Class 12th Sociology ( समाज-शास्त्र ) ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4


Q.91. पितृसत्ता का क्या अर्थ है ?

Ans ⇒ पितृसत्ता उस सत्ता को कहा जाता है जिसमें पिता की प्रधानता होती है। इसमें स्त्रियों की तुलना में पुरुषों की शक्ति और सत्ता को अधिक महत्व दिया जाता है। विवाह और परिवार से सम्बन्धित नियम पुरुषों के पक्ष में होते हैं। वंश की परम्परा पिता के नाम पर चलती है। विवाह के बाद लड़की अपने पति के घर जाकर रहती है। उसका उपनाम पति के उपनाम के अनूसार बदल जाता है। सम्पत्ति का हस्तांतरण भी पिता से पुत्र को होता है।


Q. 92. क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है ?

Ans ⇒  क्षेत्रवाद का अभिप्राय एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की उस भावना से है जिसके अन्तर्गत वे अपनी एक विशेष भाषा, सामान्य संस्कृति, इतिहांस और व्यवहार प्रतिमानों के आधार पर उस क्षेत्र से विशेष अपनत्व महसूस करते हैं तथा क्षेत्रीय आधार पर स्वयं को एक समूह के रूप में देखते हैं। क्षेत्रवाद में इस भावना का समावेश होता है कि एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र की संस्कृति, भाषा, प्रथाएँ, परम्पराएँ, जातीय विशेषताएँ तथा उपलब्धियाँ ही सर्वश्रेष्ठ हैं। अतः एक क्षेत्र विशेष के प्रति वहाँ के निवासियों की अंधभक्ति तथा पक्षपातपूर्ण मनोवृत्ति ही क्षेत्रवाद है।


Q. 93. ग्रामीण और नगरीय समुदाय में पाँच अन्तरों की विवेचना करें।

Ans ⇒ ग्रामीण और नगरीय समुदाय के बीच पाये जाने वाले पाँच अन्तर इस प्रकार है –

1. आबादी कम होने के कारण ग्रामीण समुदाय का आकार छोटा होता है, जबकि नगरीय समुदाय का आकार अधिक आबादी के कारण बड़ा होता है।
2. ग्रामीण समुदाय का वातावरण प्राकृतिक होता है, पर नगरीय समुदाय का वातावरण मानव निर्मित होता है।
3. ग्रामीण समुदाय की आबादी में समानता पायी जाती है लेकिन नगरीय समुदाय की आबादी में विभिन्नता पायी जाती है।
4. ग्रामीण समुदाय में जाति के आधार स्तरीकरण पाया जाता है, जबकि नगरीय समुदाय में वर्ग के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता है।
5. ग्रामीण समुदाय में कम गतिशीलता पायी जाती है, जबकि नगरीय समुदाय में अधिक गतिशीलता पायी जाती है।


Q. 94. अति पिछड़ा पर नोट लिखें।

Ans ⇒ आर्थिक सामाजिक दृष्टि से पहले जाति को अगड़े-पिछड़ों में बाँटा गया। लेकिन पिछड़ी जातियाँ में भी बहुत विभेद पाया गया तो कुर्मी एवं यादव जैसी जातियाँ भी अन्य पिछड़ों के पंजी में रखा गया और पिछड़ों में भी जो ज्यादा पिछड़े हैं उन्हें अति पिछड़ा कहा गया जैसे-कहार, कानू, तेली आदि। ये हरिजनों से तो आगे हैं, लेकिन अन्य-पिछड़ों से काफी पीछे। इसलिए बिहार सरकार ने पंचायतों में उनके लिए विशेष आरक्षण दिया है।


Q. 95. सामाजिक जनांकिकी से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ सामाजिक जनांकिकी एक बहु आयामी अवधारणा है जो वैज्ञानिक दृष्टि से जनांकिकी संरचना, जनांकिकीय प्रक्रियाएँ तथा इसके सामाजिक पक्षों का अध्ययन है। यह इस बात का अध्ययन करती है कि जनसंख्या संबंधी विशेषताएँ किस तरह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं तथा उससे प्रभावित होती हैं।


Q. 96. भारत में उपनिवेशवाद की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

Ans ⇒ (क) उपनिवेशवाद वह दशा है जिसमें एक शक्तिशाली साम्राज्यवादी देश अपने से निर्बल देश पर अधिकार करके वहाँ अपनी शासन और कानून व्यवस्था स्थापित कर लेता है।

