दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Home Science Part – 3 (15 Marks)


21. एक नवजात शिशु की देख-रेख आप किस प्रकार करेंगी?
(How will you care to a new born infant?)

उत्तर⇒ प्रसवोपरांत नवजात शिशु अत्यंत कोमल एवं मुलायम रहता है। इसलिए इसकी देख-रेख चिकित्सालयों में महिला चिकित्सक, मिडवाइफ, नर्सी तथा घर में माँ एवं दाइयों द्वारा संपादित की जाती है। जो इस प्रकार हैं-

(i) नवजात शिशु का प्रथम स्नान- नवजात शिशु जब जन्म लेता है तो उसके शरीर पर सफेद मोम जैसा चिकना पदार्थ चढ़ा होता है, जो गर्म में उसकी रक्षा करता है। शिशु के शरीर पर जैतुन या नारियल का तेल लगाकर निःसंक्रमित शोषक रूई से पोंछने से मोम जैसा द्रव साफ हो जाता है। फिर हल्के गुनगुने जल और बेबी साबुन द्वारा उसे स्नान कराना चाहिए। उस समय नाभी पर जल नहीं पड़ना चाहिए। स्नान कराने के बाद शिशु को मुलायम तौलिए से पोंछ देना चाहिए।

(ii) अंगों की सफाई-
(a) नाक की सफाई- जन्म के बाद शिशु की नाक द्वारा श्वसन क्रिया को सुचारू रूप से चलने के लिए नाक की सफाई आवश्यक है। नि:संक्रमित रूई की पतली बत्ती बनाकर तथा उसमें ग्लिसरीन लगाकर नाक के छिद्रों में डालकर धीरे-धीरे घुमाकर साफ करना चाहिए। इससे शिशु को छिक आती है और नाक के अंदर भरी श्लेष्मा बाहर आ जाती है।

(b) आँखों की सफाई- शिशु के आँखों को बोरिक एसिड लोशन में निःसंक्रमित रूई भिंगोकर अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। उसके बाद एक प्रतिशत सिल्वर नाइट्रेट लोशन की दो-दो बूंदें आँखों में डालना लाभप्रद होता है।

(c) कानों की सफाई- कान के बाहरी भाग को स्वच्छ एवं निःसंक्रमित रूई में जैतून के तेल लगाकर कानों की सफाई करनी चाहिए।

(d) गले की सफाई- नवजात शिशु के गले में एकत्र श्लेष्मा की सफाई के लिए किसी मुलायम कपड़े को उँगली में लपेटकर बोरिक एसिड लोशन में डुबोकर गले के अंदर चारों तरफ धीरे-धीरे. घुमाना चाहिए।

उपर्युक्त अंगों की सफाई के अतिरिक्त जाँघ, पैर, धड़ तथा गाल आदि को भी मुलायम कपड़े से साफ कर देना चाहिए।

(iii) शिशु का वस्त्र– शिशु का वस्त्र मुलायम, स्वच्छ और ढीला होना चाहिए।

(iv) निंद्रा- स्वस्थ शिशु 24 घंटे में 22 घंटे सोता रहता है। केवल भूख लगने पर या मलमूत्र त्यागने पर उठता-जगता है।

(v) शिशु का आहार- माँ का दूध शिशु का सर्वोत्तम आहार होता है। सामान्यतः शिशु को जन्म के 8 घंटे के बाद से माँ का दूध देना चाहिए। उसके पहले शिशु को शहद एवं ग्लूकोज मिलाकर चम्मच या अंगुली से पिलाना चाहिए। प्रसवोपरांत माँ के स्तनों से पीला एवं गाढ़ा प्रथम दूध निकलता है, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। उसे शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए। इससे शिशु में विभिन्न रोगों से प्रतिरक्षा प्राप्त होती है।


22. बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें।
(Write the factors affecting the social development in children.)

