11. विकिरण तथा द्रव की द्वैत प्रकृति ( Short Answer Type Question )

11. विकिरण तथा द्रव की द्वैत प्रकृति


Q.1. प्रकाश-विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं, ? समझाएँ।

Ans ⇒ प्रकाश-विद्युत प्रभाव – सर्वप्रथम हॉलवाश द्वारा 1888 ई. में चित्रानुसार एक निर्वात वल्व में दो जिंक प्लेट रखा गया। इन प्लेटों को दो तार द्वारा जोड़कर, उसे एक बैटरी तथा एक गैलवेनोमापी द्वारा जोड़ा गया। उन्होंने प्रेक्षण किया कि जब पराबैंगनी किरणें ऋणात्मक प्लेट पर आपतित करायी जाती हैं तो परिपथ में एकाएक धारा प्रवाहित होती है तथा ज्योंही पराबैंगनी किरणों को आपतित कराना बंद कर दिया जाता है तो धारा का प्रवाहित होना भी बंद हो जाता है। यदि पराबैंगनी किरणों को धनावेशित प्लेट पर आपतित कराया जाता है तो परिपथ में धारा प्रवाहित नहीं होती है। इसके कारणों की व्याख्या करने में इन्होंने असफलता हासिल की। जे. जे. थॉमसन
प्रकाश-विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं, ? समझाएँ

द्वारा 1898 ई. में जाना गया कि जब प्रकाश धातु के सतह पर पड़ती है तो सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है। लेनार्ड द्वारा 1900 ई० में कहा गया कि जब पराबैंगनी किरणे ऋणावेशित प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन धनात्मक प्लेट द्वारा आकर्षित हो जाता है, फलस्वरूप परिपथ पूरा हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होता है। किन्तु यदि पराबैंगनी किरणें धनात्मक प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक प्लेट पर पहुँच नहीं पाता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेशित होता है। इससे परिपथ पूरा नहीं हो पाता है और धारा प्रवाहित नहीं होती है।
इस प्रकार, उच्च आवृत्ति के प्रकाश के प्रभाव में धातुओं के सतहों से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना प्रकाश-विद्युत प्रभाव कहलाती है।
प्रकाश-विद्युत प्रभाव के द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं तथा उत्पन्न धारा प्रकाश विद्युत धारा कहलाती है।


Q.2. प्रकाश किस प्रकार द्वैत प्रकृति (स्वरूप) है ?

Ans ⇒ प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश ऊर्जा का उत्सर्जन और अवशोषण सतत् नहीं होकर विविक्त रूप में ऊर्जा के बण्डलों के रूप में होता है, जिन्हें फोटॉन या क्वांटा कहते हैं। इसमें कणों के सभी गुण जैसे द्रव्यमान, संवेग ऊर्जा आदि पाये जाते हैं।
इस प्रकार प्रकाश की सभी घटनाओं की व्याख्या करने के लिए तरंग सिद्धान्त और क्वांटम सिद्धान्त दोनों ही आवश्यक है।
अर्थात् व्यतिकरण, विवर्तन आदि में प्रकाश तरंगों का व्यवहार करना है, जबंकि कुछ अन्य परिस्थितियों में प्रकाश में वैद्युत प्रभाव, काम्पटन प्रकाश आदि में प्रकाश कण (फोटॉन) की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार में कणिका और तरंग दोनों के गुण विद्यमान हैं। प्रकाश के इस स्वरूप या प्रकृति को द्वैत स्वरूप या प्रकृति कहते हैं।


Q.3. डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त अथवा प्रकाश की द्वैत प्रकृति क्या है ? समझाएँ।

Ans ⇒ डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त – जब कोई द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि गति करते हैं तब इन कणों के साथ तरंग सम्बद्ध होती है। इन तरंगों को द्रव्य तरंग या डी ब्रॉग्ली तरंग कहते हैं। डेविसन, जर्मन तथा थामसन द्वारा गतिमान इलेक्ट्रॉन के साथ सम्बद्ध द्रव्य तरंग के विवर्तन का प्रायोगिक रूप से प्रदर्शन किया गया तथा द्रव्य तरंग की प्रायोगिक पुष्टि की गयी।
डी ब्रोगली द्वारा 1925 ई. में सर्वप्रथम परिकल्पना की गयी थी कि जब प्रकाश की प्रकृति द्वैत है, तब द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोट्रॉनों, न्यूट्रॉन आदि की प्रकृति भी द्वैत हो सकती है अर्थात् निश्चित परिस्थितियों में यह कण भी तरंग की तरह व्यवहार कर सकते हैं।