(ख) उपनिवेशवाद एक दीर्घकालीन शोषण की नीति पर आधारित दशा है जिसमें मानव के अधिकारों का हनन किया जाता है। इसमें समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के आदर्श को गहरा आघात लगता है।


Q. 97. ग्रामीण समुदाय की अवधारणा को स्पष्ट करें।

Ans ⇒ ग्रामीण’ शब्द का सम्बन्ध किसी विशेष स्थान अथवा आवासीय क्षेत्र से नहीं होता बल्कि यह सामुदायिक जीवन के एक विशेष स्वरूप को स्पष्ट करता है जबकि समुदाय सामान्य जीवन का वह क्षेत्र है जिसे सामाजिक सम्बद्धता की मात्रा के द्वारा पहचाना जाता है। एक निश्चित भू-भाग में रहने वाले व्यक्तियों में यदि सामाजिक और सांस्कृतिक समरूपता के साथ प्राकृतिक जीवन की प्रधानता हो तो उसे ग्रामीण समुदाय कहा जाएगा।


Q.98. जाति व्यवस्था के दो प्रमुख प्रकार्यों का वर्णन करें।

Ans ⇒ (क) जाति व्यवस्था जाति पंचायत के दण्ड का भय दिखाकर प्रथागत कानून को अधिक प्रभावी बनाता है। समाजीकरण के द्वारा एक व्यक्ति अपनी जाति की सांस्कृतिक मूल्यों को सीखता है तथा उसे अपनाता है।

(ख) जाति व्यवस्था व्यक्ति की व्यवसाय सम्बन्धी अनिश्चितता को दूर करता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति अपने परम्परागत व्यवसाय को अपनाता है जिससे देश का आर्थिक विकास होता है।


Q.99. धर्म निरपेक्षीकरण से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षीकरण परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा परम्परागत धार्मिक विश्वासों और व्यवहारों की जगह आधुनिक ज्ञान को अधिक महत्त्व दिया जाने लगता है। इस प्रक्रिया में धार्मिक संरचना और विश्वास, पवित्रता और अपवित्रता सम्बन्धी विचार आदि को अलौकिक संदर्भ में स्पष्ट न करके तार्किक दृष्टिकोण से स्पष्ट करता है।


Q. 100. सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार क्या है ?

Ans ⇒  सामाजिक बहिष्कार वह तौर-तरीके हैं जिनके माध्यम से किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने-मिलने से रोका जाता है व पृथक रखा जाता है। यह उन सभी कारकों पर ध्यान दिलाता है जो व्यक्ति या समूह का उन अवसरों से वंचित रखते हैं जो अधि कांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं। भरपूर तथा क्रियाशील जीवन जीने के लिए, व्यक्ति को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं (जैसे, रोटी, कपड़ा तथा मकान) के अतिरिक्त अन्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं (जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात के साधन, बीमा, सामाजिक सुरक्षा, बैंक तथा यहाँ तक कि पुलिस एवं न्यायपालिका) की भी आवश्यकता होती है। सामाजिक भेदभाव आकस्मिक या अनायास रूप से नहीं बल्कि व्यवस्थित तरीके से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का ही परिणाम है। यहाँ इस बात प ध्यान देना आवश्यक है कि सामाजिक बहिष्कार अनैच्छिक होता है, अर्थात् बहिष्कार बहिष्कृत लोगों की इच्छाओं के विरुद्ध कार्यान्वित होता है। उदाहरण के लिए, शहरों और कस्बों में हम हजारों बेघर गरीब लोगों की तरह धनी व्यक्तियों को कभी भी फुटपाथ या पुलों के नीचे सोते हुए नहीं देखते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि धनी व्यक्ति फुटपाथ या पार्कों का प्रयोग करने से ‘बहिष्कृत’ हैं। यदि वे चाहें तो निश्चित रूप से इनका प्रयोग कर सकते हैं, परंतु वे ऐसा करना नहीं चाहते। सामाजिक भेदभाव को कभी-कभी इस गलत तर्क से न्यायसंगत ठहराया जाता है कि बहिष्कृत समूह स्वयं ही सम्मिलित होने का इच्छुक नहीं है। इस प्रकार का तर्क इच्छित या चहेती चीजों के संदर्भ में सरासर गलत है। (यह उस स्थिति से बिल्कुल अलग है जहाँ अमीर लोग स्वेच्छा से फूटपाथ पर नहीं सोते या बोझा ढोने का काम नहीं करते)।


