14. अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा साधारण परिपथ ( Short Answer Type Question )
14. अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा साधारण परिपथ
Q. 1. ठोस में किस प्रकार ऊर्जा पट्टी (बैण्ड) बनता है ? समझाएँ।
अथवा, ठोसों में ऊर्जा पट्टी के बनावट की व्याख्या उपयुक्त आरेख द्वारा करें।
Ans⇒ ठोसों में ऊर्जा पट्टी (बैण्ड) – ठोसों में परमाणु अपने पड़ोसी परमाणुओं द्वारा घिरा होता है तथा परमाणु में इलेक्ट्रॉन के इस ऊर्जा स्तर के कारण केवल सबसे बाहरी कक्षाओं में रूपान्तरित होता है, क्योंकि सबसे बाहरी कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन एक से अधिक परमाणु द्वारा साझेदारी करता है।
माना कि एक छोटा सिलिकॉन के रवा N परमाणु से बना है सिलिकॉन के परमाणु की इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2, 2s2p2, 3s23p2 है। इसके बाहरी कक्षा के 3s उपकक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन तथा 3p उपकक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं। सबसे बाहरी कक्षा में, 2n s-स्तर 2N इलेक्ट्रॉन द्वारा पूरे भरे होते हैं। जबकि 6N के बाहर सबसे बाहरी कक्षा में, p-स्तर में, केवल 2N भरे होते हैं। चित्रानुसार सिलिकॉन परमाणु में ऊर्जा स्तर प्रदर्शित है।
सिलिकॉन परमाणु में वास्तविक अन्तर परमाण्विक विलगाव को r = a द्वारा व्यक्त किया जाता है।
माना कि सिलिकॉन परमाणु एक-दूसरे के नजदीक रखे हैं। इस तरह की रवा लैटिस में अंतिम वास्तविक स्थिति (r = a) है।
(i) जब r = d1 है तो एक परमाणु के सबसे बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे के साथ नहीं मिलते हैं। इसलिए, d पर N परमाणु के प्रत्येक का अपना ऊर्जा स्तर होता है।
(ii) जब r = d2 है, तो सबसे बाहरी कक्षाओं (3s2 तथा 3p2) के इलेक्ट्रॉनों के बीच दूरी हो जाती है, जिसके कारण प्रत्येक परमाणु के स्तर 3s तथा 3p के ऊर्जा कुछ रूपान्तरित हो जाते हैं। इसलिए वहाँ अधिक संख्या के सटे रिक्त ऊर्जा स्तर हो जाता है। 2N, s-स्तर को समान ऊर्जा नहीं होता है, किन्तु छोटे ऊर्जा पट्टी (बैण्ड) में फैल जाते हैं। उसी प्रकार 6N, p-स्तर पर भी छोटे ऊर्जा बैण्ड में फैल जाते हैं। फलस्वरूप विलगित परमाणु के s तथा p स्तर के बीच ऊर्जा अन्तराल कम हो जाता है।
(iii) जब r = d है, तो 3s तथा 3p स्तरों के बीच ऊर्जा गायब हो जाते हैं और सभी 8N स्तर (2N s-स्तर तथा 7N p-स्तर) एक ऊर्जा बैण्ड बनाते हुए नियमित रूप में बँट जाता है।
(iv) जब r = a है, तो 4N भरे स्तरों के बैण्ड तथा 4N रिक्त ऊर्जा स्तरों के बैण्ड, एक ऊर्जा गैप द्वारा एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। 4N भरे स्तरों के निम्न ऊर्जा बैण्ड को (वैलेन्स बैण्ड) संयोजी पट्टी कहते हैं, जबकि 4N खाली स्तरों के उच्च ऊर्जा बैण्ड को चालन पट्टी (कण्डक्शन बैण्ड) कहते हैं। दोनों के बीच के ऊर्जा अन्तराल को फॉरबिडेन ऊर्जा अन्तराल कहते हैं।
