Class 12th Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1


Q.1. भारत-पाकिस्तान के संबंधों की मुख्य समस्यायें क्या हैं ?

Ans ⇒  भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति एवं मित्रता का संबंध बनाए रखना चाहता है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म एक पड़ोसी के रूप में हुआ। अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध रहे तो संबंधित राज्य मानसिक चिंताओं और तनाव के वातावरण से मुक्त होकर अपने साधनों का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में लगा सकता है। भारत के पड़ोसी राज्यों से लगभग अच्छे हैं। चीन के साथ हमारे सीमा विवाद का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। पाकिस्तान के साथ बनते-बिगड़ते संबंधों के चलते हमारी परेशानियां बढ़ी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में भारत अपने पड़ोसियों के साथ शांति और मित्रता से रहना चाहता है। आकार और जनसंख्या में बड़ा होने पर भी वह छोटे देशों के साथ समानता के आधार पर सहयोग करना चाहता है। भारत पाकिस्तान के मध्य संबंधों में कटुता विद्यमान है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
(i) कश्मीर का मामला (ii) शरणार्थियों का प्रश्न (iii) आतंकवाद (iv) नहर पानी विवाद (v) ऋण की अदायगी का प्रश्न।
ये ऐसी समस्याएँ है जिसके चलते दोनों के बीच काफी उग्रता उत्पन्न हुई हैं पाकिस्तान ने तोड-फोड जासूसी सीमा अतिक्रमण, आदि कार्यवाहियों के अलावा 1947, 1965 और 1971 में आक्रमण भी किया।


Q.2.क्या आप मानते हैं कि 1971 की भारत सोवियत संधि से गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

Ans. अमरीका के चीन तथा पाकिस्तान के साथ तथा पाकिस्तान के चीन तथा अमरीका से सैनिक सहायता प्राप्त करने की स्थिति का देखते हुए तथा 1971 में भारत को पाकिस्तान के साथ, बंग्लादेश संकट के कारण होनेवाले संघर्ष के परिणामस्वरूप अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच मैत्री और सहयोग संधि हुई। यह संधि भारत द्वारा प्रथम बार किसी महाशक्ति के साथ की गई राजनीतिक संधि थी। कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस संधि को भारत का गुट-निरपेक्ष आंदोलन से विचलन या उल्लंघन कहा गया। किंतु मेरा मानना है कि यह गट निरपेक्षता सिद्धान्त का उल्लंघन नहीं है। यह संधि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आए परिवर्तन, पारस्परिक लाभ व सामान्य उद्देश्य से प्रेरित थी। भारत का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व सहयोग को बनाये रखना है।


Q.3. वर्ष 2000 से भारत-अमेरिका संबंधों का परीक्षण कीजिए।

Ans ⇒  भारत-अमेरिकी संबंध (India-US relationship) – हाल के सालों में भारत-अमेरिकी संबंधों के बीच दो नई बातें उभरी हैं। इन बातों का संबंध प्रौद्योगिकी और अमरिकी में बसे अनिवासी भारतीय से है। दरअसल, ये दोनों बातें आपस में जुड़ी हुई हैं। निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कीजिए सॉफ्टर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का 65 प्रतिशत अमरीका को जाता है। बोईंग के 35 प्रतिशत तकनीकी कर्मचारी भारतीय मूल के हैं। 3 लाख भारतीय ‘सिलिकन वैली’ में काम करती हैं। उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की 15 प्रतिशत कंपनियों की शुरुआत अमेरिका में बसे भारतीयों ने की है।
यह अमेरिका के विश्वव्यापी वर्चस्व का दौर है और बाकी देशों की तरह भारत को भी फैसला करना है कि अमेरिका के साथ वह किस तरह के संबंध रखना चाहता है। यह तय कर पाना आसान काम नहीं है। भारत में तीन संभावित राणनीतियों पर बहस चल रही है।
भारत के जो विद्वान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की सैन्य शक्ति के संधि में देखते-समझाते हैं, वे भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। ऐसे विद्वान यही चाहेंगे कि भारत वाशिंगटन से अपना अलगाव बनाए रखे और अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने पर लगाये।
कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत और अमेरिका के हितों में हेलमेल लगातार बढ़ रहा है और यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। ये विद्वान एक ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमेरिकी वर्चस्व का फायदा उठाए। वे चाहते हैं कि दोनों देशों के आपसी हितों का मेल हो और भारत अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प ढूँढ सके। इन विद्वानों की राय है कि अमेरिका के विरोध की रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इसे भारत को नुकसान होगा। कुछ विद्वानों की राय है कि भारत अपनी अगुआई में विकासशील देशों का गठबंधन बनाए। कुछ सालों में यह गठबंधन ज्यादा ताकतवर हो जाएगा और अमेरिकी वचस्व के प्रतिकार में सक्षम हो जाएगा।

