Bihar Board 12th Model Paper 2022 PDF Download Arts मनोविज्ञान (Psychology) SET-3 Bihar Board Inter Exam 2022

1. जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 80-89 के बीच होती है उन्हें कहते हैं

(A) प्रतिभाशाली
(B) मढ
(C) सस्त
(D) औसत

Answer ⇒ A

2. फ्रायड के अनुसार एलेक्ट्रा की अवधि में लड़कियाँ प्रतियोगिता करती हैं

(A) बहन से
(B) भाई से
(C) माँ से
(D) पिता से

Answer ⇒ C

3. उच्चतम संगठित समूह है

(A) देश
(B) परिवार
(C) सेना
(D) औद्योगिक संगठन

Answer ⇒ B

4. किसने बुद्धि लब्धि के संप्रत्यय को विकसित किया ?

(A) बिने
(B) टरमन
(C) स्टर्न
(D) साइमन

Answer ⇒ B

5. ‘संवेगात्मक बुद्धि’ पद का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया है

(A) वुड तथा वुड
(B) सैलोवे तथा मेयर
(C) गोलमैन
(D) जेम्स बार्ड

Answer ⇒ B

6. बहु-बुद्धि का सिद्धांत प्रतिपादित किया

(A) मर्फी ने
(B) गार्डनर ने
(C) गिलफोर्ड ने
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

7. किस वर्ष बुद्धि का पास माडेल विकसित हुआ ?

(A) 1984
(B) 1994
(C) 1954
(D) 1964

Answer ⇒ D

8. मानसिक उम्र के संप्रत्यय को किसने विकसित किया ?

(A) बिने
(B) स्टर्न
(C) टरमन
(D) बिने तथा साइमन

Answer ⇒ A

9. किसने आत्मसिद्धता की अवधारणा को प्रस्तुत किया ?

(A) मास्लो
(B) रोजर्स
(C) फ्रायड
(D) युग

Answer ⇒ B

10. सामूहिक अचेतन के विषय को कहा जाता है

(A) मनोग्रंथि
(B) आरकीटाइप
(C) परसोना
(D) एनीमा

Answer ⇒ A

11. बुद्धि लब्धि प्राप्त करने में यदि किसी व्यक्ति की मानसिक आयु

(M.A.) तथा वास्तविक आयु (C.A.) लगभग बराबर-बराबर हो तो उसे

(A) तीव्र बुद्धि का व्यक्ति समझा जाता है ।
(B) मंद बुद्धि का व्यक्ति समझा जाता है
(C) सामान्य बुद्धि का व्यक्ति समझा जाता है
(D) प्रतिभाशाली बुद्धि का व्यक्ति समझा जाता है

Answer ⇒ C

12. नए एवं मूल्यवान विचारों के देन की क्षमता को कहा जाता है

(A) बद्धि
(B) सूझ
(C) अभिक्षमता
(D) सर्जनशीलता

Answer ⇒ D

13. एनोरेक्सिया नोसा की विशिष्टता होती है ।

(A) स्नायविक दुर्बलता
(B) निद्रा व्याघात
(C) अपर्याप्त भोजन से वजन में कमी
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

14. किसने बुद्धि को एक ‘सार्वभौम क्षमता’ माना है ?

(A) वेक्सलर
(B) बिने
(C) गार्डनर
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

15. किसी सामान्य प्रक्रिया को असामान्य रूप में बार-बार दुहराने की व्याधि को क्या कहते हैं ?

(A) दुर्भीति
(B) आतंक
(C) सामान्यीकृत दुश्चिता
(D) मनोग्रस्ति बाध्यता

Answer ⇒ D

16. किस व्यक्ति ने सामाजिक बुद्धि के सम्प्रत्यय को प्रस्तुत किया ?

(A) टरमन
(B) थॉर्नडाइक
(C) साइमन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

17. असामान्य मनोविज्ञान के आधुनिक युग के जनक कौन माने जाते हैं ?

(A) सिगमण्ड फ्रायड
(B) जेम्स ब्रेड
(C) ली बॉल
(D) मोस्ले

Answer ⇒ A

11 किस चिकित्सा पद्धति में सीखने के सिद्धान्तों का प्रयोग होता है ?

(A) मनोविश्लेषण चिकित्सा
(B) समह चिकित्सा
(C) व्यवहार चिकित्सा
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

19. किसी सामान्य प्रक्रिया को व्यक्ति द्वारा असामान्य रूप से बार-बार दुहराने की व्याधि को क्या कहते हैं ?

(A) आतंक
(B) दुर्भीति
(C) सामान्यीकृत दुश्चिता
(D) मनोग्रसित बाध्यता

Answer ⇒ D

20. टी० ए० टी० व्यक्तित्वे मापन’ एक प्रकार का परीक्षण है

(A) प्रश्नावली
(B) कागज-पेंसिल जाँच
(C) आत्म विवरण आविष्कारिका
(D) प्रक्षेपी

Answer ⇒ A

21. निम्नलिखित में से कौन संस्कृतबद्ध बुद्धि-परीक्षण है ?

(A) बिने-साइमन टेस्ट
(B) पास एलाँग टेस्ट
(C) ब्लॉक डिजाइन टेस्ट
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

22. रोजर्स ने अपने व्यक्तित्व सिद्धान्त में बल दिया है

(A) अचेतन को
(B) आवश्यकता को
(C) अधिगम को
(D) आत्म को ।

Answer ⇒ D

23. निम्नांकित बुद्धि परीक्षणों में से कौन-सा शाब्दिक परीक्षण है ?

(A) पास एलौंग परीक्षण
(B) स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण
(C) घन निर्माण परीक्षण
(D) ब्लॉक डिजाइन परीक्षण

Answer ⇒ B

24. कुण्ठा आक्रामकता सिद्धान्त किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया ?

(A) जॉन डोलार्ड
(B) एडवर्ड हाल
(C) कॉटरेल
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

25. विचारों, प्रेरणाओं, आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों के परस्पर विरोध के । फलस्वरूप पैदा हुई विक्षोभ या तनाव की स्थिति क्या कहलाती है ?

(A) द्वंद्व
(B) तर्क
(C) कुण्ठा
(D) दमन

Answer ⇒ C

26. आदर्श व्यवहार के सम्बन्ध में स्थायी विश्वास को कहा जाता है

(A) व्यक्तित्व
(B) मूल्य
(C) अभिरुचि
(D) अभिक्षमता

Answer ⇒ A

27. बैंडवैगन प्रभाव किसका एक कारण है ?

(A) समूह समग्रता
(B) समूह मानक
(C) समूह ध्रुवीकरण
(D) समूह सोच

Answer ⇒ C

28. तनाव के कारण शारीरिक रोगों का प्रतिशत है

(A) 30 से 40%
(B) 50 से 70%
(C) 80 से 90%
(D) 20 से 30%

Answer ⇒ B

29. दबाव के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं

(A) लेजारस
(B) स्पीयरमैन
(C) थर्स्टन
(D) थॉर्नडाइक

Answer ⇒ A

30. मन, मस्तिष्क तथा प्रतिरक्षक तंत्र के आपसी सम्बन्ध का अध्ययन करने वाले विज्ञान को कहा जाता है

(A) साइको-न्यूरो इम्यूनोलॉजी
(B) फेकेल्टी साइकोलॉजी
(C) फंग्सनल साइकोलॉजी
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

31. वैयक्तिक भिन्नता का तात्पर्य होता है

(A) व्यक्तियों की विशेषताओं में अंतर
(B) व्यक्तियों के व्यवहार पैटर्न में विभिन्नता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

32. कौन व्यवहार चिकित्सा की प्रविधि नहीं है ?

(A) क्रमिक विसंवेदीकरण
(B) इंफालोसिव का फ्लडिंग चिकित्सा
(C) ‘मॉडल’ की तकनीक
(D) उद्बोधक चिकित्सा

Answer ⇒ D

33. इनमें कौन जैव आयुर्विज्ञान चिकित्सा नहीं है ?

(A) आघात चिकित्सा
(B) औषधि चिकित्सा
(C) वैकल्पिक चिकित्सा
(D) मानसिक शल्य चिकित्सा

Answer ⇒ C

34. एम० एम० पी० आई० आविष्कारिका किसने विकसित किया ?

(A) ऑलपोर्ट
(B) हाथवे तथा मैकिन्ले
(C) आइजेक
(D) कैटेल

Answer ⇒ B

35. श्रेणी आधुत स्कीमा को क्या कहा जाता है ?

