bihar board class 12 economics question 2022 Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 20 Marks ) PART- 3

21. चक्रीय आय प्रवाह मॉडल का महत्त्व बताएँ। (Explain importance of circular income flows.)

उत्तर⇒ आर्थिक विश्लेषण के दृष्टिकोण से चक्रीय आय प्रवाहों का महत्त्व निम्न रूप से देखा जा सकता है-

(i) राष्ट्रीय आय का अनुमान (Estimation of National income) – देश की राष्ट्रीय आय की गणना करने में मुद्रा प्रवाह का अध्ययन बहुत उपयोगी है।

(ii) अर्थव्यवस्था की कार्य-प्रणाली का ज्ञान (Knowledge of working of Economy) इसके द्वारा हमें यह मालूम हो जाता है कि अर्थव्यवस्था सुचारु रूप से कार्य कर रही है अथवा नहीं।

(iii) मौद्रिक नीति का महत्त्व (Importance of Monetary policy) – चक्रीय आय प्रवाह अर्थव्यवस्था में बचत तथा विनियोग की समानता लाने के दृष्टिकोण से मौद्रिक नीति के महत्त्व को स्पष्ट करती है।

(iv) राजकोषीय नीति का महत्त्व (Importance of fiscal policy)—चक्रीय आय प्रवाहों के अध्ययन के द्वारा अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाये रखने की दृष्टि से राजकोषीय नीति का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है।

(v) असंतुलन की समस्याओं का अध्ययन (Study of problem of imbalance) – चक्रीय आय प्रवाहों के द्वारा असंतुलन के कारणों तथा उनको दूर करने के उपायों का अध्ययन किया जा सकता है।

(vi) आय का रोजगार सिद्धांत का प्रतिपादन (Theory of income and Employment propounded)—मुद्रा प्रवाह तथा इसे प्रभावित करने वाले तत्वों को ध्यान में रखकर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे० एम० केन्स ने आय व रोजगार का सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

(vii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक नीतियों का आधार (Basis for international commercial policies) – चक्रीय आय प्रवाहों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि राष्ट्रीय आय में से आयात रिसाव है क्योंकि आयातों का भुगतान अन्य देशों की आय है। आयातों को कम करने की दृष्टि
से सरकार निर्यात को प्रोत्साहित करने की नीति को अपनाती है।

(vii) उत्पादन, आय तथा व्यय की तिहरी समानता (Triple Identity of production, income and expenditure) – आय के चक्रीय प्रवाह से स्पष्ट हो जाता है कि उत्पादन, आय तथा व्यय उत्पादन प्रक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को प्रकट करने के लिए विभिन्न रूप है। इस प्रकार चक्रीय प्रवाह से ज्ञात होता है कि
उत्पादन = आय – व्यय
यह समानता राष्ट्रीय आय के मापन की रीतियों का आधार है।


22. पूर्णतया लोचदार माँग और पूर्णतया बेलोचदार माँग में अन्तर कीजिए।
(Differentiate between perfectly elastic demand and perfectly inelastic demand.)

उत्तर⇒ जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं होने पर भी अथवा बहुत सूक्ष्म परिवर्तन होने पर माँग में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाता है तब उस वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार कही जाती है। पूर्ण लोचदार माँग को अनंत लोचदार मांग भी कहा जाता है । इस स्थिति में एक दी नई कीमत पर वस्त की माँग असीम या अनंत होती है तथा कीमत में नाममात्र की वृद्धि होने पर शन्य हो जाती है। माँग वक्र पूर्ण लोचदार होने पर माँग वक्र x-अक्ष के समानांतर होता है जिसे हम नीचे चित्र द्वारा देख सकते हैं। औसत.

माँग की मात्रा जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी उसका माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। इस स्थिति में माँग की लोच शून्य होती है जिसके फलस्वरूप माँग वक्र Y-अक्ष के समानांतर होती है। इसे हम निम्न चित्र द्वारा देख सकते हैं  निम्न को परिभाषित करें


23. न्यून माँग से क्या समझते हैं? इसके आर्थिक परिणामों का वर्णन करें।
(What do you mean by Deficient demand ? Describe their economical effects.)