निष्कर्ष (Conclusion) – शायद भारत और अमेरिका के बीच संबंध इतने जटिल हैं कि किसी एक रणनीति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अमेरिका से निर्वाह करने के लिए भारत को विदेश नीति की कई रणनीतियों का एक समुचित मेल तैयार करना होगा। “


Q.4. भारत के किसी एक सामाजिक आन्दोलन की विवेचना कीजिए और इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

Ans ⇒  नर्मदा बचाओ आंदोलन – मेधा पाटकर गुजरात में नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोबर बांध के निर्माण का विरोध कर रही है। उसकी माँग है कि जिन लोगों को वहां से हटाया जाय उन्हें कहीं और जगह देकर बसाया जाय। यह भी माँग है कि बाँध की ऊँचाई बहुत अधिक न हो। ऐसा न हो कि वह टूट जाए। यदि ऐसा हुआ तो गुजरात का काफी भाग जल-मग्न हो जायेगा।
पर्यावरण संबंधी आंदोलन चलाने वाले यह भी माँग कर रहे हैं कि गंदे नालों की सफाई की जाय. मलेरिया तथा डेंगू जैसे बुखारों से बचने के लिए मच्छरों को मारा जाए, कारखानों का गंदा पानी नदियों में न छोड़ा जाए आदि। क्षेत्र में पोषणीय विकास को बढावा दिया जाए।

(i) लोगों द्वारा 2003 ई. में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की माँग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पडा है।

(ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अडियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए।

(iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी मांग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ जो जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

(iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती हैं। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया।


Q.5. नव अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर एक लेख लिखिए।

Ans ⇒  नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order)

1. गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध के दौरान महज मध्यस्थता करने वाले देश भर नहीं थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को ‘अल्प विकसित देश’ का दर्जा मिला था। इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। नव-स्वतन
देशों की आजादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था। बगैर टिकाऊ विकास के कोई देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता । उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता । इसमें वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था। जिससे राजनीतिक आजादी हासिल की गई।

2. इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस कॉनफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट-अंकटाड) में ‘टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार-प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुधारों से –

(a) अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं;
(b) अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी; वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमंद होगा।
(c) पश्चिमी देशों से मँगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी; और
(d) अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।

3. गुटनिरपेक्षता की प्रकृति धीरे-धीरे बदली और इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।


Q.6. नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे ? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।

Ans ⇒  भारत की विदेश नीति के संचालन के संदर्भ में नेहरू का दृष्टिकोण – भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे। इस संदर्भ में नेहरू जी द्वारा विदेशी नीति की रचना संबंधी एक उद्धरण जो उनसे प्रभावित और कालांतर में उन्हीं के मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले एक कैबिनेट मंत्री मेनन का उद्धरण देना उचित जान पड़ता है।
“आमतौर पर हमारी नीति ताकत की राजनीति से अपने को अलग रखने और महाशक्तियों के एक खेमे के विरुद्ध दूसरे खेमें में शामिल न होने की है। आज दो अग्रणी खेमे रूस और अमरीका-ब्रिटेन के हैं। हमें दोनों के साथ दोस्ताना संबंध रखना है। साथ ही उनके खेमें में शामिल भी नहीं होना है। रूस और अमरीका एक-दूसरे को लेकर बहुत शंकित हैं और अन्य देशों पर भी शक करते हैं। इस कारण हमारा रास्ता कठिन है और दोनों हम पर शक कर सकते हैं कि हम उनके विरोधी खेमे की तरफ झुक रहे हैं। इससे बचा नहीं जा सकता।

दो कारण और उदाहरण (To Reasons and examples) – (i) भारत गटों से अलग रहकर दोनों देशों से सहायता प्राप्त करना चाहता था ताकि देश का जल्दी से जल्दी विकास हो सके। नेहरू जी ने गुट निरपेक्षता आंदोलन के जनक समूह के सदस्यों में से एक उल्लेखनीय सदस्य के रूप में कुछ वर्षों तक भूमिका निभाई।

