13. नाभिक ( Short Answer Type Question )
13. नाभिक
Q.1. आइसोटोप तथा आइसोबार से आप क्या समझते हैं ?
Ans. आइसोटोप (समस्थानिक) – तत्त्व के परमाणु जिसकी परमाणु संख्या समान किन्तु द्रव्यमान संख्या असमान हो, आइसोटोप कहलाते हैं। इस तरह के तत्त्वों को रासायनिक या विभिन्न टेकनीक विधि द्वारा अलग नहीं किया जा सकता है जैसे –
(a) 8O16, 8O17, 8O18 (b) 17Cl35, 17Cl37 (c) 82pb206, 82pb207, 82pb208 ।
आइसोबार (समभारिक)- तत्त्व के परमाणु जिसकी द्रव्यमान संख्या समान किन्त परमाण संख्या असमान हो, आइसोबार कहलाते हैं। इनके रासायनिक गुण विभिन्न हैं। जैसे –
(a) 18Ar16 तथा 20Ca40 (b) 32Ge76 तथा 34Se76
(c) 1H3 तथा 2He3 (d) 3Li7 तथा 4Be7 ।
Q.2. आइसोटोन (समन्यूट्रॉनिक) क्या है ?
Ans. आइसोटोन (समन्यूट्रॉनिक) – समान न्यूट्रॉनों की संख्या वाले न्यूक्लाई को आइसोटोन कहते हैं, इसके लिए, परमाणु संख्या (Z) तथा परमाणु द्रव्यमान (A) दोनों का मान विभिन्न है, किन्तु (A – Z) का मान समान है। जैसे –
(a) 3Li7 तथा 4Be7 (b) 1H3 तथा 2H4 (C) 11Na23 तथा 12Mg24 ।
Q.3. तापीय न्यूट्रॉन से आप क्या समझते हैं ?
Ans. तापीय न्यूट्रॉन – वैसे न्यूट्रॉन तापीय न्यूट्रॉन कहलाते हैं जो मोडरेटर के हाइड्रोजन न्यूक्लाई के विरुद्ध संघटक के कारण कम हो जाते हैं। ऐसे न्यूट्रॉन (3/2KT) कमरे के तापक्रम पर ऊर्जा रखते हैं तथा 92U235 न्यूक्लाई के विखण्डन में उपयोगी होते हैं।
जैसे – 92U235 + 0n1 92U235 → 56Ba141 + 36Kr92 + 30n1 + 200 MeV (ऊर्जा)।
Q.4. द्रव्यमान अवगुण तथा पैकिंग फ्रैक्शन क्या है ?
Ans. द्रव्यमान अवगुण – न्यूक्लिऑन बनने के द्रव्यमानों के योग के बीच अन्तर तथा नाभिक के विराम द्रव्यमान को द्रव्यमान अवगुण कहते हैं। इसे Δm द्वारा सूचित किया जाता है।
माना कि तत्त्व ZXA का एक परमाणु है, जिसका द्रव्यमान संख्या A तथा परमाणु संख्या Z है। mp तथा mn क्रमशः प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन का द्रव्यमान है, तो बने न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान = Zmp + (A – Z)mn.
माना कि m(ZXA) नाभिक का द्रव्यमान है, तो द्रव्यमान अवगुण
Δm = [Zmp + (A – Z)mn] – m (ZXA)
पैकिंग फ्रैक्शन – प्रति न्यूक्लिऑन द्रव्यमान अवगुण को पैकिंग फ्रैक्शन कहते हैं। इस प्रकार, पैकिंग फ्रैक्शन = Δm/A
Q.5. बंधन ऊर्जा क्या है ? समझाएँ। बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन क्या है ?
