Class 12th Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2


Q. 26. आत्महत्या के रोकथाम के उपाय सुझावें।

Ans आत्महत्या को निम्नलिखित लक्षणों के प्रति सजग रहकर रोका जा सकता है –

(i) खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन।
(ii) मित्रों, परिवारों और नियमित गतिविधियों से विनिवर्तन।
(iii) उग्र क्रिया व्यवहार, विद्रोही व्यवहार, भाग जाना।
(iv) मद्य एवं मादक द्रव्य सेवन।
(v) व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन आना।
(vi) लगातार ऊब महसूस करना।
(vii) एकाग्रता में कठिनाई।
(viii) आनंददायक गतिविधियों में अभिरुचि का न होना।


Q.27. मनोग्रस्ति से आप क्या समझते हैं ?

Ans   किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति कहलाती है। इससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है।


Q.28. शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व का प्रकारों का वर्णन करें। अथवा, शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व के कौन-कौन से प्रकार हैं ?

Ans   मनोवैज्ञानिक शेल्डन द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्रारूप सर्वविदित हैं। शारीरिक बनावट और स्वभाव को आधार बनाते हुए शेल्डन ने गोलाकृतिक, आयताकृतिक और लंबाकृतिक जैसे व्यक्तित्व के प्रारूप को प्रस्तावित किया है। गोलाकृतिक प्रारूप वाले व्यक्ति मोल मृदुल और ओल होते हैं। स्वभाव से वे लोग शिथिल और सामाजिक या मिलनसार होते हैं। आयताकृतिक प्रारूप वाले लोग मजबूत पेशीसमूह एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं देखने में आयताकार होता है, ऐसे व्यक्ति ओजस्वी और साहसी होते हैं। लंबाकृतिक प्रारूप वाले पतले, लंबे और सुकुमार होते हैं। ऐसे व्यक्ति कुशाग्र बुद्धि वाले, कलात्मक और अंतर्मुखी होते हैं।


Q.29. प्राथमिक समूह की विशेषताओं को लिखें।

Ans   प्राथमिक समूह की विशेषता निम्नलिखित हैं –

(i) प्राथमिक समूह में मुखोन्मुख अंतःक्रिया होती है।
(ii) सदस्यों में घनिष्ठ शारीरिक सामीप्य होता है।
(iii) इनमें एक उत्साहपर्ण सांवेगिक बंधन पाया जाता है।


Q.30. औपचारिक समूह एवं अनौपचारिक समूह में विभेद करें।

Ans   औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह उस मात्रा में भिन्न होते हैं जिस मात्रा में समूह के प्रकार्य स्पष्ट एवं औपचारिक रूप से घोषित किये जाते हैं। एक औपचारिक समूह, जैसे-किसी कार्यालय संगठन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित होते हैं। समूह के सदस्यों द्वारा निष्पादित की जानेवाली भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से घोषित होती हैं। औपचारिक तथा अनौपचारिक समूह संरचना के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों की सुनिश्चित भूमिकाएँ होती हैं।औपचारिक समूह में मानकों का एक समुच्चय होता है जो व्यवस्था स्थापित करने में सहायक होता है। कोई भी विश्वविद्यालय एक औपचारिक समूह का उदाहरण है। दूसरी तरफ अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों का विधि पर आधारित नहीं होता है और इस समूह के सदस्यों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।


Q.31. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा क्या है ?

Ans   संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को दबाव के विरुद्ध संचारित करना होता है। व्यक्ति के नकारात्मक तथा अविवेकी विचारों के स्थान पर सकारात्मक तथा सविवेक विचार प्रतिस्थापित कर दिए जाएँ। इसके तीन प्रमुख चरण है-मूल्यांकन, दबाव, न्यूनीकरण तकनीकें तथा अनुप्रयोग एवं अनुवर्ती कार्रवाई। मूल्यांकन के अंतर्गत समस्या की प्रकृति पर परिचर्चा करना तथा उसे व्यक्ति/सेवार्थी के दृष्टिकोण से देखना सम्मिलित होता है। दबाव न्यूनीकरण के अंतर्गत दबाव कम करनेवाली तकनीकों जैसे-विश्रांति तथा आत्म-अनुदेशन को सीखना सम्मिलित होते हैं।