उच्चतम ऊर्जा स्तर जिसके शून्य केल्विन पर वैलेन्स बैण्ड में एक इलेक्ट्रॉन रह सकता है, फर्मी स्तर कहलाती है। तापक्रम के बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन ऊर्जा अवशोषित करता है तथा उत्तेजित हो जाता है। उत्तेजित इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तरों पर कूद जाता है। उच्च ऊर्जा स्तरों में ये इलेक्ट्रॉन तुलना में नाभिक से अधिक दूर होते हैं तथा निम्न ऊर्जा स्तरों में इलेक्ट्रॉनों की तुलना में अधिक मुक्त होते हैं। वैलेन्स बैण्ड तथा कण्डक्शन बैण्ड के तुलनात्मक स्थिति पर निर्भर करते हुए ठोस कण्डक्शन (चालक), अचालक तथा अर्द्ध-चालक की तरह आचरण करते हैं।
Q. 2. सौर सेल क्या है ? इसकी उपयोगिता कृत्रिम उपग्रहों में क्या है ? समझाएँ।
Ans⇒ सौर-सेल – सौर सेल ऐसी युक्ति है जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। सैलेनियम से तैयार किये गए सौर से आपतित प्रकाश ऊर्जा का 0.6% ही विद्युत में परिवर्तित कर सकते हैं। आजकल सौर सेल प्रायः सिलिकॉन, जरमेनियम तथा गैलियम जैसे अर्द्धचालकों के बनाए जाते हैं, जिनकी दक्षता अधिक होती है
वैसी संधि डायोड जिसमें P- या N- प्रकार में एक को बहुत पतला इस प्रकार बनाया जाता है कि डायोड पर पड़ते हुए प्रकाश ऊर्जा उसकी संधि पर पहुँचने के पहले ज्यादा अवशोषित नहीं होता है, प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं, सौर सेल कहलाते हैं। जैसे- प्रकाश-चालकीय सेल जिसका वर्णन इसके पहले यूनिट में प्रकाश-विद्युत (फोटो) सेल में है।
प्रकाश पड़ने पर अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ जाती है। सौर सेल में अपद्रव्य मिश्रित अर्द्धचालक पदार्थ की परतें इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है कि प्रकाश पड़ने पर उसके दो भागों में विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है।
वर्ग सेमी॰ आकार के सौर सेल द्वारा 60 मिली ऐम्पियर धारा लगभग 0.4 से 0.5 वोल्ट पर उत्पन्न होती है। सौर सेल पैनेल में अनेक सौर सेल विशेष क्रम में व्यवस्थित होते हैं, जिससे विभिन्न कार्यों के लिए पर्याप्त परिणाम में विद्युत प्राप्त की जा सकती है।
सौर सेल पैनेल का उपयोग कृत्रिम उपग्रह में किया जाता है।
सौर सेल के अन्य उपयोग निम्नलिखित हैं –
(a) समस्त कृत्रिम उपग्रहों तथा अंतरिक्ष अन्वेषक यान मुख्यतः सौर पैनलों द्वारा उत्पादित विद्यत पर निर्भर करता है।
(b) यह प्रकाश व्यवस्था, जल पम्पों, रेडियो तथा दूरदर्शन के अभिग्राहियों को प्रचालित करने में उपयोगी है।
(c) यह प्रकाश ग्रह में तथा तट से दूर निर्मित खनिज तेल के कुएँ खोदने के रिंग को विद्युत ऊर्जा प्रदान करने में उपयोगी है।
Q. 3. चालकों के लक्षणों की व्याख्या ऊर्जा पट्टी (बैण्ड) के आधार पर करें।
Ans⇒ ऊर्जा बैण्ड के आधार पर चालकों के लक्षणों के व्याख्या –
चित्रानुसार धातुओं (चालकों) की ऊर्जा बैण्ड रचना वैसी होती है जिसमें कण्डक्शन बैण्ड तथा वैलेन्स बैण्ड कण्डक्शन बैण्ड एक-दूसरे से ओवरलैप (एक दूसरे पर चढ़े) होते हैं या कण्डक्शन बैण्ड अंशतः भरे होते हैं।
Zn में वैलेन्स बैण्ड कण्डक्शन बैण्डों पर चढ़े होते हैं तथा Na में अंशतः भरे होते हैं। फर्मी स्तर के नीचे से बहुत-से इलेक्ट्रॉन उच्च स्तरों में जा सकते हैं, जो कि फर्मी स्तर के ऊपर होते हैं।
