की विवेचना करें।

Ans मूल रूप से बाजार एक सामाजिक संस्था है। बाजार को संचालित करने वाले नियमों से जुड़ी हुई नैतिकता, आर्थिक क्रियाओं पर सरकार का नियंत्रण, सामाजिक श्रम विभाजन, आर्थिक क्रियाओं पर सामाजिक मल्यों का प्रभाव, समाज विरोधी वस्तओं का बहिष्कार. वस्तओं के मूल्य पर सामाजिक उपयोगिता का प्रभाव आदि ऐसी विशेषताएँ हैं जो बाजार को एक सामाजिक संस्था के रूप में स्पष्ट करती है।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं –

(i) बाजार को किसी सामाजिक संरचना से अलग करके नहीं समझा जा सकता। प्रत्येक समाज में व्यक्ति की आर्थिक क्रियाएँ उन मूल्यों से प्रभावित होती हैं जिन्हें समाज के लिए उपयोगी माना जाता है।
(ii) बाज़ार श्रम विभाजन की प्रक्रिया पर आधारित है। श्रम विभाजन मूल रूप से एक सामाजिक तथ्य है जिसे दुर्थीम ने अपने सिद्धान्त में वर्णित किया है।
(iii) हाटों और बाजारों में व्यक्तियों के बीच सामाजिक अंतः क्रिया पनपती है, अतः बाजार को सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था से अलग करके नहीं समझा जा सकता।
(iv) बाजार अनेक नियमों की एक व्यवस्था है जिसका रूप संस्था के ही समान है।


Q. 25. पिछड़ा वर्ग अथवा कमजोर वर्ग पर एक लेख लिखिए।

Ans कमजोर वर्ग की अवधारणा – संवैधानिक दृष्टि से कमजोर वर्ग या पिछड़ा वर्ग या दलित वर्ग के अन्तर्गत अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ, अल्पसंख्यक आदि आते हैं। इसमें समाज के सभी साधनहीन वर्गों को सम्मिलित किया गया है। भारतीय संविधान भ्रातृत्व एवं समानता पर अधिक जोर देता है। इसी कारण संविधान निर्माताओं ने विचार किया कि यदि समानता के सिद्धान्त को वास्तविकता प्रदान करनी है तो इन दलित वर्गों, दुर्बल एवं कमजोर वर्गों का विकास करना होगा और अन्य उच्च वर्गों एवं सवर्ण वर्गों (हिन्दुओं) की भाँति ही इन्हें भी विकास की सुविधायें प्रदान करनी होंगी। यद्यपि संविधान में इस वर्ग को परिभाषित नहीं किया गया है फिर भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 46 में इस सदर्भ में इस प्रकार उल्लेख किया गया है-“राज्य जनता के दुर्बल अंगों के विशेषतया अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा एवं अर्थ-सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से रक्षा करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।” भारतीय संविधान इस विषय में स्पष्ट कुछ नहीं कहता है कि इसमें अनुसूचित जनजातियों के अलावा भी किन-किन वर्गों को सम्मिलित किया गया है। कुछ समाजशास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों ने इसे परिभाषित करने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने प्रमुख रूप से सामाजिक-आर्थिक मापदंड निर्धारित किये हैं। इन समाजशास्त्रियों ने कमजोर वर्ग की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया है जो निम्नलिखित हैं –

1. वे व्यक्ति जिनकी आय निर्धनता रेखा (Poverty Line) के नीचे हो और जो अपने जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं : जैसे-भोजन, वस्त्र, आवास व चिकित्सा की सुविधाओं को पूरा नहीं कर पाते हों।
2. वे व्यक्ति जो पूर्णतया दैनिक मजदूरी पर ही आश्रित हों और वह भी अनियमित और ऋतुओं के परिवर्तन पर आश्रित हो।
3. वे व्यक्ति जिनके पास इतनी पूँजी न हो कि जिससे वे कच्चा माल खरीद सकें और अन्य उत्पादित वस्तुओं को क्रय कर सकें।
4. लघु (Small) तथा सीमान्त (Marginal) कृषक जो सिंचाई आदि की सुविधाओं से वंचित हों।
5. वे व्यक्ति जो निरन्तर कार्य करते रहने के बाद भी ऋणग्रस्त हों और जिनका शोषण किया जाता हो।
6. वे व्यक्ति जो मानवीय ऊर्जा और पशु ऊर्जा के सहारे ही जीवन यापन करें अर्थात् स्वयं व परिवार के लोग कार्य करें व पशुओं से कार्य लें।

इस प्रकार से उपर्युक्त सभी मापदंडों के आधार पर कमजोर वर्ग के अन्तर्गत समाज से उस वर्ग को शामिल किया जा सकता है जो सामाजिक, आर्थिक सुविधाओं से वंचित जो, शोषित हो, पिछड़ा हो। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों, लघु व सीमान्त कृषकों, भूमिहीन और बंधुआ मजदूरों एवं परंपरागत कारीगरों को इस वर्ग में शामिल किया गया है।

पिछड़ा वर्ग के विकास की प्रमुख विशेषताएँ (Problems of development of Backward Class) :

