8. उषा ( लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1. प्रातःकाल का नभ कैसा था ?
उत्तर ⇒ प्रात:काल का नभ बिलकुल नीले राख के समान स्वच्छ था। उसकी नीलिमा के बीच आनेवाल उजाला हल्के रूप में झाँकता सा नजर आता है। प्रात:काल की उस वेला में आकाश नीले राख सा लगता है।
2. उषा का जादू कैसा है ?
उत्तर ⇒ उषा का जादू उषाकालीन नभ की प्राकृतिक सुंदरता है जिसके लिए कवि ने बहुविध उपमान जैसे नीले शंख, राख से लीपे हुए गीले चौक, काली सिल जो लाल केसर में धुली हो, लाल खड़िया से लिखी स्लेट के समान आदि प्रस्तुत किया है। सूर्योदय के पूर्व तक ही आकाश की गोद में उषा का जादू चलता रहता है। उषा का जादू नीले शंख के समान, राख से लीपे हुए नीले चौक आदि के समान है।
3. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर ⇒ सूर्योदय के समय आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिये बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके।
4. “लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ किसके लिये प्रयुक्त है ?
उत्तर ⇒ लाल केसर-सूर्योदय के समय आकाश की लालिमा से कवि ने लाल केसर से तुलना की है। रात्रि को उन्होंने काली सिल से तुलना की है। काली सिल को लाल केसर से मलने पर सिलवट साफ हो जाती है। उसी प्रकार सूर्योदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है एवं आकाश में लालिमा छा जाती है।
लाल खड़िया चाक-लाल खड़िया चाक उषाकाल के लिये प्रयुक्त हुई है। उषाकाल में हल्के अंधकार के आवरण में मन का स्वरूप ऐसा लगता है मानो किसी ने स्लेट पर लाल खली घिस दी हो।
5. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ⇒ पवित्रता-जिस स्थान पर मंगल कार्य करना हो, उसे राख से लीप कर पवित्र बना लिया जाता है। लीपे हुए चौके के समान ही प्रात:कालीन आकाश भी पवित्र है।
निर्मलता-कालापन मलिन अथवा दोषपूर्ण माना जाता है। उसको निर्मल बनाने के लिए उसे जल आदि से धो लेते हैं। जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर रगड़ने से तथा बाद में उसे धोने से उस पर झलकनेवाली लालिमा उसकी निर्मलता की सूचक बन जाती है, उसी प्रकार प्रात:कालीन आकाश भी हल्की लालिमा से युक्त होने के कारण निर्मल दिखाई देता है।
उज्ज्वलता – जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर उज्ज्वल चमक से युक्त तथा मोहक लगता है उसी प्रकार प्रात:कालीन आकाश भी उज्ज्वल प्रतीत होता है।”नील जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।
6. सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर ⇒ कवि ने आकाश के रंग के बारे में सिल का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि यह आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी सिल पर से केसर धुल गई हो। स्लेट का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया मिट्टी मल दी हो। इस उदाहरण द्वारा कवि ने श्वेतिमा तथा कालिमा के समन्वय का वर्णन कर आकाश की शोभा का वर्णन किया है।
7. भोर के नभ को राख से लीपा गया चौका के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर ⇒ भोर के नभ का रंग नीला होता है. पर साथ ही उसमें सफेदी भी झलकती है। राख से लीपे हुए चौके में भी नीलिमा अथवा श्यामलता के साथ सफेदी का मिश्रण होता है। यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लीपे चौके की संज्ञा दी है। राख के ताजे लीपे चौके में नमी भी होती है। भोर के नभ में भी ओस के कारण गीलापन है।
8. प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है ?
उत्तर ⇒ प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से की गयी है क्योंकि कवि के अनुसार प्रात:कालीन आकाश (नभ) गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह नीले शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। नीला शंख पवित्रता का प्रतीक है। प्रात:कालीन नभ भी पवित्रता का प्रतीक है। लोग. उषाकाल में सूर्य नमस्कार करते हैं। शंख का प्रयोग भी पवित्र कार्यों में होता है। अतः, यह तुलना युक्तिसंगत है।
9. नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है ?
उत्तर ⇒ नीले आकाश में सूर्य की प्रात:कालीन किरण झिलमिल कर रही है मानो नीले जल में किसी गौरांगी का गौर शरीर हिल रहा हो।
S.N | हिन्दी ( HINDI ) – 100 अंक [ पद्य खण्ड ] |
1. | कड़बक |
2. | सूरदास |
3. | तुलसीदास |
4. | छप्पय |
5. | कवित्त |
6. | तुमुल कोलाहल कलह में |
7. | पुत्र वियोग |
8. | उषा |
9. | जन -जन का चेहरा एक |
10. | अधिनायक |
11. | प्यारे नन्हें बेटे को |
12. | हार-जीत |
13. | गाँव का घर |