ECONOMICS

Class 12th Economics Question Answer 2022 ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 20 Marks ) PART-5

41. स्फीतिक अंतराल क्या है ? अतिरेक माँग के कारणों को बताएं। (What is Inflationary gap ? Explain reasons of arising excess demand ?)

उत्तर⇒ किसी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार संतुलन की स्थिति को बनाए रखने के लिए जितनी सामूहिक माँग की आवश्यकता पड़ती है, उससे अधिक सामूहिक माँग के अंतर के माप को स्फीतिक अंतराल कहते हैं।
सामूहिक माँग सामूहिक पूर्ति से जितनी अधिक होती है, उस अंतर को स्फीतिक अंतराल कहते हैं।
स्फीतिक अंतराल की स्थिति में अर्थव्यवस्था में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती केवल कीमतों में वृद्धि होती है। पूर्ण रोजगार की स्थिति में उत्पादन स्थिर हो जाता है। केवल कीमतों में वृद्धि होने लगती है। अर्थव्यवस्था में स्फीतिक दबाव उत्पन्न होने लगता है।
चित्र के द्वारा हम देख सकते हैं-कुल परिवर्तनशील लागत

चित्र में AS वक्र E बिन्दु के बाद यह प्रकट करती है कि अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की अतिरिक्त पूर्ति संभव नहीं है। यदि कुल माँग में वृद्धि होती है तो यह अत्यधिक माँग का स्तर होगा। चित्र में यदि माँग AD से बढ़कर AD, होती है तो AD, तथा AD, का अंतर EF है जो स्फीतिक अंतराल को बताता है। – अतिरेक माँग के कारण E, बिन्दु नया संतुलन बिन्दु होगा। रोजगार का स्तर OY ही है। उन्हीं वस्तु तथा सेवाओं की पूर्ति के लिए कुल माँग में वृद्धि हो रही है जिसके कारण पूर्ण रोजगार संतुलन बिन्दु F पर वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी।

अतिरेक माँग के कारण – किसी भी देश में अतिरेक माँग की स्थिति निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न हो सकता है –

(i). सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण सरकार द्वारा की जाने वाली वस्तुओं व सेवाओं की माँग में वृद्धि।
(ii). करों में कमी के परिणामस्वरूप व्यय योग्य आय एवं उपभोग माँग में वृद्धि।
(iii). हीनार्थ प्रबंध के फलस्वरूप मुद्रा पूर्ति में वृद्धि।
(iv). साख विस्तार से माँग में वृद्धि
(v). विनियोग माँग में वृद्धि
(vi). उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि के फलस्वरूप उपभोग माँग में वृद्धि
(vii). निर्यात के लिए वस्तुओं की माँग में वृद्धि। इस प्रकार उपरोक्त कई कारण हैं जो अतिरेक माँग में वृद्धि के कारण हैं।


42. निवेश गुणक क्या है? गुणक एवं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में क्या संबंध है ? (What is Investment multiplier ? What is the relation between multiplier and marginal propensity to consume (MPC)?)

उत्तर⇒ केन्स का गुणक का सिद्धांत निवेश तथा आय के बीच संबंध स्थापित करता है इसलिए इसे निवेश गुणक कहा जाता है। गुणक की धारणा निवेश में प्रारंभिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप आय में होने वाले अंतिम परिवर्तन के संबंध को व्यक्त करती है। गुणक निवेश में होने वाले परिवर्तन के कारण आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है।
केन्स के अनुसार, “निवेश गुणक से ज्ञात होता है कि जब निवेश में वृद्धि की जाएगी तो आय में वृद्धि होगी, वह निवेश में होने वाली वृद्धि से K गुणा अधिक होगी।”
इस प्रकार स्पष्ट है कि विनियोग में हुई वृद्धि के कारण आय में होने वाली वृद्धि का अनुपात गुणक है। इसलिए केन्स का गुणक विनियोग या आय गुणक के नाम जाता है।

निवेश गुणक को निम्न सूत्र द्वारा देखा जा सकता है-

K = ∆Y/∆I
यहाँ , K = गुणक, ∆N = निवेश में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।

निवेश गुणक एवं सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में संबंध – केन्स का निवेश गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति अधिक है तो गुणक भी अधिक होगा। इसके विपरीत यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम है तो गुणक भी कम होगा। इस प्रकार गुणक और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति में सीधा संबंध होता है।


43. पूर्ति की मूल्य लोच की परिभाषा दीजिए। इसे मापने की विधियों की व्याख्या करें। (Define price elasticity of supply. Explain the methods of measuring it.)

