6. एक लेख और एक पत्र ( लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )

 


1. विद्यार्थी को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?

उत्तर ⇒ विद्यार्थी का मुख्य काम पढ़ाई करना होता है। उन्हें पढ़ाये जाने वाले विषयों को लगन एवं तन्मयता के साथ अध्ययन करना भी चाहिए। यह उनकी प्राथमिकता होती है। अच्छे अंक तथा अच्छी श्रेणी; विद्यार्थी द्वारा विषय के गहन अध्ययन एवं उसकी बुद्धि की प्रखरता पर पूर्णतः निर्भर करते हैं। अतः विद्यार्थी का मुख्य कार्य पढ़ाई करना है तथा अपना ध्यान पूरे मनोयोग से उस ओर लगाना है। किन्तु देश की परिस्थितियों का ज्ञान होना तथा उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता विकसित करना भी उसके लिए आवश्यक है। इसके बिना इसकी शिक्षा अधूरी रहेगी एवं वांछित लक्ष्य भी प्राप्त नहीं हो सकेंगे।

अभिभावकीय दृष्टिकोण वाले लोग यह राय प्रकट करते हैं कि छात्रों को राजनीति से अलग रहना चाहिए क्योंकि उनका काम पढ़ाई करना और अपनी योग्यता बढ़ाना है। राजनीति में उलझना नहीं। किन्तु यह विचार पूर्णतया अव्यावहारिक एवं निरर्थक है। छात्र एवं युवाशक्ति राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह विद्यार्थियों का राजनीति में योगदान अपरिहार्य मानते थे। उनका कहना था कि विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई तन्मयता से करते हुए देश के हित में भी भाग लें तथा अपने जीवन का बलिदान भी करने में गर्व का अनुभव करें। उसी प्रकार जिस प्रकार भगत सिंह इस पुनीत कार्य में जुट गए हैं।


2. भगत सिंह के अनुसार, “केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है।” उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर ⇒ भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। सुखदेव को लिखे अपने पत्र में उन्होंने इस तथ्य का वर्णन किया है। उनकी यह स्पष्ट मान्यता है कि बिना कष्ट सहे देश के लिए कुछ कर पाना संभव नहीं है। उनके शब्दों में, “नौजवान भारत सभा के ध्येय, ‘सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना है’ को हमने सोच समझ कर इसका निर्माण किया था।” मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है, कार्य करने के पश्चात उसका परिणाम और उसका फल भोगने की बारी आती है। उसी प्रकार जैसे लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंकने का कार्य भगत सिंह ने किया था, क्योंकि बिना परिणाम की परवाह किए ही उन्होंने यह कार्य किया। यदि उन्होंने दया के लिए गिड़गिड़ाते हुए दंड से बचने का प्रयत्न किया होता तो संभवतः यह कार्य कदापि न किया होता।

निश्चित रूप से भगत सिंह ने किसी कार्य से होने वाले आत्मघाती परिणाम की परवाह कभी नहीं की। वे कष्ट सहकर देश की सेवा के लिए बड़ा-से-बड़ा बलिदान करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। उनका जीवन एक खुली किताब था जिसमें उनके देश सेवा के लिए किए जाने वाले आत्मोसर्ग के कार्यों को पढ़ा जा सकता है।


3. भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं ?

उत्तर ⇒ भगत सिंह कहते हैं कि हिन्दुस्तान को ऐसे देशसेवकों की जरूरत है जो तन-मन-धन __देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए या देश के विकास में न्योछावर कर दे। यह कार्य सिर्फ विद्यार्थी ही कर सकते हैं। सभी देशों को आजाद करने वाले वहाँ के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। वे ही क्रांति कर सकते हैं। अत: विद्यार्थी पढ़े। जरूर पढ़े। साथ ही पॉलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करे और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पड़े और अपना जीवन इसी काम में लगा दे। अपने प्राणों को इसी में उत्सर्ग कर दे। यही अपेक्षाएँ हैं विद्यार्थियों से भगत सिंह की।


4. जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों को भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का | आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे ? अपना पक्ष प्रस्तुत करें।

उत्तर ⇒ भगत सिंह का यह कथन उनकी मानवतावादी दृष्टि का परिचय देता है जिसमें । व्यक्ति को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि के बारे में सोचना चाहिए। उसके लिए तन, मन, धन से अपना स्वयं अर्पित कर देना चाहिए। परन्तु आज देश की आजादी तिहत्तर वर्ष हो गये फिर भी इस प्रकार की भावना का लेशमात्र भी व्यक्ति के मन में नहीं है। व्यक्ति अपनी स्वार्थपरता थोड़े-से सुख के लिए अपना सारा मूल्य खो बैठा है। आज भारतवासी अपने ही देश में भ्रष्टाचार की भट्ठी में जल रहे हैं, गोरे अंग्रेजों के चंगुल से छूटने के बाद आज देश अपने देशी भूरे अंग्रेजों द्वारा विनाश के गर्त में जा रहा है। अपराधी और घूसखोर जनता को लूट रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण चरम सीमा पर है। इस शासन व्यवस्था के कारण अपने ही लोग देश के दुश्मन हो चुके हैं। आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ रही है। आज के राजनीतिक दल. धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय उन्माद फैलाकर सत्ता पर काबिज होने को प्रयासरत हैं। सिर्फ थोड़े-से स्वार्थ के लिए।


5. उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परंतु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता। भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ। इससे उनके चिंतन का कौन-सा पक्ष उभरता है वर्णन करें।

उत्तर ⇒ भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो कानून व्यवस्था यदि गरीब-विरोधी मानवता-विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें। परंतु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं। संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है। परंतु सिर्फ बदले की भावना से हो तो अन्यायपूर्ण। इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदी गृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रांति लाये जाने का सबसे बड़ा कारण था विरोध करो परंतु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाए तो भगत सिंह का चिंतन मानवतावादी है, जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, तो उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध आरंभ कर देना चाहिए।


6. एक लेख और एक पत्र शीर्षक कहानी का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒ भगत सिंह ‘विद्यार्थी और राजनीति’ के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, और सुभाष चन्द्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत हैं जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश-दुनिया के हर समस्यायों से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्यायों के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अतः विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।


7. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर कहा है ? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदंड) को सुंदर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस संदर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुंदर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य आप करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। भगत सिंह आत्महत्या को कयरता कहते हैं क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक-से-अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक-से-अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।


  S.N हिन्दी ( HINDI )  – 100 अंक  [ गध खण्ड ]
 1. बातचीत 
 2. उसने कहा था 
 3. संपूर्ण क्रांति 
 4. अर्धनारीश्वर 
 5. रोज 
 6. एक लेख और एक पत्र 
 7. ओ सदानीरा 
 8. सिपाही की माँ 
 9. प्रगीत और समाज 
 10. जूठन  
 11. हँसते हुए मेरा अकेलापन 
 12. तिरिछ 
 13. शिक्षा 
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