(ii) भारत स्वतंत्र नीति को इसलिए अनिवार्य मानता था ताकि देश में लोकतंत्र, कल्याणकारी राज्य के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपनिवेशवाद, जातीय भेद-भाव, रंग-भेद भाव का मुकाबला डट कर किया जा सके। नेहरू जी ने एफ्रो एशियाई सम्मेलन में भाग लिया। इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का समर्थन किया। चीन, तिब्बत आधिपत्य को स्वीकार किया। चीन के सुरक्षा परिषद् में सदस्यता का समर्थन किया। उससे पहले ही 1949 में साम्यवादी चीन को सबसे पहले मान्यता दी और सोवियत संघ ने हंगरी पर जब आक्रमण किया तो उसकी निंदा की।


Q.7. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

Ans ⇒  वैसे तो मैं कक्षा बारहवीं का विद्यार्थी हूँ लेकिन एक नागरिक के रूप में और राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मुझे प्रश्न में जो कहा गया उनके अनुसार मैं दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहूँगा।

(i) सी०टी०बी०टी० के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखूगा।
(ii) मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग जारी रखूगा।
(iii) दो बदलने वाले पहलू निम्नलिखित होंगे।

(a) मैं गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग करके संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा क्योंकि आज दुनियाँ में पश्चिमी देशों की तूती बोलती है और वे ही सम्पत्ति और शक्ति सम्पन्न हैं। रूस और साम्यवाद निरंतर ढलाने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।

(b) मैं पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक संधि करूँगा तो जर्मनी के बिस्मार्क की तरह अपने राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ देश के साथ ऐसी संधि करूँगा ताकि चीन 1962 की तरह भारत देश के भू-भाग को अपने कब्जे में न रखें और शीघ्र ही तिब्बत, बारमाँसा, हाँगकाँग को अंतर्राष्ट्रीय समाज में स्वायतपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न करूँगा और संभव हुआ तो नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ समूहिक प्रतिरक्षा संबंधी व्यापक उत्तरदायित्व और गठजोड़ की संधियाँ/ समझौते करूँगा।


Q.8. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण प्रभावित कर रहा है ?

Ans ⇒  1. भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalisation in Indian) – पंजी वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं को कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनाया जाय। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने
पादक चीजों को बनाना सीख सके। इस- ‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुईं। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक-वृद्धि की दर धीमी रही।

2. भारत में वैश्वीकरण को अपनाना (Adoptation ofGlobalisation in India ) –1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की समानता, विदेशी पूँजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्योगिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। अब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है। भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही साथ अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है।

3. भारत की वैश्वीकरण का प्रतिरोध (Resistence of Globalisation in India) – वैश्वीकरण बड़ा बहसमतलब मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।

(a) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीबादी की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

(b) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है। वे चाहते हैं कि कम-से-कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और ‘संरक्षणवाद’ का दौर फिर कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परम्परागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो देंगे। यहाँ हम गौर करें कि वैश्वीकरण-विरोधी आंदोलन भी विश्वव्यापी नेटवर्क में भागीदारी करते हैं और अपने से मिलती-जुलती सोच रखने वाले दूसरे देशों के लोगों से गठजोड़ करते हैं। वैश्वीकरण-विरोधी बहुत से आंदोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।

वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या हैं ?

(a) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने पास-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलन से मदद मिलती है। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई हलकों से हो रहा है। आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ वामपथी तेवर की आवाजें राजनीतिक दलों की तरफ से उठी है तो इंडियन सोशल फोरम जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों में प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतियों मसलन ‘नीम’ को अमेरिकी और यूरोपीय फर्मों ने पेटेण्ट कराने के प्रसास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।

(b) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी. वी. चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन-डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध शामिल है।


Q.9. 9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध पर एक लेख लिखिए।

Ans ⇒  9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध (9/11 and the Global War on Terror)

(i) पृष्ठभूमि (Background) –11 सितंबर, 2001 ई. के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्ताओं ने उडान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमेरिकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमेरिका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गये। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय है। चौथे विमान को अमेरिकी काँग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन यह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन एलेवन’ कहा जाता है।