Q.32. मनोवृत्ति के स्वरूप का वर्णन करें।

Ans   मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक प्रचलित शब्द है जिसका व्यवहार हम प्रायः अपने दैनिक जीवन में दिन-प्रतिदिन करते रहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति की मानसिक प्रतिछाया या तस्वीर को, जो किसी व्यक्ति या समूह, वस्तु, परिस्थिति, घटना आदि के प्रति व्यक्ति के अनुकूल या प्रतिकूल दृष्टिकोण अथवा विचार को प्रकट करता है, मनोवृत्ति या अभिवृत्ति कहते हैं। क्रेच, क्रचफिल्ड तथा बैलेची ने मनोवृत्ति को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “किसी एक वस्तु के संबंध में तीन तंत्रों का टिकाऊ तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है।” इन तीनों तंत्रों से मनोवृत्ति का वास्तविक स्वरूप सही ढंग से स्पष्ट होता है। ये तीन तंत्र है-पहला, संज्ञानात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के विश्वास को संज्ञानात्मक संघटक कहते हैं। दूसरा, भावात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के सर्वगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। तीसरा, व्यवहारात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु क प्रति व्यवहार क्रिया करने की तत्परता की व्यवहारात्मक संघटक कहते हैं। इस प्रकार मनोवृत्ति उपर्युक्त तीनों संघटक का एक टिकाऊ तंत्र है।


Q.33. व्यवहार चिकित्सा क्या है ? . अथवा, व्यवहार चिकित्सा से आप क्या समझते हैं ?

Ans   व्यवहार चिकित्सा, जिसे व्यवहार परामर्श भी कहा जाता है। इस चिकित्सा का आधार न का नियम अथवा सिद्धान्त होता है। इस चिकित्सा पद्धति की प्रमुख मान्यता यह है कि रोगी ” समायोजन पैटर्न को सीख लेता है, जो स्पष्टतः किसी-न-किसी स्रोत से पुनर्वलित होकर संपोषित होते रहता है। फलतः इस तरह की चिकित्सा में चिकित्सक का उद्देश्य दोषपूर्ण समायोजन पैटर्न या अपअनुकूली समायोजन पैटर्न की जगह पर अनुकूली समायोजन पैटर्न को सीखला देना होता है।


Q.34. पूर्वाग्रह का अर्थ लिखें।

Ans   पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा अंग्रेजी भाषा के Prejudice का हिन्दी अनुवाद है जो लैटिन भाषा के Prejudicium से बना है। Pre का अर्थ है पहले और Judicium का अर्थ है निर्णय। इस दृष्टिकोण से पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह का शाब्दि अर्थ हुआ पूर्व निर्णय। इस प्रकार, पूर्वाग्रह जैसे कि इसके नाम से स्पष्ट है, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के विपक्ष में पूरी तरह से जानकारी किये बिना ही किसी-न-किसी प्रकार का विचार अथवा धारण बन बैठना है।


Q.35. संवेगात्मक बुद्धि से आप क्या समझते हैं ?

Ans   संवेगात्मक बुद्धि या ई. क्यू. संप्रत्यय की व्याख्या सर्वप्रथम दो अमेरिकी मनोवैज्ञानिक सैलोवे तथा मेयर ने 1990 ई० में किया। हालाँकि इस पद को विस्तृत करने का श्रेय प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को जाता है। इन्होंने संवेगात्मक बुद्धि की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य व्यक्ति का अपने तथा दूसरों के मनोभावों को समझना, उनपर नियंत्रण रखना और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उनका सर्वोत्तम उपयोग करना है।” इन लोगों का कहना है कि संवेगात्मक बुद्धि हमारी सफलता का अस्सी प्रतिशत भाग निर्धारित करता है। इस प्रकार संवेगात्मक बद्धि का तात्पर्य उस कौशल से है जिससे हम अपने आंतरिक जीवन के प्रबंध का संचालन करते हैं और लोगों के साथ तालमेल बिठाकर चलते हैं।


Q.36. अभिक्षमता क्या है ?

Ans अभिक्षमता क्रियाओं के किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का ऐसा संयोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन की क्षमता को प्रदर्शित करता है। अभिक्षमताओं का मापन कुछ विशिष्ट परीक्षणों द्वारा किया जाता है। किसी व्यक्ति की अभिक्षमता के मापन से इसमें उसके द्वारा भविष्य में किए जाने वाले निष्पादन का पूर्वकथन करने में सहायता मिलती है।


Q.37. अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रकार में अंतर बताइए।

Ans युंग ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण व्यवहार की प्रवृत्तियों के आधार पर दो प्रकारों से किया है। इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों की अलग-अलग विशेषताएँ एवं गुण हैं जो अग्रलिखित हैं –
युग के अनुसार अन्तर्मुखी प्रकार के व्यक्ति एकांतप्रिय एवं आदर्शवादी विचारों के होते हैं, जबकि बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्ति समाजप्रिय एवं यथार्थवादी विचार के होते हैं।
दूसरा अंतर यह होता है कि अन्तर्मुखी व्यक्ति आत्मगत दृष्टिकोण वाले होते हैं, लेकिन व्यवहार कुशल नहीं होते हैं। जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति वस्तुगत दृष्टिकोण वाले होते हैं, लेकिन व्यवहार कुशल होते हैं।
तीसरा अंतर यह है कि अंतर्मुखी व्यक्ति कल्पनाशील होते हैं, अतः ये वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक आदि होते हैं, जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं, अतः ये नेता समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि होते हैं।