Q. 101. अनुसूचित जातियों से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जाति के लोगों की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का 16.6 प्रतिशत है। जाति व्यवस्था हमारे समाज की एक पुरानी प्रथा है। जाति व्यवस्था में जिस वर्ग को शूद्र की संज्ञा दी गई थी उन्हें अछूत कहा गया। जाति स्तर पर धार्मिक अशुद्धता के आधार पर अनुसूचित जातियों को सबसे नीचे के स्तर पर रखा गया है।
अनुसूचित जाति एक राजनीतिक न्यायिक शब्द है, जिसका प्रथम उपयोग साइमन कमीशन ने 1935 में किया। स्वाधीन भारत में इस शब्द को संविधान में प्रयोग किया गया ताकि क्षतिपूर्ति विभेद की नीति के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान किया जा सके। गाँधीजी ने इस वर्ग को हरिजन या ईश्वर की संतान कहा है। कुछ लोगों ने इस वर्ग को दलित नाम दिया है। इस शब्द का अर्थ है ‘टुकड़ों में टूटा हुआ।’ ज्योतिबा फुले, डॉ. अम्बेडकर और दलित पैंथर्स आन्दोलन ने सत्तर के दशक में इस शब्द को प्रचलित किया।


Q. 102. संविधान में अल्पसंख्यकों को क्या सुविधाएँ प्रदान की गई हैं ?

Ans ⇒ संविधान में अल्पसंख्यकों को अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं –

(i) संविधान के अनुच्छेद 29(1) में राज्यों को निर्देश दिया जाता है कि जो अपनी संस्कृति का संरक्षण करना चाहते हैं उन पर बहुसंख्यक लोगों की संस्कृति नहीं थोपी जा सकती।

(ii) संविधान के अनुच्छेद 350 (ए) में राज्यों को निर्देश दिया गया है कि भाषायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को प्राथमिक शिक्षाओं के लिए उनकी मातृभाषा में निर्देश दिए जाने की व्यवस्था करें।

(iii) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति कर उनकी शिकायतों की जाँच की जाए। शिक्षा संस्थाओं में धर्म, प्रजाति, जाति या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए।

(vi) अनुच्छेद 300(1) के अनुसार अल्पसंख्यक अपने शिक्षण संस्थान चला सकते हैं। राज्य के शिक्षण संस्थानों को सहायता देने के मामले में अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। शिक्षा का माध्यम अपनी इच्छा से रखा जा सकता है।


Q. 103. वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति की व्याख्या कीजिए।

Ans ⇒ भारत में यद्यपि शिक्षा का प्रचार-प्रसार तेजी से हो रहा है। उन्हें संविधान में समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। सरकारी नौकरियों में वे उच्च पदों पर आसीन हैं परन्तु स्त्रियों को अभी भी अनेक सुविधाओं व अधिकारों से वंचित रखा गया है। स्त्रियों के कार्यक्षेत्र व पुरुषों के कार्यक्षेत्र में पारंपरिक विभेद अपनाया गया है।
स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में अंतर तो आया है, लेकिन इसका लाभ शिक्षित नगरीय और उच्च आय समूह वाली महिलाओं ने उठाया है। औसत भारतीय महिलाओं का जीवन प्रायः भेदभाव के विरुद्ध लंबे संघर्ष की कहानी है। गरीब भारतीय महिलाएँ बच्चों के पालन-पोषण में ही अपनी आयु गुजार देती हैं।
स्त्री-पुरुष असमानता के मुख्य कारण निम्न हैं –

1. वैवाहिक और पारिवारिक व्यवहार।
2. स्त्रियों की गतिशीलता व स्वतंत्रता में सांस्कृतिक पारंपरिक अवरोध।
3. पुरुषों और स्त्रियों की आर्थिक भूमिका में अंतर।

भारत में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 933 स्त्रियाँ थीं। यह प्रतिकूल लिंग अनुपात निम्न कारणों से है –

(i) पुत्र को समाज में वरीयता देना
(ii) पुत्रियों के प्रति भेदभाव
(iii) स्त्री-भ्रूण हत्या
(iv) स्त्री- शिशु हत्या
(v) स्त्री-शिक्षा का अनुपात कम होना
(vi) गृह कार्य में उन्हें कोई उपाय प्राप्त न होना।