उत्तर⇒ न्यून माँग वह दशा है जिसमें अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग पूर्ण रोजगार के लिए आवश्यक सामूहिक पूर्ति से कम होती है। अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्तर से पहले ही संतुलन प्राप्त हो जाने के कारण ही न्यून माँग की दशा उत्पन्न हो जाती है। यह स्थिति उत्पन्न होने के कारण यह है कि पूर्ण रोजगार स्तर तक पहुँचने के लिए जितनी सामूहिक माँग की आवश्यकता थी, वर्तमान सामूहिक माँग उससे कम रह गई। सामूहिक माँग की इस कमी के कारण ही हम पूर्ण रोजगार स्तर तक नहीं पहुंच पाये। अतः जब वर्तमान सामूहिक माँग पूर्ण रोजगार स्तर के लिए आवश्यक सामूहिक माँग से कम हो जाती है तो इसे न्यून माँग कहते हैं।

न्यून माँग के आर्थिक परिणाम
न्यून माँग के आर्थिक परिणाम निम्न तीन हैं –
(A) उत्पादन पर प्रभाव, (B) रोजगार पर प्रभाव, (C) कीमतों पर प्रभाव।

(A) उत्पादन पर प्रभाव (Effects on Production) – इसके अंतर्गत निम्न आर्थिक परिणाम देखने को मिलते हैं।
(i). न्यून माँग के कारण उत्पादक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन घटाने के लिए बाध्य होंगे।
(ii). न्यून माँग के कारण अपनी वर्तमान उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपभोग नहीं कर पाएंगे।
(iii). न्यून माँग के कारण देश के उत्पत्ति के संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाएगा।
(iv). न्यून माँग के कारण पहले से कार्य कर रही कुछ फर्मे अपना कार्य बन्द कर देगी।
(v). न्यूयून माँग के कारण उत्पादन की लागत में वृद्धि होगी।

(B) रोजगार पर प्रभाव (Effects on Employment) – माँग की कमी के कारण उत्पादकों को वस्तुओं एवं सेवाओं के अपने उत्पादन में कमी करनी पड़ेगी। इसका सामान्य प्रभाव यह होगा कि देश में रोजगार के स्तर में कमी आ जाएगी।

(C) कीमतों पर प्रभाव (Effects on Prices) – न्यून माँग के कारण देश में कीमत स्तर में कमी आ जाएगी जिससे उत्पादकों के लाभ के मार्जिन में कमी आ जाएगी तथा उपभोक्ताओं को कम कीमत पर वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त हो सकेगी।


24. क्या सकल घरेलू उत्पाद किसी देश के आर्थिक कल्याण का निर्देशांक है ? अपने उत्तर को स्पष्ट करें। (Is gross domestic product an indication of a country’s economy welfare ? Clarify your answer.)

उत्तर⇒ सकल घरेलू उत्पाद आर्थिक कल्याण का निर्देशांक
यदि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का आकलन वास्तविक अर्थों में नहीं किया जाता तो इसे देश में आर्थिक कल्याण की माप का सूचक नहीं माना जा सकता है। देश
में वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि उत्पन्न करती है। विपरीत परिस्थितियों में कहा जा सकता है कि जब तक देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि नहीं होती, तब तक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर्ज नहीं की जा सकती है।

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को देश में आर्थिक कल्याण का निर्देशांक प्रयोग करने के लिए कुछ व्यावहारिक सीमाएँ हैं –
1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि देश में बेहतर जीवन स्तर को अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने में असमर्थ है।

2. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) देश में आय के समान वितरण पक्ष की अवहेलना करता है। आर्थिक कल्याण में वृद्धि तब तक सुनिश्चित नहीं की जा सकती जब तक GDP की वृद्धि को समाज में समान वितरण न सुनिश्चित किया जाए।

3. अर्थव्यवस्था की अनेक क्रियाओं का आकलन मौद्रिक अर्थों में नहीं किया जाता जिससे GDP का आकलन वास्तविक आकार से कम रह जाता है। अत: GDP (सकल घरेलू उत्पाद) को आर्थिक कल्याण का उचित निर्देशांक नहीं माना जा सकता है।

4. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) बाह्य घटकों की उपेक्षा करता है जो किसी क्रिया पर धनात्मक या ऋणात्मक प्रभाव डालता है। इन बाह्य कारणों का प्रभाव GDP के परिक्षेत्र से बाहर होता है और इसलिए समाज की दृष्टि से GDP को आर्थिक कल्याण का सही एवं विश्वसनीय निर्देशांक नहीं माना जा सकता।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि देश के आर्थिक कल्याण का GDP या GNP आर्थिक कल्याण का माप निर्देशांक सही नहीं है।


25. भारत में मुद्रा की पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है? इनमें से कौन सबसे – व्यापक मुद्रा है ?
(What are the alternative definitions of supply of money in India ? Which of these is broad money?)