Q.4. आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्यत समीकरण क्या है ? इसे स्थापित करें।
अथवा, आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण कर व्याख्या करें।

Ans ⇒ आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण – प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के आधार पर आइन्स्टीन द्वारा 1905 ई. में प्रकाश-विद्युत प्रभाव की घटना की व्याख्या की गयी। इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकेटों के रूप में चलते हैं, जिसे फोटॉन कहा जाता है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv होती है, जहाँ v प्रकाश की आवृत्ति तथा h प्लांक का सार्वत्रिक स्थिरांक है। प्रकाश की तीव्रता उन फोटॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।
जब एक फोटॉन किसी धातु पर पड़ता है तो वह धातु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों में से किसी एक को अपने ऊर्जा hv को स्थानान्तरित करता है तथा अपना अस्तित्व समाप्त कर देता है। इस ऊर्जा के एक भाग धातु से इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में तथा शेष ऊर्जा उत्तेजित नहीं होते हैं । इलेक्ट्रॉन जो धातु से उत्तेजित होते हैं, वे परमाणु के साथ टक्कर करने में अपने रास्ते से सतह पर अपनी कुछ प्राप्त ऊर्जा फैलाते हैं। इस प्रकार विभिन्न गतिज ऊर्जाओं के साथ इलेक्ट्रॉन धातु पर उत्सर्जित होते हैं।
माना कि प्रकाश इलेक्ट्रॉन का महत्तम गतिज ऊर्जा धातु सतह से E1 उत्सर्जित होती है और धातु पर प्रकाश इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा W है, जिसे धातु का कार्य-फलन कहते हैं तथा यह विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है। तब हम पाते हैं कि
                                                    hv = W + Ek या Ek = hv – W
जहाँ hv, इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटॉन की ऊर्जा है।
इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोट्रॉन की ऊर्जा धातु के कार्यफलन W से कम होने पर इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं करता है। इसलिए, दिये गये धातु के लिए, प्रकाश की थ्रिशोल्ड न्यूनतम आवृत्ति v0 होने पर प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा के परिमाण hv0 धातु के बाहर इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में खर्च होता है अर्थात् यह कार्य फलन W के बराबर है। इस प्रकार W = hv0 है।
                                                    Ek = hv – hv0 या Ek = hv – v0
माना कि उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग vmax है, तो Ek = 1/2mv2max होती है।
अतः उपर्युक्त समीकरण को निम्न प्रकार से लिखा जाता है –
1/2mv2max = h(v – v0)
यह समीकरण आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण कहलाता है।


Q.5. प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियमों को लिखें तथा आइंस्टाइन के प्रकाश-विद्युत समीकरण से इसकी व्याख्या करें।

Ans ⇒ प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियम – प्रकाश-विद्युत प्रभाव के प्रयोगों के आधार पर लेनार्ड तथा मिलिकन द्वारा प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के निम्नलिखित नियम दिये गये हैं –
(a) धातु की सतह से फोटो-इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन की दर, सतह पर पड़ते हुए आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।
(b) उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
(c) फोटो-इलेक्ट्रॉन की महत्तम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने से बढ़ती है।
(d) आपतित प्रकाश की आवृत्ति के किसी न्यूनतम मान से कम रहने पर, फोटो-इलेक्ट्रॉन धातु से उत्सर्जित होती है। यह न्यूनतम आवृत्ति है, जिसे थ्रिशोल्ड आवृत्ति कहते हैं। विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है।
(e) ज्योंहि धातु की सतह पर प्रकाश आपतित होती है, फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होती है, अर्थात् प्रकाश के आपतित तथा इलेक्ट्रॉन से उत्सर्जित होने में समय नगण्य अर्थात् नहीं के बराबर लगता है।

