Bihar Board 12th Model Paper 2022 Pdf download मनोविज्ञान (Psychology) SET-2 Bihar Board Inter Exam 2022

1. जिन व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि 90 से 100 के बीच होती है, उन्हें कहते हैं

(A) जड़
(B) मूढ़
(C) सामान्य
(D) प्रतिभाशाली

Answer ⇒ C

2. फ्रायड के अनुसार ऑडिपस की अवधि में बालक प्रतियोगिता करता है

(A) बहन के साथ
(B) भाई के साथ
(C) माता के साथ
(D) पिता के साथ

Answer ⇒ D

3. निम्नलिखित में से कौन युंग के व्यक्तित्व प्रकार के अंतर्गत समझा जाता है ?

(A) अन्तर्मुखी
(B) गोलाकार
(C) लम्बाकार
(D) आयाताकार

Answer ⇒ A

4. रेवेन प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स किस तरह की बुद्धि परीक्षण है ?

(A) शाब्दिक बुद्धि परीक्षण
(B) अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण
(C) क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer ⇒ B

5. निम्नांकित में कौन बुलिमिया विकार है ?

(A) भोजन विकार
(B) नैतिक विकार
(C) भावात्मक विकार
(D) चरित्र विकार

Answer ⇒ B

6. मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया ?

(A) रोजर्स
(B) आलपोर्ट
(C) फ्रायड
(D) वाटसन

Answer ⇒ C

7. मनोवृत्ति परिवर्तन प्रक्रिया में संतुलन या पी-ओ-एक्स का संप्रत्यय किसने प्रस्तावित किया ?

(A) मुहम्मद सुलैमान
(B) एस० एम० मोहसीन
(C) फ्रिट्ज हाइडर
(D) एब्राहम मैसलो

Answer ⇒ C

8. परिवार एक उदाहरण है

(A) प्राथमिक समूह का
(B) द्वितीयक समूह का
(C) आकस्मिक समूह का
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

9. किसने कहा कि, ‘अमूर्त चिन्तन की योग्यता ही बुद्धि है ?

(A) बिने
(B) टरमन
(C) रेबर
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

10. परामर्श का उद्देश्य होता है

(A) विकासात्मक
(B) निरोधात्मक
(C) उपचारात्मक
(D) इनमें से सभी

Answer ⇒ D

11. आई० सी० डी०- 10 प्रस्तुत किया गया

(A) भारतीय मनोचिकित्सा संघ द्वारा
(B) अमरीकी मनोचिकित्सा संघ द्वारा
(C) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

12. द्वि-ध्रुवीय विकास के दो ध्रुव हैं।

(A) तर्क संगत तथा अतर्क संगत
(B) उन्माद तथा विषाद
(C) स्नायु विकृति तथा मनोविकृति
(D) मनोग्रस्ति तथा बाध्यता

Answer ⇒ B

13. इनमें से कौन मनोविश्लेषण विधि से संबंधित नहीं है ?

(A) मुक्त साहचर्य
(B) क्रमिक विसंवेदीकरण
(C) स्वप्न विश्लेषण
(D) स्थानान्तरण की अवस्था

Answer ⇒ D

14. रैसनल इमोटिव चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया ?

(A) फ्रायड
(B) शेल्डन
(C) कार्ल रोजर्स
(D) अल्वर्ट एलिस

Answer ⇒ B

15. पतंजलि के प्रसिद्ध योग-सूत्र में योग के मार्ग हैं

(A) 4
(B) 6
(C) 8
(D) 9

Answer ⇒ C

16. पूर्वाग्रह एक प्रकार है

(A) मनोवृत्ति का
(B) मूल प्रवृत्ति का
(C) संवेग का
(D) प्रेरणा का

Answer ⇒ A

17. मनोवृत्ति निर्माण के सांस्कृतिक कारक की भूमिका पर बल दिया

(A) बन्डूरा
(B) सुलेमान
(C) मीड एवं बेनेडिक्ट
(D) इन्सको तथा नेलसन

Answer ⇒ B

18. मनोवृत्ति परिवर्तन प्रक्रिया में संज्ञानात्मक बिसंवादिता का संप्रत्यय प्रतिपादित किया

(A) एब्राहम मैसलो ने
(B) फ्रिट्ज हाइडर ने
(C) लियॉन फेस्टिंगर ने
(D) नार्मन टिपलेट ने

Answer ⇒ B

19. ‘संवेगात्मक बुद्धि’ पद का प्रतिपादन किसने किया है ?

(A) गाल्टन
(B) वुड तथा वुड
(C) सैलावे तथा मेयर
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

20. किसने समूह का वर्गीकरण प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह में किया है ?

(A) मैकाइवर
(B) आलपोर्ट
(C) डब्ल्यू० जी० समनर
(D) चार्ल्स कूले

Answer ⇒ A

21. एक सन्दर्भ समूह के लिए सर्वाधिक वांछित अवस्था है

(A) समूह का आकार
(B) समूह का प्रभाव
(C) समूह की सदस्यता
(D) समूह के साथ सम्बद्धता

Answer ⇒ D

22. अंत्योदय का उद्देश्य क्या है ?