वैसे इलेक्ट्रॉन मुक्त इलेक्ट्रॉन की भाँति व्यवहार करते हैं। जब चालकों से विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो ये मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युतीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत दिशा में गतिशील हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में उससे एक धारा प्रवाहित करना प्रारम्भ करने पर विद्युतीय क्षेत्र आरोपित हो जाता है तथा वैसा ठोस चालक कहा जाता है।
Q. 4. ट्रान्जिस्टर क्या है ? N-P-N तथा P-N-P ट्रान्जिस्टर में अंतर स्पष्ट करें।
Ans⇒ ट्रान्जिस्टर – ट्रान्जिस्टर एक अर्द्ध-चालक युक्ति है जिसका व्यवहार प्रवर्धन, दोलित्र आदि के लिए होता है। यह एक तीन सेक्सन अर्द्धचालक है। तीनों सेक्सन इस प्रकार संयोजित होते हैं कि दो के किनारों को समान प्रकार का वाहक होता है। जब सेक्शन उसे अलग करता है तो विपरीत प्रकृति के वाहक प्राप्त होते हैं। इसलिए यह दो प्रकार का N-P-N तथा P-N-P ट्रान्जिस्टर होता है। इसके तीनों सेक्शन उत्सर्जक E, आधार B तथा संग्राहक C कहलाते हैं।
N-P-N ट्रान्जिस्तिर – चित्रानुसार (a) द्वारा N-प्रकार अर्द्ध-चालक के दो छोटे क्रिस्टल के बीच एक बहुत पतला टुकड़ा P-प्रकार का अर्द्धचालक होता है। केन्द्रीय टुकड़े, आधार (B) कहलाते हैं। जबकि बायीं तथा दायीं क्रिस्टल क्रमशः उत्सर्जक (E) तथा संग्राहक (C) कहलाते हैं।
इसमें उत्सर्जक (E) को ऋणात्मक विभव दिया जाता है जबकि संग्राहक (C) को आधार के सापेक्ष धनात्मक विभव दिया जाता है।
पुनः उत्सर्जन आधार N-P संधि बायीं तरफ अग्र अभिनति (फॉरवर्ड बायसित) होते हैं; जबकि आधार-संग्राहक P-N संधि बायीं तरफ पश्च अभिनति (रिवर्स बायसित) होते हैं। N-P-N ट्रान्जिस्टर के संकेत (b) चित्रानसार प्रदर्शित है। इसमें तीर के निशान इलेक्ट्रॉन के प्रवाह की दिशा के विपरीत धारा की दिशा को प्रदर्शित करते हैं।
P-N-P ट्राजिस्टर – चित्रानुसार (a) द्वारा P-प्रकार के अर्द्धचालक दो छोटे क्रिस्टलों के बीच एक बहुत पतले टुकड़े N-प्रकार के अर्द्ध चालक हैं। केन्द्रीय टुकड़े आधार (B) कहलाते हैं जबकि बायीं तथा दायीं तरफ के क्रिस्टल क्रमशः उत्सर्जक (E) तथा संग्राहक (C) कहलाते हैं। उत्सर्जक को धनात्मक विभव दिया जाता है जबकि आधार के सापेक्ष संग्राहक को ऋणात्मक विभव दिया जाता है। इस प्रकार बायी तरफ उत्सर्जक आधार P-N संधि फॉरवर्ड बायस्ड होते हैं जबकि आधार संग्राहक N-P संधि दायीं तरफ रिवर्स बायस्ड होता है। इसका संकेत (b) चित्रानुसार प्रदर्शित है, जिसमें तीर की दिशा धारा की दिशा विवरों (होलों) के प्रवाह की दिशा को प्रदर्शित करता है।
संकेत में P-N-P तथा N-P-N ट्रान्जिस्टर में अन्तर क्रमशः उत्सर्जक के विपरीत दिशा के तरफ तीर के निशान तथा उसकी दिशा की तरफ तीर की निशान को प्रदर्शित करते हैं।
Q. 5. बीट क्या है ? समझाएँ।
Ans⇒ बाइनरी संख्या के प्रत्येक अंक को बीट कहा जाता है। प्रथम अक न्यूनतम महत्त्वपूर्ण बीट (L. S. B.) कहा जाता है, जबकि अंतिम अंक अधिकतम महत्त्वपूर्ण बीट (M. S. B.) कहा जाता है। बाइनरी संख्या पद्धति के आधार 2 होते हैं। दशमलव संख्या पद्धति में इकाई स्थान में अंक का गुणज 101 होता है, दसवें स्थान में अंक का गुणज 102 होता है, सौवें स्थान में अंक का गुणज 102 होता है और सो ऑन । बाइनरी संख्या पद्धति में अंक का गुणज 20, 21, 22………M. S. B. होता है।