प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नियम की व्याख्या – यदि दिये गये प्रकाश की तीव्रता की आवृत्ति v को बढ़ाया जाता है तो प्रति सेकेण्ड सतह पर टकराने वाली फोटॉन की संख्या समान अनुपात में बढ़ती है, किन्तु प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv समान रहती है। अतः फोटो-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, किन्तु उनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek समान रहती है, इस प्रकार आइंस्टाइन समीकरण से (a) तथा (b) नियम की व्याख्या हो जाती है।
आइंस्टाइन के समीकरण से यह भी देखा जाता है कि फोटो-इलेक्ट्रॉनों की महत्तम गतिज ऊर्जा Ek आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के बढ़ने के साथ रैखिक रूप से बढ़ती है। यह (c) नियम है।
यदि v < v0 तो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ऋणात्मक होती है जो कि असंभव है। अर्थात् यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के थ्रिशोल्ड आवृत्ति v0 से कम है तो फोटो-इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन नहीं हो सकता है। यही (d) नियम है।
प्रकाश के आपतित होने के बाद एकाएक फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की व्याख्या आइन्सटीन के फोटॉन सिद्धान्त द्वारा भी की जा सकती है। ज्योंही प्रथम फोटॉन धातु पर पड़ता है, धातु में एक इलेक्ट्रॉन अवशोषित तथा उत्तेजित हो जाता है। इस प्रकार धातु को प्रकाश के आपतन तथा इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में समय नहीं लगता है, यही (e) नियम है।


Q.6. प्रकाश-विद्युत सेल या फोटो-विद्युत सेल क्या है ? फोटो-उत्सर्जक सेल की बनावट तथा कार्य-विधि का वर्णन करें।

Ans ⇒ प्रकाश-विद्यत सेल – यह वैसी व्यवस्था है जिसमें प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिणत किया जाता है।
प्रकाश-विद्यत सेल प्रकाश-उत्सर्जक सेल – चित्रानुसार प्रकाश-उत्सर्जक सेल की प्रायोगिक व्यवस्था प्रदर्शित है । इनमें एक काँच या क्वार्ट्ज बल्ब होता है और आन्तरिक सतह में पतले क्षारीय धातु जैसे, सोडियम, कैल्शियम इत्यादि का परत लगा होता है, जो प्रकाश संवेदनशील होता है तथा सेल के कैथोड का कार्य करता है। वल्व के मध्य में एक सीधी तार स्थिर होती है जो ऐनोड का कार्य करती है। कैथोड तथा ऐनोड बाहरी बैटरी, प्रतिरोध R तथा गैलवेनोमापी G से जुड़ा होता है। जब थ्रिशोल्ड आवृत्ति से उच्च आवृत्ति का प्रकाश, सेल के कैथोड पर पड़ता है तो फोटो इलेक्ट्रॉन कैथोड से उत्सर्जित होता है। यह इलेक्ट्रॉन ऐनोड की तरफ गतिशील होता है और इसलिए एक धारा बाह्य परिपथ में प्रवाहित होती है।
प्रकाश-उत्सर्जक सेल विद्युतीय परिपथ में स्वीच की तरह कार्य करता है। इसलिए इस सेल को फोटो-रेसीस्टीभ सेल भी कहते हैं। प्रकाश-उत्सर्जक सेल दो प्रकार का होता है –
(a) निर्वात प्रकाश-उत्सर्जक सेल – निर्वात प्रकाश सेल में प्रकाश के आपतित होने के बाद एकाएक धारा प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। यह आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होता है। इसलिए यह सेल फोटोमापी के लिए तथा टेलीविजन में अत्यधिक उपयुक्त है।

(b) गैस यक्त प्रकाश-उत्सर्जक सेल – गैस युक्त प्रकाश-उत्सर्जक सेल के बल्ब में कुछ अक्रिय गैस (आरगन या न्योन) भरी होती है। गैसों के आयनीकरण के कारण धारा कुछ अधिक होते हैं, किन्तु प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती नहीं होती है। इस तरह के सेल का व्यवहार सीनेमेटोग्राफी ध्वनि के उत्पादन तथा रिकार्डिंग में होता है।


Q.7. डी. ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समीकरण से इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य निकालिए।

Ans ⇒ मान लें कि इलेक्ट्रॉन V वोल्टता से त्वरित किया गया है। यदि त्वरण के पश्चात् इलेक्ट्रॉन के वेग को ‘v’ द्वारा और इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान को ‘m’ द्वारा प्रकट करते हैं, तो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा qV जूल के बराबर होनी चाहिए।
डी. ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समीकरण से इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य निकालिए


Q.8. साबित कीजिए कि किसी इलेक्ट्रॉन के लिए द ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य निम्न संबंध से दिए जाते हैं

इलेक्ट्रॉन के लिए द ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य निम्न संबंध से दिए जाते हैं


Q.9. एक इलेक्ट्रॉन – कण तथा फोटॉन समान गतिज ऊर्जा के समान है। इनमें किस कण का द ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य सबसे कम है ?