(A) धनी व्यक्तियों से गरीबी के लिए धन माँगना
(B) गरीबों को मेडिकल मदद करना
(C) गरीबों की संपन्नता स्तर को बढ़ाना
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

23. निम्नलिखित में कौन मानसिक स्वास्थ्य का आधार है ?

(A) संवेगात्मक स्थिरता
(B) वास्तविक संज्ञान का
(C) व्यक्तिक स्वतंत्रता
(D) तर्कपूर्ण चिंतन

Answer ⇒ D

24 पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिकों ने पर्यावरण संरक्षण के किस माध्यम पर बल दिया है ?

(A) पूर्व व्यवहार अनुबोधक
(B) पश्च व्यवहार पुनर्बलन
(C) पर्यावरणीय शिक्षा
(D) उपर्युक्त सभी

Answer ⇒ D

25. आक्रामकता का कारण कौन नहीं हैं ?

(A) मॉडलिंग
(B) कुंठा
(C) व्यवहार परक औषध
(D) बच्चों का पालन-पोषण

Answer ⇒ A

26. संचार कौशल के लिए कौन-सा कौशल अनिवार्य नहीं है ?

(A) प्रभावी बोलना
(B) प्रभावी ढंग से सुनना
(C) अशाब्दिक संचार
(D) सांवेगिक स्थिरता

Answer ⇒ C

27. संचार कूट संकेतन की विशेषता कौन है ?

(A) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी अनुभूति में परिवर्तन लाता है
(B) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी सांवेगिक उत्तेजना पर नियंत्रण करता है
(C) कूट संकेतन में व्यक्ति अपने विचारों को विशेष अर्थ प्रदान करता है
(D) कूट संकेतन में व्यक्ति अपनी भावनाओं को विकसित करता है

Answer ⇒ D

28. साक्षात्कार का उद्देश्य है

(A) आमने-सामने के सम्पर्क से सूचना प्राप्त करना
(B) परिकल्पनाओं के स्रोत
(C) अंवलोकन के लिए अवसर पाना
(D) इनमें से सभी

Answer ⇒ D

29. एनोरेक्सिया नर्वोसा का विशिष्टता होती है

(A) स्नायुविक दुर्बलता
(B) निद्रा व्याघात
(C) अपर्याप्त भोजन से वजन में कमी
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

30. सहभागी प्रेक्षण का मुख्य गुण है।

(A) स्वाभाविकता
(B) लचीलापन
(C) परिशुद्धता
(D) वस्तुनिष्ठता

Answer ⇒ B

31. निम्नलिखित में किस मात्रक से ध्वनि को मापा जाता है ?

(A) वेल
(B) माइक्रोबेल
(C) डेसिबेल
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

32. निम्न में कौन सामान्य अनुकूलन संलक्षण के चरण है ?

(A) चेतावनी प्रक्रिया
(B) प्रतिरोध
(C) सहनशीलता
(D) प्रत्याहार

Answer ⇒ B

33. मनोवृत्ति परिवर्तन के द्वि-स्तरीय संप्रत्यय का प्रतिपादन किसने किया?

(A) मुहम्मद सुलैमान
(B) ए० के० सिंह
(C) एस० एम० मुहसीन
(D) जे० पी० दास

Answer ⇒ C

34. फ्रायड के अनुसार मन का आकारात्मक मॉडल है

(A) इदम
(B) अहम
(C) अर्द्धचेतन
(D) पराहम

Answer ⇒ D

35. मॉडलिंग प्रविधि का प्रतिपादन किसने किया है ?

(A) जे० बी० वाटसन
(B) लिंडस्ले और स्कीना
(C) बैण्डुरा
(D) साल्टर और वोल्पे

Answer ⇒ B

36. इनमें कौन मानसिक रोगियों का पुनर्वास से संबंधित नहीं है ?

(A) आशिक अस्पताल के रूप में भर्ती
(B) भूतपूर्व रोगियों का क्लब
(C) शारीरिक विकलांग लोगों को पुनर्वास
(D) व्यवसायपरक चिकित्सा

Answer ⇒ C

37. इनमें से कौन मनोविज्ञान विधि से संबंधित नहीं है ?

(A) स्वप्न विश्लेषण
(B) क्रमिक विश्लेषण
(C) मुक्त साहचर्य
(D) स्थानांतरण की अवस्था

Answer ⇒ B

38. सामाजिक प्रभाव के समूह प्रभाव प्रक्रिया में शामिल है

(A) अनुपालन
(B) आंतरिकीकरण
(C) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

39. अंत: समूह एवं बाह्य समूह में वर्गीकरण किया गया है

(A) ऑलपोर्ट द्वारा
(B) चार्ल्स कूले द्वारा
(C) डब्ल्यू० जी० समनर द्वारा
(D) मैकाइवर द्वारा

Answer ⇒ C

40. इनमें से कौन संघर्ष की विशेषता नहीं है ?

(A) चेतन प्रक्रिया
(B) निरंतर एवं अस्थिर प्रक्रियाएँ
(C) सार्वभौमिक प्रक्रिया
(D) भेदभाव एवं सामाजिक दूरियाँ

Answer ⇒ D

41. अनौपचारिक समूह की इसमें से कौन-सी विशेषता है ?

