9. जन-जन चेहरा एक ( लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )

1. “जन-जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है ? अथवा, “जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।

उत्तर ⇒ “जन-जन का चेहरा एक” अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं। कवि पीडित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है।

उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है, किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दीखता, अर्थात् उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से जूझने (संघर्ष करने) का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है।

कहने का तात्पर्य यह है कि यह जनता दुनिया के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है अथवा इस प्रकार कहा जाए कि विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर सभी स्थान के “जन-जन” (प्रत्येक व्यक्ति) के चेहरे एक समान हैं। उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है। आशय स्पष्ट है विश्वबंधुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत् है उसी की पीडा का वर्णन कवि कर रहा है।


2. नदियों की वेदना का क्या कारण है ?

उत्तर ⇒ नदियों की वेगवती धारा में जिन्दगी की धारा के बहाव. कवि के अन्त:मन की वेदना को प्रतिबिम्बित करता है। कवि को उनके कल-कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा, इरावतीय अधिकारों के विदना के गीत कवि होती है। गंगा, इरावती, नील, अमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना को प्रकट करती है, जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। जनता की पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं।


3. “दानव दुरात्मा” से क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒ पूरे विश्व की स्थिति अत्यन्त भयावह, दारुण तथा अराजक हो गई है। दानव और दुरात्मा का अर्थ है-जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं, जिनका आचरण पाश्विक होता है उन्हें दानव कहा जाता है। जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ‘दुरात्मा’ कहते हैं। वस्तुतः दोनों में कोई भेद नहीं है, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये सर्वत्र पाए जाते हैं।


4. ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे ‘अतिक्रुद्ध’ क्यों कहा है ?

उत्तर ⇒ ज्वाला का उद्गम स्थान मस्तिष्क तथा हृदय के अन्तर की ऊष्मा है। इसका अर्थ यह होता है कि जब मस्तिष्क में कोई कार्य-योजना बनती है तथा हृदय की गहराई में उसके प्रति तीव्र उत्कंठा की भावना निर्मित होती है तब वह एक प्रज्जवलित ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। “अतिक्रुद्ध” का अर्थ होता है अत्यन्त कुपित मुद्रा में। आक्रोश की अभिव्यक्ति कुछ इसी प्रकार होती है। अत्याचार, शोषण आदि के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान हृदय की अतिक्रुद्ध ज्वाला की मन:स्थिति में होता है।


5. समुची दुनिया में जन-जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?

उत्तर ⇒ सम्पूर्ण विश्व में जन-जन का युद्ध जन-मुक्ति के लिए चल रहा है। शोषक, खूनी चोर तथा अन्य अराजक तत्वों द्वारा सर्वत्र व्याप्त असन्तोष तथा आक्रोश की परिणति जन-जन के युद्ध अर्थात् जनता द्वारा छेड़े गए संघर्ष के रूप में हो रहा है।


6. कविता का केन्द्रीय विषय क्या है ?

उत्तर ⇒ कविता का केन्द्रीय विषय पीड़ित और संघर्षशील जनता है। वह शोषण, उत्पीड़न तथा अनाचार के विरुद्ध संघर्षरत है। अपने मानवोचित अधिकारों तथा दमन की दानवी क्रूरता के विरुद्ध यह उसका युद्ध का उद्घोष है। यह किसी एक देश की जनता नहीं है, दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत जन-समूह है जो अपने संघर्षपूर्ण प्रयास से न्याय, शान्ति, सुरक्षा, बंधुत्व आदि की दिशा में प्रयासरत है। सम्पूर्ण विश्व की इस जनता (जन-जन) में अपूर्व एकता तथा एकरूपता है।


7. पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार किया है ?

उत्तर ⇒ पृथ्वी के प्रसार को दुराचारियों तथा दानवी प्रकृति वाले लोगों ने अपनी सेनाओं द्वारा गिरफ्तार किया है। उन्होंने अपने काले कारनामों द्वारा प्रताड़ित किया है। उनके दुष्कर्मों तथा अनैतिक कृत्यों से पृथ्वी प्रताड़ित हुई है। इन मानवता के शत्रुओं ने पृथ्वी को गम्भीर यंत्रणा दी है।


8. बंधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है ?