उत्तर⇒ मुद्रा की पूर्ति की भारत में वैकल्पिक परिभाषा
किसी विशेष समय में मुद्रा की पूर्ति का तात्पर्य समाज में प्रचलित मुद्रा की कुल मात्रा से होता है। मुद्रा की परिभाषा से स्पष्ट है कि सिक्के एवं कागजी नोट को ही हम मुद्रा नहीं कहते बल्कि इसके अन्तर्गत उन सभी पदार्थों को भी रखा जाता है जो लेन-देन के भुगतान के रूप में स्वीकार किये जाते हैं। अतः वर्तमान समय में मुद्रा की पूर्ति के अन्तर्गत निम्न तीन प्रकार की मुद्राओं का समावेश रहता है –

(i) सिक्के (Coins)
(ii) पत्रमुद्रा (Paper Money)
(iii) बैंक जमा (Bank Deposit)
केवल चालू जमा जिसके आधार पर चेक जारी किये जाते हैं। किन्तु मुद्रा की पूर्ति के अन्तर्गत किसी विशेष समय में केवल प्रचलन में मुद्रा की ही गणना की जाती है।
सकल मांग जमाओं में बैंकों के बीच होने वाले दावे को शामिल किया जाता है, जबकि शुद्ध माँग जमाओं में दावे शामिल नहीं किये जाते हैं। बैंक के बीच होने वाले दावे लोगों की मांग जमाओं में शामिल नहीं होते। अतः शुद्ध मांग जमाओं को मुद्रा पूर्ति का व्यापक भाग माना जाता है।


26. उदासीन वक्र की सहायता से उपभोक्ता का संतुलन स्पष्ट कीजिए। (Explain consumer’s equilibrium with the help of indifference curve.)

उत्तर⇒ एक उपभोक्ता संतुलन की अवस्था में तब होता है जब अपनी सीमित आय की सहायता से वस्तुओं को उनकी दी गई कीमतों पर खरीदकर अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने में सफल हो जाता है। उपभोक्ता को कीमत रेखा उसकी आय एवं उपभोग वस्तुओं की कीमतों से निर्धारित होती है। इस कीमत रेखा के साथ उपभोक्ता ऊँचे से नीचे उदासीनता वक्र तक पहुँचने का प्रयास करता है।

उदासीनता वक्र विश्लेषण में उपभोक्ता के संतुलन की दो शर्ते हैं –

(i). उदासीनता वक्र कीमत रेखा को स्पर्श करें (Price Line should be tangent to indifference Curve) अर्थात् मात्रात्मक रूप में X वस्तु की Y वस्तु के लिए सीमांत प्रतिस्थापन दर X तथा Y वस्तुओं की कीमतों के अनुपात के बराबर होनी चाहिए।कुल परिवर्तनशील लागत

MRSXY = PX/Y चित्र द्वारा देखा जा सकता है।

चित्र में संतुलन बिंदु E पर कीमत रेखा का ढाल = उदासीनता वक्र का ढाल अर्थात्                   MRSxy =  PX/X

(ii). स्थायी संतुलन के लिए संतुलन बिंदु पर उदासीनता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होनी चाहिए अर्थात् संतुलन बिन्दु पर MRS घटती हुई होनी चाहिए। (For stable equilibrium indifference curve should be convex to the origin at the point of equilibrium that MRS should be declining at the point of equilibrium) अर्थात् संतुलन बिन्दु पर MRSXY घटती हुई होनी चाहिए। चित्र में देख सकते हैं।कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्तनशील लागत और कुल लागत का क्या अर्थ है

चित्र में K बिन्दु पर यद्यपि संतुलन की पहली शर्त पूरी हो रही है किन्तु K पर संतुलन की स्थिति स्थायी नहीं है क्योंकि K बिन्दु पर MRSXY, बढ़ता हुआ है। बिन्दु E अंतिम संतुलन का बिन्दु है जहाँ MRSXY, घटती हुई है।


27. केंद्रीय बैंक के मौद्रिक उपाय से क्या समझते हैं? न्यून माँग को ठीक करने के लिए मौद्रिक उपाय का वर्णन करें। (What do you mean by monetary measures of Central Bank ? Explain the monetary measures to correcting deficient demand.)