 एक इलेक्ट्रॉन
∴      इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान कम होता है।
अतः इसका तरंगदैर्ध्य α-कण की अपेक्षा अधिक होगा।


Q.10. प्रकाश-वैद्यत के कुछ उपयोग बताइए।

Ans ⇒ प्रकाश-वैद्युत सेल के प्रमुख उपयोग निम्न प्रकार हैं –
(i) घरों के लिए इन्हे चोर घंटी के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
(ii) इन्हें अग्नि घंटी के रूप में काम में लाते हैं।
(iii) रासायनिक अभिक्रिया में ताप नियंत्राण के काम में लाया जाता है।
(iv) एक हाल में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों की स्वतः गिनती के काम में इन्हें लाया जाता है।
(v) सड़कों की बत्तियों को स्वतः बुझाने के काम में इन्हें लाया जाता है।
(vi) द्वारक के स्वतः नियंत्रण के काम में इन्हें फोटोग्राफिक कैमरा में लगाते हैं।
(vii) इन्हें TV स्टूडियो में प्रकाश को वैद्युत धारा में परिवर्तित करके प्रसारण के काम में लाया जाता है।


Q.11. निरोधी विभव के क्या अभिलक्षण हैं ?

Ans ⇒ निरोधी विभव के निम्न अभिलक्षण हैं –
(i) यह प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा का माप है।
(ii) यह धातु पृष्ठ की प्रकृति पर निर्भर है।
(iii) यह प्रकाश संवेदी द्रव्य के पृष्ठ जिस पर प्रकाश आवृत्ति आपतित है पर निर्भर है। एक दत्त पृष्ठ के लिए इसका निरोधी विभव या बाधा विभव का मान अधिक होता है जब आपतित आवृत्ति अधिक हो।


Q.12. फोटॉन के क्या गुण हैं ?

Ans ⇒ फोटॉन के निम्नलिखित गुण हैं –
(i) निर्वात् में यह प्रकाश वेग से गतिमान होते हैं।
(ii) इनका विराम द्रव्यमान शून्य होता है।
(iii) इनका संवेग p = h/λ द्वारा दिया जाता है।
(iv) यह वैद्युतीय रूप से उदास होते हैं।
(v) यह सरल रेखा में गति करते हैं।
(vi) यह विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में विचलित नहीं होते।
(vii) जब यह एक माध्यम से दूसरे माध्यम में चलते हैं, इनकी ऊर्जा वही रहती है।
(viii) इनका गतिक द्रव्यमान होता है, जो m = h/λ द्वारा व्यक्त किया जाता है।


Q.13. ध्रुवण का मैलस नियम क्या है ?

Ans ⇒ प्रकाश तीव्रता ध्रुवक को पार करने में गुणक cose से कम होती है। यदि I0 आपतित तीव्रता तथा I ध्रुवक के बाद की तीव्रता हो तो I = I0cos2θ जहाँ θ आपतित ध्रुवण तल एवं सहज गमन तल के बीच कोण है।


Q.14. प्रकाशिक फाइबर क्या है ? इसके कुछ मुख्य उपयोगों का संक्षिप्त वर्णन करें।

Ans ⇒ यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total internal reflection) के सिद्धांत पर कार्य करने वाली एक ऐसी काँच या क्वार्ट्ज की नली है जिसकी सहायता से प्रकाश संकेत को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है।

उपयोग –
(i) संचार लाइन के रूप में एवं कम्प्यूटर (Computer) के क्षेत्र में।
(ii) दो विमीय एवं त्रिविमीय फोटो संचार में।
(iii) Endoscopy में (मेडिकल क्षेत्र में)।
(iv) हृदय (Heart) में ब्लड प्रवाह मापने में।
(v) अपवर्तनांक मीटर (Refractrometer) में।


Class 12th physics Subjective question in hindi

भौतिक विज्ञान ( Physics ) Short Answer Type Question
1 विधुत आवेश तथा क्षेत्र
2स्थिर विधुत विभव तथा धारिता
3विधुत धारा
4गतिमान आवेश और चुम्बकत्व
5चुम्बकत्व एवं द्रव्य
6विधुत चुम्बकीय प्रेरण
7प्रत्यावर्ती धारा
8विधुत चुम्बकीय तरंगें
9किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र
10तरंग प्रकाशिकी
11विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति
12परमाणु
13 नाभिक
14अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ
15संचार व्यवस्था
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