(A) आदिरूप
(B) रूढिकृति
(C) दर्शक प्रभाव
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

36. इनमें कौन मादक द्रव्य नहीं है ?

(A) कोकोन
(B) कॉफी
(C) स्मैक
(D) अफीम

Answer ⇒ B

37. चिन्ता विकृति को विकृति के किस श्रेणी में रखा जाएगा ?

(A) मनोदशा विकृति
(B) मन:स्नायु विकृति
(C) प्रतिबल विकृति
(D) चिन्तन विकृति

Answer ⇒ B

38. किसी विशिष्ट समूह के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति को कहते हैं

(A) अभिक्षमता
(B) अभिरुचि
(C) पूर्वाग्रह
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

39. मनोविज्ञान की वह शाखा जो मानव पर्यावरण अन्तःक्रियाओं का अध्ययन करती है

(A) पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(B) समाज पर्यावरण मनोविज्ञान
(C) समाज मनोविज्ञान
(D) बाल मनोविज्ञान

Answer ⇒ A

40. रूढ़ियुक्त का सर्वप्रथम प्रयोग किया

(A) लिंटन
(B) थर्स्टन
(C) वॉलटर लिपमैन
(D) ऑलपोर्ट

Answer ⇒ C

41. इनमें से कौन रूढ़ियुक्त की विशेषता नहीं है ?

(A) मानसिक प्रतिभा
(B) पूर्ण सम्मत विश्वास
(C) अतिरंजित सामान्यीकरण
(D) स्थानापन्न या प्रतिनिधि मूलक शिक्षण

Answer ⇒ D

42. स्वार्थ रहित मदद है

(A) सामाजिक सुकरीकरण
(B) परोपकारिता
(C) सामाजिक श्रमावनयन
(D) सामाजिक विभेदन

Answer ⇒ B

43. निम्नांकित में से कौन सामाजिक प्रभाव का सबसे अप्रत्यक्ष प्रारूप होता है ?

(A) अनुरुपता
(B) आज्ञापालन
(C) अनुपालन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ D

44. निम्नांकित में कौन मनोवृत्ति का तत्त्व नहीं है ?

(A) संज्ञानात्मक
(B) भावात्मक
(C) स्मृति
(D) व्यवहारपरक

Answer ⇒ D

45. मनोवृत्ति परिवर्तन में संतुलन मॉडल का प्रतिपादन किसने किया था ?

(A) फेस्टिर
(B) हाईडर
(C) मोहसिन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

46. बाजार स्थलों या सार्वजनिक स्थलों से अयुक्ति-संगत भय को कहते हैं

(A) एक्रोफोबिया
(B) क्लॉस्ट्रोफोबिया
(C) एगोराफोबिया
(D) एरेक्नोफोबिया

Answer ⇒ C

47. मानसिक दुर्बलता का मुख्य कारण है

(A) जन्म आघात
(B) वंशानुक्रम
(C) संक्रामक रोग
(D) इनमें से सभी

Answer ⇒ D

48. स्टैनफोर्ड–बिनेट स्केल का प्रथम संशोधन वर्ष है।

(A) 1916
(B) 1960
(C) 1922.
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

49. प्रतिबल के विपरीत अवस्था को कहते हैं

(A) चिंतन
(B) शिथिलीकरण
(C) अनुकूलन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

50. मानसिक उम्न मापक है

(A) वास्तविक आयु का
(B) बुद्धि के निरपेक्ष स्तर का
(C) कालानुक्रमित आयु का
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

51. नए एवं मूल्यवान विचारों को देने की क्षमता को कहा जाता है

(A) बुद्धि
(B) सूझ
(C) अभिक्षमता
(D) सर्जनशीलता

Answer ⇒ D

52. यदि किसी व्यक्ति की मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु लगभग बराबर-बराबर हो तो वह कहलाता है

(A) तीव्र बुद्धि का व्यक्ति
(B) मंद बुद्धि का व्यक्ति
(C) सामान्य बुद्धि का व्यक्ति
(D) प्रतिभाशाली बुद्धि का व्यक्ति

Answer ⇒ C

53. गिलफोर्ड के बुद्धि मॉडल में बौद्धिक क्षमताओं की श्रेणियाँ हैं

(A) 180
(B) 100
(C) 120
(D) 1500

Answer ⇒ A

54. व्यक्ति की किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता कहलाती है

(A) व्यक्तित्व
(B) अभिक्षमता
(C) अभिवृत्ति
(D) अभिरुचि

Answer ⇒ D

55. स्पीयरमैन के अनुसार बुद्धि के तत्त्व हैं

(A) 3
(B) 2
(C) 1
(D) 4

Answer ⇒ B

56. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हंस सेली संबंधित हैं

(A) अभिप्रेरकों के संघर्ष के क्षेत्र से
(B) तनाव के अध्ययन के क्षेत्र से
(C) समाजीकरण के अध्ययन के क्षेत्र से
(D) इनमें से किसी भी क्षेत्र से नहीं

Answer ⇒ B

57. बुद्धि त्रिपाचीय सिद्धांत किसने दिया ?

(A) रॉबर्ट स्टर्नबर्ग
(B) अल्फ्रेड बिने
(C) हॉवर्ड गार्डर
(D) आर्थर जेन्सन

Answer ⇒ A

58. बाह्य आबेधक के प्रति प्रतिक्रिया को कहा जाता है।

(A) खिंचाव
(B) अनुकूलन
(C) बर्न-आउट
(D) समायोजन

Answer ⇒ C

59. दबाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व में कौन विशेषता नहीं पायी जाती है ?

(A) प्रतिबद्धता
(B) चुनौती
(C) नियंत्रण
(D) दुश्चिता

Answer ⇒ D

60. सामान्य अनुकूलन संलक्षण या जी० ए० एस० के संप्रत्यय को किसने प्रस्तुत किया ?

(A) जिम्बार्डो
(B) हंस सेली
(C) मार्टिन सेलिंगमैन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

61. आधुनिक चिकित्साशास्त्र का जनक किसे माना जाता है ?

(A) हिप्पोक्रेट्स
(B) मैसलो
(C) फ्रायड
(D) रोजर्स

Answer ⇒ A

62. पतंजलि का नाम सम्बद्ध है।

(A) मनोचिकित्सा से
(B) परामर्श से
(C) योग से
(D) स्वप्न विश्लेषण से

Answer ⇒ C

63. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा संबंधित है।

(A) एडलर से
(B) फ्रायड से
(C) मैसलो से
(D) युंग से

Answer ⇒ B

64. क्रमबद्ध असंवेदीकरण का प्रतिपाद किसने किया है ?

(A) जे० वी० वाटसन
(B) लिंड्सले और स्कीनरं
(C) लेजारस
(D) साल्टर और वोल्प

Answer ⇒ D

65. मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया ?

(A) रोजर्स
(B) फ्रायड
(C) आलपोर्ट
(D) वाटसन

Answer ⇒ B

66. निम्नलिखित में कौन प्राथमिक सामाजिक व्यवहार नहीं है ?

(A) मित्रता
(B) आक्रमण
(C) सहयोग
(D) सामाजिक विभेदन

Answer ⇒ D

67. एक सामाजिक समूह की संरचना के लिए कम से कम कितने सदस्यों की आवश्यकता है ।

(A) चार
(B) दो
(C) पाँच
(D) तीन

Answer ⇒ B

68. एक संदर्भ समूह के लिए सर्वाधिक वांछित अवस्था क्या है ?

(A) समूह का प्रभाव
(B) समूह का आकार
(C) समूह के साथ सम्बद्धता
(D) समूह की सदस्यता

Answer ⇒ C

69. सामाजिक समूह के निम्न किस प्रकार में सर्वाधिक एकता होता है ?

(A) बाह्य समूह
(B) अन्तर्समूह
(C) गतिशील समूह
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

70. निम्नलिखित में से कौन द्वितीयक समूह नहीं है ?