उत्तर⇒ किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप जिस गति या दर से उसकी पूर्ति में परिवर्तन होता है उसे पूर्ति की लोच कहा जाता है।

सैम्युलसन के अनुसार, “पूर्ति की लोच किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी पूर्ति की लोच की मात्रा है।”
“Elasticity of supply is the degree of the responsiveness of supply of a commodity to a change in its price.”कुल परिवर्तनशील लागत

पूर्ति की लोच की माप – पूर्ति की लोच की माप पूर्ति की लोच की माप की मुख्यतः दो विधियाँ हैं –

(i) प्रतिशत विधि (Percentage method) — कीमत में प्रतिशत अंतर और पूर्ति में प्रतिशत अंतर के अनुपात से हम पूर्ति की लोच मापते हैं।

सूत्र के रूप में –कुल परिवर्तनशील लागत

(ii) ज्यामितीय विधि (Geometric method) — इस विधि का प्रयोग पूर्ति वक्र पर स्थित किसी बिन्दु पर पूर्ति की लोच मापने के लिए किया जाता है। इसलिए इस विधि को बिंदु विधि भी कहा जाता है। यह विधि सीधी लकीर वाले पर्ति वक्र पर स्थित बिन्दु पर ES मापी जाती है।कुल परिवर्तनशील लागत

चित्र में तीन सरल रेखीय पूर्ति वक्र बनाया गया है जिनमें OP कीमत पर पूर्ति की मात्रा 00 दिखाई गयी है। पूर्ति वक्र के बिन्दु R पर पूर्ति की कीमत लोच मापनी है। ज्यामितीय विधि द्वारा समतल खंड को पति की मात्रा से भाग देकर पति की लोच निकाली जाती है।


44. पूर्ति का नियम क्या है? पूर्ति पर कीमत का क्या प्रभाव पड़ता है ? (What is Law of Supply ? What is the effect of price on Supply ?)

उत्तर⇒ अन्य बातें समान रहने पर, वस्तु की कीमत वृद्धि पूर्ति को बढ़ाता है तथा वस्तु कीमत में कमी पूर्ति को घटाता है। इस प्रकार वस्तु कीमत तथा वस्तु पूर्ति में प्रत्यक्ष तथा सीधा संबंध पाया जाता है।
फलन के रूप में S = f(P)
पूर्ति का नियम यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर जितनी कीमत अधिक होती है उतनी ही पूर्ति अधिक होती है या जितनी कीमत कम होती है उतनी ही पूर्ति कम होती है।
“The law of Supply States, othere things remaining constant, the higher the price, the greater the quantity supplied or the lower the price, the smallar the quantity supplied.’

पूर्ति का नियम वस्तु की कीमत एवं उसकी पूर्ति के बीच धनात्मक संबंध बताता है। जिसके कारण पूर्ति वक्र का ढाल बायें से दायें ऊपर की ओर चढ़ता हुआ होता है।
पूर्ति का नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है।
(i) बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं के आय स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(ii) स्थानापन्नों की कीमतों में परिवर्तन नहीं होनी चाहिए।
(iii) उत्पत्ति के साधनों की कीमतें स्थिर होनी चाहिए।
(iv) तकनीकी ज्ञान का स्तर स्थिर होनी चाहिए।
(v) सरकारी नीति में कोई परिवर्तन नहीं होनी चाहिए।
(vi) क्रेता तथा विक्रेता की रुचि, फैशन, आदत में परिवर्तन नहीं होनी चाहिए।

अपवाद (Eception) — पूर्ति के नियम के कुछ अपवाद निम्न हैं –

(i). कृषि वस्तुओं पर यह नियम अनिवार्य रूप से लागू नहीं होती है। अनेक प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि के कारण कृषि उत्पादित वस्तुओं की कीमतें बढ़ने पर भी उनकी पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता।

(ii). नाशवान वस्तुओं पर पूर्ति का नियम लागू नहीं होता है।

(iii). सामाजिक प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं पर भी यह नियम लागू नहीं होता है।
पूर्ति का कीमत पर प्रभाव पड़ता है। कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में परिवर्तन होता रहता है। यह परिवर्तन पूर्ति के नियम के अनुरूप ही होते हैं। कीमत के कम होने पर पूर्ति में कमी तथा कीमत के बढ़ने पर पूर्ति में वृद्धि होती है। लेकिन कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी पूर्ति में परिवर्तन होता है।


45. प्रत्यक्ष कर के गुण-दोष का वर्णन करें। (Explain merits and demerits of Direct taxes.)

