दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Home Science Part – 1 (15 Marks)


1. थाइराईड ग्रंथि से आप क्या समझते हैं? मानव शरीर में इसके कार्यों का वर्णन करें।
(What do you understand by thyroid gland ! Describe its functions in human Body.)

उतर⇒ थाइराईड ग्रंथि मानव शरीर में पाये जाने वाले अंत: स्रावी ग्रंथियों में से एक है। थाइराईड ग्रंथि गर्दन के श्वसन नली के ऊपर एवं स्वरयंत्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली के पंख के समान फैली होती है। यह थाइरॉक्सीय नामक हार्मोन बनाती है।

थाइराईड ग्रंथि शारीरिक वृद्धि और शारीरिक रासायनिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। थाइराईड अंत:स्राव शरीर की प्रत्येक कोशिका में चयापचय के नियमन में सहायता प्रदान करता है। भिती की कोशिकाओं में ये पदार्थ बनाती है। शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता करता है।


2. लिंग ग्रंथियाँ क्या है? इनके कार्यों को लिखें।
(What are sex glands? Write their functions.)

उतर⇒ लिंग ग्रंथि एक जीव के सेक्स कोशिकाओं और सेक्स हार्मोन का उत्पाद करती है। पुरुष के वृषण (Testes) और स्त्री में डिम्ब ग्रंथि (overies) “लिंग ग्रंथियाँ” या यौन ग्रंथियाँ कहलाती है। डिम्ब ग्रंथि से दो तथा वृषण से एक अंत: स्राव निकलता है।

लिंग ग्रंथि के कार्य
लिंग ग्रंथि के कार्य निम्न हैं-

(1) वृषण (Testis)- इसकी संख्या दो होती हैं। यह शरीर के बाहर शिशन के नीचे अंडकोष या वृषण कोष नामक थैली में अवस्थित रहता है। इसके दो भाग होते हैं एक भाग शुक्राणु उत्पन्न करता है जो शुक्रवाहिनी नलिका द्वारा शुक्राशय में पहुँचकर एक होते हैं तथा मैथुन के समय बाहर निकलते हैं। ग्रंथि का दूसरा भाग एक प्रकार का पुरुष हार्मोन अत:स्राव उत्पन्न करता है जिसे ऐंड्रोजन (Androgen) कहते हैं जो सीधे रक्त में अवशोषित हो जाता है। इसी अंत:स्राव से पुरुष की जननेन्द्रियों में वृद्धि होती है।

(2) डिम्ब ग्रंथि- यह नारी यौन ग्रंथि है। इसकी संख्या दो होती है। यह बादाम के आकार की तथा उदर के नीचले भाग (श्रोणी) गुहा में रहती है। यह गर्भाशय की दाहिनी और बायीं ओर स्थित रहती है। डिम्ब ग्रंथि के अंत:स्राव को आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा “प्रोजेस्ट्रान” (Progestrone) कहते हैं। ऑस्ट्रोजन स्त्री अंगों को गर्भधारण योग्य बनाता है। गर्भाधान से गर्भाशय तथा योनि प्रणाली में जो परिवर्तन होता है इसी अंत: स्राव के कारण होता है। किशोरियों को युवती बनाने में यह सहायक होता है।


3. हार्मोन्स के क्या कार्य है ? (What are the functions of Hormones?)

उत्तर⇒ प्रत्येक. अंत: स्रावी ग्रंथियों से विभिन्न प्रकार के हार्मोन निकलते हैं जिनका काम शरीर में भिन्न-भिन्न होता है जो इस प्रकार हैं-

(i) थाइराइड ग्रंथि का स्त्राव- थाइरॉक्सिन नामक स्राव थाइरॉइड ग्रंथि से निकलता है। इसमें आयोडीन की पर्याप्त मात्रा होती है। यह कोशिकाओं की वृद्धि तथा उनमें होने वाली क्रियाओं को नियत्रित करता है। इसकी कमी से शारीरिक वृद्धि रुकना, नाटा, मानसिक विकास रुक जाता है।

(ii) उपचुल्लिका ग्रंथि का स्त्राव- यह हार्मोन परावटु ग्रंथि (Parathyroid gland) से निकलता है। यह हार्मोन कैल्सियम तथा फॉस्फोरस के चयापचय को नियंत्रित करता है। इस हार्मोन के कम स्रावित होने पर रक्त में कैल्सियम की मात्रा कम हो जाती है जिससे शरीर की अस्थियों की वृद्धि रुक जाती है।