(A) राजनैतिक दल
(B) विद्यालय
(C) औद्योगिक संगठन
(D) इनमें से कोई नहीं
लघु उत्तरीय प्रश्न

Answer ⇒ B

लघु उतरिय प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 20 तक लघु उत्तरीय हैं। इनमें से किन्हीं 10 प्रश्नों उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। प्रत्येक उत्तर के लिए शब्द सीमा 30-40 शब्द है।

1. मानव व्यवहार पर जल प्रदूषण के प्रभाव का वर्णन करें।
2. शीलगण से आप क्या समझते हैं ?
3. आत्महत्या के रोकथाम के उपाय सुझावें।
4. मनोग्रस्ति से आप क्या समझते हैं ?
5. संवेगात्मक बुद्धि या ई. क्यू. से आप क्या समझते हैं ?
6. अभिघातज उत्तर दबाव विकार क्या है ? व्याख्या करें।
7. डॉ. मोहसिन द्वारा मनोवृत्ति परिवर्तन के द्विस्तरीय संप्रत्यय का वर्णन करें।
8. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा पर संक्षेप में एक टिप्पणी लिखिए।
9. मनोचिकित्सा के नैतिक सिद्धान्त का वर्णन करें।
10. मनोचिकित्साओं के उद्देश्यों का वर्णन करें।
11. अवसाद और उन्माद से संबंधित लक्षणों की पहचान कीजिए।
12. समाजोपयोगी व्यवहार को परिभाषित करें।
13. आक्रामकता के कारण क्या हैं ?
14. निर्धनता के कारणों का वर्णन करें।
15. भीड़ अनुभव के लक्षण क्या हैं ?
16. मानव वातावरण के विभिन्न उपागमों का वर्णन करें।
17. असामान्य व्यवहार क्या है ?
18. स्वलीन विकार की विशेषताओं का वर्णन करें।
19. मनोवृत्ति के स्वरूप का वर्णन करें।
20. दुर्भीति विकार से आप क्या समझते हैं ?


1. जल प्रदूषण से तात्पय जल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन से है कि उसके रूप, गंध और स्वाद से पानव के स्वास्थ्य और कृषि उद्योग एवं वाणिज्य को हानि पहुँने, जत प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषित जल पीने से विभिन्न प्रकार के माननीय रोग उत्पन हो जाते हैं, जिनमें आँत का रोग, पीलिया, हैजा, यइफाइड, अतिसार तथा पेचिस रोग प्रमुख हैं।


2. उपस्तित्व का निर्माण अनेक प्रकार के शीलगुणों से होता है। शीलगुण आपस में संयुक्त रूप से कार्य करते हैं, जिनसे व्यक्ति के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन को उचित दिशा एवं गति प्राप्त होती हैं। इसी कारण इस सामान्य भाषा में व्यकिा को विशेषताएं भी कहा जाता है। व्यक्तित्व को स्थागो विशेषताएँ जिनके कारण उनके व्यवहार में स्थिरता दिखाई पड़ती हैं, शीलगुण के नाम से जानी जाती है।


3. आत्महत्या को निम्नलिखित लक्षणों के प्रति सजग रहकर रोका जा सकता है

(i) खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन।
(ii) मित्रों, परिवारों और नियमित गतिविधियों से विनिवर्तन।
(iii) उन क्रिया व्यवहार, विद्रोही व्यवहार, भाग जाना।
(iv) मद्य एवं मादक द्रव्य सेवन। धिकार व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन आना।
(vi) लगातार ऊय महसूस करना।
(vii) एकाग्रता में कठिनाई।
(viii) आनंददायक गतिविधियों में अभिरुचि का न होना। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पान की असमर्थता मनोग्रस्ति कहलाती है। इससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है।


5. संवेगात्मक बुद्धि या ई० क्यू० संप्रत्यय की व्याख्या सर्वप्रथम दो अमेरिकी वैज्ञानिक सैलोवे तथा मेयर ने 1990 ई० में किया। हालांकि इस पद को विस्तृत करने का श्रेय प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को जाता है। इन्होंने संवेगात्मक बुद्धि की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य व्यक्ति का अपने तथा दूसरों के मनोभावों को समझना, उनपर नियंत्रण रखना और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उनका सर्वोत्तम उपयोग करना है।” उन लोगों का कहना है कि संवेगातक बुद्धि हमारी सफलता का अस्सी प्रतिशत भाग निर्धारित करता है। इस प्रकार संवेगात्मक बुद्धि का तात्पर्य उस कौशला से है जिससे हम अपने आंतरिक जीवन का प्रबंध करते हैं और लोगों के साथ तालमेल बिठाकर चलते


6. अभिधातज उत्तर दबाव वास्तव में विघटन की स्थिति होती है। शोर, भीड़, खराब संबंध आदि घटनाओं से यह सम्बद्ध होता है। दवाव को एक विशेषता यह यह कारण तथा प्रभाव दोनों रूप में देखा जाता है। कभी यह आश्रित चर और कभी स्वतंत्र चर के रूप में भी देखा जाता है।


7. मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक प्रचलित शब्द है जिसका व्यवहार हम प्राय: अपने दैनिक जीवन में दिन-प्रतिदिन करते रहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति की मानसिक प्रतिछाया या तस्वीर को, जो किसी व्यथित या समूह, वस्तु, परिस्थिति घटना आदि के प्रति व्यक्ति के अनुकूल या प्रतिकूल दृष्टिकोण अथवा विचार को प्रकट करता है, मनोवृत्ति या अभिवृत्ति कहते है। कंच, चिफील्ड तथा वैलेची ने मनोवृत्ति को परिभाषित करते हुए कहाहैकि “किसी एक वस्तु के संबंध में तीन मंत्रों का टिकाऊ तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है।” इन तीनों मंत्रों से मनोवृत्ति का वास्तविक स्वरूप सही ढंग से स्पष्ट होता है। ये तीन तंत्र है
(i) संज्ञानात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के संवेगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। (i) भावात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबोधित व्यक्ति के संवेगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। (iii) व्यवहारात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु के प्रति व्यवहार या क्रिया करने की तत्परता को व्यवहारात्मक संघटक कहते हैं। इस प्रकार मनोवृत्ति उपर्युक्त तीनों संघटकों का एक टिकाऊ तंत्र है।


8. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा- यह सर्वाधिक प्रचलित चिकित्सा पद्धति है। मनोश्चिकित्सा की प्रभाविता एवं परिणाम पर किए गए अनुसंधान ने निर्णायक रूप से यह प्रमाणित किया है कि संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे-दुश्चिता, अवसाद, आतंक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादन उपचार है। मनोविकृति रूपरेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव-मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है। यह संज्ञानात्मक चिकित्सा को व्यवहारपरक तकनीकों के साथ संयुक्त करती हैं।

इसमें सेवार्थी के कष्टों का मूल या उद्गम जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाणिक क्षेत्रों में होता है। अतः समस्या के पैविक पक्षों को विश्रांति की विधियों द्वारा, मनोवैज्ञानिकों पक्षों को व्यवहार चिकित्सा तथा संज्ञानात्मक चिकित्सा तकनीकों द्वारा सामाजिक पक्षों को पर्यावरण में परिवान द्वारा संबंधित करने के कारण संज्ञानाताक व्यवहार चिकित्सा को एक व्यापक चिकित्सा बनाती है, जिसका उपयोग करना आसान है, यह कई प्रकार के विकारों के लिए प्रयुक्त की जा सकती है तथा जिसकी प्रभावोत्पादकता प्रमाणित हो चुकी है।


9. कुछ नैतिक सिद्धांत मानक जिनका व्यवसायी मनोचिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिए वे हैं-

(i) सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति लेनी चाहिए।
(ii) सेवार्थों की गोपनीयता बनाए रखना चाहिए।
(iii) व्यक्तिंगत कष्ट और व्यथा को कम कसा मनोचिकित्सा के प्रत्येक प्रयासों का लक्ष्य होना चाहिए।
(iv) पिकित्सक-सेवार्थी संबंध को अखंडता महत्वपूर्ण है।
(v) मानव अधिकार एवं गरिमा के लिए आदर।
(vi) व्यावसायिक सक्षमता एवं कौशल आवश्यक है।


10. मनोचिकित्साओं के निमलिखित उद्देश्य हैं

(i) सेवार्थी के सुधार के संकल्प को प्रवलित करना।
(ii) संवेगात्मक दबाव को कम करना।
(iii) सकारात्मक विकास के लिए संभाव्यताओं को प्रकट करना।
(iv) आदतों में संशोधन करना।
(v) चिंतन के प्रतिरूपों में परिवर्तन करना।
(vi) आत्म-गागरुकता को बढ़ाना।
(vii) आपैयक्तिक संबंधों एवं संप्रेषण में सुधार करना।
(viii) निर्णयन को सुकर बनाना।
(ix) जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरुक होना।
(x) अपने सामाजिक पर्यावरण से एक सर्जनात्मक एवं आत्म-जागरूक तरीके से संबंचित होना।