उत्तर ⇒ कवि बंधी हुई मुट्ठियों के लक्ष्य के माध्यम से जनता की ताकत का एहसास कराना चाहता है जो किसी भी विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर सकती है। यह ताकत इतनी ताकतवर होती है कि जन-शोषक शत्रु को सत्ताच्युत कर देती है। मुट्ठियों की ताकत सामान्य जनता की ताकत है। यदि इस ताकत के साथ कोई खिलवाड़ करे तो उसकी मिट्टी पलद हो जाती है। चाहे वह कितना भी बड़ा जन-शोषक क्यों न हो, जब यह ताकत क्रुद्ध होती है तो अपनी ज्वाला में जलाकर राख कर देती है। अतः कवि बंधी हई मटिठयों के माध्यम से जन-शोषक को इनसे न टकराने की नसीहत देता है।


9. प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर ⇒ प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से कवि का तात्पर्य यह है कि चाहे वह यानि जनता जिस देश में निवास करती हो, उनके प्यार का इशारा यानि मानवतावादी दृष्टिकोण कल मुक्तिबोध की कविता का सारांश लिखे कविता का कहना चाहिए एक होता है, उसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होता, ठीक उसी प्रकार जब शोषक वर्ग के खिलाफ क्रोध की धारा उबल पड़ती है तो वह दो नहीं, बल्कि एक समान नजर आती है।


10. ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒ मुक्तिबोध की कविता अकेले मुक्तिबोध की कविता नहीं है। उसमें हमारे भारतीय जन-समूह की कहना चाहिए समूह मन की कविता शामिल और सक्रिय है। मुक्तिबोध की कविता और कथा कृतित्व एक चीख है उस अयथार्थ बौद्धिकता और अयथार्थ कलात्मकता के विरुद्ध जिसके चलते बहुत जल्दी नयी कविता में गतिरोध आ गये थे। मुक्तिबोध की कविता का प्राणतत्व है उनका निरन्तर आत्मसंघर्ष। इसी से वह हमें बाँधती नहीं, मुक्त करती है। उनसे असहमत होना भी उतना ही स्फूर्तिदायक होता है, जितना उनसे सहमत होना। उनका यह आत्म संघर्ष उनकी कविता ‘जन-जन का चेहरा एक’ में भी दिखलाई पड़ता है। कवि पीडित और संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तत करता है। यह जनता दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत है और अपने कर्म और श्रम से न्याय. शांति बंधत्व दिशा में प्रयासरत है। कवि इस जनता में एक अन्तर्वर्ती एकता देखता है और इस एकता को कविता का कथ्य बनाकर संघर्षकारी संकल्प में प्रेरणा और उत्साह का संचार करता है। कवि कहते हैं कि चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का ही जन-जन का चेहरा एक के बाद एशिया. यरोप. अमेरीका सभी जगह के मजदूर एक है। कवि पूँजीवादी समाज का भी शोषित वर्ग के रूप में देखता है। एक को शोषक और एक शोषित के का सभी के लिए धूप एक है, कष्ट-दुख संताप एक है। और सभी मठिठयों का शोषण से मक्ति। कवि विभिन्न प्रतीकों के सहारे जनता की अंतवर्ती एकता का है। वह प्रकृति के हर अंग में मजदूरों को दुख देखता है। वह मजदरों मो की वेदना में देखता है। यही नहीं शोषक भी एक हैं बल्कि उनके चेहरे अलग ” संसार के भौगोलिक वातावरण की चर्चा करते हुए कहता है कि चाहे एशिया अमेरीका भिन्न वास स्थान के मानव एक हैं। सभी ओर खुशियाँ व्याप्त पर मन'”‘ के द्वारा शोषण एक गहरा संताप है। जब सब वस्तुए एक ही ढाचे से बनी है तो क्यों ? कवि क्रांति के निर्माण में किसी एक को आगे आने की कामना करता है और समाज की कल्पना करता है। व्यवस्था को बदलने की कोशिश करता है।


  S.Nहिन्दी ( HINDI )  – 100 अंक  [ पद्य  खण्ड ]
 1.कड़बक
 2.सूरदास   
 3.तुलसीदास
 4.छप्पय
 5.कवित्त 
 6.तुमुल कोलाहल कलह में 
 7.पुत्र वियोग 
 8.उषा 
 9.जन -जन का चेहरा एक 
 10.अधिनायक 
 11.प्यारे नन्हें बेटे को 
 12.हार-जीत 
 13.गाँव का घर 
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