(A) हम की भावना
(B) छोटा आकार
(C) समूह सदस्यों के बीच घनिष्ठ संबंध
(D) खास नियम के अन्तर्गत कार्य करना

Answer ⇒ D

42. नॉर्मन ट्रिपलेन का अध्ययन सम्बन्धित है।

(A) सामाजिक श्रमावनयन से
(B) सामाजिक सुकरीकरण से
(C) परोपकारिता से
(D) सामाजिक संघर्ष से

Answer ⇒ A

43. संवेगात्मक बुद्धि के तत्वों में निम्नलिखित में से किसे नहीं रखा जा सकता है ?

(A) अपने संवेगों की सही जानकारी रखना
(B) स्वयं को प्रेरित करना
(C) दूसरे को धमकी देना
(D) दूसरे के संवेगों को पहचानना

Answer ⇒ C

44. तनाव उत्पन्न करने वाले कारक हैं

(A) प्रतिगमन
(B) प्रतिबल
(C) प्रत्याहार
(D) अनुकरण

Answer ⇒ B

45. आक्रमण के कारण कौन नहीं है ?

(A) शरीर क्रियात्मक तर्क
(B) सहज प्रवृत्ति
(C) तादात्मीकरण
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

46. लक्ष्य प्राप्ति में बाधा और आवश्यकताओं एवं अभिप्रेरकों के अवरुद्ध होने से उत्पन्न होता है ?

(A) आन्तरिक दबाव
(B) कुंठा
(C) द्वन्द्व
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

47. आद्यानुकूलन के नियम प्रयुक्त होते हैं

(A) लोगो चिकित्सा में
(B) व्यवहार चिकित्सा में
(C) मनोगत्यात्मक चिकित्सा में
(D) रोगी केन्द्रित चिकित्सा में

Answer ⇒ B

48. पारस्परिकता अवरोध का नियम का आधार होता है

(A) टोकेन इकोनोमी
(B) मॉडलिंग
(C) क्रमबद्ध असंवेदीकरण
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

49. योग में सम्मिलित होता है

(A) ध्यान
(B) मुद्रा
(C) नियम
(D) ज्ञान

Answer ⇒ A

50. व्यवहार चिकित्सा की वह प्रविधि जिसमें वास्तविक परिस्थिति में रोगी काफी मात्रा में चिन्ता उत्पन्न कर दी जाती है, उसे कहा जाता है

(A) फ्लडिंग
(B) वैकल्पिक चिकित्सा
(C) जैव आयुर्विज्ञान चिकित्सा
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

51. गेस्टाल्ट चिकित्सा इस तथ्य पर बल देता है।

(A) रोगी क्यों किसी खास ढंग से व्यवहार कर रहा है ।
(B) रोगी के वर्तमान भाव क्या है
(C) रोगी किस तरह से व्यवहार कर रहा है।
(D) ‘B’ तथा ‘C’ दोनों पहलुओं को समझना

Answer ⇒ D

52. यदि एक क्रिश्चन अपने हिन्दू मित्र का अभिवादन दोनों हाथों को जोड़ कर करता है तो वह ऐसा किस समूह के प्रभाव के अन्तर्गत करता है ?

(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) संदर्भ
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ C

53. दो व्यक्तियों के समूह को किस समूह के अन्तर्गत रखा जा सकता है ?

(A) संगठित समूह
(B) द्वितीयक समूह
(C) अस्थायी समूह
(D) प्राथमिक समूह

Answer ⇒ D

54. परिवार समूह है

(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) संदर्भ
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ A

55. समूह संरचना संबंधित नहीं है

(A) नेतृत्व
(B) समूह का आकार
(C) समूह लक्ष्य
(D) संचरण का माध्यम

Answer ⇒ A

56. समूह को प्राथमिक तथा द्वितीयक समूहों में विभाजित किया

(A) मीड ने
(B) कूले ने
(C) मैकाइवर ने
(D) डब्ल्यू० जी० समनर ने

Answer ⇒ B

57. समूह ध्रुवीकरण के सम्प्रत्यय का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया है ?

(A) फेशनर तथा म्यूलर
(B) क्रेशमन एवं शेल्डन
(C) मोसकोविसी एवं फ्रेजर
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ D

58. अल्बर्ट एलिस ने निम्न में किस चिकित्सा विधि का प्रतिपादन किया

(A) संज्ञानात्मक चिकित्सा
(B) व्यवहार चिकित्सा
(C) अस्तित्वात्मक
(D) इनमें से सभी

Answer ⇒ A

59. किसने व्यक्ति को पूर्णरूप से कार्यशील व्यक्ति माना है ?

(A) कार्ल रोजर्स
(B) मास्लो
(C) कार्ल युंग
(D) एरिक फ्रॉम

Answer ⇒ A

60. सामान्य अनुकूलन संलक्षण में कितनी अवस्थाएँ पाई जाती हैं ?

(A) तीन
(B) दो
(C) चार
(D) पाँच

Answer ⇒ A

61. आज्ञापालन सामाजिक प्रभाव का कौन-सा रूप है ?

(A) अप्रत्यक्ष रूप
(B) प्रत्यक्ष रूप
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

62. विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है ?

(A) 5 अप्रैल
(B) 5 मई
(C) 5 जून
(D) 5 जुलाई

Answer ⇒ C

63. किस मनोवैज्ञानिक ने समूह के पाँच अनुक्रमों को बताया था ?