11. अवसाद- इसमें कई प्रकार के नकारात्मक भावपशा और व्यवहार परिवर्तन होते है। इनके लक्षणों में अधिकांरा गतिविधियों में रुचि या आनंद नहीं रह जाता है। साथ ही अन्य लक्षण भी हो सकते हैं; जैसे-शरीर के भार में परिवर्तन, लगातार निद्रा से संबंधित समस्याएँ, थकान, स्पष्ट रूप से घिन करने में असमर्थता, क्षोभ, बहुत धीरे-धीरे कार्य करता तथा मृत्यु और आत्महत्या के विचारों का आना, अत्यधिक दोष या निकम्मेपन की भावना का होना।

उन्माद- इससे पीडित व्यणि उल्लासोन्मादी, अत्यधिक सक्रिय, अत्यधिक बोलने वाले तथा आसानी से चित्त अस्थिर हो जाते हैं, उन्गाद की घटना या स्थिति स्वतः कभी कभी ही दिखाई देती है, इनका परिवर्तन अवसर अवसाद के साथ होता रहता है।


12. किसी व्यक्ति के वैसा व्यवहार के ध्यान में रखकर करता है उसे समाजोपयोगी व्यवहार कहा जाता है। समाजोपयोगी जवहार करने वाला व्यक्ति समाज को हमेशा सहायवा करने का ही नियत रखता है।


13. आक्रामकता के निम्नलिखित कारण है-

(i) सहज प्रवृत्ति- आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है) सहण (अंगात) होती है। यौषिक रूप से यह सहन प्रवृत्ति आत्मरक्षा हेतु हो सकती है।

(ii)शरीर क्रियात्मक तंत्र- शरीर क्रियात्मक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामकता जानिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती हैं, शरीर-क्रियात्मक भाव प्रबोधन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्राव: आक्रमण के रूप में अभिव्यक्त हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भौड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आद्र पौसम में ।

(iii) बाल-पोषण- किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्रायः उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वे बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा जिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते है। ऐसा संभवतः इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अप्रसन्न बना दे और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

(iv) कुंठा- आक्रामण कुंठा को अभिव्यक्ति तथा परिणाम हो सकते हैं, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति जो तव उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु जिसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यक्ति किसी लक्ष्य के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से वंचित रह सकता है। यह पाया गया है कि कठित स्थितियों में जो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों की अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो कुटिक नहीं होते। कुंठा के प्रभाव को जांच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बच्चों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पदं (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप यं वच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन खिलौने उपलब्ध थे, खेल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।


14. निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(i) निर्धन स्वयं अपनी निर्धनता के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस मत के अनुसार,निर्धन व्यक्तियों में योग्यता तथा अभिप्रेरणा दोनों की कमी होती है जिसके कारण वे प्रयास करके उपलब्ध अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते। सामान्यत: निर्धन व्यक्तियों के विषय में यह मत निषेधात्मक है नधा उनकी स्थिति को उत्तम बनाने में तनिक भी सहायता नहीं करता है।

(ii) निर्धनता का कारण कोई व्यक्ति नहीं अपितु एक विश्वास व्यवस्था, जीवन-शैली तथा वे मूल्य है जिनके साथ वह पलकर बड़ा हुआ है। यहविश्वास व्यवस्था, जिसे ‘निर्धनता की संस्कृति’ (culture of poverty) कहा जाता है, व्यक्ति को यह मनवा या स्वीकार करवा देती है कि वह दो निर्धन ही रहेगा रहेगी तथा यह विश्वास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहता है।

(iii) आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक कारक मिलकर निर्धनता का कारण बनते हैं। भेदभाव के कारण समाज के कुछ वर्गों को जीविका की मूल आवश्यकताओं को पूर्ति करने के अवसर भी दिए जाते। आर्थिक व्यवस्था को सामाजिक तथा राजनीतिक शोषण के द्वारा वैषम्यपूर्ण (असंगत) तरह से विकसित किया जाता है जिससे कि निर्धन इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं। ये सारे कारक सामाजिक असुविधा के संप्रत्यय में समाहित किए जा सकते हैं जिसके कारण निर्धन सामाजिक अन्याय, वचन, भेदभाव तथा अपवर्णन का अनुभव करते हैं।


15. भीड़ का संदर्भ उस असुस्थता की भावना से है जिसका कारण यह है कि हमारे आस-पास बहुत अधिक व्यक्ति या वस्तुएँ होती हैं जिससे हमें भौतिक बंधन की अनुभूति होती है तथा कभी-कभी वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता का अनुभव होता है। एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया हो भौट कहलाती है। जब यह संख्या एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है तब इसके कारण वह व्यक्ति को इस स्थिति में फंस गया है, दवान का अनुभव करता है। इस अर्थ में भीड़ भी एक पर्यायवाची दवावकारक का उदाहरण है।

भीड़ के अनुभव के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

(i) असुरक्षा की भावना,
(ii) वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी,
(iii) व्यक्ति का अपने आस पास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण तथा
(iv) सामाजिक अंत:क्रिया पर नियंत्रण के अभाव की भावना।


16. मनुष्य भी अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यों से भी प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं। निर्मित पर्यावरण के सारे उदाहरण पर्यावरण के ऊपर मानव प्रभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये, मानव ने जिसे हम ‘घर’ कहते हैं, उसका निर्माण प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके ही किया जिससे कि उन्हें एक आनय मिल सके। मनुष्यों के इस प्रकार के कुछ कार्य पर्यावरण को क्षति भी पहुंचा सकते हैं और अंततः स्वयं उन्हें भी अनेकानेक प्रकार से थाति पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे-रेफ्रोरणेटर तथा वातानुकूलन यंत्र जो रासायनिक द्रव्य (जैसे-सीएफ सी- या क्लोरो-फ्लोरो कार्यन) उत्पादित करते हैं, जो वायु को प्रदूषिरा करते हैं तथा अंतत: ऐसे शारीरिक रोगों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं, जैसे कैंसर के कुछ प्रकार। धूम्रपान के द्वारा हमारे आस-पास की वायु प्रदूषित होती है तथा प्लास्टिक एवं धातु से बनी वस्तुओं को जलाने से पर्यावरण पर घोर विपदाकारी प्रदूषण फैलाने वाला प्रभाव होता है। वृक्षों के कान या निर्वनीकरण के द्वारा कार्बन चक्र एवं जल चक्र में व्यवधान उत्पन हो सकता है। इससे अंततः उस क्षेत्र विशेष में वर्षों के स्वरूप पर प्रभाव पड़ सकता है और भू-अरण तथा मरुस्थलीकरण में वृद्धि हो सकती है। वे उद्योग जो निस्सारी का बहिर्वाह करते है तथा इस असंसाधित गदै पानी को नदियों में प्रवाहित करते हैं, इस प्रदूषण के भयावह भौतिक (शारीरिक) तथा मनोवैज्ञानिक परिणामों से तनिक चिंतित प्रतीत नहीं होते हैं।


17. असामान्य व्यवहार व्यक्ति के वैसे व्यवहार को कहा जाता है। जिसमें अचेतन का प्रभाव रहता है। यानि इस व्यवहार की चेतना व्यक्ति को नहीं रहती है। असामान्य व्यवहार का अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान में किया जाता है। सभी अच्छे लोग जो व्यवहार करते हैं। उनसे अलग नए ढंग को ही असामान्य व्यवहार कहा जाता है। अर्थात् व्यक्ति का वैसा व्यवहार जो सामान्य से अलगहोता है, असामान्य व्यवहार कहलाता है।

असामान्य व्यवहार की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित-

(i) असन्नता से ग्रसित- असामान्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हर समय निराश, परेशान, चिंता से घिरे हुए रहते हैं।
(ii) मनोरंजन के प्रति कम रुचि- असामान्य नास्तित्व वाले व्यक्ति ज्यादातर दुखी ही रहता है।
(iii) दक्षता की अपेक्षाकृत कम कार्यक्षमता- असामान्य व्यवहार काले व्यक्तियों में क्षमता की बहुत कमी होती है।


18. स्वलौन विकार या स्वलीनता इनमें सबसे अधिक पाया जाने वाला विकार होता है। स्वलीन विकार वाले बच्चों को सामाजिक अंत:क्रिया और संप्रेषण में कठिनाई होती है, उनको बहुत सीमित अभिरुचियाँ होती हैं तथा उनमें एक नियमित दिनचर्या की तीन इच्छा होती है। सत्तर प्रविशत के लगभग स्वलीनता से पीड़ित बच्चे मानसिक रूप से मंद होते हैं।