Q. 6. बूलियन बीजगणित से आप क्या समझते हैं ?
Ans⇒ बूलियन बीजगणित – कम्प्यूटर पद्धति का इलेक्ट्रॉनिक परिपथ बलियन बीजगणित के सिद्धांत पर आधारित है। यह तार्किक कथन के साथ प्रस्तुत होता है कि उसके केवल दो मान या तो सही या गलत मान होता है। तार्किक कथन बूलियन चर कहलाते हैं, जिसके एक मान या तो सही या गलत होता है। बूलियन चर का सही मान 1 द्वारा तथा गलत मान 0 द्वारा व्यक्त होता है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में 1 तथा 0 संकेतों को, परिपथ अवयव जैसे स्विच, डायोड या ट्रान्जिस्टर को एक्टिव (active) तथा पैसिव (passive) अवस्था में निरूपित किया जाता है।
बुलियन बीजगणित में तीन बेसिक संचालक व्यवहार किये जाते है –
(i) OR, (ii) AND तथा (iii) NOT ।
(i) अतिरिक्त संकेत (+) को OR रूप में लिखा जाता है। इसका बूलियन व्यंजक निम्नलिखित हैं –
Y = A + B मतलब कि Y बराबर है A OR B
(ii) गुणा चिह्न (× या .) को AND रूप में लिखा जाता है। इसका बलियन व्यंजक निम्नलिखित हैं –
Y = A. B या A x B मतलब कि Y बराबर है A AND B.
(iii) बार संकेत (-) को NOT की तरह लिखा जाता है। इसका बूलियन व्यंजक निम्नलिखित है Y = A मतलब कि Y बराबर है NOT A NOT ऑपरेशन को नेगेशन भी कहा जाता है।
Q. 7. तार्किक द्वार क्या है ? समझाएँ।
Ans⇒ तार्किक द्वार – बायनरी सूचना के मनीपुलेशन (manipulation) तार्किक परिपथ द्वारा होता है, जिसे द्वार कहते हैं। द्वारा आंकित परिपथ होता है जो निविष्ट (इनपुट) तथा बहिर्गत (आउटपुट) वोल्टता के बीच तार्किक सम्बन्ध बताता है। इसलिए यह तार्किक द्वार कहलाता है।
तार्किक द्वार सामान्यतया आंकिक कम्प्यूटर में पाया जाता है। तीन प्रकार के बेसिक द्वार होते हैं जिसे OR द्वार, AND द्वार तथा NOT द्वार कहते हैं। प्रत्येक द्वार ग्राफिक संकेतों द्वारा प्रदर्शित होता है तथा इसका संचालन बूलियन बीजगणित फलन के सहारे वर्णित होता है। प्रत्येक द्वार के लिए बायनरी चारों का सम्बन्ध इनपुट-आउटपुट सत्यता सारणी में निरूपित किया जाता है।
Q. 8. सत्यता सारणी क्या है ?
Ans⇒ सत्यता सारणी – सत्यता सारणी वैसी सारणी होती है जो तार्किक द्वार के लिए सभी इनपुट/आउटपुट संभावनाओं को दिखाती है। इसे संयोगिता की सारणी भी कहा जाता है| OR द्वार, AND द्वार तथा NOT द्वार की सत्यता सारणी निम्नलिखित हैं :
Q.9. XOR द्वार से आप क्या समझते हैं ?