(A) टकमैन
(B) इरविंग जेनिस
(C) जेनिस
(D) ऐश

Answer ⇒ A

64. निम्नलिखित में से कौन शेल्डन के व्यक्तित्व प्रकार के अन्तर्गत समझा जाता है ?

(A) अन्तमुर्खा
(B) बहिर्मुखी
(C) गोलाकार
(D) उभयमुखी

Answer ⇒ A

65. प्राथमिक मानसिक योग्यता का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया ? .

(A) लिकर्ट
(B) गिलफोर्ड
(C) थर्स्टन
(D) गार्डनर

Answer ⇒ D

66. रोकि परीक्षण है

(A) बुद्धि परीक्षण
(B) अभिक्षमता परीक्षण
(C) प्रक्षेपी परीक्षण
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

67. एडलर के मनोविज्ञान को कहा जाता है ।

(A) गत्यात्मक मनोविज्ञान
(B) वैयक्तिक मनोविज्ञान
(C) मानवतावादी मनोविज्ञान
(D) विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान

Answer ⇒ C

68. सेवार्थी केन्द्रित चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया ?

(A) मोस्ले
(B) रोजर्स
(C) फ्रायड
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

69. बुद्धि संरचना मॉडल किसने विकसित किया ?

(A) गार्डनर
(B) गिलफोर्ड
(C) जेनसन
(D) इनमें से कोई नहीं

Answer ⇒ B

70. निम्नलिखित में किसे मनोविज्ञान में मूल्यांकन विधि के यंत्र के रूप में नहीं समझा जाता है ?

(A) मनोवैज्ञानिक परीक्षण
(B) केस अध्ययन
(C) मनोचिकित्सा
(D) साक्षात्कार

Answer ⇒ B

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 20 तक लघु उत्तरीय हैं। इनमें से किन्हीं 10 प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। प्रत्येक उत्तर के लि शब्द सीमा 30-40 शब्द है।

1. बुद्धि परीक्षण की उपयोगिताओं का वर्णन करें।
2. परामर्श का अर्थ लिखें।
3. अंतरसमूह प्रतिस्पर्धा से आप क्या समझते हैं ?
4. उत्तरदायित्व के बिखराव से आप क्या समझते हैं ?
5.मानवतावादी अनुभावात्मक चिकित्सा क्या है ?
6. मनोवृत्ति निर्माण के मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन करें।
7. द्वितीयक समूह की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
8. योग के आठ अंग कौन-कौन से है ?
9. एक प्रभावशाली परामर्शदाता की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन करें।
10. समूह हमारे व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं ?
11. औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह में विभेद करें।
12. द्वन्द्व एवं कुंठा का प्रतिबल के स्रोत के रूप में वर्णन करें।
13. प्रतिबल को दूर करने के तीन उपायों का वर्णन करें।
14. हरितगृह के प्रभावों का वर्णन संक्षेप में करें।
15. तनाव के किन्हीं दो प्रमुख स्रोतों का वर्णन करें।
16. असामान्य व्यवहार किन्ही दो मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन करें।
17. व्यक्तित्व को परिभाषित करें।
18. सामूहिक अचेतन का अर्थ बताइए।
19. बुद्धि और अभिक्षमता में भेद स्पष्ट कीजिए।
20. निष्पादन बुद्धि-परीक्षण क्या है ? वर्णन करें।


1. बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि की माप की जाती है। इसका प्रमुख उपयोग निम्न क्षेत्रों में किया जाता है-

(i) शिक्षा के क्षेत्र में- बुद्धि परीक्षण का उपयोग शिक्षण संस्थाओं में अधिक होता है। इस परीक्षण से शिक्षक पता लगा लेते हैं कि वर्ग में कितने तेज बुद्धि के, कितने औसत बुद्धि के और कितने छात्र मंद बुद्धि के छात्र हैं, जिससे पाठ्य सामग्री तैयार करने में आसानी होती है।

(ii) बाल निर्देशन में- बुद्धि परीक्षण द्वारा बच्चों की बुद्धि मापकर उसी के अनुरूप उन्हें मार्ग निर्देशित किया जाता है। अधिक बुद्धि के बच्चों के साथ कम बुद्धि वाले बच्चे सही ढंग से समायोजन नहीं कर पाते हैं और वे मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं।

(ii) मानसिक दुर्बलता की पहचान में- मानसिक रूप से दुर्बल बच्चे समाज या राष्ट्र पर बोझ होते हैं। बुद्धि परीक्षण द्वारा ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर ली जाती है।

(iv) व्यावसायिक निर्देशन में- बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि मापकर बच्चों एवं किशोरों की बुद्धि के अनुकूल व्यवसाय में जाने का निर्देश दिया जाता है। तब उसमें मानसिक संतोष अधिक होता है। कार्य में सफलता मिलती है।