स्वलीनता से ग्रस्त बच्चे दूसरों में मित्रवत् होने में गहन कठिनाई का अनुभव करते हैं। वे सामाजिक व्यवहार प्रारंभ करने में असमर्थ होते हैं तथा अन्य लोगों की भावनाओं के प्रति अनुक्रियाशील प्रतीत नहीं होते हैं। वे अपने अनुभवों या संवेगों को दूसरों के साथ बाँटने में असमर्थ होते हैं। वे संप्रेषण और भाषा की गंभीर असामान्यताएँ प्रदर्शित करते हैं, जो काफी समय तक बनी रहती है। बहुत से स्वलीन गच्चे कभी भी वाक् (बोली) का विकास नहीं कर पाते हैं और वे जो कर पाते हैं, उनका वाक्-प्रतिरूप पुनरावती और विसामान्य होता है। स्वलीनता से पीड़िता बच्चे सीमित अभिरुचियाँ प्रदर्शित करणं हैं और इनके व्यवहार पुनरावर्ती होते हैं जैसे वसुओं को एक लाइन से लगाना या रूढ शरीर गति, जैसे हाथ से मारना या आत्म-हानिकर पैसे-हीबार से सिर पटकना ठो Aसकते हैं।


19. मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक प्रचलित शब्द है जिसको हम प्राय: अपने दैनिक जोचन में दिन-प्रतिदिन प्रयोग करते रहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति को मानसिक प्रतिछाया या तस्वीर को, जो किसी व्यक्ति या समूह, वस्तु, परिस्थिति, पटना आदि के प्रति व्यक्ति के अनुकूल या प्रतिकूल दृष्टिकोण अथवा विचार को प्रकट करता है, पनोवृत्ति या अभिवृत्ति कहते हैं।


20. दुर्भाति विकार एक बहुत ही सामान्य दुश्चिता विकार है, जिसमें व्यक्ति अकारण या अयुक्तिक अथवा विवेकहीन डर अनुभव करता है। इसमें व्यक्ति कुछ खास प्रकार की वस्तुओं या परिस्थितियों से डरना सीख लेता है। जैसे, जिस व्यक्ति में मका से दुर्भाति होता है वह व्यक्ति वहाँ नहीं जा सकता है जहाँ मकड़ा उपस्थित हो। जबकि पकड़ा एक ऐसा जीव है जो व्यक्ति विशेष के लिए खतरा पैदा नहीं करता है। फिर भी व्यक्ति यह जानता है कि उसका डर अयुक्तिक है, फिर भी वह उका डर से मुक्त नहीं हो पाता है। इसका कारण व्यक्ति का आंतरिक रूप सं चितित होना होता है। व्यक्ति का यह चिंता किसी खास वस्तु से अनुकूलित होकर संलग्न हो जाता है। उदाहरणार्थ कुछ महत्वपूर्ण दुभौतियाँ जैसे बिल्ली से ठर एलरोफोबिया मकड़ा से खर एरेकनोफिनिया, रात्रि से डर नावक्टोफोबिया तथा आग से डर पायरोफोबिया आदि दुर्भीति के उदाहरण हैं।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 21 से 26 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इस कोटि के प्रत्येक – प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित हैं। किन्हीं 3 प्रश्नों का उत्तर दें। प्रत्येक उत्तर के लिए शब्द सीमा 80 से 100 शब्द है।

21. मानव व्यवहार पर पर्यावरणीय प्रभावों का वर्णन करो
22. प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताओं का वर्णन करें।
23. मनोविदलता के लक्षणों का वर्णन करें।
24. व्यक्तित्व विकास की अवस्थाओं का वर्णन करें।
25. ‘फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की पाँच अवस्थाओं का वर्णन करें।
26. अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं ? अभिवृत्ति परीक्षण के प्रमुख प्रकारों का वर्णन करें।


21. पर्यावरण पर मानव प्रभाव- मनुष्य भी अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यों से भी प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं। निर्मित पर्यावरण के सारे उदाहरण पर्यावरण के ऊपर मानव प्रभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये, मानब ने जिसे हम ‘घर’ कहते हैं, उसका निर्माण प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके ही किया जिससे कि उन्हें एक आश्रय मिल सके। मनुष्यों के इस प्रकार के कुछ कार्य पर्यावरण को क्षति भी पहुंचा सकते हैं और अंततः स्वयं उन्हें भी अनेकानेक प्रकार से क्षति पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य उपकरणों का उपयोग करते है, जैसे-रफोजरंटर तथा वातानुकूलन मंत्र जो रासायनिक द्रव्य (जैसे-सौ० एफ० सो० या क्लोरोफ्लोरो कार्बन) उत्पादित करते हैं, जो वायु को प्रदूषित करते हैं तथा अंततः ऐसे शारीरिक रोगों के लिए उत्तरदायो हो सकते हैं, जैसे कैंसर के कुछ प्रकार। धूम्रपान के द्वारा हमारे आस पास की वायु प्रदूभिन्न होती है तथा प्लास्टिक एवं धातु से बनी वस्तुओं को जलाने से पर्यावरण पर घोर विपदाकारी प्रदूषण फैलाने वाला प्रभाव होता है। वृक्षों के कटान या निर्वनीकरण के द्वारा कार्बन चक्र एवं गल चक्र में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इससे अंततः उस क्षेत्र विशेष में वर्षा के स्वरूप पर प्रभाव पड़ सकता है और भू-क्षरण तथा मरुस्थलीकरण में वृद्धि हो सकती है। वे उद्योग जो निस्सारी का बहिर्वाह करते है तथा इस असंसाधित गंदे पानी को नदियों में प्रवाहित करते हैं, इस प्रदूषण के भयावह भौतिक (शारीरिक) तथा मनोवैज्ञानिक परिणामों से तनिक चितित प्रतीत नहीं होते हैं।

मानव व्यवहार पर पर्यावरणी प्रभाव :

(i) प्रत्यक्षण पर पर्यावरणी प्रभाव- पर्यावरण के कुछ पक्ष मानव प्रत्यक्षण को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका को एक जनजाति समाज गोल कुटियों (झोपड़ियों) में रहती है अर्थात् ऐसे घरों में जिनमें कोणीय दीवारें नहीं हैं। वे ज्यामितिक प्रम (मूलर-लायर भ्रम) में कम बुटि प्रदर्शित करते हैं, उन व्यक्तियों की अपेक्षा जो नगरों में रहते हैं और जिनके मकानों में कोणीय दीवारें होती हैं।

(ii) संवेगों पर पर्यावरणी प्रभाव- पर्यावरण का प्रभाव हमारी सांवेगिक प्रतिक्रियाओं पर भी पड़ता है। प्रकृति के प्रत्येक रूप का दर्शन चाहे वह शांत नदी का प्रवाह हो, एक मुस्कुराता हुआ फूल हो, या एक शांत पर्वत की चोटी हो, मन को एक ऐसौ प्रसन्नता से भर देता है जिसकी तुलना किसी अन्य अनुभव से नहीं की जा सकती। प्राकृतिक विपदाएँ, जैसे बाल, या सूखा, भूस्खलन, भूकंप चाहे पृथ्वी के ऊपर हो या समुद्र के नीचे हो, व्यक्ति के संवेगों पर इस सीमा तक प्रभाव डाल सकता है कि वे गहन अवसाद और दुःया तथा पूर्ण असहायता की भावना और अपने जीवन पर नियंत्रण के अभाव का अनुभव करते हैं। मानव संवेगों पर ऐसा प्रभाव एक अभिपातज अनुभव है जो व्यक्तियों के जीवन को सदा के लिये परिवर्तित कर देता है तथा घटना के बीत जाने के बहुत समय बाद तक भी अभिंघावण उत्तर दवाव विकार (Post-traumatic stress disorder -PTdS) के रूप में बना रहता है।