(iii) पीयुष ग्रंथि का स्त्राव- इस स्राव में पिट्रेसिन एवं पिपटोसिन नामक स्राव मिला रहता है। पिट्रोसिन रक्त के दाब की शरीर में नियंत्रित रखता है एवं मूत्र में जल की मात्रा बढ़ने नहीं देता। यह गर्भाशय के पेशियों के संकचन एवं नियमन के कार्य को नियंत्रित रखता है।

(iv) अधिवृक्क ग्रंथियों का स्त्राव- इसका प्रभाव स्वायत्त नाड़ी संस्थान पर पड़ता है। यह शरीर में उत्तेजना एवं साहस भरता है।

(v) थाइमस ग्रंथि को स्नाव- यह स्राव प्रजनन संस्थान के विकास एवं यौवनारंभ के लिए आवश्यक है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। .


4. गृह विज्ञान का स्वरोजगार के लिए क्या-क्या उपयोग है ?
(What are the applications of Home Science for self employment ?)

उत्तर⇒ गृह विज्ञान का स्वरोजगार के लिए निम्नलिखित उपयोग हैं-

(i) प्रिंटिंग खोलकर- गृह विज्ञान में सिखाए गए सिद्धांतों, नियमों तथा विधियों का प्रयोग करने पर ब्लॉक-प्रिंटिंग तथा बंधेज खोलकर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) शिशु-गृह (क्रेच) खोलकर- शिशु-गृह खोलने की विधि, आवश्यक साज-सामान तथा कार्यक्रमों की जानकारी होने से शिशु-गृह खोला जा सकता है।

(iii) साबुन तथा अपमार्जक का निर्माण कर- महिलाएँ व्यवस्थित तथा बुद्धिपूर्ण ढंग से संगठित होकर यह कार्य कर धनोपार्जन कर सकती हैं।

(iv) संरक्षण संबंधी व्यवसाय करके- महिलाएँ जैम, जेली, अचार, मुरब्बे आदि बनाकर तथा उसके डिब्बाबंदी कर बेचकर आर्थिक स्थिति सुधार कर धनोपार्जन कर सकती हैं इसके अतिरिक्त पापड़, बड़ियाँ आदि बनाकर उसे पैक कर बेच सकती हैं।

(v) वस्त्र सिलाई (बुटीक) करके- आधुनिकतम वस्त्रों की डिजाइनिंग की जानकारी होने से विभिन्न प्रकार के वस्त्रों की सिलाई कर धनोपार्जन कर सकती हैं। साथ ही कढ़ाई कर, स्वेटर बुनाई कर, पुस्तकों में जिल्द बाँधकर, कागज के फूल-पत्ती बनाकर, कपड़ों पर विभिन्न प्रकार रंगाई कर धन कमा सकती हैं।

(vi) ड्राइंग तथा ड्राइक्लीनिंग खोलकर- महिलाएँ गृह विज्ञान अध्ययन कर विभिन्न प्रकार के कपड़ों की धुलाई के साथ-साथ सूखी धुलाई करके धनोपार्जन कर सकती हैं।

(vii) प्रशिक्षण कक्षाएँ चलाकर- गृह विज्ञान के उपविषयों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर ‘महिलाएँ प्रशिक्षण कक्षाएँ खोलकर तथा उसे कुशलतापूर्वक चला कर धनोपार्जन करती हैं, जैसे—कुकरी कक्षाएँ, स्टिचिंग कक्षाएँ, संरक्षण तथा डिब्बाबंदी कक्षाएँ, साथ ही सिलाई कक्षाएँ आदि।

(viii)लघु उद्योग स्थापित कर- गृह विज्ञान के अध्ययन द्वारा महिलाएँ भी लघु उद्योग स्थापित कर धनोपार्जन कर सकती हैं, जैसे—कपड़े बुनाई, दरी एवं कालीन बुनाई, मोमबत्ती बनाना आदि।


5. प्रसवोपरांत देखभाल के पहलू क्या है ?
(What are the aspects of postamatal curve?)