उत्तर⇒ केंद्रीय बैंक के मौद्रिक नीति देश के केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति होती है जिसका उद्देश्य मुद्रा और साख की पूर्ति को नियंत्रित करना होता है। भारत का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक है।
केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए मौद्रिक नीति द्वारा तीन घटकों को नियंत्रित करता है।
(i) मुद्रा की पूर्ति, (ii) ब्याज दर, (iii) मुद्रा की उपलब्धता
डी० सी० ऑस्टन के अनुसार, “मौद्रिक नीति का संबंध ब्याज की दर तथा साख की उपलब्धि को नियंत्रित करके कुल माँग के स्तर तथा संरचना को प्रभावित करने से है।
“Monetary Policy involves the influence on the level and composition of aggregate demand by the manipulation of interest rate and the availability of credit.” D.C. Auston.

न्यन माँग को ठीक करने के मौद्रिक उपाय – न्यून माँग को ठीक करने के मौद्रिक उपाय को दो वर्गों में देखा जा सकता है –
(A). मात्रात्मक उपाय (Quantitative measures)
(B). गुणात्मक उपाय (Qualitative measures)

(A) मात्रात्मक उपाय के अंतर्गत देश की साख की कुल मात्रा को नियंत्रित किया जाता है।
इसके अंतर्गत निम्न विधियों द्वारा मात्रात्मक साख नियंत्रण करता है –

(i). बैंक दर को कम कर दिया जाता है ताकि अधिक साख विस्तार हो सके तथा माँग में वृद्धि हो सके।
(ii). केंद्रीय बैंक खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है जिससे अर्थव्यवस्था में क्रय शक्ति बढ़ती है।
(iii). नकद कोष अनुपात को कम कर दिया जाता है जिससे साख का अधिक विस्तार होता है। प्रत्येक व्यापारिक बैंक को कानूनी रूप से अपनी जमा राशियों का एक निश्चित अनुपात देश के केंद्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है, जिसे नकद कोष अनुपात कहा जाता है।
(iv). तरलता अनुपात को कम कर दिया जाता है। फलतः साख का अधिक विस्तार हो सकता है। प्रत्येक बैंक को अपनी परिसम्पतियों का एक निश्चित अनुपात नकदी के रूप में रखना वैधानिक रूप से आवश्यक है। इसे हम तरलता अनुपात कहते हैं।

(B). गुणात्मक उपाय  – गुणात्मक उपाय वे उपाय हैं जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के कुछ विशेष कार्यों के लिए दी जाने वाली साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है। इसके अंतर्गत निम्न उपाय अपनाए जाते हैं-
(i). ऋणों की सीमांत आवश्यकता को कम कर दिया जाता है ताकि अधिक ऋण अधिक मात्रा में मिल सके। न्यून माँग के नियंत्रण के लिए साख के मार्जिन को कम कर दिया जाता है।
(ii). साख की राशनिंग को समाप्त कर दिया जाता है। न्यून माँग को ठीक करने की स्थिति में साख की राशनिंग समाप्त कर दिया जाता है।
(iii). केंद्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को साख विस्तार करने का परामर्श दिया जाता है जिससे भी साख का विस्तार होता है। इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि न्यून माँग की स्थिति में केंद्रीय बैंक द्वारा सस्ती मौद्रिक नीति अपनायी जाती है।


28. भारतीय व्यापारिक बैंक के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। (Explain the main functions of Indian commercial bank.)

उत्तर⇒ व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्य –
(Main functions of commercial Bank) व्यावसायिक बैंक मुख्य रूप से तीन प्रकार के कार्य करते हैं –
(1). प्राथमिक कार्य,   (2). एजेन्सी कार्य,   (3). सामान्य उपयोगी सेवाएं ।

(1) प्राथमिक कार्य के अंतर्गत व्यावसायिक बैंक निम्न कार्य करता है-

(i) जमा स्वीकार करना (Receiving Deposits):— व्यावसायिक बैंक निम्न प्रकार से लोगों का जमा स्वीकार करता है-