(iii) व्यवसाय, जीवन-शैली तथा अभिवृत्तियों पर पारिस्थितिक का प्रभाव- किसी क्षेत्र का प्राकृतिक पर्यावरण या निर्धारित करता है कि उस क्षेत्र के निवासी कृषि पर (जैसे-मैदानों में) या अन्य व्यवसायों, जैसे शिकार तथा संग्रहण पर (जैसे-वनों, पहाड़ों या रेगिस्तानी क्षेत्रों में) या उद्योगों पर (जैसे-उन क्षेत्रों में जो कृषि के लिए उपजाऊ नहीं हैं) निर्भर रहते हैं परन्तु किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों के व्यवसाय भी उनकी जीवन-शैली और अभिवृत्तियों का निर्धारण करते हैं।


22. प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ (Characteristics of Gifted Children)- प्रतिभाशाली बालकों की कुछ ऐसी विशेषताएँ होते हैं, जिससे कि उसे सामान्य बच्चों से अलग किया जा सकता है-

(i) मानसिक गुण- मानसिक गुण प्रतिभाशाली चालकों की सबसे प्रमुख विशेषता है। इनमें सामान्य बालकों की उपेक्षा अधिक मानसिक योग्यता होती हैं। अनेक अध्ययनों के आधार पर देखा गया है कि प्रतिभाशाली बालकों का 140 या इससे अधिक होता है।

(ii) चिन्तन- प्रतिभाशाली बालक सामान्य बच्चों को अपेक्षा अधिक अमूर्त चिन्तन करते हैं। ये बच्चे सूक्ष्ममातिसूक्ष्म विषयों पर विचार कर सकते हैं तथा कठिन समस्याओं को समझने तथा उनका हल करने में अधिक कुशाग्र होते हैं।

(iii) शारीरिक गुण- सामान्य बालकों की तुलना में प्रतिभाशाली बनने अधिक लम्बे तथा भारी बदन के होते हैं। ये जन्म के समय सामान्य बच्चों की अपेक्षा एक पौण्ड भारी तथा डेट इंच लम्बे होते हैं।

(iv) सीखने की योग्यता- प्रतिभाशाली बालकों में सीखने की योग्यता सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होती है। अन्य बच्चों की अपेक्षा इनका भाषा विकास तीन माह पहले हो जाता है। फलतः इनका शव्यभण्डार बड़ा होता है। स्कूल जाने के पहले ही ये कुछ शब्दों को पढ़ना-लिखना सीख लेते हैं। ये कम समय में ही पात्य-पुस्तक विषयों को याद कर लेते हैं।

(v) रूचि-प्रतिभाशाली वालकों की रूचि फिसी एक और अधिक समय तक नहीं रहती है। वातावरण को सभी वस्तुओं का ज्ञान ये प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उनका ध्यान बराबर विचलित होते रहते हैं।

(vi) सामाजिक गुण- जो चालक प्रतिभाशाली होते हैं ये सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक सामाजिक होते हैं। ऐसे चालक खेलों में भी ज्यादा अभिरूचि लेते हैं। ऐसे वर्षों में नेतृत्व का गुण अधिक होता है।

(vii) उच्च वंश- परम्परा- प्रायः प्रतिभाशाली बालक उच्च वंश के होते हैं। इनके माता-पिता अधिक बुद्धिगान एवं शिक्षित होते हैं। या तो वे अच्छे पद पर होते हैं या बड़े व्यवसाय से सम्बन्धित होते हैं। परन्तु यह बात पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो गरीब परिवार के होते हुए भी प्रतिभाशाली हैं।

(viii) समझने की क्षमता- प्रतिभाशाली बालक निर्देशन कम होने पर भी अधिक समझ लेते हैं और अपनी समझ-बूझ एवं पूर्व अनुभवों का लाभ उठाते हैं। अध्यापक को विषय समझाने में विशेष कठिनाई नहीं होती है।

(ix) ध्यान-प्रतिभाशाली वालकों का ध्यान विस्तार सामान्य बच्चों को तुलना में अधिक होता है। ऐसे बच्चे किसी विषय में अपने ध्यान को अधिक समय तक केन्द्रित करने में समर्थ होते हैं। इनका ध्यान कम भंग होता है।

(x) अन्य शीलगुण-प्रतिभाशाली बालक प्रायः ईमानदार, दयालु एवं परोपकारी होते हैं। परन्तु, इसके लिए उन्हें उचित निर्देशन मिलना आवश्यक है।


23. मनोविदलता (Schizopheremia) को पहले dementia praecox के नाम से जाता था। Demestia prnecox शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग पिलिन ने किया था, जिसका तात्पर्य मनोविचछन्नता होता है। Schizophrenia शब्द का सर्वप्रथम ल्यूमर (Bleumer) ने 1911 ई० में किया था। उन्होंने कहा है कि इस रोग में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विभाजन हो जाता है। बाद में इस अर्थ को भी छोड़ दिया गया। आधुनिकसंबंध में अ युग में इस नेक अनुसंधान किए जा रहे हैं तथा इसकी परिभाषा देते हुए जे० सी० कोलमैन (J.C. Coleman) ने कहा है, “मनोविदलता वह विवरणात्मक पद है जिसमें मनोविकृति से संबंधित कई विकारों का बोध होता है। इसमें बड़े पैमाने पर वास्तविकता तोड़-मरोड़कर दिखायी देवी रोगी सामाजिक अन्तः क्रियाओं से पलायन करता है। व्यक्ति का प्रत्यक्षीकरण, विचार और संवेग, अपूर्ण और विघटित रूप में होते हैं।”

लक्षण (Sympleems)-मनोविदलता के रोगियों में बहुत प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक लक्षण देखे जाते हैं, जिनमें कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

(i) संवेगात्मक उदासीनता- मनोविदलता को रोगी संवेगात्मक रूप से उदासीन रहता है, अर्थात् रोगी emotional apathy में पाया जाता है। फिशर (Fisher) ने emotional anathy को मनोविदलता का Most Common Symptom स्वीकार किया है। रोगी बाह्य वातावरण के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। यहाँ तक कि यदि उसके परिवार में किसी व्यक्ति की मौत हो जाय, तो भी उसे किसी प्रकार का दुःख की अनुभूति नहीं होती। प्रश्न पूछे जाने पर वह संक्षिप्त उचर देता है। कभी-कभी दो विरोधी संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ एक साथ देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए उसमें रोने और हँसने की क्रिया एक साथ देखी जा सकती है। रोगी अपने शारीरिक अवस्थाओं के प्रति काफी उदासीन होता है। उसे खाने-पीने की कोई परवाह नहीं रहती। मैकडूगला ने भी emotional npathy को इस मानसिक रोग का एक प्रमुख लक्षण माना है।

(ii) मानसिक हास-मनोविदलता के सभी रोगियों में मानसिक द्वास के लक्षण देखे जाते हैं। कहने का तापत्पर्य यह है कि उसकी मानसिक क्रियाएँ विभिन्न दोषों से युक्त रहती हैं। उसका चिन्तनपूर्ण रूप से अव्यवस्थित रहता है। इसकी स्मृति बहुत कमजोर होती है। अपनी परिस्थितियों को सुलझाने में असमर्थ रहते हैं और यहाँ तक कि अपना नाम, पता आदि को भी नहीं बदल पाते। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि इसके रोगी का I.Q.सामान्य से बहुत कम होता है।

(iii) विभ्रम- मनोविदलता के रोगी का प्रधान लक्षण विभ्रम है। इससे ग्रस्त रोगियों में अनेक प्रकार के विभ्रम देखे जाते हैं, फिर उनमें संरक्षण की प्रधानता रहती है। मनोविदलता का रोगो ऐसा अनुभव करता है कि उसे भगवान या किसी काल्पनिक व्यनित की आवाज सुनाई पड़ रही है। कभी-कभी वह भगवान की आवाज को सुनता है और चिल्लाना है। रोगी वह भी समझता है कि सभी लोग उसके दुश्मन हैं और जहर देकर मारना चाहते हैं। खाने में उसे कोई स्वाद नहीं मिलता और वह आस-पास की दुर्गन्ध से सशक्ति रहता है। इस प्रकार के रोगी विभिन्न प्रकार के विभ्रमों का शिकार बन जाता है।

(iv) व्यामोह- मनोविदलता के रोगियों में व्यामोह (dilusions) के लक्षण भी देखें जाते हैं। रोगी यह अनुभव करता है कि लोग उसे जान से मारने का षड्यंत्र कर रहे हैं। चिकित्सक को भी वह दुश्मन समझना है। दवा को बहर समझकर पीने से इनकार करता है। डॉ. पेज ने मनोविदलता के रोगियों के व्यामोह की तुलना सामान्य व्यक्ति के स्वप्न से की है। जिस प्रकार स्वप्न की स्थिति में दृश्य को हम देखते हैं, वे शून्य प्रतीत होते हैं, ठीक उसी प्रकार इस रोग से पीड़ित रोगी अपने dilusions को शून्य स्वीकार कर लेता है।