उत्तर⇒ प्रसवोपरांत देखभाल के पहलू निम्नलिखित हैं-

प्रसवोपरांत माता की देखभाल-

(1) भोजन- प्रसव के बाद प्रसूता को संतुलित आहार देना आवश्यक हो जाता है। प्रसूता के भोजन में गर्म, तरल, बलवर्द्धक, सुपाच्य होना चाहिए।

(2) विश्राम- एवं नींद प्रसव के बाद उसके गर्भ सम्बंधी अंगों में परिवर्तन आ जाता है। उसे स्वभाविक स्थिति में आने में काफी समय लगता है। इसलिए विश्राम करना जरूरी है। प्रसूता को प्रसव कष्ट एवं थकान के बाद अच्छी नींद आती है।

(3) स्वच्छता- एवं स्नान-प्रसव के बाद प्रसूता के जननांग पर सेनेटरी पैड लगा देना चाहिए। तेल मालिश के बाद प्रसता को गर्म पानी में तौलिया भिंगोकर उसके शरीर को पोंछ देना चाहिए।

(4) व्यायाम- प्रसव के बाद प्रसूता का शरीर बेडौल हो जाता है। उसे पूर्व स्थिति में लाने के लिए हल्का व्यायाम करना चाहिए।

प्रसवोपरांत नवजात की देखभाल-

(1) स्तनपान- माता का दूध बच्चों को अनेक रोगों से बचाता है इसलिए बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान कराना चाहिए।

(2) निंद्रा- स्वस्थ बच्चा 18-22 घंटा तक सोता रहता है। वह केवल भूख लगने तथा मल-मूत्र त्याग से उठता है।

(3) अंगों की सफाई- बच्चे को प्रथम स्नान कराते समय उसके विभिन्न अंगों की सफाई पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे-नाक, आँख, कान, गले की सफाई इत्यादि।

(4), टीकाकरण- शिशु जन्म के कुछ घंटों के बाद B.C.G.का टीका लगा देना चाहिए।


6. गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव का तुलनात्मक विवरण दें।

(Give a comparative description of home delivery and hospital delivery?)

उत्तर⇒ गृह प्रसव एवं अस्पताल में प्रसव के तुलनात्मक विवरण निम्न हैं-

गृह प्रसव अस्पताल प्रसव
1. गृह में प्रसव करना कम खर्चीला होता है। 1. अस्पताल में प्रसव कराने पर अधिक खर्चीला होता है।
2. चिकित्सीय दृष्टि से घर पर प्रसव कराना असुविधाजनक होता है। 2. चिकित्सीय दृष्टि से अस्पताल में प्रसव कराना उत्तम होता है।
3. अनौपचारिक वातावरण रहता है। 3. औपचारिक वातावरण रहता है।
4. गृह पर प्रसव कराने से जच्चा और बच्चा के साथ अनहोनी होने की समस्या रहती है। 4. अस्पताल में प्रसव कराने से जच्चा और बच्चा के साथ अनहोनी का खतरा कम हो जाता है।
5. घर पर प्रसव कराने से बाहर ले जाने के लिए यातायात की समस्या नहीं रहती है। 5. अस्पताल में प्रसव कराने के लिए गर्भवती को प्रसव केन्द्र ले जाने के लिए यातायात की समस्या हो सकती है।

7. गर्भवती महिलाओं के संतुलित आहार का आयोजन आप कैसे करेंगी ? गर्भावस्था में मुख्यत: कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है ? वर्णन करें।

(How will you planning of balance diet for pregnant women ? What are the main nutrients essential during pregnancy ? Explain.)

उत्तर⇒ गर्भवती महिलाओं के संतुलित आहार का आयोजन- गर्भवती एवं भावी शिश दोनों के स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक आहार का अधिक महत्त्व होता है। गर्भावस्था में भ्रूण निर्माण के कारण शरीर में तीव्र गति से कई परिवर्तन होते हैं उपापचय क्रियाएँ तीव्र गति से होने लगती हैं जो पोषक तत्त्वों की आवश्यकता को बढ़ा देती हैं।

गर्भावस्था में प्रोटीन, कैल्सियम, फॉस्फोरस एवं लौह-लवण की अधिक आवश्यकता पड़ती है। जन्म के समय शिशु का भार 3.2 किलोग्राम होने के लिए उसके शरीर में 500 ग्राम प्रोटीन, 30 ग्राम कैल्शियम, 14 ग्राम फॉस्फोरस, 0.4 ग्राम लौह लवण तथा अन्य विटामिनों की विविध मात्रा होनी चाहिए। गर्भकाल के सातवें, आठवें एवं नवें महीने में शिशु का विकास अत्यन्त तीव्र गति से होता है। वह माँ के रक्त से प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह-लवण, विटामिन एवं अन्य खनिज लवण अधिक मात्रा में शोषित करता है। भ्रूण उन्हीं तीन अन्तिम महीनों में अपने वजन का ¾ भाग पोषक तत्त्वां से प्राप्त करता है।