Q. 104. सांप्रदायिकता किस प्रकार राष्ट्र की एकता में बाधक है ?

Ans ⇒ सांप्रदायिकता एक ऐसी विचारधारा है जिसमें एक संप्रदाय के लोग दूसरों की अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ मानते हैं और अपने धर्म का सहारा लेकर अन्य धर्मों के मानने वाले लोगों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। सांप्रदायिकता घृणा और हिंसा को जन्म देती है। जब लोग धर्म की मूलभूत भावनाओं को छोड़कर धर्म के बाहरी स्वरूप और अंधविश्वास को असली धर्म समझने की भूल करते हैं। यह प्रवृत्ति एक सोची-समझी शरारत होती है जो राजनीतिक सत्ता को हथियाने और आर्थिक सुविधा को पाने की अनाधिकार चेष्टा सदृश है। भोले-भाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने का प्रयत्न करते हैं। इस देश का भारत और पाकिस्तान के रूप में बँटवारा धार्मिक-सांप्रदायिक आधार पर ही किया गया था। देश के बँटवारे के बाद भी सांप्रदायिकता की समस्या सिर उठाती रही है।


Q. 105. भारत में जाति की भूमिका की विवेचना करें।

Ans ⇒ भारत में जातिवाद के भयानक रूप ने व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाले है जो निम्न प्रकार हैं –

1. भारतीय समाज जातिवाद पर आधारित हो गया है। सभी प्रकार के निर्णय लेते समय जातिवाद का ध्यान रखना अनिवार्य होता जा रहा है जिससे समाज में व्यवस्था बनाने वाले अच्छे व कुशल व्यक्ति कम होते जा रहे हैं तथा नीति-निर्माण में भी बाधा आती है।

2. भारतीय समाज संकुचित बन गया है। इसमें शुद्ध जातिगत स्वार्थों को सामाजिक स्वार्थों की अपेक्षा वरीयता दी जा रही है।

3. जातिवाद के कारण आज देश में सर्वत्र हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है। कहीं शिया-सुन्नी, तो कहीं अकाली और निरंकारी संघर्षरत हैं कहीं जाट व अनुसूचित जातियों में तो कहीं ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण में संघर्ष होता है। कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़कर दूसरे राज्यों जैसे दिल्ली में शरणार्थी बनकर रहना पड़ता है।
4. जातिवाद पर आधारित समाज में जातीय हितों का टकराव होने लगा है, जिसके कारण सारे समीकरण जातियों के आधार पर बनने लगे हैं। प्रत्येक जाति दूसरे जाति के लोगों को संदेह की दृष्टि से देखती है। इससे जातीय वैमनस्य बढ़ रहा है और पारंपरिक सद्भाव कम हो रहा है।


Q. 106. क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में अंतर स्पष्ट कीजिए।

Ans ⇒ क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में निम्नलिखित अन्तर है –

क्षेत्रवाद का अर्थ है किसी निश्चित क्षेत्र में रहने वाले लोग जो अपने विशिष्ट भाषा, रीति-रिवाज, धर्म आदि के कारण स्वयं को देश के अन्य लोगों से भिन्न समझते हों तथा अपने क्षेत्र के विकास की कामना तथा प्रयत्न करना। भारत में अधिकतर क्षेत्र भाषा के आधार पर ही बने हुए हैं। भाषा के आधार पर ही अनेक राज्य बनाए गए हैं। जैसे पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात। इसी प्रकार नदी जल के बँटवारे के बारे में या भारत सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किसी बड़े योजना कार्य को अपने क्षेत्र में लगवाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष हो जाता है परन्तु क्षेत्रवाद राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग नहीं होना चाहता।
पृथकतावाद राष्ट्रीय एकता और अखंडता, स्वतंत्रता तथा संप्रभुता के लिए चुनौती होता है। वह राष्ट्र की मुख्यधारा से बिल्कुल अलग होकर अपने लिए एक स्वतंत्र सार्वभौम राज्य की माँग करता है।