उत्तर⇒ बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

(i) परिवार- परिवार ही बच्चों के सामाजिक मानकों का आदर करता है और आचरण करता है तो आगे चलकर बच्चे के सामाजिक व्यक्ति बनने की संभावनाएँ हैं।

(ii) पास-पड़ोस- 2 वर्ष का बच्चा अपने पास-पड़ोस में जाने लगता है। दूसरे बच्चों के सम्पर्क में आता है। वह सबके साथ मिलकर खेलना सीखता है। अगर आस-पड़ोस में लोग उसे . प्यार करते हैं तो वह उनके प्रति स्वस्थ सामाजिक मूल्यों का निर्माण करता है।

(ii) विद्यालय- 3 वर्ष का बच्चा विद्यालय जाने लगता है और सामाजिक मूल्यों को तेजी से सीखता है। स्कूल में शिक्षकों व साथियों के सम्पर्क में आता है। गीत, संगीत, नाटक आदि खेलों में भाग लेता है।

(iv) तीज, त्योहार व परम्पराएँ- हर समाज एवं धर्म की अपनी तीज, त्योहार एवं परम्पराएँ होती हैं। उनको मनाने सभी लोग एकत्रित होते हैं। जैसे—रक्षाबंधन, दीपावली, ईद आदि। सभी आपस में मिलते-जुलते मिठाई व बधाई देते हैं। बच्चा देखता है कि एक-दूसरे के बिना त्योहार मनाना संभव ही नहीं है। खुशी के लिए समाज में सभी लोगों का होना आवश्यक है। यही समाजिकता का पाठ हमारी संस्कृति व त्योहार सिखाते हैं।

इस प्रकार परिवार, स्कूल, साथी, आस-पड़ोस सभी किसी-न-किसी प्रकार से बच्चे के समाजीकरण में सहायक होते हैं। माता-पिता और शिक्षक दोनों ही अपने अपने स्तर पर बच्चों का मार्ग-दर्शन करते हैं कि बच्चे को क्या करना चाहिए और क्या नहीं? शेष बच्चा दूसरों का अनुकरण करके सीख जाता है।


23. बच्चे के शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्त्व क्या हैं ?
(What are the factors influencing physical development of a child ?)

उत्तर⇒ मानव शरीर के विभिन्न अंग प्रत्यंग जैसे-हड्डियाँ, माँसपेशियाँ, आंतरिक अवयव आदि के बढ़ने और इनकी कार्य करने की क्षमता में लगातार विकास होना ही शारीरिक विकास कहलाता है। बच्चों के शारीरिक विकास को बहुत तत्त्व प्रभावित करते हैं, जो इस प्रकार हैं-

(i) वंशानुक्रम- बच्चे की लंबाई, भार, शारीरिक गठन आदि विकास के शीलगुण एवं सीमाएँ माता-पिता और पूर्वजों से प्राप्त होती है।

(ii) पोषण- जन्म से पहले और जन्म के बाद शिशु को जैसा पोषण मिलता है उसी पर उसका शारीरिक विकास निर्भर करता है। पौष्टिक आहार से शिशु का विकास सही हो सकता है।

(iii) टीकाकरण- बालकों का सही टीकाकरण उन्हें कई गंभीर रोगों से बचाता हैं। जिससे वह निरंतर शारीरिक विकास कर पाता है। इसके अभाव में बीमारियों से ग्रस्त होने पर उनका शारीरिक विकास पिछड़ जाता है।

(iv) अन्तःस्त्रावी ग्रंथियाँ- बालक के शारीरिक विकास पर हार्मोन्स का बहुत प्रभाव पड़ता हैं। थाइराइड, पैराथाइराइड के स्राव से शरीर की वृद्धि एवं हड्डियों के विकास पर प्रभाव डालते हैं। पीयूषका ग्रंथि के कम स्राव करने से बालक बौने हो जाते हैं और अधिक स्राव होने से
असामान्य रूप से लंबे हो जाते हैं।