भारत में कमजोर वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियाँ, अनुसूचित जातियाँ तथा अन्य पिछडे वर्ग या जातियाँ आती हैं। इनके विकास की कुछ सामान्य समस्याएँ हैं और कुछ पथक-पथक समस्याएँ हैं। सामान्य समस्याओं के अंतर्गत निम्नलिखित समस्याएँ बतायी जा सकती हैं

(i) आर्थिक समस्याएँ; जैसे-निर्धनता, बेरोजगारी, कृषि पर आश्रितता तथा आर्थिक शोषण आदि, (ii) निरक्षरता, (iii) सामाजिक पिछड़ापन, (iv) स्वास्थ्य विषयक समस्याएँ (v) राजनीतिक एकीकरण की समस्याएँ आदि।


Q. 26. भारतीय समाज में लिंग-भेद के परिणामों की चर्चा करें।

Ans भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में एक प्रमुख समाजशास्त्रीय तथ्य यहाँ की जाति व्यवस्था तथा उससे उत्पन्न होने वाले जातिगत भेदभाव रहे हैं। भारतीय समाज में लिंग भेद के परिणाम काफी रहे हैं। एक जाति दूसरे जाति के प्रति अपने सम्पर्क में आने की अनुमति नहीं दी जाती थी। प्रत्येक जाति अपनी संस्कृति, खान-पान, सामाजिक सम्पर्क के संबंधों, व्यवसायों, विवाह और छूआछूत के आधार पर एक-दूसरे से अलग समुदाय था। इसके परिणाम के अंतर्गत नजदीकी देशों द्वारा काफी फायदा उठाया जाने लगा था। भारतीय समाज में लिंग-भेद के कारण स्त्री-पुरुष का अनुपात असामान्य हो जायेगा। इसके कारण बहुपति विवाह, यौनाचार तथा यौन अपराध में वृद्धि होगी। निर्धन लड़कों का विवाह नहीं हो पायेगा। लड़कियाँ खरीद-बिक्री की वस्तु बन जायेगी। गरीब लोग अपनी लड़कियों को बेचेंगे। बेटी बेचनेवालों की संख्या में वृद्धि होगी।


Q.27. साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा करें।
अथवा, साम्प्रदायवाद के संकट को स्पष्ट करें।

Ans भारत में साम्प्रदायिकता लम्बी अवधि से फलती-फूलती रही है। यह राष्ट्रीय एकीकरण तथा राष्ट्र निर्माण में बाधक है। इसने निम्नलिखित बाधाएँ उत्पन्न की हैं
1. राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा – विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों में अलगाव के भाव पाये जाते हैं। अतः वे कभी भी सारे देश को एक बनाने एवं राष्ट्रीय उत्थान की बात नहीं सोचते। साम्प्रदायिकता ने भावात्मक एकता के लिए भी खतरा उत्पन्न किया है और हिन्दू तथा मुसलमान में परस्पर मनमुटाव और विरोधी भाव पैदा किया है। लोगों में तनाव और संघर्ष पैदा हुए। विभाजन, घृणा एवं अविश्वास की भावनाएँ तीव्र हुई। फलतः विभिन्न समुदायों के बीच सहयोग एवं सहिष्णुता पैदा नहीं हो सकती।

2. तनाव एवं संघर्ष – इसके कारण किसी सम्प्रदाय का विकास नहीं हुआ। परन्तु उनके बीच अविश्वास, घृणा, पूर्वाग्रह एवं संघर्ष अवश्य पैदा हुए।

3. जान-माल की हानि – साम्प्रदायिक दंगों एवं उपद्रवों के कारण हजारों लोगों की जाने गयीं। मकान, दुकान, सरकारी कार्यालय, स्कूल, रेल, डाकतार, वाहनों आदि में आग लगा दी जाती है, जिससे अरबों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।

4. राजनीतिक दुष्परिणाम – इसके कारण देश में अस्थिरता उत्पन्न होती है। प्रशासन एवं सरकार के प्रति लोगों का विश्वास उठ जाता है। राजनीतिक दल सरकार की आलोचना करने लगते हैं। शांति की स्थापना के लिए न्याय एवं व्यवस्था खतरे में पड़ जाता है और उनमें असुरक्षा के भाव पैदा होते हैं। फलतः राष्ट्र निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है।

5. आर्थिक विकास में बाधक – साम्प्रदायिक दंगों एवं उपद्रवों के समय कारखानों एवं उद्योगों में तोड़-फोड़ एवं आगजनी की घटनाओं से निर्माण कार्य बन्द हो जाता है। पूँजीपति ऐसे क्षेत्रों में पूँजी लगाना नहीं चाहते जहाँ साम्प्रदायिक तनाव पैदा होते रहते हैं। फलतः उस क्षेत्र का विकास रुक जाता है।


Q. 28. क्षेत्रवाद क्या है ? इसकी अवधारणा पर प्रकाश डालें। अथवा, क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं की चर्चा करें।