Q. 107. भारत के उदारीकरण के मुख्य उद्देश्य क्या है ?

Ans ⇒भारत में सन 1980 के दशक के आरम्भ से ही महसूस करने लगा कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उद्योग धीरे-धीरे बीमार होते जा रहे हैं। उनमें आशा की अनुरूप उत्पादन नहीं हुआ और न ही उत्पादन की लागत में कमी की जा सकी। धीरे-धीरे ऐसे उद्योगों का घाटा बढ़ने लगा, जिससे सरकार का वित्तीय बोझ बढ़ने लगा। सरकार मिश्रित अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए विदेशी ऋण के बोझ से दबने लगी। मिश्रित अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए विदेशी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाना आवश्यक था। इसके फलस्वरूप विभिन्न वस्तुओं के आयात पर भारी शुल्क लगने लगा। प्रतिस्पर्धा नहीं होने के कारण भारत में बनने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता में कोई सुधार न हो सका। इन सभी दशाओं के फलस्वरूप सरकार ने अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए संरचना आरम्भ किया। सरकार ने सोचा कि भारतीय बाजारों में विदेशी वस्तुओं को लाने से ही यहाँ की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है। जिससे देश के उद्योगों का आधुनिकीकरण हो सकेगा तथा उत्पादकों को नयी औद्योगिक को उपयोग में लाने की प्रेरणा मिलेगी। उदारीकरण को देश में दो चरणों में लागू किया गया। पहला चरण सन् 1981 से आरम्भ हुआ जबकि दूसरा चरण सन् 2001 से शुरू हुआ।


Q. 108. कृषक आन्दोलन का अर्थ व लक्षण क्या है ?

Ans ⇒भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषक वर्ग की अनेक समस्याएँ रही है, जिसके समाधान के लिए अनेक आन्दोलन हुए जिसका सामाजिक आन्दोलनों में प्रमुख स्थान है। कृषक मानव समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे हैं, लेकिन क्या यही एक ऐसा वर्ग है जो समाज में सबसे अधिक शोषित पीड़ित और तिरस्कृत है। कृषक आन्दोलन के सम्बन्ध में प्रो. राजेन्द्र सिंह का विचार है कि “हिंसा या हिंसा का भय दिखाकर अन्यथा कृषि मजदूर कार्यों से निरपेक्ष भाव दिखाकर जब खेतिहर मजदूर भू-स्वामियों या सम्बन्धित सरकार को झुकाने का प्रयास करता है तो इससे सम्बन्धित आन्दोलन को कृषक आन्दोलन कहा जाता है।”
इस प्रकार कृषक आन्दोलन मूल रूप से खेतिहर मजदूरों या किसानों से सम्बन्धित वे आन्दोलन है जो उनके शोषण, पतन एवं आर्थिक गुलामी के खिलाफ उत्पन्न होते हैं। किसानों और उनसे सम्बन्धित अन्य समूह भी इसमें सहभागी हो सकते हैं। कई बार कृषि से सम्बन्धित व्यवसासियों, भू-स्वामियों तथा बिचौलियों ने भी अपने लाभ के लिए कृषक आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई है।


Q.109. श्रमिक आन्दोलन से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

Ans ⇒ श्रमिक आन्दोलन का अर्थ मजदूरी के लिए आजीविका प्राप्त करने वाले लोगों को उन सभी प्रकार की क्रियाओं से है जिससे वे तात्कालिक रूप से या दूर भविष्य में अपनी स्थितियों में सुधार कर सके। यह एक या अनेक प्रकार का संगठन है जो सामान्य स्थिति और पारस्परिक सहायता पर आधारित है। इस प्रकार यह आन्दोलन एक जटिल और बहुकोणिय आन्दोलन है। श्रमिक आन्दोलन का स्र्वव्यापी एक स्वाभाविक स्वरूप श्रम संघवाद है। इसका एक संगठन, व्यूह रचना, दर्शन और लक्ष्य होता है। श्रमिक आन्दोलन के संबंध में डेल योडार (Dale Yoder) ने लिखा है कि, “श्रमिक आन्दोलन शब्द सामान्यतः श्रमिकों के विभिन्न पका के समस्त दीर्घकालीन संगठनों के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जो औद्योगिक या अर्द्ध औद्योगिक अर्थव्यवस्था में विद्यमान रहते हैं।” . .
श्रमिक आन्दोलन की विशेषताएँ-श्रमिक आन्दोलन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

(i) श्रमिक आन्दोलन राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों के जीवन स्तर को उन्नति करने का प्रयास है। पूँजीपतियों द्वारा किये जा रहे शोषण से मुक्ति और जीवन स्तर को उच्च बनाने का प्रयास श्रमिक आन्दोलन की विशेषता है।
(ii) श्रमिक आन्दोलन, श्रमिकों के हितों के संरक्षण के लिए होता है।
(iii) श्रमिक आन्दोलन एक सार्वभौमिक आन्दोलन है।
(iv) श्रमिक आन्दोलन मुख्यतः औद्योगीकरण की प्रक्रिया का परिणाम है।
(v) श्रमिकों का अपने हितों के लिए सतत रूप से संगठित होकर प्रयास करना है।
(vi) श्रमिक आन्दोलन का विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न प्रकृति का होता है।
(vii) श्रमिक आन्दोलन श्रमिकों को अपना जीवन स्तर उन्नत करने के लिए स्वयं जागरूक बनाता है।