Q.38. मानव व्यवहार पर शोरगुल के प्रभाव का वर्णन करें।

Ans मानव व्यवहार पर शोरगुल का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मानव शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की दुविधाओं से त्रस्त हो जाती है।
आत्मभाव में चिड़चिड़ापन, शब्दग्रहण की क्षमता में कमी, कार्य निष्पादन में विलम्ब तथा त्रुटिया, साखन का आभिरूचि क्षीण, ध्यान में अवरोध निर्णय क्षमता में कमी आदि अवांछनीय लक्षणों का प्रत्यक्ष क्रियाशील शोर के प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है।
शोर के कारण मनुष्य जल्दी थक जाता है, उसे स्वयं में ऊर्जा की कमी महसूस होने लगती है। क्रोध प्रकट करना, प्रिय एवं उपयोगी साधनों को भी पटक देना, चिल्लाना, कम सुनना आदि नकारात्मक लक्षण उभरने लगते हैं।
कार्य का निष्पादन पर शोर के प्रभाव को उसकी तीन विशेषताएँ निर्धारित करती हैं, जिन्हें शोर की तीव्रता, भविष्यफकशनीयता तथा नियंत्रणीयता कहते हैं। मनुष्य पर शोर के प्रभावों पर किए गए क्रमबद्ध शोध प्रदर्शित करते हैं कि शोर के दबावपूर्ण प्रभाव केवल उसके तीव्र या मद्धिम होने से ही निर्धारित नहीं होते बल्कि इससे भी निर्धारित होते हैं कि व्यक्ति उसके प्रति किस सीमा तक अनुकूलन करने में समर्थ हैं, निष्पादन किए जाने वाले कार्य की प्रति क्या है तथा क्या शोर के संबंध में भविष्यकाशन किया जा सकता है और क्या उसे नियंत्रण किया जा सकता है।
शोर कभी-कभी सकारात्मक प्रभाव भी दिखाते हैं। चुनावी लहर में नारे की ध्वनि, भाषण के मध्य में तालियों की गड़गड़ाहट, पूजा-अर्चना के क्रम में जयकार आदि कर्ता में जोश भरने वाले माने जाते हैं।


Q.39. साक्षात्कार के प्रमुख अवस्थाओं को लिखें।

Ans साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है –

(i) प्रारंभिक अवस्था – यह साक्षात्कार की सबसे पहली अवस्था है। वास्तव में साक्षात्कार की सफलता उसकी प्रारंभिक तैयारी पर ही निर्भर होती है। यदि इस अवस्था में गलतियाँ होगी तो साक्षात्कार का सफल होना संभव नहीं है।

(ii) प्रश्नोत्तर की अवस्था – साक्षात्कार की यह सबसे लंबी अवस्था है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछता है और साक्षात्कारदाता उसके प्रश्नों को सावधानीपूर्वक सुनता है और कुछ रूककर उसे समझता है, उसके बाद उत्तर देता है। उसके उत्तर देते समय साक्षात्कारकर्ता उसके हाव-भाव, मुखाकृति का भी अध्ययन करता है।

(ii) समापन की अवस्था – साक्षात्कार का यह सबसे अंतिम चरण है। जब साक्षात्कारकर्ता को सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाय और ऐसा अनुभव हो कि उसे महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है तो साक्षात्कार का समापन किया जाता है। इस अवस्था में साक्षात्कारदाता के मन में बननेवाली प्रतिकूल अवधारणा का निराकरण करना चाहिए। साक्षात्कारदाता भी जब यह कहता है कि और कुछ पूछना है तो उसे प्रसन्नतापूर्वक समापन की सूचना देनी चाहिए तथा सफल साक्षात्कार के लिए उसे धन्यवाद भी देना चाहिए।


Q.40. मनोग्रस्ति एवं बाध्यता व्यवहार के बीच विभेद स्थापित करें। अथवा, मनोग्रस्ति तथा मनोबाध्यता में अंतर करें।

Ans जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार (Obsessive compulsive disorder) से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि ये उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुँचाते हैं। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार (Obsessive behaviour) कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है। किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार (compulsive behaviour) कहलाता है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।


Q.41. तनाव या दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों को लिखें।

Ans दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने की उपायों के उपयोग में व्यक्तिगत भिन्नताएँ देखी ।। है। एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित दबाव का सामना करने की तीन उपाय निम्नलिखित हैं –

(i) कृत्य अभिविन्यस्त युक्ति – दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं-यह सब इसके अंतर्गत आते हैं।

(ii) संवेग अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत मन में आभा बनाये रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं।

(iii) परिहार अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं।


Q.42. एकध्रुवीय विकार क्या है ?