उत्तर⇒ प्रत्यक्ष कर के गुण (Merits of Direct tax)—प्रत्यक्ष कर के निम्न प्रमुख गुण हैं-

(i) निश्चितता – प्रत्यक्ष कर के प्रमुख गुण यह है कि करदाता और सरकार दोनों ही यह जानते हैं कि उन्हें कितनी राशि देनी है और लेनी है।
(ii) मितव्ययी – प्रत्यक्ष कर करदाता द्वारा सीधे सरकार के हाथों में पहुँच जाते हैं।
(iii) न्यायशीलता – प्रत्यक्ष कर समानता के सिद्धान्त की पूर्ति करते हैं क्योंकि इन्हें नागरिकों की कर दान क्षमता के आधार पर गतिशील बनाया जा सकता है।
(iv) लोचदार – एक अच्छे कर की विशेषता यह है कि आवश्यकतानुसार आय में कमी या वृद्धि की जा सके।
(v) उत्पादकता – प्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय का उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जाता है।
(vi) प्रगतिशील – प्रत्यक्ष करों में धनी व्यक्तियों को निर्धन व्यक्तियों की तुलना में अधिक कर देना पड़ता है।

प्रत्यक्ष कर के दोष (Demerits of Direct tax) — इसके निम्न दोषों को इस प्रकार देखा जा सकता है –

(i) करों की चोरी – प्रत्यक्ष कर के भार को कम करने के लिए करदाता अनेक प्रकार की बेईमानी करता है।
(ii) असविधाजनक – प्रत्यक्ष कर में करदाता को बहुत असुविधा होती है क्योंकि करदाता को इनका भुगतान करने में कई औपचारिकताओं को पूरा करना पडता है।

(iii) कर की मनमानी दरें – कर निर्धारण अधिकारी द्वारा कर की दरें निर्धारित होती है।

(iv) करदाता को मानसिक कष्ट – प्रत्यक्ष कर से करदाता को शारीरिक कष्ट के साथ मानसिक कष्ट भी होता है क्योकि उसे कर का भुगतान अपनी आय से करना पड़ता है।

(v) उत्पादन पर कुप्रभाव – प्रत्यक्ष करों का उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।


46. अप्रत्यक्ष कर के गण-दोष को बताएँ।। (Explain merits and demerits of Indirect taxes.)

उत्तर⇒ अप्रत्यक्ष कर के गुण-दोष (Merits and demerits of indirect tax)
Merits of indirect tax-अप्रत्यक्ष करों के निम्न गुण हैं –

(i) ये सुविधाजनक होते हैं – इन करों का भुगतान वस्तुओं के खरीदने के समय करना होता है और चूँकि वस्तुएँ एक बार बहुत बड़ी मात्रा में नहीं खरीदी जाती।

(ii) कर से बचना प्रायः कठिन होता है – क्योंकि ये वस्तु को खरीदते समय वस्तु-विक्रेता को ही दिए जाते हैं।

(iii) ये कर प्रत्येक नागरिक से वसल किए जाते हैं – ज्य की सहायता प्रत्येक नागरिक को करनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए धनी और निर्धन प्रत्येक तक पहुंचने का परोक्ष कर एक वस्तुओं को खरीदते समय कर देना पड़ता है।

(iv). यह कर लोचदार होता है।
(v). इस प्रकार के करों से सामाजिक लाभ प्राप्त होता है।
(vi). कर प्रणाली का आधार विस्तृत होता है।