Q. 110. महिला आन्दोलन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Ans ⇒ भारतीय समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति एवं शोषण से मुक्ति के लिए किए गए आन्दोलन की सामान्यतः निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

(i) भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति विभिन्न कालों में हमेशा बदलती रही है वैदिक और उत्तरवैदिक काल के बाद से ही महिलाओं की स्थिति में गिरावट आना प्रारम्भ हुई और परिवार व समाज में महिलाओं सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति तत्काल धार्मिक मान्यताओं एवं सामाजिक मूल्यों के द्वारा पूर्व निर्धारित की जाने लगी। स्त्री आजीवन पुरुष के अधीन कर दी गई। इस तरह परम्परागत रूप में महिलाओं की भूमिका परिवार की चाहरदीवारी के अन्तर्गत ही सीमित कर दी गई। पर्दा, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, दहेज, तलाक पर प्रतिबंध आदि के माध्यम से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे अत्यन्त दयनीय होती चली गई।

(ii) भारतीय समाज में 19वीं शताब्दी सुधार आंदोलन के लिए जानी जाती है। ब्रिटिश शासन के कारण 19वीं सदी में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के साथ ही साथ पाश्चात्य शिक्षा और मूल्य के प्रसार के कारण भारतीय समाज में भी कुछ सुधारात्मक प्रयास किये गये। इस सधार कार्यों में भारतीय सामाजिक करीतियों के उन्मलन के साथ ही साथ महिलाओं के उत्थान के लिए भी प्रयास किये गये जिनके फलस्वरूप भारतीय समाज में सती प्रथा और बाल विवाह पर प्रतिबंध के साथ ही साथ विधवा पुनर्विवाह प्रारम्भ हुआ।

(iii) 20वीं शताब्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी ने पहली बार महिलाओं को . सम्मिलित करके उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त किया।

(iv) भारतीय महिला आन्दोलन की विशेषता यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की सक्रियता का बढ़ाना है। स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैद्यानिक स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के कारण समाज में इनकी एक अलग पहचान निर्मित होने लगी।

(v) भारतीय महिला आन्दोलन की प्रमुख विशेषता इसका प्रारम्भिक चरण में होना है। आज भी भारतीय समाज में महिलाओं को पूर्णतः नैतिक समर्थन नहीं मिल पाया है। नैतिक समर्थन के अभाव के कारण ही भारतीय महिला आन्दोलन केवल स्त्री-पुरुष समानता तक ही सीमित है तथा इसमें पुरुष प्रधान समाज में महिला मुक्ति की बात का अभी भी अभाव है।


Q. 111. ताना भगत आन्दोलन का उल्लेख करें।

Ans ⇒ जनजातियों द्वारा अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों और सामाजिक जीवन को रचनात्मक दिशा देने के लिए, जो आन्दोलन किये गये उसमें ताना भगत आन्दोलन सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस आन्दोलन का आरम्भ ‘जात्रा’ नामक व्यक्ति द्वारा सन् 1913 में किया गया। उन्होंने विभिन्न समुदायों में सामाजिक-आर्थिक शोषण को रोकने के लिए आत्मशक्ति पैदा करने पर बल दिया। यह आत्मशक्ति समाज में फैली हुई बुराईयों को दूर करके ही पैदा की जा सकती है। इसके लिए उराँव में फैले जादू-टोने, अन्धविश्वासों, माँसाहार, शराब का सेवन और अनेक देवी-देवताओं के प्रचलन को बन्द करना आवश्यक है। अपने सुधारवादी कार्यों के कारण जात्रा को ताना भगत के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। ताना भगत ने एक आन्दोलन के रूप में माँस और मदिरा के सेवन को बन्द करने, एक ईश्वर में विश्वास करने, शरीर और मन को स्वच्छ रखने तथा जादू और टोने से सम्बन्धित अन्धविश्वासों को छोड़ने का व्यापक प्रचार किया।