2. परामर्श एक प्राचीन शब्द है। फलतः इसके अनेक कार्य बताए गए हैं।

वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार, “परामर्श का अर्थ पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक विनिमय है।” रॉबिन्सन ने परामर्श की अत्यन्त स्पष्ट परिभाषा देते हुए कहा कि परामर्श में वे सभी परिस्थितियाँ सम्मिलित कर ली जाती हैं, जिनसे परामर्श प्रार्थी अपने आपको पर्यावरण के अनुसार समायोजित करने में सहायता प्राप्त कर सके। परामर्श दो व्यक्तियों से संबंध रखता है-परामर्शदाता तथा परामर्श प्रार्थी। परामर्श प्रार्थी की कुछ समस्याएँ तथा आवश्यकताएँ होती हैं जिनको वह अकेला बिना किसी की राय या सुझाव के द्वारा नहीं कर सकता है। इन समस्याओं के समाधान तथा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे वैज्ञानिक राय की आवश्यकता होती है और यह वैज्ञानिक राय या सुझाव हीपरामर्श कहलाता है।


3. अंतर समूह प्रतिस्पर्धा एक महान समाज मनोवैज्ञानिक शेरिफ के प्रयोग का तीसरी अवस्था है जिसमें प्रतियोगिता के दोनों समूह को कुछ ऐसी परिस्थितियों में रखा गया जहाँ वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके। जैसे-खेल-कूद में दोनों समूह को एक-दूसरे के विरोध में रखा गया। इस प्रतिस्पर्धा में से दोनों समूहों में एक-दूसरे के प्रति काफी तनाव (tension) तथा विद्वेष (hostility) आदि उत्पन्न हो गई। यहाँ तक कि एक समूह के सदस्य दूसरे सदस्य को गाली भी देने लगे थे।


4. उत्तरदायित्व का विखराव- जब व्यक्ति अकेले रहता है तो उसमें परोपकारिता का भाव अधिक देखा जाता है और उसमें जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने की प्रवृत्ति एवं संभावना अधिक रहती है। परंतु इसके विपरीत जब एक से ज्यादा व्यक्ति रहते हैं तो उपरोक्त व्यवहार व्यक्ति में बहुत कम देखा जाता है। हर व्यक्ति यह सोचता है कि यह काम करना सिर्फ मेरी नहीं वरन् साने की जिम्मेवारी है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि सभी का दायित्व समान मात्रा में होता है किसी अकेले का नहीं होता है। इस परिस्थिति में उत्तरदायित्व का बिखराव देखने को मिलता है।


5. मानवतावादी अनुभवात्पक चिकित्सा की धारणा है कि मनुष्य की समस्याएँ अस्तित्व से जुड़ी होती हैं। प्रत्येक मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि पाना चाहता है। आत्मसिद्धि व्यक्ति को अधिक जटिल, संतुलित और समाकलित होने के लिए प्रेरित करती है। आत्मसिद्धि के लिए संवेगों की मुक्तअभिव्यक्ति आवश्यक है। पर समाज और परिवार संवेगों को उस मुक्त अभिव्यक्ति को नियात्रा करते हैं। क्योंकि उन्हें डर होता है कि संवेगों की मुक्त अभिव्यनित से परिवार और समाज को हानि पहुँच सकती है। यह नियंत्रण सांगिक समाकरणान की प्रक्रिया को निष्फल करके मनोविकृत व्यवहारात्मक एवं नकारात्मक संवेगों को जन्म देती है। इसलिए इसकी चिकित्सा में चिकित्सक का मुख्य काम रोगी की जागरूकता को बढ़ाता है। चिकित्सक एक अतिनिर्णयात्मक, स्वीकृतिपूर्ण विातावरण तैयार करता है तानि रोगी अपने संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति कर सके तथा जटिलता, संतुलन एवं समाकलन प्राप्त कर सके। चिकित्सा की सफलता के लिए रोगी स्वयं उत्तरदायी होता है। चिकित्सक का काम केबल मार्गदर्शन करते हुए रोगियों के प्रयास को सरल बनाना है।

मनोवृत्ति निर्माण के मनोवैज्ञानिक कारक निम्नलिखित हैं-

(i) परिवार एवं विद्यालय का परिवेश- विशेष रूप से जीवन के आरंभिक वर्षों में अभिवृत्ति निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में विद्यालय का परिवेश मनोवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्त्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है।

(ii) संदर्भ समूह- संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। अतः ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दश्रते हैं।

(iii) व्यक्तिगत अनुभव- अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण प्रत्यय व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है जो लोगों के तथा स्वयं के जीवन के प्रति हमारी मनोवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है।


7. द्वितीयक समूह के सदस्यों को संख्या बहुत अधिक होती है। अतः इसका आकार बतुन बड़ा होता है। लिण्डग्रेन ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है,

द्वितीयक समूह अधिक अवैयक्तिक होता है तथा सदस्यों के यीच औपचारिक संबंध होता है “

द्वितीयक समूह के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) द्वितीयक समूह में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है।
(ii) इसके सदस्यों में आपस में घनिष्ठ संबंध नहीं होता है।
(iii) प्राथमिक समूह की तुलना में यह कम टिकाऊ होता है।
(iv) समूह के सदस्यों के बीच एकता का अभाव होता है।
(v) इसके सदस्यों में ‘मैं’ का भाव अधिक होता है।
(vi) इसके सदस्य कभी-कभी आमने-सामने होते हैं।


8. पतंजलि ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक योग सूत्र में अष्टांग मार्ग विस्तृत रूप से बताया है, जो निम्न है-

(i) यम, (ii) नियम, (ii) आसन, (iv) प्राणायाम, (v) प्रत्याहार, (vi) धारणा,
(vii) ध्यान, (viil) समाधि।