(ii) आतंकवादी हमले के प्रभाव (Consequences of terrorist attack) – इस हमले में लगभग तीन हजार व्यक्ति मारे गये। अमेरिकियों के लिए यह दिल दहला देने वाला अनुभव था। उन्होंने इस घटना की तुलना 1814 और 1941 की घटनाओं से की 1814 में ब्रिटेन ने वाशिंगटन डीसी में आगजनी की थी और 1941 में जापानियों ने पर्ल हार्बर पर हमला किया था। जहाँ तक जान-माल की हानि का सवाल है तो अमेरिकी जमीन पर यह अब तक का सबसे गंभीर हमला था। अमेरिका 1776 में एक देश बना और तब से उसने इतना बड़ा हमला नहीं झेला था।

(iii) rafiqat art ufafanet (Reaction of America) :

(a) 9/11 के जवाब में अमेरिका ने कदम उठाये और भयंकर कार्यवाही की। अब क्लिंटन की जगह रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज डब्ल्यू. बुश राष्ट्रपति थे। ये पूर्ववर्ती राष्ट्रपति एच. डब्ल्यू. बुश के पत्र हैं। क्लिंटन के विपरीत बश ने अमेरिकी हितों को लेकर कठोर रवैया अपनाया और इन हितों को बढावा देने के लिए कड़े कदम उठाये।

(b) ‘आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध’ के अंग के रूप में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन एण्डयूरिंग फ्रीडम’ चलाया। यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान-शासन को बनाया गया। तालिबान के शासन के पाँव जल्दी ही उखड़ गए लेकिन तालिबान और अल-कायदा के अवशेष अब भी सक्रिय हैं। 9/11 की घटना के बाद से अब तक इनकी तरफ से पश्चिमी मुल्कों में कई जगहों पर हमले हुए हैं। इससे इनकी सक्रितया की बात स्पष्ट हो जाती है।

(c) अमेरिकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ की। अक्सर गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में बंदी बनाकर रखा गया। क्यूबा के निकट अमेरिकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो वे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया। इस जगह रखे गये बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमेरिका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।


Q.10. नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए ?

Ans ⇒  नेपाल में लोकतंत्र की बहाली Establishment of democracy in Nepal) –1. नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक यहाँ संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता एक ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाती रही, लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।

2. लोकतंत्र-समर्थक मजबूत आंदोलन की चपेट में आकर राजा ने 1990 में नए लोकतांत्रिक संविधान की माँग मान ली, लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा रहा। 1990 के दशक में नेपाल के माओवादी नेपाल के अनेक हिस्सों में अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हए। माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के खिलाफ संशस्त्र विद्रोह करना चाहते थे। इस वजह से राजा की सेना और माओवादी गरिल्लों के बीच हिंसक लडाई छिड गई।

3. कुछ समय एक राजा की सेना, लोकतंत्र-समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। इस तरह नेपाल में जो भी थोड़ा-बहुत लोकतंत्र था उसे राजा ने खत्म कर दिया।

4. अप्रैल 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शन हुए। संघर्षरत लोकतंत्र-समर्थक शक्तियों ने अपनी पहली बड़ी जीत हासिल की जब राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इसे अप्रैल 2002 में भंग कर दिया गया था। मोटे तौर पर अहिंसक रहे इस प्रतिरोध का नेतृत्व सात दलों के गठबंधन (सेवन पार्टी अलाएंस), माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया।

5. नेपाल में लोकतंत्र की आमद अभी मुकम्मल नहीं हुई है। फिलहाल, नेपाल अपने इतिहास के एक अद्वितीय दौर से गुजर रहा है क्योंकि वहाँ संविधान सभा के गठन की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। यह संविधान-सभा नेपाल का संविधान लिखेगी। नेपाल में कुछ लोग अब भी मानते हैं कि अलंकारिक अर्थों में राजा का पद कायम रखना जरूरी है ताकि नेपाल अपने अतीत से जुड़ा रहे। माओवादी समूहों ने सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ देने की बात मान ली है। माओवादी चाहते हैं कि संविधान में मूलगामी सामाजिक, आर्थिक पुनर्रचना के कार्यक्रमों को शामिल किया जाए। सात दलों के गठबंधन में शामिल हरेक दल को यह बात स्वीकार हो-ऐसा नहीं लगता। माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत आशंकित है। 2017 में नेपाल में आम चुनाव के बाद वहाँ वामपंथी सरकार काम कर रही है।


S.N  Class 12th Political Science Question 2022
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