Q. 112. गोंडवाना आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?

Ans ⇒ गोंड जनजाति जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। साधारणतया गोंड अपनी प्रकृति से बहुत शान्तिपूर्ण और सरल होते हैं। इनके द्वारा पहला आन्दोलन सन् 1940 में आरंभ हुआ जिसे ‘गोंडवाना आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन के एक नेता क. भीम ने अपने क्षेत्र के वनों के संरक्षण के लिए गोंडों को संगठित किया। जंगल में खेती करने की छूट, जंगलों में अधिकारियों के हस्तक्षेप पर पाबन्दी तथा जंगल के चारागाहों में पशुओं को निःशुल्क चारा खाने की माँग थी। इसका उद्देश्य किसी न किसी रूप में गोंड राज्य की स्थापना करना भी था।


Q. 113. कैसे चिपको आंदोलन पर्यावरणीय आंदोलन है ?

Ans ⇒ चिपको आन्दोलन का सम्बन्ध वन संरक्षण से सम्बन्धित है। इसका प्रथम आन्दोलन राजस्थान के खेजरली गाँवों से आरम्भ हुआ जब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने पेड़ काटने का प्रयास किया। इस आन्दोलन का द्वितीय जन्म स्थल चमोली जंगलों से अच्छादित क्षेत्र है। जहाँ भोटिया जनजाति और बहुत से ग्रामीणों का जीवन इन्हीं जंगलों पर आश्रित है। वह जंगल से पेड़ काटती भी है तो वहाँ नया पौधा लगाने का कार्य भी करते हैं। इस क्षेत्र में चंड़ी प्रसाद के नेतृत्व में जंगल बचाओं की आवाज बुलन्द हुई। इन्होंने पर्यावरण आन्दोलन के अन्तर्गत वन अधिकारियों और मजदूरों से लड़ाई झगड़ा करने की अपेक्षा यह तय किया कि पेड़ को काटने से बचाने के लिए पेड़ से चिपक जाया जाए, जिससे अधिकारी पेड़ काट नहीं पाये। इस प्रकार चिपको आन्दोलन पर्यावरणीय आन्दोलन से सम्बन्धित है।


Q. 114. भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए।

Ans ⇒ भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास का मत है कि भारत में आधुनिकता की उपस्थिति ब्रिटिश काल से समझी जा सकती है। अंग्रेज इस देश में एक व्यापारी की तरह आए लेकिन जब उन्होंने यहाँ राज सत्ता पर अधिकार कर लिया तो प्रभावी प्रशासन चलाने के लिए उन्होंने आधुनिकता को जन्म दिया। मुद्रण के लिए वे प्रिंटिंग प्रेस लाये, रेलगाड़ियाँ, संचार साधन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया। आधुनिकता में तीव्रता लाने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। लोगों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई। स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व की भावना ने लोगों में एकता और राष्ट्रीयता को जन्म दिया। अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई गई। उपनिवेशवादी ताकतों ने नगरीकरण और प्रौद्योगिकी को जन्म दिया।


Q. 115. संस्कृतिकरण से आप क्या समझते हैं ?

Ans ⇒ संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न हिन्दू जाति का कोई आदिवासी या अन्य समूह अपनी परंपरा, रीति-रिवाज, सिद्धांत और जीवन शैली को एक उच्च और द्विज जाति के नियमों में परिवर्तित कर देता है। इससे जाति अनुक्रम के अंदर बदलाव आता है परंतु जाति व्यवस्था अपने आप में नहीं बदलती।


Q. 116. नगरीकरण एवं नगरीयता में अंतर स्पष्ट करें।

Ans ⇒ नगरीकरण (Urbanisation) – नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग.गाँवों में रहने के बजाए कस्बों और शहरों में रहना शुरू कर देते हैं। वे ऐसे तरीकों का प्रयोग करते हैं कि कृषि आधारित निवास क्षेत्र गैर-कृषि शहरी निवास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। शहरी केन्द्रों का विकास बढ़ी हुई औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियों का परिणाम है। कस्बों और नगरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रहा है और ये गैर-कृषि परिवारों की संख्या में वृद्धि के कारण हैं।
नगरीयता (Urbanism)-लुई वर्थ के अनुसार नगरीय, परिवेश एक विशिष्ट प्रकार के सामाजिक जीवन का निर्माण करता है जिसे नगरीयता कहते हैं। नगरों में सामाजिक जीवन अधिक औपचारिक और अवैयक्तिक होता है और आपसी संबंध जटिल श्रम-विभाजन पर आधारित होते हैं और इनकी अनुबंधात्मक होती है।