9. एक परामर्शदाता की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) प्रामाणिकता- प्रामाणिकता का अर्थ है कि आपके व्यवहार की अभिव्यक्ति आपके मूल्यों, भावनाओं एवं आंतरिक आत्मबिंद के साथ संगत होती है।

(ii) दूसरे के प्रति सकारात्मक आदर- एक उपयोध्य परामर्शदाता संबंध में एक अच्छा संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करता है।


10. समूह एवं व्यक्ति हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह प्रभाव हम लोगों को अपने व्यवहार को एक विशिष्ट दिशा में परिवर्तित करने के लिए बाध्य कर सकता है। सामाजिक प्रभाव उन प्रक्रमों को इंगित करता है जिसके द्वारा हमारे व्यकार एवं अभिवृत्तियाँ दूसरे लोगों को काल्पनिक वा वास्तविक उपस्थिति से प्रभावित होते हैं। दिन भर में हम अनेक ऐसी स्थितियों का सामना कर सकते हैं जिसमें दूसरों ने हमें प्रभावित करने का प्रयास किया हो और हमें उस तरीके से सोचने का विवश किया हो जैसा वे चाहते हैं। माता-पिता, अभ्यापक, मित्र, रेडियो तथा टेलीविजन करते हैं। सामाजिक प्रभाव हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। कुछ स्थितियों का सामना कर सकते हैं जिसमें दूसरों ने हमें प्रभाषित करने का प्रयास किया हो और हमें उस तरीके से सोचने को विवश किया हो जैसे वे चाहते हैं। कुछ स्थितियों में लोगों पर सामाजिक प्रभाव बहुत अधिक प्रबल होता है जिसके परिणामस्वरूप हम लोग उस प्रकार के कार्य कसे की ओर प्रवृत्त होते हैं जो हम दूसरी स्थितियों में नहीं करते। दूसरे अवसरों पर हम दूसरे लोगों के प्रभाव को नकारने में समर्थ होते हैं और वहाँ तक कि हम उन लोगों का अपने विचार या दृष्टिकोण को अपनाने के लिए अपना प्रभाव डालते हैं।


11. औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह उस मात्रा में भिन्न होते हैं जिस मात्रा में समूह के प्रकार्य समष्ट एवं औपचारिक रूप से घोषित किए जाते हैं। एक औपचारिक समूह जैसे किसी कार्यालय संगठन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित किए जाते हैं। एक औपचारिक समूह, जैसे किसी कार्यालय संगठन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित होती हैं। समूह के सदस्यों द्वारा नियादित की जाने वाली भूमिकाएं स्पष्ट रूप से घोषित होती हैं।

औपचारिक तथा अनौपचारिक समूह संरचना के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न होते है। औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों को सुनिश्चित भूमिकाएँ होती हैं।

औपचारिक समूह में मानकों का एक समुच्चय होता है जो व्यवस्था स्थापित करने में सहायक होता है। कोई भी विश्वविद्यालय एक औपचारिक समूह का उदाहरमा है। दूसरी तरफा अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों या विधि पर आधारित नहीं होता है और इस समूह के सदस्यों में घनिष्ठ संबंध होता है।


12. द्वन्द्व-इन्द्र एक ऐसा प्रक्रम है जिसमें एक व्यक्ति या समूह यह प्रत्यक्षण करते हैं कि दूसरे उनके विरोधी हितों को रखते हैं और दोनों पक्ष एक-दूसरे का खंडन करने का प्रयास करते रहते है। द्वन्द्व सभी समाज में घटित होते हैं।

कुंठा- जब व्यक्ति अपने लक्ष्य पर नहीं पहुंचता है तो इससे उसमें कुंठा उत्पन्न होता इस कुंठा से यह वाधक स्रोत के प्रति आक्रामकता दिखलाता है परंतु जब बाधक सात व्यक्ति से अधिक सबल एवं मजबूत होता है वो यह अपनी आक्रामकता तथा वैर-भाव एक कमजोर स्रोत की ओर विस्थापित कर देता है तथा तरह-तरह के पूर्वाग्रहित व्यवहार करने लगता है।


13. दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने को उपायों के उपयोग में व्यक्ति भिन्नताएँ देखी जाती हैं। एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित प्रतिबल को दूर करने के तीन उपाय निम्नलिखित हैं-

1. कल्य अभिविन्यस्त युक्ति- दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं क्या उनके संभावित परिणाम ल्या हो सकते हैं? यह सब इसके अंतर्गत आते है।

2. संवेग अभिविन्यस्त युक्ति- इसके अंतर्गत मत में आभा बनाये रखने के प्रभाय तथा अपने संबंगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं।
3. परिहार अभिविन्यस्त युक्ति- इसके अंतर्गत स्थिति को गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं।