Ans एक ध्रुवीय विषाद को मुख्य विषाद भी कहा जाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में उदास मनोदशा, भूख, वजन तथा नींद में कमी तथा क्रिया स्तर में भयंकर क्षुब्धता पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति किसी कार्य में जल्द थकान महसूस करने लगते हैं, उनका आत्मसंप्रत्यया ऋणात्मक होता है तथा उनमें
आत्म-निन्दा की प्रवृत्ति भी अधिक होती है।


Q.43. दुर्भीति विकार से आप क्या समझते हैं ?

Ans दुर्भीति विकार एक बहुत ही सामान्य दुश्चिता विकार है, जिसमें व्यक्ति अकारण या आयुक्तिक अथवा विवेकहीन डर अनुभव करता है। इसमें व्यक्ति कुछ खास प्रकार की वस्तुओं या परिस्थितियों से डरना सीख लेता है। जैसे जिस व्यक्ति में मकड़ा से दुर्भीति होता है वह व्यक्ति वहाँ नहीं जा सकता है जहाँ मकड़ा उपस्थित हो। जबकि मकड़ा एक ऐसा जीव है जो व्यक्ति विशेष के लिए खतरा पैदा नहीं करता है। फिर भी व्यक्ति में दुर्भीति उत्पन्न हो जाने पर सामान्य व्यवहार को विचलित कर देता है। यद्यपि डरा हुआ व्यक्ति यह जानता है कि उसका डर आधुनिकतम है, फिर भी वह उक्त डर से मुक्त नहीं हो पाता है। इसका कारण व्यक्ति का आंतरिक रूप से चिन्तित होना होता है। व्यक्ति का यह चिन्ता किसी खास वस्तु से अनुकूलित होकर संलग्न हो जाता है। उदाहरणार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण दुर्भीतियाँ जैसे बिल्ली से डर एलूरोफोबिया, मकड़ा से डर एरेकनोफोबिया, रात्रि से डर नायक्टोफोबिया तथा आग से डर पायरोफोबिया आदि दुर्भीति के उदाहरण हैं।


Q.44. अभिवृत्ति परीक्षण की उपयोगिता का वर्णन करें।

Ans बी० ए० पारिख ने एन. सी. सी. परीक्षण के प्रति छात्रों की मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया है। इसमें 22 एकांश है जो एन० सी० सी० प्रशिक्षण एवं उसके विविध गतिविधियों या कार्यक्रमों आदि के पक्ष और विषय में छात्रों की मनोवृत्ति क्या है, उसको प्रदर्शित करता है। यह परीक्षण स्वयं पर प्रशासित किया जा सकता है और विषय में छात्रों की मनोवृत्ति क्या है इसको प्रदर्शित करना है। उसको पूरा करने में 10 मिनट का समय लगता है।


Q.45. क्या विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानसिक विकारों के लिए उपयोगी है ?

Ans विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानिसक विकारों के लिए उपयोगी है। विद्युत आक्षेपी चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य है –
1. रोगों को लक्षणों से मुक्त करना।
2. रोगी को अपने वातावरण में समायोजन स्थापित करने के योग्य बना देना।
3. रोगी को आत्मनिर्भर बना देना ताकि वह स्वयं जीवन अर्जन करने का समझ हो सके।
4. रोगी इस योग्य बना देना कि वह अपने परिवर्तनशील वातावरण के साथ आवश्यकता अनुसार स्थापित करने में समझ हो सके।


Q.46. अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन करें।

Ans अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –

(i) परिवार एवं विद्यालय का परिवेश – विशेष रूप से जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अभिवृत्ति निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में विद्यालय का परिवेश अभिवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है।

(ii) संदर्भ समूह – संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। अतः ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दर्शाते हैं।

(iii) व्यक्तिगत अनुभव – अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण पारिवारिक परिवेश में या संदर्भ समूह के माध्यम से नहीं होता बल्कि इनका निर्माण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है, जो लोगों के साथ स्वयं के जीवन के प्रति हमारी अभिवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है।