गर्भावस्था में विभिन्न पोषक तत्त्वों की आवश्यकताएँ निम्नलिखित होती हैं-

ऊर्जा, प्रोटीन, कैल्शियम, लौह-लवण, आयोडीन, विटामिन A, विटामिन B, विटामिन D


8. किशोरावस्था के लिए आहार आयोजन किस प्रकार करेंगी ? एक आहार तालिका प्रस्तुत करें।

(How will you make food planning for adolescence ? Represent a menu ..table.)

उत्तर⇒ किशोरावस्था तीव्रगति से वृद्धि एवं विकास की अवस्था है। यह अवस्था 12 वर्ष से 20 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में अधिक पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। किशोरावस्था में आहार आयोजन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-

(i) ऊर्जा, प्रोटीन, लौह तत्त्व एवं कैल्सियम पोषक तत्त्व अति आवश्यक होते हैं।

(ii) अत्यधिक नहीं खाना चाहिए तथा व्यायाम आवश्यक है।

(iii) पोषक तत्त्वों की आवश्यकता- कैलोरी-2060, प्रोटीन-63 ग्राम, वसा- 22 ग्राम, कैल्सियम-500 ग्राम तथा लौह तत्त्व—30 मि० ग्राम, विटामिन A–6 मि०ग्राम, – थायमीन-121 मि०ग्रा० तथा विटामिन D-40 मिग्रा० होती है।

(iv) आहार आवश्यकता खाद्यान्न- 350 ग्राम, दाल-70 ग्राम, हरी सब्जियाँ-150 ग्राम, अन्य सब्जियाँ-75 ग्राम, जडें या कंद-75 ग्राम, फल/दूध-150 ग्राम/200 ग्राम, वसा/तेल/शक्कर/गुड-250 मि०ली०/50 ग्राम।

किशोरावस्था के लिए आहार तालिका

खाद्य-पदार्थ मात्राएँ/अदद
(i) सुबह दूध, 1 कप
 भरा हुआ पराठा
टमाटर चटनी 2 चम्मच
टिफिन टमाटर सैंडविच, 4
सेब तथा संतरा।
(ii) दोपहर

 

सांभर 1 कटोरी
उबले चावल, 1 प्लेट 
मेथी आलू सब्जी     ¼ कटोरी
खीरा रायता 1 कटोरी
(iii) शाम 
 
दूध शेक स्लाइस ब्रेड मक्खन सहित। 1 ग्लास

4

(iv) रात्रि
 
दाल, 1 कटोरी
आलू-पालक सब्जी , ½ कटोरी
रोटी, 4
सलाद,  1 प्लेट
 खीर या कस्टर्ड  1 कटोरी
(v) सोने के पहले
 बादाम – दुध  1 कप

9. भोजन का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?

(What is the importance of food in our life ?)

उत्तर⇒ भोजन का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है जो इस प्रकार है-

A. भोजन का शारीरिक महत्च-

(i) भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है- शरीर में ऊष्मा बनाए रखने, शारीरिक कार्य करने के लिए मांसपेशियों की सक्रियता प्रदान करने तथा शरीर के विभिन्न अंगों को क्रियाशील बनाये रखने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(ii) भोजन शारीरिक वृद्धि एवं विकास करता है- जब शिशु जन्म लेता है तो वह 2 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम तथा लंबाई 40-50 सेमी० होती है। युवावस्था तक आते-आते 50-70 किग्रा० तथा 5-6 फीट की लंबाई तक पहुँच जाता है।

(iii) भोजन शरीर के रोगों से रक्षा प्रदान करता है- भोजन में सभी पोषक तत्त्व होते हैं जो शरीर के लिए सुरक्षात्मक कार्य करते हैं। ये पोषक तत्त्व सभी प्रकार के विटामिनों तथा खनिज लवण में होते हैं। शरीर को रोगों से संघर्ष करने की शक्ति इन्हीं पोषक तत्त्वों के भोजन में रहने से प्राप्त होती है।

(iv) भोजन शारीरिक क्रियाओं का संचालन, नियंत्रण एवं नियमन करता है-

शरीर में रक्त का थक्का बनना, शारीरिक तापक्रम पर नियंत्रण, जल संतुलन पर नियंत्रण, श्वसन गति का नियमन, हृदय की धड़कन, उत्सर्जन आदि क्रियाओं का भोजन द्वारा नियमन एवं नियंत्रण होता है।