(a) बचत जमाखाता – यह खाता परिवारों के लिए लाभदायक है जिनको एक बार रुपया जमा करवाने के बाद तुरंत जरूरत नहीं पड़ती है।
(b) चालू खाता जमा-यह खाता व्यापारी लोगों के लिए उपयोगी होता है, जिन्हें कई बार रुपया निकलवाने की जरूरत पड़ती है। इस खाते में कोई ब्याज नहीं
दिया जाता है।
(c) मियादी खाता जमा – इसमें दीर्घकाल के लिए जमा स्वीकार की जाती है। इस खाते में ब्याज की दर अधिक होती है।

(ii) उधार देना (Advancing of loan) – व्यावसायिक बैंक का दूसरा मख्य कार्य है लोगों को ऋण देना। बैंक दूसरे लोगों से जो जमा स्वीकार करता है उसका एक निश्चित भाग सुरक्षा कोष में रखकर उत्पादक कार्यों के लिए उधार दे देता है और उसपर ब्याज कमाता है।

(iii) साख का निर्माण (Credit of Creation) – व्यावसायिक बैंक साख का निर्माण करता है।

(2) एजेन्सी कार्य (Agency Functions):— बैंक अपने ग्राहकों के एजेन्ट के रूप में भी काम करता है, जिसके लिए बैंक कुछ कमीशन भी लेता है। बैंक द्वारा प्रदत एजेन्सी सेवाएँ निम्न हैं –

(i) नकद कोषों का हस्तांतरण — बैंक ड्राफ्ट, उधार खाते चिट्ठी तथा अन्य साख-पत्रों द्वारा बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम का स्थानांतरण करता है।

(ii) बैंक अपने ग्राहकों के लिए कंपनियों के शेयर बेचता और खरीदता है।
(iii) बैंक मृतक की वसीयतों और प्रबंधकर्ता का दायित्व निभाता है।

(3). सामान्य उपयोगी सेवाएँ (General Utility Services):- व्यावसायिक बैंक द्वारा। उपलब्ध अन्य उपयोगी सेवाएँ निम्न हैं –
(i). बैंक, विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करता है।
(ii). कीमती वस्तुओं के लिए लॉकर्स उपलब्ध कराता है।
(iii). पर्यटक चेक और उपहार चेक जारी करता है।
(iv). बैंक अपने ग्राहकों के आर्थिक हवाले देता है।

(4). अन्य कार्य –
(i) ओवर ड्राफ्ट (Overdraft)
(ii) विनिमय बिलों पर कटौती (Discounting Bills of Exchange)
(iii) कोषों का निवेश करना (Investment of Funds) -बैंक अपने अतिरिक्त धन राशियों को तीन प्रकार की प्रतिभूतियों में निवेश करता है—
(a) सरकारी प्रतिभूतियाँ, (b) अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियाँ एवं (c) अन्य प्रतिभूतियाँ
इस प्रकार व्यावसायिक बैंक के उपर्युक्त कई कार्य हैं।


29. केंद्रीय बैंक के मुख्य कार्यों की व्याख्या करें। (Explain the main function of Central Bank.)

उत्तर⇒ केंद्रीय बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं –
(i) कागजी नोट जारी करने का कार्य (Function of Note issue) – सभी देशों में केंद्रीय बैंक को कागजी नोट जारी करने का एकाधिकार (Monopoly) होता है। निम्नलिखित कारणों से केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का अधिकार दिया जाता है-

(a).  केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किये गये नोटों में जनता का स्थायी विश्वास होता है क्योंकि केंद्रीय बैंक बन्द नहीं हो सकता।
(b).  केंद्रीय बैंक को नोट-निर्गमन का अधिकार देने से वह मुद्रा तथा साख की मात्रा को सरलतापूर्वक नियमन एवं नियंत्रण कर सकता है।
(c).  केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किये गए नोटों में अधिक एकरूपता (Uniformity) रहती है, जिससे जाली नोटों का बनना कम सम्भव है।
इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का अधिकार दिया जाता है।

(ii) बैंकों के बैंक का कार्य (Banker’s Bank) – केंद्रीय बैंक अन्य सभी बैंकों के बैंक का कार्य करता है। जिस प्रकार बैंक जनता को विभिन्न सुविधाएँ देते हैं, उसी प्रकार केंद्रीय बैंक भी बैंकों को विभिन्न सुविधाएँ प्रदान करता है।