अप्रत्यक्ष करों के निम्न दोष देखे जा सकते हैं (Demerits of indirect tar)-
(i) अप्रत्यक्ष कर करदान योग्यता पर निर्भर नहीं है – अप्रत्यक्ष करों में धनी और निधन दोनों ही वर्गों को कर लगी हई वस्त का उपयोग करने पर कर का भगतान समान दर से करना पड़ता है जिससे व्यवहार में ये कर प्रतिगामी हो जाते हैं।

(ii). अप्रत्यक्ष करों से समाज में आर्थिक विषमता फैलती है।

(iii) अप्रत्यक्ष कर प्रायः अनिश्चित होते हैं – अनिवार्यताओं पर लगे कर को छोड़कर अन्य करों से प्राप्त होने वाली आय प्रायः अनिश्चित होती है।

(iv) अप्रत्यक्ष करों में मितव्ययिता नहीं रहती – इन करों को वसूल करने में खर्च अधिक पड़ता है।

(v) इनका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है – अप्रत्यक्ष करों का उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष करों के गुण-दोषों के बाद हम इस निष्कर्ष पर आते हैं। किसी देश की कर प्रणाली को न्यायपूर्ण बनाने के लिए इन दोनों ही प्रकार के करों को लगाना चाहिए।


47. भुगतान शेष में असंतुलन के कारण कौन-कौन से हैं ? (Explain the reasons of adverse balance of payments.)

उत्तर⇒ भुगतान शेष में असंतुलन के कारण – भुगतान शेष में असंतुलन के कारणों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(i) प्राकृतिक कारण; (ii) आर्थिक कारण, (iii) राजनैतिक कारण, (iv) सामाजिक कारण।

(i) प्राकृतिक कारण – भुगतान शेष के असंतुलन होने के कारण प्राकृतिक है। प्राकृतिक कारण . जैसे कि भूकंप, अकाल, सूखा इत्यादि भुगतान संतुलन में असंतुलन उत्पन्न कर देते हैं।

(ii) आर्थिक कारण – आर्थिक कारण के अंतर्गत भगतान शेष के असंतलन के निम्न कारण को देख सकते हैं-
(a) विकास व्यय – विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर विकास व्यय के लिए भारी मात्रा में आयात किये जाते हैं।
(b) व्यापार चक्र – अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक क्रियाओं में होने वाले उतार चढ़ाव के कारण निर्यातों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(c) बढ़ती कीमतों के कारण भी भुगतान संतुलन में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
(d) आयात प्रतिस्थापन के कारण आयातों में कमी हो जाती है जिसके कारण भुगतान संतुलन में घाटा कम हो जाता है।
(e) अन्य आर्थिक कारण – दूसरे देशों में पूर्ति के नये स्रोतों, नई और शेष प्रतियोगी वस्तुओं की खोज से देश के निर्यातों में कमी आती है।

(iii) राजनीतिक कारण – भुगतान संतुलन को असंतुलित करने वाले प्रमुख राजनीति कारण निम्न हैं –
(a) अधिक सुरक्षा व्यय के कारण भुगतान संतुलन में असंतुलन पैदा हो जाता है।
(b) अंतर्राष्ट्रीय संबंध – देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंध मधुर, खिंचावपूर्ण, तनावपूर्ण एवं युद्धमय हो सकते हैं।
(c) दूतावासों का विस्तार – दूतावासों के विस्तार व उनके रख-रखाव पर किया गया ऊँचा व्यय देश के लिए आयात तुल्य होता है।
(d) राजनीतिक अस्थिरता – देश की राजनीतिक अस्थिरता भी देश के भुगतान संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(iv) सामाजिक कारण – सामाजिक संरचना एवं सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन के कारण लोगों की रुचि, स्वभाव और फैशन में परिवर्तन आ सकता है।
इस प्रकार उपरोक्त कई कारण है जिसके चलते भुगतान असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है।


48. भुगतान संतुलन क्या है? प्रतिकूल भुगतान संतुलन को सुधारने के क्या उपाय हैं ? (What is Balance of Payments ? What are methods to correct adverse Balance of payment ?)