(v) गर्भावस्था- माँ के गर्भधारण के समय का स्वास्थ्य, पोषण, टीकाकरण, मानसिक स्थिति आदि बालक को गर्भ के 9 (नौ) महीने में प्रभावित करता है।

(vi) परिवार- परिवार की आर्थिक और आंतरिक वातावरण बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। जैसे—जो परिवार बच्चे के खेल-कूद को प्रोत्साहित करेगा, अवसर प्रदान करेगा उस परिवार के बच्चे का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा होगा।


24. क्षय रोग या तपेदिक या टी०बी० (T.B.) क्या है ? इसके कारण, लक्षण तथा उपचार के बारे में बताएँ।
(What is T.B. ? Describe about its reason, symptom and treatment.)

उत्तर⇒ क्षय रोग वायु द्वारा फैलता है। यह रोग सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरियम ट्यूबर्किल बेसियस से फैलता है। क्षयरोग शरीर के कई भागों में हो सकता है। जैसे—फेफड़े, आँत, ग्रंथियों, हड्डियों (रीढ़) तथा मस्तिष्क आदि।

रोग का कारण

(i)रोगी के मल, बलगम तथा खाँसने से रोग फैलता हैं।
(ii) माता-पिता को यदि क्षय रोग हो तो बच्चों में इस रोग की संभावना हो जाती है।
(ii) इस रोग से ग्रस्त गाय, भैंस का दूध पीने से हो सकता है।

रोग के लक्षण

(i) भूख में कमी, थकावट और कमजोरी। लामा
(ii) वजन कम होना तथा हड्डियाँ दिखाई देना।
(iii) छाती तथा गले में दर्द, खाँसी तथा बलगम में खून आना। मा
(iv) सांस फूलना तथा हृदय की धड़कन कम होना।

उपचार तथा रोकथाम-

(i) रोगी को दूसरे लोगों से अलग रखना चाहिए।
(ii) रोगी के विसर्जन को जला देना चाहिए।
(iii) बच्चों को जन्म के पश्चात एक सप्ताह के अंदर बी०सी०जी० का टीका लगा दें।
(iv) डॉक्टर की सलाह से रोगी को स्ट्रेप्टोमाइसिन के टीके 2½ महीने तक लगवाना चाहिए।


25. एकीकृत (समेकित) बाल विकास योजना की सेवाएँ और लाभ क्या है ?
(What are the services and advantages of Integrated Child Development
Scheme (ICDS).)

उत्तर⇒ एकीकृत (समेकित) बाल विकास योजना में छोटे बच्चों, गर्भवती माता की स्वास्थ्य संबंधी देख-रेख की जाती है।

⇒ इस संगठन द्वारा बच्चों, गर्भवती एवं धात्री को पूरक पोषक तत्त्व प्रदान किया जाता है।

⇒ बच्चों एवं गर्भवती को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीके उपलब्ध करवाता है। इसके माध्यम से निम्न सेवाएँ उपलब्ध हैं-

(i) पूरक आहार
(ii) टीकाकरण
(iii) स्वास्थ्य सेवाएँ
(iv) स्वास्थ्य एवं आहार शिक्षा
(v) अनौपचारिक शिक्षा
(vi) रोधक्षमतात्मकता (रोग प्रतिकारक)

⇒ इस संस्था में बच्चों को अपराहन भोजन दिए जाते हैं जिसके माध्यम से उन्हें पोषक तत्त्व उपलब्ध कराया जाता है।

⇒ बच्चों को टीके लगाकर टिटनेस, डिप्थेरिया, कुकुर खाँसी, पोलियो, मिजिल्स, क्षयरोग से दूर रखा जाता है।

⇒ बच्चों एवं गर्भवती स्त्रियों को स्वास्थ्य चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है।

⇒ स्वास्थ्य एवं पोषण की शिक्षा सामुहिक रूप से कभी-कभी व्यक्तिगत रूप से दी जाती है।

⇒ भावी माता को टिटनेस का टीका, आयरन और फौलिक एसिड टेबलेट तथा प्रोटीन की गोली दी जाती है।

⇒ 6-8 सप्ताह तक प्रसवोपरांत माता की जाँच की जाती हैं। साथ ही महिलाओं को जनसंख्या संबंधी शिक्षा भी दी जाती है।


26. पूरक आहार देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
(What factors should be considered while giving supplementary diet?)