(a). केंद्रीय बैंक बैंकों की रकम को अपने पास जमा रखता है।
(b). केंद्रीय बैंक बैंकों को उनके विनिमय बिलों को पुनः बट्टा करा कर (Rediscounting) तथा सरकारी एवं अन्य प्रतिभूतियों के आधार पर ऋण भी देते हैं।
(c). केंद्रीय बैंक बैंकों को कुछ अन्य सुविधायें भी प्रदान करते हैं मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की सुविधा (Remittance facilities), समाशोधन-गृह की सुविधा इत्यादि।
इस प्रकार केंद्रीय बैंक बैंकों को उपर्युक्त सुविधायें प्रदान कर बैंकों के बैंक के रूप में कार्य करते हैं।

(iii) देश के धातु – कोष एवं विदेशी विनिमय-कोष को सुरिक्षत रखना (Safe custody of Internal reserve and Foreign Exchange Reserve) केंद्रीय बैंक देश के धातु-कोष जिसमें सोने-चाँदी का भंडार सम्मिलित है तथा विदेशी विनिमय कोष (Foreign Exchange Reserve) को सुरक्षित रखता है।

(iv) सरकार की मौद्रिक – नीति को सफल बनाना (To make successful the Monetary policy of the Government)— यों तो मौद्रिक-नीति (Monetry policy) का संचालन केंद्रीय बैंक ही करती है, लेकिन उसका निर्धारण मुख्यतः सरकार के हाथों में रहता है।


30. माँग की लोच से आप क्या समझते हैं? माँग की लोच मापने के प्रतिशत और रेखा गणित विधि को समझाएँ। (What do you mean Price elasticity of demand ? Explain measurement of percentage method and geometrical method.)

उत्तर⇒ कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तन के माप को माँग की लोच कहते हैं। प्रो० मार्शल के अनुसार, माँग की कीमत लोच, कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।

इसे हम समीकरण के रूप में इस प्रकार देख सकते हैं-उत्तर

 

हम कह सकते हैं कि “कीमत में परिवर्तन के प्रति, माँग की संवेदनशीलता का माप” माँग की लोच कहलाती है।
किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में जो परिवर्तन होता है उसे माँग की लोच कहते हैं।

(i). प्रतिशत विधि (Percentage method) – माँग की लोच मापने की प्रतिशत विधि को आनुपातिक विधि या फ्लक्स विधि भी कहा जाता है। क्योंकि इसे फ्लक्स ने प्रतिपादित किया था। इस विधि के अनुसार कीमत में प्रतिशत परिवर्तन और माँग में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात से हम माँग की लोच निम्न सूत्र की सहायता से माप सकते हैं।उत्तर

 

 

जिसमें ∆P (डेल्टा P) = कीमत में परिवर्तन
P = आरंभिक कीमत, ∆q = माँग में परिवर्तन, q = आरंभिक माँग
सूत्र से जब उत्तर 1 है तो माँग की लोच इकाई के बराबर है अर्थात् माँग लोचदार है। जब उत्तर 1 से अधिक है तो माँग का लोच अधिक है। 1 से कम है तो माँग कम लोचदार है।

(ii). रेखागणित विधि/ज्यामितिय विधि/बिन्दु प्रणाली (Geometrical method) – माँग की कीमत लोच मापने की एक अन्य विधि है जिसे रेखागणितीय विधि या बिंदु विधि (point method) है जिसका प्रयोग “सीधी रेखा वाले माँग वक्र” के विभिन्न बिन्दु पर लोच मापने के लिए किया जाता है।

(i) सीधी रेखा वाले माँग वक्र को x अक्ष और Y अक्ष तक बढ़ाया गया है जिसे हम चित्र में देख सकते हैं –कुल परिवर्तनशील लागत

(ii) चित्र में माँग वक्र के ठीक बीच में एक बिन्दु है जो रेखा को दो बराबर भागों में BE और BD में बाँट देता है। बिन्दु A ऊपरी भाग में और बिन्दु C निचले भाग में स्थित है।

(iii) माँग वक्र के जिस बिन्दु पर लोच निकालनी होती है उस बिन्दु के निचले भाग को ऊपरी भाग से भाग कर देते हैं। सूत्र के अनुसार,कुल परिवर्तनशील लागत

माँग की लोच = माँग वक्र का नीचे का भाग / माँग वक्र का ऊपर का भाग


Class 12th Economics लघु उत्तरीय प्रश्न ( 30 Marks )

1. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6. Economics ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6

Class 12th Economics दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( 20 Marks )

1. Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
2. Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
3. Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4. Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
5. Economics ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5
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