Ans. बंधन (बाइण्डिग) ऊर्जा – नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन 10-4 मीटर के क्रम में छोटे स्थान में सीमित होते हैं। वैसे छोटी दूरी पर दो प्रोटॉनों के बीच एक-दूसरे पर अत्यधिक विकर्षण बल लगता है। इसलिए नाभिक के बाँधने के लिए कुछ परिणामों में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे नाभिक का बंधन ऊर्जा कहते हैं। वैसे ऊर्जा की आपूर्ति नाभिक के न्यूक्लिऑन द्वारा होती है। द्रव्यमान अवगुण Δm आवश्यक बंधन ऊर्जा की आपूर्ति करता है। इसलिए, द्रव्यमान अवगुण के समतुल्य ऊर्जा को नाभिक की बंधन ऊर्जा कहते हैं।
आइन्सटीन के द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता सम्बन्ध के अनुसार बंधन ऊर्जा = Δmc2 जूल, जहाँ Δm, किलोग्राम में द्रव्यमान अवगुण तथा c प्रकाश का वेग है। किसी नाभिक का बंधन ऊर्जा, अनन्त दूरी में न्यूक्लिऑन के अलग करने में किये गये कार्य को कहा जाता है।
प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा – प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा वैसी ऊर्जा है जो नाभिक से एक न्यूक्लिऑन के बाहर करने के लिए आवश्यक है। इसका मान न्यूक्लिऑनों की संख्या द्वारा बंधन ऊर्जा में भाग देने पर प्राप्त होता है।
इस प्रकार, प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा = बंधन ऊर्जा /A है।
Q.6. नाभिकीय विखण्ड से आप क्या समझते हैं ? समझाएँ।
Ans. नाभिकीय विखण्डन-जब किसी बड़े तत्त्व के नाभिक पर न्यटॉन की बमबारी की जाती है तो उससे दो छोटे-छोटे तत्त्वों का निर्माण होता है, जिसके साथ-साथ अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विमुक्त होती है। इस घटना को नाभिकीय विखण्डन कहते हैं, जैसे-जब यूरेनियम-235 जैसे बने तत्त्वों के नाभिक पर न्यूट्रॉन की बमबारी करने से उसके भारी नाभिक ही लगभग बराबर भागों में क्रमशः बेरियम-141 तथा क्रिप्टन-92 बनाते है साथ ही अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विमुक्त्त होता है, इस घटना को नाभिकी विखण्डन कहते हैं।
92U235 + on1 → 92U235 → 56Ba141 + 36Kr92 + 30n1 + 200 Mev
नाभिक जो इस प्रकार टूटते हैं, वे विखण्डित नाभिक कहलाते हैं। यही परमाणु बम का सिद्धान्त है।
नाभिक के द्रव बूँद मॉडल नाभिकीय विखण्डन क्रिया की स्पष्ट जानकारी देता है। यूरेनियम-235 के एक विखण्डन में तीन न्यूट्रॉन विमुक्त होता है, जिससे नये विखंडन उत्पन्न होता है, तो यूरेनियम-235 न्यूकेलेइड अत्यधिक मात्रा में अधिक वेग से ऊर्जा विमुक्त करती है, जिसे नाभिकीय शृंखला प्रतिक्रिया कहते हैं। जब ये नियंत्रित नहीं होते हैं तो परमाणु बम हो जाते हैं किन्तु इन्हें नियंत्रित करने पर ये विद्युत उत्पन्न करते हैं।
Q.7. नाभिकीय संलयन क्या है ? समझाएँ।
Ans. नाभिकीय संलयन- नाभिकीय संलयन वैसी घटना या प्रक्रिया है जिसमें दो हलके तत्त्व आपस में मिलकर एक नये तत्त्व बनाते हैं जिसके साथ-साथ अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विमुक्त होती है। यह हाइड्रोजन बम का सिद्धान्त है। यह विश्वास किया जाता है कि सूर्य की ऊर्जा नाभिकीय संलयन
प्रक्रिया के कारण ही है।
सामान्यतया नाभिकीय संलयन प्रक्रिया संभव नहीं होती है। इस क्रिया के लिए अत्यधिक ताप की आवश्यकता होती है, जिस ताप पर न्यूकेलेइड का संलयन संभव होता है।
हाइड्रोजन बम में निम्नलिखित प्रतिक्रियाएँ होती हैं –
1H2 (ड्यूटेरियम) + 1H2 (ड्यूटेरियम) → 2He4(हीलियम) + 23.9 MeV
1H2 (ड्यूटेरियम) + 1H2 (ड्यूटेरियम) → 2He4 + (हीलियम) + 0n1 + 17.6 MeV
हाइड्रोजन बम परमाणु बम से बहुत ज्यादा विनाशकारी शक्तिवाला है।
Q.8. भारी नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या प्रोटान से ज्यादा क्यों होती है ?
Ans. भारी नाभिक के स्थायित्व के लिए प्रोट्रॉनों के मध्य क्रियाशील प्रतिकर्षण बल को संतुलित करना आवश्यक होता है। इसलिए इस प्रतिकर्षण बल की क्षतिपूर्ति के लिए नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या प्रोटोन की संख्या से अधिक होती है जिससे नाभिक को अधिक नाभिकीय बल मिलता है।।
Q.9. U238 का α-क्षय ऊर्जा की दृष्टि से संभव है तो क्यों नहीं सारे U238 एक साथ क्षय हो जाते हैं। इनका अर्द्धकाल ज्यादा क्यों है?