(v) भाषा-दोष- रोगी में बोलने की गड़बड़ी के लक्षण भी देखे जाते हैं। उनके वाश्य निरर्थक एवं लम्बे होते हैं। कभी-कभी कोई शब्दों को मिलाकर एक ‘नए वाक्य का निर्माण कर लेते हैं। कभी रोगी इतनी तेज रफ्तार से बोलता है, जिसे दूसरे लोग सुन नहीं पाते हैं। इसी प्रकार रोगी में विचित्र लेखन के लक्षण देखे जाते है। उसकी लेखशैली दोषपूर्ण होती है। लिखने के सिलसिले में वे symbols, lines, drawing and words को एक ही साथ मिला देते हैं। व्याकरण के नियमों का वे कभी पालन नहीं करते हैं।

(vi) शारीरिक क्षमता का हास- मनोविदलता के रोगी शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं। शरीर में मेहनत करने की क्षमता नहीं होती। वह हमेशा नींद की कमी महसूस करता है। इस प्रकार schizophrernia के रोगी में अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक दोष पाये जाते हैं।


24. फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास का एक पंच अवस्था सिद्धांत प्रस्तावित किया जिसे मनोलौँगक विकास के नाम से भी जाना जाता है। विकास को उन पाँच अवस्थाओं में से किसी भी अवस्था पर समस्याओं के आने से विकास याधि त हो जाना है और जिसका मनुष्य के जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता
है। फ्रायड द्वारा प्रस्तावित पंच अवस्था सिद्धांत निम्नलिखित है-

(i) मौखिक अवस्था- एक नवजात शिशु की मूल प्रवृत्तियाँ मुख पर काँद्रित होती हैं। यह शिशु का प्राथमिक सुख प्राप्ति का केंद्र होता है। यह मुख ही होता है जिसके माध्यम से शिशु भोजन ग्रहण करता है और अपनी भूख को शांत करना है। शिशु मौखिक संतुष्टि भोजन ग्रहण, अंगूठा चूसने, काटने और बलवलाने के माध्यम से प्राप्त करता है। जन्म के बाद आरंभिक कुछ महीनों की अवधि में शिशुओं में अपने चतुर्दिक जगत के बारे में आधारभूत अनुभव और भावनाएं विकसित हो जाती हैं। फ्रायड के अनुसार एक वयस्क जिसके लिए यह संसार कटु अनुभवों से परिपूर्ण हैं, संभवतः मौखिक अवस्था का उसका विकास कठिनाई से हुआ करता है।

(ii) गुदीय अवस्था-ऐसा पाया गया है कि दो-तीन वर्ष की आयु में बच्चा समाज की कुछ मांगों के प्रति अनुक्रिया करना सीखता है। इनमें से एक प्रमुख माँग माता-पिता की गह होती है कि बालक मूत्रत्याग एवं मलत्याग जैसे शारीरिक प्रकार्यों को सीसे। अधिकांश बच्ने एक आयु में इन क्रियाओं को करने में आनंद का अनुभव करते हैं। शरीर का गुदीय क्षेत्र कुछ सुखदायक भावनाओं का केंद्र हो जाता है। इस अवस्था में इड और अहं के बीच हंह का आधार स्थापित हो जाता है। साथ ही शैशवावस्था की की इच्छा एवं वयस्क रूप में नियंत्रित व्यवहार की मांग के बीच भी बंद का आधार स्थापित हो जाता है।

(iii) लैंगिक अवस्था- यह अवस्था जननांगों पर बल देती है। चार-पाँच वर्ष को आयु में बच्चे पुरुषों एवं महिलाओं के बीच का भेद अनुभव करने लगते हैं। बच्चे कामुकता के प्रति एवं अपने माता-पिता के बीच काम संबंधों के प्रति जागरूक हो जाते हैं। इसी अवस्था में बालक इडिपस मनोगथि का अनुभव करता है जिसमें अपनी माता के प्रति प्रेम और पिता के प्रति आक्रामकता सन्निहित होती है तथा इसके परिणामस्वरूप पिता द्वारा इंडित या शिश्नलोप किए जाने का भय भी बालक में कार्य करता है। इस अवस्था की एक प्रमुख विकासात्मक उपलब्धि यह है कि बालक अपनी इस मनोगन्धि का समाधान कर लेता है। वह ऐसा अपनी माता के प्रति पिता के संबंधों को स्वीकार करके उसी तरह का व्यवहार करता है।

बलिकाओं में यह इडिपस ग्रंथि थोड़े भिन्न रूप में घटित होती है। बालिकाओं में इसे इलेक्ट्रा मनोनधि कहते हैं। इसे मनोग्रंथि में बालिका अपने पिता को प्रेम करती है और प्रतीकात्मक रूप से उससे विवाह करना चाहती है। जब उसको यह अनुभव होता है कि संभव नहीं है तो वह अपनी माता का अनुकरण कर उसके व्ययकारों को अपनाती है। ऐसा वह अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के लिए करती है। उपयुक्त दोनों मनोषियों के समाधान में क्रांतिक पटक समान लिंग को माता-पिता के साथ तदात्मीकरण स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में, बालक अपनी माता के प्रतिद्वंद्वी की बजाय भूमिका-प्रतिरूप मानने लगते हैं। बालिकाएँ अपने पिता के प्रति लैंगिक इच्छाओं का त्याग कर देती हैं और अपनी माता से तादात्मय स्थापित करती है।

(iv) कामप्रसुप्ति अवस्था-यह अवस्था सात वर्ष की आयु से आरंभ होकर यौवनारंभ तक बनी रहती है। इस अवधि में चालक का विकास शारीरिक दृष्टि से होता रहता है। किन्तु उसकी कामेच्छाएँ सापेक्ष रूप से निष्क्रिय होती हैं। चालक को अधिकांश ऊर्जा सामाजिक अथवा उपलब्धि संबंधी क्रियाओं में व्यय होती है।

(v) जननांगीय अवस्था-इस अवस्था में व्यक्ति मनालीगक विकास में परिपक्वता प्राप्त करता है। पूर्व की अवस्थाओं की कामेच्छाएँ, भय और दमित्त भावनाएँ पुनः अभिव्यक्त होने लगती हैं। लोग इस अवस्था में विपरीत लिंग के सदस्यों से परिपक्व तरीके से सामाजिक और काम संबंधी आचरण करना सीख लेते हैं। यदि इस अवस्था की विकास यात्रा में व्यक्ति को अत्यधिक दवाव अधवा अत्यासक्ति का अनुभव होगा है तो इसके कारण जिकास की किसी आरॊभक अवस्था पर उसका स्थिरणा हो


25. फ्रायड ने मनोगिक विकास को पाँच अबस्थाओं में बाँटा है

(i) मौखिक अवस्था-एक नवजात शिशु की मूल प्रवृत्तियाँ मुख पर केंद्रित होती हैं। यह शिशु का प्राथमिक सुख प्राप्ति का केंद्र होता होता है जिसके माध्यम से शिशु भोजन ग्रहण करता है और अपनी भूख को शान करता है। शिशु मौलिक संतुष्टि भोजन ग्रहण, अंगूठा चूसने, काटने और बलबलान के माध्यम से प्रापा करता है। जन्म के बाद आरंभिक कुछ महीनों की अवधि में शिशुओं में अपने चर्दिक जगत के बारे में आधारभूत अनुभव और भावनाएँ विकसित हो जाती हैं। फ्रायड के अनुसार एक वयस्क जिसके लिए यह संसार कटु अनुभवों से परिपूर्ण है, संभवतः मौखिक अवस्था का उसका विकास कठिनाई से हुआ करता है।

(ii) गुदीय अवस्था- ऐसा पाया गया है कि दो तीन वर्ष की आयु में बच्चा समाज की कुछ मांगों के प्रति अनुक्रिया करना सीखता है। इनमें से एक प्रमुख माँग माता-पिता को पह होती हैं कि बालक सूत्रत्याग एवं मलत्याग जैसे शारीरिक प्रकार्यों को सोखे। अधिकांश बच्चे एक आयु में इन क्रियाओं को करने में आनंद का अनुभव करते हैं। शरीर का गुदीय क्षेत्र कुछ सुखदायक भावनाओं का केंद्र हो जाता है। इस अवस्था में इड और अहं के बीच द्वंद्व का आधार स्थापित हो जाता है। साथ ही शैशवावस्था की सुख की इच्छा एवं वयस्क रूप में नियंत्रित व्यवहार की मांग के बोचे भी दंव का आधार स्थापित हो जाता है।