14. जलबायु में होने वाले ऐसे परिवर्तन को ही ‘हरित गृह प्रभाव’ (Green house efficet) कहते हरित गृह में एक शीशे की छत होती है। जो सूर्य के प्रकाश को अंदर आने देती है। गर्वाक गर्म हवा को अंदर आने से रोकती है। इसी तरह वायुमंडल से निकलने वाली चीन गैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्स ऑस्साइड सूर्य की गर्मी को अपनी ओर खीचती हैं तथा संपूर्ण पृथ्वी को एक विस्तृत हरित गृह में तब्दील कर देती हैं। इन गैसों के स्तर में वृद्धि का सिलसिला 18वीं सदी से प्रारंभ होकर अभी तक अनवरत जारी है। बृद्धि को यह रफ्तार यदि इसी दंग से जारी रही, तो अनुमान है कि वर्ष 2100 तक (यानी आने वाले 92 वर्षों तक) पृथ्यौ तल पर वायु का तापमान 3.5 डिग्री फारेनहाइट से काफी बढ़ जाएगा। केबल एक या दो दिनों की बढ़ोत्तरी पर वायुमंडल में परिवर्तन हो सकता है तथा पूरे विश्व को कृषि बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इसके कारण ध्रुवीय बर्फ के पहाड़ पिघल सकते हैं और समुद्र तल के जलस्तर में वृद्धि हो सकती है। फलस्वरूप तटवर्ती इलाके में बाढ़ आ सकती है।


15. उन घटनाओं तथा दशाओं का प्रसार अत्यधिक विस्तृत है जो दवाव का पैदा करती है। इनमें से अत्यधिक महत्वपूर्ण जीवन में घटित होने वाली ये प्रमुख दबावपूर्ण घटनाएँ हैं, जैसे किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु या व्यक्तिगत चोट, खाँझ पैदा करने वाली दैनिक जीवन की परेशानियाँ, जो बेहद आवृत्ति के साथ घटित होती हैं तथा हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली कुछ अभिघातज घटनाएँ।

(i) जीवन घटनाएँ (Life incidents)-जब शिशु पैदा होता है, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक पैदा होने वाले और धीरे-धीरे घटने वाले परिवर्तन शिशु के जीवन को प्रभावित करते रहते हैं। प्राय: इस छोटे तथा रोज होने वाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं लेकिन जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ दयावपूर्ण हो सकती हैं क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को अवरुद्ध करती है और हमारे जीवन में उथल-पुथल मचा देती है। चाहे योजनाबद्ध घटनाएँ ही क्यों न हों (जैसे-भर बदलकर नए घर में जाना), जो पूर्वानुमानित न हो (जैसे-किसी दीर्घकालिक सम्बन्ध का टूट जाना) कम समयावधि में घटी हाँ, तो हमें उनका सामना करने में अत्यधिक परेशानी होती है।

(ii) परेशान करने वाली घटनाएँ (Diticult incidents)- ऐसे दवावों की प्रकृति व्यक्तिगत होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। रोज का आना जाना, कोलाहलपूर्ण परिवेश, बिजली-पानी को कमी, यातायात को भीड़-भाड़, झगड़ालू पड़ोसी आदि कष्ट देने वाली घटनाएँ हैं। एक गृहणी को भी विभिन्न ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता है। कुछ व्यवसायों में कुछ ऐसी परेशान करने वाली घटनाओं का सामना निरंतर करना पड़ता है। कभी-कभी कुछ ऐसी ही परेशानियों का अधिक तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति को भुगतना पड़ता है जो घटनाओं का सामना अकेले करता है क्योंकि बाहरी अन्य व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी भी नहीं होती। गो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दवाव महसूस करता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-दोम निम्न स्तर का होता है।


16. असामान्य व्यवहार के दो मनोवैज्ञानिक कारक निम्नलिखित हैं-

(i) व्यक्तिगत अपरिपक्वता- असामान्य व्यक्ति का व्यवहार उसकी शिक्षा, आयु एवं सामाजिक स्थिति के अनुसार न होकर कुछ निम्न स्तर का रहता है। उसकी संवेगात्मक अनुभूति तथा अभिव्यक्ति उद्दीपक स्थिति के अनुसार नहीं रहा करती है। उसकी क्रियाएँ क्षणिक आवेगों से ही प्रभावित हो जाती हैं।
(ii) असुरक्षा की भावना- असामान्य व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित अनुभवं करता है। वह जीवन की सामान्य स्थितियों, कठिनाइयों एवं दायित्वों के पालन में अपने आपको उपयुक्त नहीं समझता है। उसमें आत्म विश्वास की कमी रहा करती है।


17. व्यक्तित्व का हात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। पनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तिल से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है। लोग सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते है कि वे किस तरीके के विभिन स्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। कुछ सूचक शब्दों (जैसे शर्मीला, संवेदनशील, शांत, गंभीर, स्फूर्त आदि) का उपयोग प्राय: व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये शब्द व्यक्तित्व के विभिन्न घटकों को सँगत करते हैं। इस अर्थ में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार की विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तित्व व्यक्तियों की उन विशेषताओं को भी कहते हैं जो अधिकांश परिस्थितियों में प्रकट होती हैं।


18. सामूहिक अचेतन कार्ल युग (Carl Jung) द्वारा प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। सामूहिक अचेतन में पूरे मानव जाति की अनुभूतियाँ जो हमलोगों में से प्रत्येक को अपने पूर्वजों से प्राप्त होता है, संचित होती है। ऐसी अनुभूतियाँ आदिरूप (arche types) के रूप में साँचत होती है। सूर्य को देवता मानकर पूजा करने का विचार हमें अपने पूर्वणों से ही प्राप्त हुआ है जो सामूहिक अचेतन का एक उदाहरण है।