(iv) संचार माध्यम संबद्ध प्रभाव – वर्तमान समय में प्रौद्योगिकीय विकास ने दृश्य-श्रव्य माध्यम एवं इंटरनेट को एक शक्तिशाली सूचना का स्रोत बना दिया है जो अभिवृत्तियों का निर्माण एवं परिवर्तन करते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय स्तरीय पाठ्य पुस्तकें भी अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करती हैं। ये स्रोत सबसे पहले संज्ञानात्मक एवं भावात्मक घटक को प्रबल बनाते हैं और बाद में व्यवहारपरक घटक को भी प्रभावित कर सकते हैं।


Q.47. प्रतिबल को दूर करने के तीन उपायों का वर्णन करें।

Ans दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने की उपायों के उपयोग में व्यक्ति भिन्नताएँ देखी जाती हैं।एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित प्रतिबल को दूर करने के तीन उपाय निम्नलिखित हैं –

1. कल्य अभिविन्यस्त युक्ति – दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं ? यह सब इसके अंतर्गत आते हैं।

2. संवेग अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत मत में आभा बनाये रखने के प्रभाव तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं।

3. परिहार अभिविन्यस्त युक्ति – इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं।


Q.48. अभिघातज उत्तर दबाव विकार क्या है ? व्याख्या करें।

Ans अभिघातज उत्तर दबाव वास्तव में विघटन की स्थिति होती है। शोर, भीड, खराब संबंध आदि घटनाओं से यह सम्बद्ध होता है। दबाव की एक विशेषता यह भी है कि यह कारण तथा प्रभाव दोनों रूप में देखा जाता है। कभी यह आश्रित चर और कभी स्वतंत्र चर के रूप में भी देखा जाता है।


Q.49. सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारकों का वर्णन करें।

Ans सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारक हैं जो एक निर्धारित करते हैं कि लोग सहयोग करेंगे या प्रतिस्पर्धा ? इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं –

1. पारितोषिक संरचना – मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि व्यक्ति उद्योग करेंगे अथवा प्रतिस्पर्धा करेंगे यह पारितोषिक संरचना पर निर्भर करता है। यह संरचना वह है कि जिसमें प्रोत्साहक में परस्पर निर्भरता पाई जाती है। पुरस्कार पाना तभी संभव हो पाता है जब सभी सदस्य मिलकर प्रयत्न करते हैं। इस संरचना के अन्तर्गत कोई व्यक्ति तभी पुरस्कार प्राप्त कर सकता है जब दूसरे व्यक्ति पुरस्कार नहीं पाते हैं।

2. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण – संप्रेषण क्रिया और विचार-विमर्श को सुयोग्य बनाता है। इसके फलस्वरूप समूह के सदस्य एक-दूसरे को अपनी बात के द्वारा मनवा सकते हैं और एक-दूसरे के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3. परस्परता – परस्परता का अभिप्राय यह है कि लोग जिस वस्तु को प्राप्त करते हैं उसे वापस करने में कृतज्ञता महसूस करते हैं। प्रारम्भिक सहयोग आगे चलकर अधिक सहयोग को प्रोत्साहित कर है प्रतिस्पर्धा की अत्यधिक प्रतिस्पर्धा को पैदा कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति आपको सहायता करता है तो आप भी उस व्यक्ति की सहायता करना चाहते हैं।


Q.50. बुद्धि के मुख्य प्रकारों की व्याख्या करें।

Ans बुद्धि के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है –

1. अमूर्त बुद्धि – अमूर्त बुद्धि का अर्थ वह बुद्धि है जो अमूर्त समस्याओं का समाधान में सहायक होती है। जैसे-आत्मा क्या है ? परमात्मा क्या है ? आदि समस्याओं को समझने में जो बुद्धि सहायक होती है, उसे ही अमूर्त बुद्धि कहते हैं।

2. मूर्त बुद्धि – वह बुद्धि तो मूर्त समस्याओं के समाधान में मदद करता है, उसे मूर्त बद्धि कहते हैं। जैसे-मकान बनाने, हवाई जहाज बनाने, कम्प्यूटर बनाने आदि में जो बुद्धि सहायक होती है।

3. सामाजिक बुद्धि – जो बुद्धि सामाजिक समस्याओं के समाधान में मदद करती है, उसे सामाजिक बुद्धि कहते हैं। पारिवारिक समस्या के समाधान में सहायक होने वाली बुद्धि को भी सामाजिक बुद्धि कहते हैं।


S.N  Class 12th Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
1. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
2. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
3. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4
5. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5
6. Psychology ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6
S.N  Class 12th Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6
7. Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 7
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