उत्तर⇒ पूरक आहार देते समय निम्न बातों को ध्यान में रखेंगे-

(i) एक समय में एक ही पूरक आहार दें। दूसरा आहार शुरू करने से पहले शिशु को पहले आहार से परिचित होने के लिए पर्याप्त समय दें।

(ii) एक समय में शिशु को उतना ही आहार दें जितना वह आसानी से पचा सके। बच्चे के साथ जोर-जबरदस्ती न करें।

(iii) यदि शिशु किसी विशेष खाद्य पदार्थ को पसंद नहीं करता है तो उसका रूप बदल कर दें।

(iv) नया पदार्थ थोड़ी मात्रा में दें।

(v) शिशु को विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों से परिचित कराएँ जिससे वह आगे चलकर – विभिन्न खाद्य पदार्थ को स्वीकार करना सीख ले।

(vi) पूरक आहार के साथ शिशु को काफी मात्रा में तरल पदार्थ भी देते रहना चाहिए।

(vii) आहार में नमक का प्रयोग करना चाहिए लेकिन मिर्च-मसालों का बिल्कुल प्रयोग न करें।

(viii) बच्चे का जब दाँत निकल जाए और वह आसानी से चबाने लगे तो कुचले आहार के स्थान पर उसे पतले-पतले टुकड़ों में कटे हुए फल और सब्जियाँ देनी चाहिए।

(ix) शिशु को जिस बर्तन में पूरक आहार दें वे साफ एवं स्वच्छ होने चाहिए।


27. भोजन संरक्षण की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं ?

(What are the various methods of food preservation ?)

उत्तर⇒ भोज्य पदार्थ के खराब होने का मुख्य कारण जीवाणु है। ये जीवाणु. भोज्य पदार्थों में रासायनिक परिवर्तन करते हैं जिससे भोजन सड़ता है। भोज्य पदार्थ को संरक्षण करने वाली विधियों का प्रमुख उद्देश्य उन कीटाणुओं के द्वारा किये गये रासायनिक परिवर्तन को रोकना है। भोज्य पदार्थों के संरक्षण की विधियाँ इस प्रकार हैं

(i) हिमीकरण विधि- (Freezing method)-इस विधि में भोज्य पदार्थ के तापक्रम को बहुत ही कम कर दिया जाता है जिससे सूक्ष्म जीवों की वृद्धि रुक जाती है। इस विधि से मछली, माँस, दूध, आइसक्रीम, दही, सूप तथा सब्जियाँ संग्रहित की जाती है।

(ii) शुष्कीकरण द्वारा- हर भोज्य पदार्थ में कुछ न कुछ नमी अवश्य ही पायी जाती है। उसमें उपस्थित नमी को हटा देने से भोज्य पदार्थ अधिक दिनों तक संरक्षित रहता है। इस विधि से अनाज, मेवे, दाल, हरी सब्जी, फल, पापड़, बड़ियाँ, चिप्स आदि घर में सुखाकर संरक्षित किया जाता है। उपकरणों जैसे स्प्रे ड्रायर, रोटरी-ड्रायर आदि से दूध पाउडर तथा मछली सुखाये जाते हैं।

(iii) वायु को निकालकर संरक्षण- इसके अंतर्गत कैनिंग तथा बॉटलिंग की विधि आती है। इन विधि में भोज्य पदार्थ को पहले भाप में पका लिया जाता है। फिर डब्बों में भर दिया जाता है। इन डब्बों को एक बड़े बर्तन में रखे पानी में रखकर गर्म करते हैं। ताप के प्रभाव से वायु उड़ जाती हैं उसी समय डिब्बा को बंद कर दिया जाता है।