उत्तर⇒ भुगतान संतुलन का संबंध किसी देश के शेष विश्व के साथ हुए सभी आर्थिक लेन-देन के लेखांकन के रिकार्ड से है।

भुगतान संतुलन की परिभाषा – बेन्हम के अनुसार “किसी देश का भुगतान शेष किसी दिए समय में सारे संसार के साथ उसके लेन-देन का लेखा है।”

प्रतिकूल भुगतान संतुलन को सुधारने के उपाए — प्रत्येक देश अपने अपने भुगतान संतुलन को सुधारने के लिए निम्न उपाए करते हैं –

(i) निर्यातों में वृद्धि (Increasing in exports) – भुगतान संतुलन के प्रतिकूलता को ठीक करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण उपाए निर्यात में वृद्धि करना है।

(ii) आयात प्रतिस्थापन (Import substitution)-आयात की जाने वाली वस्तुओं का स्थान लेने वाली अर्थात् प्रतिस्थापित वस्तुएँ देश के अंदर निर्माण करनी चाहिए जिससे आयात कम हो सके।

(iii) घरेलू करेंसी का अवमूल्यन (Devaluation of domestic currency) – जब घरेलू मुद्रा
का विदेशी मुद्रा में मूल्य घटाया जाता है तो विदेशियों के लिए हमारी घरेलू वस्तुएं सस्ती हो जाती है।

(iv) विनिमय नियंत्रण (Exchange control) — सरकार ने सब निर्यातकों को विदेशी मुद्रा केंद्रीय बैंक में समर्पण करने के लिए विदेशी विनिमय पर नियंत्रण करना चाहिए।

(v) मुद्रा संकुचन (Deflation)—मुद्रा संकुचन द्वारा भी भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता को कम किया जा सकता है।

(vi) विदेशी सहायता (External Assistance)—विदेशों से ऋण अथवा सहायता लेकर भी भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता को ठीक किया जा सकता है। विदेशी व्यक्तियों, बैंकों, सरकारों एवं विश्व बैंक तथा मुद्रा कोष से ऋण लेकर अल्पकाल में भगतान संतलन की प्रतिकूलता को ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार उपरोक्त उपायों द्वारा भुगतान संतुलन के प्रतिकूलता को सधारा जा सकता है।


49. उत्पत्ति ह्रास नियम क्या है? यह क्यों लागू होती है ?
(What is law of Diminishing Return? Why does this law become operative ?)

उत्तर⇒ इस नियम का प्रतिपादन सबसे पहले टरगो (Turgot) ने की थी।
मार्शल ने इस सिद्धांत की व्याख्या कृषि के संदर्भ में की है। उनके अनुसार, “यदि कृषि कला में कोई सुधार नहीं तो भूमि पर उपयोग की जाने वाली पूँजी एवं श्रम की मात्रा में वृद्धि करने से कुल उपज़ में सामान्यतः अनुपात से कम वृद्धि होती है।
इस बिन्दु के बाद जैसे-जैसे परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्धि की जाती है वैसे-वैसे सीमांत उत्पादन गिरता जाता है।
श्रीमती जॉन राबिन्सन के अनुसार, “उत्पत्ति ह्रास नियम यह बताता है कि यदि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाए तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाए तो एक निश्चित बिन्दु के बाद उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होती है।”

मान्यताएँ (Assumptions) – इस नियम की निम्न मान्यताएँ हैं –
(i). एक उत्पत्ति साधन परिवर्तनशील है तथा अन्य स्थिर।
(ii). परिवर्तनशील साधन की समस्त इकाइयाँ समरूप होते हैं।
(ii). तकनीकी स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(iv). स्थिर साधन अविभाज्य है।
(v). विभिन्न उत्पत्ति साधन अपूर्ण स्थानापन्न होते हैं।
(vi). स्थिर साधन सीमित एवं दुर्लभ है।

उत्पत्ति हास नियम लागू होने के कारण – इस नियम के लागू होने के निम्न प्रमुख कारण हैं –
(i) साधनों की निश्चित पूर्ति – जिसके कारण उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।
(ii) साधनों के आदर्श प्रयोग का अभाव – अभाव में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।
(iii) साधनों के बीच अपूर्ण स्थानापन्नता का होना – उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने का कारण माना जाता है।
(iv) कृषि तथा प्राथमिक क्षेत्र में प्रकृति की प्रधानता द्वारा – उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होने लगता है।


Class 12th Economics लघु उत्तरीय प्रश्न ( 30 Marks )

1.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6.Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6

Class 12th Economics दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( 20 Marks )

1.Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
2.Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
3.Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4.Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
5.Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5

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