Ans⇒ XOR द्वार – XOR द्वार वैसा द्वार है जो OR, AND तथा NOT द्वार के व्यवहार से प्राप्त होता है। इसे एक्सक्लुसिव OR द्वार भी कहा जाता है। चित्रानुसार (a) द्वार XOR द्वार चित्रानुसार (b) द्वारा इसके तार्किक संकेत तथा चित्रानुसार (b) द्वारा इसकी सत्यता सारणी प्रदर्शित है।
(c) XOR द्वार की सत्यता सारणी
XOR द्वार की स्थिति में आउटपुट केवल 1 है, जबकि इनपुट अनेक होते हैं।
Q. 10. OR द्वार, NOR द्वार, AND द्वार तथा NAND द्वार के तार्किक संकेत खींचें।
Ans⇒ OR द्वार के तार्किक संकेत :
निविष्ट (इनपुट) बहिर्गत (आउट पुट)
NOR द्वार के तार्किक संकेत:
निविष्ट (इनपुट) बहिर्गत (आउटपुट)
AND द्वार के तार्किक सकेत :
निविष्ट (इनपुट) बहिर्गत (आउटपुट)
NAND द्वार के तार्किक संकेत:
निविष्ट (इनपुट) बहिर्गत (आउटपुट)
Q. 11. दिए गए NOR द्वारा युक्त परिपथ की सत्यमान सारणी लिखिए और इस परिपथ द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND, NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
Ans⇒
1. ⇒ NOR द्वार
2. ⇒ NOR द्वार
Q. 12. नैज अर्द्ध चालक क्या है ? किसी नैज अर्द्धचालक को आप बाह्य n-अर्द्धचालक में कैसे परिवर्तित करेंगे
Ans⇒ नैज अर्द्धचालक – नैज अर्द्धचालक वैसा शुद्ध अर्द्धचालक होता है, जो किसी भी प्रकार के अशुद्धि से मुक्त होता है। किसी नैज अर्द्धचालक को पंच संयोजी परमाणुओं से अपमिश्रित कर बाह्य n-अर्द्धचालक में परिवर्तित किया जा सकता है।
Q. 13. किसी नैज अर्द्धचालक का अपमिश्रण से आप क्या समझते हैं ? अपमिश्रण किसी अर्द्धचालक के चालकता को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
Ans⇒ किसी नैज अर्द्धचालक में उचित अशुद्धियों को 106 : 1 अनुपात में मिलाने की विधि को अपमिश्रण कहा जाता है।
किसी अर्द्धचालक की चालकता अपमिश्रण करने से बढ़ता है, क्योंकि प्रत्येक अपमिश्रित परमाणु एक मुक्त आवेश वाहक देता है।
Q.14. n-अर्द्धचालक तथा p-अर्द्धचालक में क्या अंतर है ?
Ans⇒
n-अर्द्धचालक | P-अर्द्धचालक |
(i) किसी शुद्ध अर्द्धचालक का पंच संयोजी परमाणु (अर्थात् P, As) से अपमिश्रण से n-अर्द्धचालक बनता है। | (i) किसी शुद्ध-अर्द्धचालक का त्रिसंयोजी परमाणु (अर्थात् Al, In) से अपमिश्रण से p-अर्द्धचालक बनता है। |
(ii) इनमें इलेक्ट्रॉन बहुमत आवेश वाहक है। | (ii) इनमें छिद्र बहुमत आवेश वाहक है। |
Q. 15. ट्रांजिस्टर α में तथा β क्या है ?
Ans⇒ उभयनिष्ठ आधार प्रवर्धक का विद्युत लाभ है।
यह 0.95 से 0.98 तक बदलता है।
β ⇒ उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक का विद्युत लाभ है।
β का मान 19 से 49 तक बदलता है।
Q. 16. p-अर्द्धचालक कैसे बनता है ? इसमें मौजूद बहुमत आवेश-वाहक के नाम लिखें। इसके लिए ऊर्जा-पट्टी चित्र बनाएँ।
Ans⇒ किसी शुद्ध अर्द्धचालक का त्रि-संयोजी परमाणु (अर्थात् Al, In) से अपमिश्रण से अर्द्धचालक बनता है। इसमें मौजूद बहुमत आवेश वाहक छिद्र होते हैं।
Q.17. p-अर्द्धचालक के लिए ऊर्जा-पट्टी चित्र बनाएँ । तापमान के बढ़ने के साथ-साथ किस प्रकार ऊर्जा-पट्टी अंतराल परिवर्तित होता है ?
Ans⇒
तापमान के बढ़ने से कुछ बंधन टूटते हैं तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा छिद्र उत्पन्न करते हैं। इनकी उपस्थिति ऊर्जा-पट्टी अंतराल को घटाती है।
Q. 18 भैलेन्स बैंड, कंडक्शन बैंड एवं फारबिडेन बैंड में अंतर स्पष्ट करें।
Ans⇒ Valence energy band में Valence electrons होते हैं। यह आंशिक या पूर्णतः इलेक्ट्रॉन से भरा रहता है। यह कभी खाली नहीं होता। इस बैंड में इलेक्ट्रॉन में बाहरी विद्युतीय क्षेत्र से ऊर्जा लेने की क्षमता नहीं होती है। अतः इस बैंड में उपस्थित electrons धारा प्रवाह में कोई योगदान नहीं करते हैं।
Forbidden energy gap में इलेक्ट्रॉन नहीं रहते हैं। यह पूर्णतः खाली रहता है। इलेक्ट्रॉन को Valence band से conduction band में इलेक्ट्रॉन को shift करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को band gap energy (Eg) कहते हैं।