(iv) रासायनिक पदार्थों के द्वारा संरक्षण- सोडियम बेन्जोएट, पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइड बाटि डालकर शर्बत, केचप आदि को संरक्षण किया जाता है।

(v) कीटाणुनाशक वस्तुओं के द्वारा संरक्षण विभिन्न प्रकार के सब्जियों तथा फलों, बाबा. जैम, जेली, अचार आदि को नमक, चीनी, सिरका, राई आदि से संरक्षित किया जाता है।


28. उपभोक्ता के क्या अधिकार हैं ? खरीददारी करते समय उपभोक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?

(What are the rights of consumer ? What major problems does a consumer
face during purchasing ?)

उत्तर⇒ “किसी भी उत्पादित वस्तु को खरीदने वाला उपभोक्ता कहलाता है।” उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तु उनके लिए किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होनी चाहिए तथा उसे खरीददारी करते समय किसी प्रकार का धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार दिये गये हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों, नकली . दवाइयाँ आदि के बिक्री पर रोक की माँग कर सकते हैं।

(ii) जानकारी का अधिकार- उपभोक्ता किसी भी वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, कीमत, तौल आदि की जानकारी की माँग कर सकते हैं।

(ii) चयन का अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि विक्रेता उसे सभी निर्माताओं की बनी हुई वस्तु दिखाएँ ताकि वह उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उचित कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तु खरीद सके।

(iv) सनवाई का अधिकार- खरीदी हई वस्तु में कोई कमी होने पर उपभोक्ता को यह अधि कार है कि वे वस्तु निर्माता विक्रेता तथा संबंधित अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।

(v) क्षतिपूर्ति का अधिकार- वस्तुओं तथा सेवाओं से होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की माँग कर सकते हैं।

(vi) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- उपभोक्ता सही जानकारी तथा सही चुनाव करने के ज्ञान की माँग कर सके।

उपभोक्ताओं की समस्याएँ

(i) वस्तुओं में मिलावट- प्रतिदिन की खरीददारी में उपभोक्ता को वस्तुओं में मिलावट का सामना करना पड़ता है। मिलावट के कारण मुनाफाखोरी वस्तुओं की कम उपलब्धता, बढ़ती महँगाई आदि है।

(ii) दोषपूर्ण माप- तौल के साधन बाजार में प्रायः मानक माप-तौल के साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता हैं बल्कि नकली, कम वजन के बाट की जगह ईंट-पत्थर का प्रयोग होता है।

(iii) वस्तुओं का अपूर्ण लेबल- प्रायः उत्पादक वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का प्रयास करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है।

(iv) बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि- आजकल उपभोक्ताओं को घटिया किस्म की वस्तुएँ खरीदना पड़ रहा है जिसके लिए अधिक कीमत भी देना पड़ता है। जैसे घटिया लकड़ी से बने फर्नीचर रंग करके बेचना, घटिया लोहे के चादरों की अलमारी आदि।

(v) नकली वस्तुओं की बिक्री- आज बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार हैं। असली पैकिंग में नकली सामान, दवाई, सौन्दर्य प्रसाधन, तेल, घी, आदि भर कर बेचा जाता है।

(vi) भ्रामक और असत्य विज्ञापन- प्रत्येक उत्पादनकर्ता अपने उत्पादन की बिक्री बढाने के लिए भ्रामक और असत्य विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। वस्तुओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर बतलाते हैं।

(vii) निर्माता या विक्रेता द्वारा गलत हथकण्डे अपनाना- मुफ्त उपहार, दामों में भारी छट जैसी भ्रामक घोषणाएँ द्वारा उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं और अच्छे ब्राण्ड के धोखे में गलत वस्तु खरीद लेते हैं।


29. उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख करें।

(Explain the problems faced by Consumers.)