Q. 117. भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है ?

Ans ⇒ भारत में नगरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे नगरों की ओर प्रवसन की भूमिका महत्वपूर्ण है। बडी संख्या में लोग गाँव को छोडकर सिर्फ बड़े नगरों में ही नहीं छोटे और मध्यम नगरों में आ रहे हैं। यह प्रवसन उत्पादन व नौकरी से संबंधित है। अकुशल मजदूरों में मौसमी प्रवसन की प्रवृत्ति भी आम हो गई है। मजदूर मौसमी प्रवसन करते हैं और बाद में अपनी पसंद के क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस जाते हैं।


Q. 118. पश्चिमीकरण ने भारत में राजनीतिक विचारों को किस प्रकार प्रभावित किया?
अथवा, भारत में पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।

Ans ⇒ राष्ट्रीयता (Nationalism) तथा लोकतंत्र (Democracy) इन दो विचारों का उदय पश्चिम में हुआ और शीघ्र ही इन विचारों ने सारे संसार को प्रभावित किया। भारत में ये विचार पश्चिमीकरण के माध्यम से आये। राष्ट्रीयता की भावना का उदय उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ। परंपरागत भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास तेज हुए। 1828 ई० में बंगाल में राजा राममोहन राय द्वारा ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की गई। 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।
भारत में सुधारवादी आंदोलनों का उद्देश्य, भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों; जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, महिलाओं की निम्न स्थिति, कन्या हत्या, अशिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि को दूर करना था। यूरोप के इतिहास और अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने शिक्षित व्यक्तियों में भारतीयता, राष्ट्रीयता और राजनैतिक चेतना उत्पन्न की। धीरे-धीरे स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी। भारत में राष्ट्रीयता, लोकतंत्रीय राज व्यवस्था और धर्म निरपेक्षता के आदर्श भारत में ऐतिहासिक संदर्भ में आये और इनसे सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकता की भावना का उदय हुआ।


Q. 119. धर्मनिरपेक्षीकरण से क्या अभिप्राय है ? इसने भारतीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया ?
अथवा, धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

Ans ⇒ धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularisation) – यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता चला जाता है और उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म निरपेक्षीकरण का विकास होता है तो प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझने के लिए धर्म के स्थान पर विज्ञान का प्रयोग होने लगता है।
धर्मनिरपेक्षीकरण की भावना का विकास भारत के पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आने से विकसित हुई। यातायात और संचार के साधनों के विकास से इसमें तीव्रता आई। औद्योगीकरण ‘और नगरीकरण ने इसे गतिशील बनाया। जैसे-जैसे औद्योगीकरण की गति तीव्र हुई, ग्रामीण क्षेत्रों के लोग निकलकर नगरों की ओर आये। शिक्षा के प्रसार-प्रचार ने धर्म निरपेक्षीकरण की भावना को आगे बढ़ाया।
धर्मनिपेक्षीकरण ने भारतीयों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। धर्म निरपेक्षीकरण नगरीय तथा शिक्षित समूहों में अधिक क्रियाशील है। भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से होने वाले परिवर्तनों से धर्म निरपेक्षीकरण अधिक तीव्र हुआ है। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि ने जनशक्ति को संगठित किया और उसमें व्याप्त छुआछूत की भावना को कम करने का कार्य किया।


Q. 120. मानवतावाद की अवधारणा से क्या अभिप्राय है ?

Ans ⇒ पश्चिमीकरण के द्वारा जो नये विचार और सिद्धांत सामने आये उनमें सबसे महत्वपूर्ण : विचार था मानवतावाद। यह सभी मनुष्यों के कल्याण के साथ संबंधित था। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, आयु तथा लिंग का क्यों न हो। स्वतंत्रता, समानता और धर्म निरपेक्षता की अवधारणाएँ मानवतावाद की मूल अवधारणा में सम्मिलित है।
वास्तव में पश्चिमीकरण में मानवतावाद निहित हैं जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में एक नई चेतना को जन्म दिया और कई सुधारों को संभव बनाया। भारत में उस समय फैली हुई सती प्रथा, कन्या-शिशु हत्या तथा दास प्रथा पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाई गई। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाए गये।


S.N Class 12th Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
1. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1 
2. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
3. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
5. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5
6. Sociology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6
S.N Class 12th Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) 
1. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1 
2. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Sociology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
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