(iii) लैंगिक अवस्था- यह अवस्था जननांगों पर बल देनी है। चार-पाँच वर्ष की आयु में बच्चे पुरुषों एवं महिलाओं के बीच का भेद अनुभव करने लगते हैं। बच्चे कामुकता के प्रति एवं अपने मात ना के बीच काम संबंधों के प्रति जागरूक हो जाने हैं। इसी अवस्था में बालक इडिपस मनोथि का अनुभव करता है जिसमें अपनी माता के प्रति प्रेम और पिया के प्रति आक्रामकता सन्निहित होती है तथा इसके परिणामस्वरूप पिता द्वारा दंडित या शिश्नलोप किए जाने का भय भी बालक में कार्य करता है। इस अवस्था को एक प्रमुख विकासात्मक उपलब्धि यह है कि बालक अपनी इस मनांगथि का समाधान कर लेता है। वह ऐसा अपनी माता के प्रति पिता के संबंधों को स्वीकार करके उसी तरह का व्यवहार करता है। बलिकाओं में यह इडिपस ग्रंथि थोड़े भिन्न रूप में घटित होती है।

बालिकाओं में इसे इलेक्ट्रा मनोनधि कहते हैं। इसे मनाथ में बालिका अपने पिता को प्रेम करती है और प्रतीकात्मक रूप से उससे विवाह करना चाहती है। जब उसको यह अनुभव होता है कि संभव नहीं है तो वह अपनी माता का अनुकरण कर उसके व्यवहारों को अपनाती है। ऐसा वह अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के लिए करती है। उपर्युक्त दोनों मनोग्रंथियों के समाधान में क्रांतिक घटक समान लिंग के माता पिता के साथ तदात्मीकरण स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में, बालक अपनी माता के प्रतिद्वंदी की बजाय भूमिका-प्रतिरूप मानने लगते हैं। बालिकाएँ अपने पिता के प्रति लैंगिक इच्छाओं का त्याग कर देती हैं और अपनी माता से तादात्मय स्थापित करती है।

(iv) कामप्रसुप्ति अवस्था- यह अवस्था सात वर्ष की आयु से आरंभ होकर यौवनारंभ तक बनी रहती है। इस अवधि में बालक का विकास शारीरिक दृष्टि से होता रहता है। किन्तु उसको कामेच्छाएँ सापेक्ष रूप से निष्क्रिय होती हैं। बालक की अधिकांश ऊर्जा सामाजिक अथवा उपलब्धि संबंधी क्रियाओं में व्यय होती है।

(v) जननांगीय अवस्था- इस अवस्था में व्यक्ति मनोलैंगिक विकास में परिपक्वता प्राप्त करता है। पूर्व की अवस्थाओं को कामेच्छाएँ, भय और दमित भावनाएँ पुनः अभिव्यक्त होने लगती हैं। लोग इस अवस्था में विपरीत लिंग के सदस्यों से परिपक्व तरीके से सामाजिक और काम संबंधी आचरण करना सोख लेते हैं। यदि इस अवस्था की विकास यात्रा में व्यक्ति को अत्यधिक दवाव अथवा अत्यासक्ति का अनुभव होता है तो इसके कारण विकास की किसी आभिक अवस्था पर उसका स्थिरण हो सकता है।


26. अभिवृत्ति मन की एक अवस्था है। किसी विषय के संबंध में विचारों का एक पुंज है जिसमें एक मूल्यांकनपरक विशेषता पाई जाती है अभिवृत्ति कहलाती है।

अभिवृत्ति की चार प्रमुख विशेषताएं हैं कर्षण शक्ति, चरम सीमा, सरलता या जटिलता तथा केन्द्रिकता।

(i) कर्षण शक्ति (सकारात्मक या नकारात्मक)- अभिवृत्ति की कर्षण शक्ति हमें यह बताती है कि अभिवृत्ति विषय के प्रति कोई अभिवृत्ति सकारात्मक है अथवा नकारात्मक। उदाहरण के लिए यदि किसी अभिवृत्ति (जैसे-नाभिकीय शोध के प्रति अभिवृत्ति) को 5 बिन्दु मापनी व्यक्त करता है जिसका प्रसार 1. बहुत खराब, 2 खराब 3. बटस्थ न खराब न अच्छा 4. अच्छा से 5. बहुत अच्छा तक है। यदि कोई व्यक्ति नाभिकीय शोध के प्रति अपने दृष्टिकोण या मत का आकलन इस मापनी या 4 या 5 करता है तो स्पष्ट रूप से यह एक सकारात्मक अभिवृत्ति है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति नाभिकीय शोध के विचार को पसंद करता है तथा सोचता है कि यह कोई अच्छी चीज है। दूसरी ओर यदि आकलित मूल्य 1 या 2 है तो अभिवृत्ति नकारात्मक है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति नाभिकीय शोध के विचार को नापसंद करता है एवं सोचता है कि यह कोई खराब चीज है। हम तटस्थ अभिवृत्तियों को भी स्थान देते हैं। यदि इस उदाहरण में नाभिकीय शोध के प्रति तटस्थ अभिवृत्ति इस मापनी पर अंक 3 के द्वारा प्रदर्शित की जाएगी तब एक तटस्थ अभिवृत्ति में कर्षण शक्ति न तो सकारात्मक होगी न ही नकारात्मक।

(ii) चरम सीमा-एक अभिवृत्ति को चरम सीमा यह इंगित करता है कि अभिवृत्ति किस सीमा तक सकारात्मक या नकारात्मक है। नाभिकीय शोध के उपयुक्त उदाहरण में मापनी मूल्य ‘1’ उसी चरम सीमा का है जितना ‘5’। बस अंतर इतना है कि दोनों ही विपरीत दिशा में है। तटस्थ अभिवृत्ति निःसंदेह न्यूनतम तीव्रता की है।

(iii) सरलता या जटिलता (बहुविधता )- इस विशेषता से तात्पर्य है कि एक व्यापक अभिवृत्ति के अंतर्गत कितनी अभिवृत्तियाँ होती हैं। उस अभिवृत्ति को एक परिवार के रूप में समझना चाहिए जिसमें अनेक ‘सदस्य’ अभिवृत्तियाँ हैं। बहुत से विषयों (जैसे स्वास्थ्य एवं विश्व शाति) के संबंध में लोग एक अभिवृत्ति के स्थान वा अनेक अभिवृत्तियाँ रखते हैं। जब अभिवृत्ति तंत्र में एक या बहुत थोड़ी-सी अभिवृत्तियाँ हों तो उसे ‘सरल’ कहा जाता है और जब वह अनेक अभिवृत्तियों के पाए जाने की संभावना है, जैसे व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का संप्रत्यय, प्रसन्नता एवं कुशल-क्षेम के प्रति उसका दृष्टिकोण एवं व्यक्ति स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता कैसे प्राप्त कर सकता है, इस संबंध में उसका विश्वास एवं माबताएँ आवश्यक हैं। इसके विपरीत, किसी व्यक्ति विशेष के प्रति अभिवृत्ति में मुख्य रूप में एक अभिवृत्ति के पाये जाने की संभावना है। एक अभिवृत्ति तंत्र के घटकों के रूप में नहीं देखना चाहिए। एक अभिवृत्ति तंत्र के प्रत्येक सदस्य अभिवृत्ति में भी संभाव्य या ए- बी. सी. घटक होता है।

(iv) केन्द्रीकृता- यह अभिवृत्ति तंत्र में किसी विशिष्ट अभिवृत्ति को भूमिका को बताता है। गैर-केन्द्रीय या परिभीय अभिवृत्तियों की तुलना में अधिक केन्द्रीकता वाली कोई अभिवृत्ति, अभिवृत्ति तंत्र को अन्य अभिवृत्तियों को अधिक प्रभावित करेगी। उदाहरण के लिए विश्वशांति के प्रति अभिवृत्ति में सैनिक व्यय के प्रति एक नकारात्मक अभिवृनि, एक प्रधान या केन्द्रीय अभिवृद्धि के रूप में हो हो सकती है तो बहु अभिवृत्ति तंत्र की अन्य अभिवृत्तियों को प्रभावित कर सकती है।

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