उत्तर⇒ उपभोक्ताओं की निम्नलिखित समस्याएँ हैं-

(i) कीमतों में अस्थिरता- कुछ दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं, जिससे दुकानदार अधिक लाभ कमाता है। दुकान की देख-रेख, बिलपत्र और खरीद की कीमत को पूरा करता है, वातानुकुलित एवं कम्प्यूटरयुक्त होने से उसकी सुविधाओं की कीमत वसूलता है। घर पर निःशुल्क सामान पहुँचाने की सेवा अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराता है। समृद्ध रिहायशी क्षेत्रों में नए आकार-प्रकार की बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है।

(ii) मिलावट- यह वांछित तथा प्रासंगिक दोनों हो सकते हैं। दुर्घटनावश जब दो अलग-अलग वस्तुएँ मिल जाती हैं तो उसे प्रासंगिक मिलावट तथा जान-बूझ कर जब उपभोक्ता को ठगने और अधिक लाभ कमाने हेतु अपमिश्रित वस्तुएँ को वांछित मिलावट कहते हैं।

(iii) अपूर्ण एवं धोखा देने वाले लेबल- उस प्रकार के लेबल से उपभोक्ता असली तथा नकली लेबल की पहचान करने में असमर्थ होता है। निम्न गुणवत्ता वाले सामान का प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान पाता है।

(iv) दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना- अधिक कमीशन जिस ब्राण्ड वाले सामान में मिलता है उसे खरीदने के लिए दुकानदार उपभोक्ता को प्रेरित करते हैं।

(v) भ्रामक विज्ञापन- उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए दुकानदार विज्ञापन की सहायता से उपभोक्ता को प्रेरित कर देते हैं।

(vi) विलम्बित/अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ- स्वास्थ्य, पानी, विद्युत, डाक और तार की दोषपूर्ण सेवाएँ भी उपभोक्ताओं को परेशान करती हैं।


30. धन का विनियोग (Investment) करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(What should be considered before investing money ?)

उत्तर⇒ धन का विनियोग करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(i) बचत कर्ता की बचत विनियोग की क्षमता- धन को जमा करना जमाकर्ता के सामर्थ्य पर निर्भर करता है। कई योजनाओं में जैसे यनिट्स में जमा करने की न्यूनतम राशि निर्धरित की जाती है। यदि वह न्यूनतम राशि जमाकर्ता के सामर्थ्य से बाहर है तो उसके लिए यह योजना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में उसे दूसरी बचत योजनाए देखनी चाहिए।

(ii) विनियोग की सुरक्षा- परिवार के लिए विनियोग का साधन चुनते समय इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए कि धन राशि हर तरह से सुरक्षित है। जैसे आग, चोरी, बचत की हानि आदि।

(iii) विनियोग राशि पर उच्च ब्याज दर- विनियोग का वही साधन अच्छा होता है, जिसमें हमें अपनी विनियोग की गयी धनराशि पर ब्याज अधिक मिलता हो।

(iv) पूँजी की तरलता (Liquidity)- पूँजी की तरलता का अर्थ है कि आपातकालीन स्थिति में अपनी राशि को भुना सकते हैं। इस प्रकार बचत का विनियोग करना चाहिए जिससे आपातकाल में बिना ब्याज खोए धन राशि शीघ्र प्राप्त हो सके।

(v) विनियोग का सरल व उपयुक्त स्थान- विनियोग का स्थान दूर नहीं होना चाहिए अन्यथा धन के भुगतान व अन्य तकनीकी कठिनाइयों के कारण काफी समय नष्ट हो जाता है।

(vi) क्रय क्षमता- बढ़ती कीमतों से विनियोग की राशि की क्रय क्षमता भी सुरक्षित होना चाहिए। शेयर, जमीन, यूनिट्स आदि का लाभांश बढ़ती महँगाई को देखते हुए अधिक होता है।


Home Science Class 12 question answer in Hindi

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