Ans. क्योंकि किसी भारी नाभिक (92U238) से α-कण का उत्सर्जन होता है जिसकी ऊर्जा लगभग 5.4MeV होती है। इस ऊर्जा के साथ α-कण विभव विरोध (26Mev) की ऊँचाई को पार नहीं कर पाता है। परन्तु रेडियो सक्रिय नाभिक द्वारा उत्सर्जित किसी भी 4-कण की ऊर्जा की मात्रा इतनी नहीं होती है।
फ पदार्थ की स्र्कियता ∞
अतः U238 की सक्रियता कम होने के कारण अर्द्धआयु काल अधिक होता है।
Q.10. न्यूक्लियर रिएक्टर में भारी पानी को मंदक के रूप में क्यों प्रयोग किया जाता है ?
Ans. न्यूक्लियर रिएक्टर में विखण्डन अभिक्रिया से उत्सर्जित तीव्रगामी न्यूट्रॉन्स को धीमा करने के लिए मंदक के रूप में भारी जल का उपयोग किया जाता है। ताकि उत्सर्जित न्यूट्रॉन्स धीमे होने से पूर्व विखण्डन योग्य पदार्थ से पलायन कर जाए और श्रृंखला अभिक्रिया नियमित नहीं रह सके।
Q.11. नाभिकीय समीकरण में किन संरक्षण नियमों का पालन किया जाता है ?
Ans. नाभिकीय समीकरण में द्रव्यमान – ऊर्जा संरक्षण नियमों का पालन किया जाता है।
(i) कुल आवेश संरक्षित रहता है।
(ii) न्यूक्लिऑनों की संख्या संरक्षित रहती है।
(iii) कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है।
Q.12. बंधक ऊर्जा क्या है ? समझावें बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन क्या है ?
Ans. बंधक ऊर्जा – नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन 10-4 मीटर के क्रम में छोटे स्थान में सीमित होते हैं। वैसी छोटी दूरी पर दो प्रोटॉनों के बीच एक-दूसरे पर अत्यधिक विकर्षण-बल लगता है। इसलिए नाभिक के बाँधने के लिए कुछ परिणामों में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसे नाभिक का बंधक ऊर्जा कहा जाता है।
प्रति न्यूक्लिऑन बंधक ऊर्जा – प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा वैसी औसत ऊर्जा है, जो नाभिक से एक न्यूक्लिऑन बाहर करने के लिए आवश्यक है। इसका मान न्यूक्लिऑनों की संख्या द्वारा बंधन ऊर्जा में भाग देने पर प्राप्त होता है।
∴ प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा =
Q.13. रेडियोसक्रियता से आप क्या समझते हैं ? क्यूरी क्या है ?
Ans. रेडियोसक्रियता – जब किसी तत्त्वों या, यौगिकों में यों ही स्वतः कुछ विभेदित विकिरण उत्सर्जित होते रहते हैं, जो कि फोटोग्राफी प्लेट को प्रभावित करते हैं, तो उस प्रकार की घटना रेडियोसक्रियता कहलाती है तथा जिस पदार्थ में यह घटना होती है, उसे रेडियोसक्रिय पदार्थ या, तत्त्व कहते हैं। जैसे-U, Po, Th इत्यादि।
हेनरी बेक्वेरल द्वारा 1895 ई० में सर्वप्रथम रेडियोसक्रियता का आविष्कार किया गया। फिर 1998 ई० में मैडम क्यूरी तथा स्मीडर द्वारा और फिर 1902 ई० में मैडम क्यूरी ने अपने पति पेरी क्युरी के साथ विशेष रूप से ‘Ra’ तथा ‘Po’ रेडियोसक्रिय तत्त्वों का आविष्कार किया। भारी तत्त्वों के परमाणु के विघटन में α, β तथा γ-किरणों के उत्सर्जन की घटना को रेडियोसक्रियता कहते हैं। किसी पदार्थ की रेडियोसक्रियता बाहरी तापक्रम एवं दाब पर प्रभावित नहीं होती है।
रेडियोसक्रियता की इकाई को क्यूरी कहते हैं।
Q.14. रेडियोसक्रियता के नियमों को लिखें।
Ans. प्रथम नियम – रेडियोसक्रियता एक स्वतः घटनेवाली घटना है, जो कि भौतिक कारणों (अर्थात् तापमान, दाब) पर निर्भर नहीं करता है।
द्वितीय नियम – किसी रेडियोसक्रिय तत्व के विघटन में -कण या B कण उत्सर्जित हो सकते हैं, दोनों एक साथ नहीं।
ततीय नियम – किसी रेडियोसक्रिय तत्त्व के विघटन होने वाले परमाणु की संख्या उस समय मौजूद परमाणु संख्या के सीधी समानुपाती होता है।