(B) सामाजिक महत्त्व

(i) भोजन आर्थिक स्तर का प्रतीक है- उच्च आर्थिक स्तर के लोग महँगे फल, मेवे, बड़े होटलों में खाना खाते हैं। मध्यमवर्गीय लोग मौसम के फल, सब्जियों का प्रयोग करते हैं। जन्मदिन, विवाह, त्योहार पर भोजन का आयोजन कर अपनी आर्थिक स्तर को दिखाते हैं।

(ii) भोजन आतिथ्य का प्रतीक है- भोजन द्वारा अतिथि सत्कार भी किया जाता है। विशेष तीज त्योहार पर विशिष्ट एवं स्वादिष्ट भोजन बनाया जाता है और भोज का आयोजन कर अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

(C) भोजन का मनोवैज्ञानिक महत्त्व

(i) भोजन द्वारा संवेगों को प्रकट करना- भोजन द्वारा संवेगों को प्रकट किया जाता है। जैसे-दुःखी मन से कम भोजन खाया जाता है तथा मन खुश होने पर अधिक भोजन खाया जाता है।

(ii) सुरक्षा की भावना के रूप में- भोजन सुरक्षा की भावना का प्रतीक है। घर का बना भोजन न केवल पौष्टिक और स्वच्छ होता है बल्कि एक सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।

(iii) भोजन का प्रयोग बल के रूप में- कई बार लोग विद्रोह दर्शाने के लिए भूख हड़ताल करते हैं। यदि प्रशंसनीय कार्य करता है तो उसे इनाम के रूप में उसका प्रिय भोजन बनाकर दिया जाता है।


10. भोजन पकानें, परोसने और खाने में किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए ?

(What are the rules that should be followed while cooking, serving and eating food ?)

उत्तर⇒ भोजन पकाने के नियम- भोजन पकाने के निम्नलिखित चार नियम हैं-

(i) जल द्वारा- पाक क्रिया आर्द्रता के माध्यम से उबालकर की जाती है।
(ii) वाष्प द्वारा- स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम है क्योंकि खाद्य पदार्थ जल की वाष्प द्वारा पकाया जाता है।
(ii) चिकनाई द्वारा- उसके लिए तेल, घी आदि का प्रयोग किया जाता है। इसे निम्नलिखित विधि द्वारा पकाए जाते हैं-

(a) तलने की अथली विधि
(b) तलने की गहरी विधि तथा
(c) तलने की शुष्क विधि।

तलने की अथली विधि द्वारा चीला, डोंसा और मछली पकाये जाते हैं। तलने की गहरी विधि द्वारा पूड़ी, कचौड़ी, समोसे पकाये जाते हैं। तलने की शुष्क विधि द्वारा सॉसेज तथा बेलन बनाए जाते हैं।

(iv) वायु द्वारा- वायु का प्रयोग भुंजने तथा सेकने में किया जाता है। सब्जियों को पकाते
समय धीमी आँच का प्रयोग करना चाहिए। ढंककर भोज्य पदार्थों को पकाने से, वाष्प के दबाव से शीघ्र पकते हैं तथा उसकी सुगंध भी बनी रहती है। दूध को उबलनांक पर लाकर आँच धीमी कर देना चाहिए और उसे कुछ देर उबलने देना चाहिए।

भोजन परोसने तथा खाने के नियम- इसके चार नियम हैं-

(A) विशद्ध भारतीय शैली- इसमें फर्श पर आसनी, दरी या लकडी के पटरे पर बैठकर भोजन किया जाता है।
(B) भारतीय-विदेशी मिली- जुली शैली-इस शैली में मेज और कुर्सी पर बैठकर भोजन ग्रहण किया जाता है।
(C) पाश्चात्य शैली- इसमें मेज पर रखे काँटे, चम्मच तथा छुरी के प्रयोग से भोजन किया जाता है। भोजन परोसने का कार्य वेटर करते हैं।
(D) स्वाहार (बफे) शैली- स्थान की कमी तथा अतिथि के अधिक होने की स्थिति में इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बड़ी मेज पर खाने की सभी सामग्रियों को डोंगों में रख दिया जाता है। इसमें स्वयं ही खाना निकालकर लोग खड़े होकर या घुमकर खाते हैं।


Home Science Class 12 question answer in Hindi

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