Ans क्षेत्रवाद का अभिप्राय एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की. उस भावना से है, जिसके अंतर्गत वे अपनी एक विशेष भाषा, सामान्य संस्कृति, इतिहास और व्यवहार प्रतिमानों के आधार पर उस क्षेत्र से विशेष अपनत्व महसूस करते हैं तथा क्षेत्रीय आधार पर स्वयं को एक समूह के रूप में देखते हैं। क्षेत्रवाद में इस भावना का समावेश होता है कि एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र की संस्कृति, भाषा, प्रथाएँ, परम्पराएँ, जातीय विशेषताएँ तथा उपलब्धियाँ ही सर्वश्रेष्ठ हैं। अतः एक क्षेत्र विशेष के प्रति वहाँ के निवासियों की अंधभक्ति तथा पक्षपातपूर्ण मनोवृत्ति की क्षेत्रवाद है।

क्षेत्रवाद की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. क्षेत्रवाद स्थानीय देशभक्ति का एक विघटित रूप है जिसमें सम्पूर्ण देश की तुलना में एक विशेष क्षेत्र के हितों को अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।
2. क्षेत्रीय नेतृत्व के द्वारा नियोजित रूप से क्षेत्रीय भावनाओं का प्रसार किया जाता है।
3. क्षेत्रवाद में पक्षपात का समावेश होता है।
4. इस मनोवृत्ति में एक विशेष क्षेत्र को एक पृथक राजनीतिक तथा सामाजिक इकाई के रूप में देखा जाता है।
5. सांस्कृतिक विरासत में भिन्नता होने से इसके प्रभाव में भी वृद्धि होती है।
6. क्षेत्रवाद का सीधा संबंध राजनीतिक और सरकार में प्रतिनिधित्व से है।
7. क्षेत्रवाद का आधार यह निर्मल विश्वास भी है कि क्षेत्रीय आधार पर संगठित हुए बिना उस क्षेत्र को सरकार द्वारा अधिक सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो सकती।


Q. 29. क्षेत्रवाद के दुष्परिणामों की चर्चा करें।

Ans एक क्षेत्र विशेष के प्रति वहाँ के निवासियों की अंधभक्ति तथा पक्षपातपूर्ण मनोवृत्ति को क्षेत्रवाद कहा जाता है। इसका हमारे सामाजिक, आर्थिक तथा राष्ट्रीय विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जो निम्नलिखित है –

1. स्वार्थी नेताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जो क्षेत्रीय भावनाओं को उभारकर अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे रहते हैं।
2. यह सामाजिक न्याय के सभी सिद्धांतों का हनन करता है।
3. इससे क्षेत्रीय तनावों को प्रोत्साहन मिलता है।
4. यह साधनों के असंतुलित वितरण तथा आंदोलनकारी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देकर सामाजिक प्रगति को अवरुद्ध कर देता है।
5. इसके वजह से भाषावाद की समस्या भी उत्पन्न होती है।
6. यह राष्ट्रीय एकता को चुनौती देकर देश की प्रगति को अवरुद्ध करता है।


Q. 30. आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं ?

Ans आधुनिकीकरण की अवधारणा की चर्चा सर्वप्रथम डेनियल लर्नर ने की। आधुनिकीकरण का संबंध विवेकीकरण की प्रक्रिया से है। दरअसर आधुनिकीकरण हम उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा कोई भी परम्परागत या अर्धपरम्परागत समाज उच्च तकनीकी पर आधारित समाज की ओर अग्रसर होता है और इस दरम्यान उसकी तकनीकी अवस्था, मूल्य व्यवस्था, वैचारिकी एवं सामाजिक संरचना में बदलाव आता है। आधुनिकीकरण की कई विशेषताएँ हैं जैसे-वैज्ञानिक मिजाज, बुद्धि एवं तर्कवाद, उच्च सहभागिता, सामाजिक गतिशीलता, परिवर्तन की वांछनीर में विश्वास, जोखिम उठाने की प्रवृति इत्यादि।
भारतीय समाज का आधुनिकीकरण ब्रिटिश काल से ही शुरू हो गया जब अंग्रेजों ने यहाँ नई आधुनिक शिक्षा व्यवस्था, नई प्रशासनिक व्यवस्था एवं भारतीय दण्डसंहिता आदि को लागू किया। योगेन्द्र सिंह का कहना है कि भारत एक परंपरागत देश रहा है अतः यहाँ परंपरा का आधुनिकीकरण हो रहा है। भारत में आज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है क्योंकि लोगों का मिजाज वैज्ञानिक हो रहा है। परंपरागत मूल्यों की जगह आज आधुनिक मूल्यों को तेजी से अपनाया जा रहा है। भोजन के ढंग, पोशाक, आचार-व्यवहार आदि सभी क्षेत्रों में आधुनिकता के प्रभाव को देखा जा सकता है। न केवल विज्ञान एवं तकनीकी में वृद्धि हो रही है जिसके कारण वृहद पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन एवं क्रय-विक्रय हो रहा है बल्कि सामाजिक धरातल पर विषमता का उन्मूलन हो रहा है। न केवल समानता एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।


S.N Class 12th Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
1. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1 
2. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
3. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
5. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5
6. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6
S.N Class 12th Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) 
1. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1 
2. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
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