19. (i) बुद्धि- बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी जंग से
उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की व्यापक सामान्य संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यतया कम बुद्धि रखनेवाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा निष्पादन करने की संभावना नहीं रखा परन्तु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता।

(ii) अभिक्षमता- अभिक्षमता का अर्थ किसी व्यक्ति को कौशलों के अर्जन के लिए अंतर्निहित संभाव्यता से है। अभिक्षमता परीक्षणों का उपयोग यह पूर्वकथन करने में किया जाता है कि व्यक्ति उपयुक्त पर्यावरण और प्रशिक्षण प्रदान करने पर कैसा निष्पादन कर सकेगा। एक उच्च यांत्रिक अभिक्षमता वाला व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाकर एक अभियंता के रूप में अच्छा कार्य कर सकता है। इसी प्रकार भाषा की उच्च अभिक्षमता वाले एक व्यक्ति
को प्रशिक्षण देकर एक अच्छा लेखक बनाया जा सकता है।


20. निष्पादन वृद्धि-परीक्षण में परीक्षार्थों को कोई कार्य सम्पादित करने के लिए कुछ वस्तुओं या अन्य सामग्रियों का प्रहस्तन करना होता है। एकांश का उत्तर देने के लिए लिखित भाषा के उपयोग की आवश्यकता नहीं होता। उदाहरणार्थ, कोह के ब्लॉक डिजाइन परीक्षण में लकड़ी के कई घनाकार गुटके होतेहैं। परीक्षार्थी को दिए गए समय के अन्तर्गत गुटकों को इस प्रकार निछाना होता है कि उनसे दिया गया डिजाइन बन जाए। निष्पादन परीक्षणों का एक लाभ यह भी है कि उन्हें भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों को आसानी से दिया जा सकता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 21 से 26 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इस कोटि के प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित हैं। किन्हीं 3 प्रश्नों का उत्तर दें। प्रत्येक उत्तर के लिए शब्द सीमा 80 से 100 शब्द है।

21. व्यक्तित्व के आकारात्मक मॉडल से आप क्या समझते हैं ? व्याख्या करें।
22. आक्रमण एवं हिंसा के कारण या निर्धारकों का वर्णन करें।
23. निर्धनता को दूर करने के उपायों का सुझाव दें।
24. मनोगत्यात्मक चिकित्सा क्या है ? इसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करें।
25. पूर्वधारणा को दूर करने की किन्हीं तीन विधियों का वर्णन करें।
26. साक्षात्कार कौशल क्या है ? इसके चरणों का वर्णन करें।


21. व्यक्तित्व के आकारात्मक मॉडल के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड हैं। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्व तीन हैं-इदम् या इड (id), अहं (ego) और पराहम (super ego)l ये तत्व अचेतन में ऊर्जा के रूप में होते हैं और इनके बारे में लोगों द्वारा किए गए व्यवहार के तरीकों से अनुमान लगाया जा सकता है।

(i) इड- यह व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का स्रोत होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। यह सुखेसा सिद्धांत पर कार्य करता है जिसका यह अभिग्रह होता है कि लोग सुख की तलाश करते हैं और कष्ट का परिहार करते हैं। फ्रायड के अनुसार मनुष्य को अधिकांश मूलप्रवृतिक ऊर्जा कामुक होगी है और शेष ऊर्जा आक्रामक होती है। इड को नैतिक मूल्यों, समाज और दूसरे लोगों की कोई परवाह नहीं होती है।

(ii) अहं- इसका विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूलप्रवृत्तिक आवश्यकताओं को संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। व्यक्तित्व की यह संरचना वास्तविकता सिद्धांत संचारित होती है और प्रायः इट को व्यवहार करने के उपयुक्त तरीकों की तरफ निर्दिष्ट करता है। उदाहरण के लिए एक बालक का इड गो आइसक्रीम खाना चाहता है उससे कहता है कि आइसक्रीम झटक कर खा ले। उसका अहं उससं कहता है कि दुकानदार से पूछे बिना यदि आइसक्रीम लेकर वह खा लेता है तो वह दण्ड का भागी हो सकता है। वास्तविकता सिद्धांत पर कार्य करते हुए बालक जानता है कि अनुमति लेने के बाद ही आइसक्रीम खाने की इच्छा को संतुष्ट करना सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस प्रकार इड की माँग अवास्तविक और सुखेप्सा सिद्धांत से संचालित होती है, अहं धैर्यवान, तर्कसंगत तथा वास्तविकता सिद्धांत से संचालित होता है।

(iii) पराहम्- पराहम् को समझने का और इसको विशेषता बनाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसको मानसिक प्रकार्यों की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाए। पराहम् इष्ट और अहं को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक  नहीं। समाधीहै अथवाकरण की प्रक्रिया में पैतृक प्राधिकार के आंतरिकोकरणं द्वारा पराहम् इड को नियनित करने में सहायता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बालक आइसक्रीम देखकर उसे खाना चाहता है, तो वह इसके लिए अपनी माँ से पूछता है। उसका पराकम् संकेत देता हैं कि उसका यह व्यवहार नैतिक दृष्टि से सही है।इस तरह की व्यवासर के माध्यम से आइसक्रीम को प्राप्त करने पर बालक में कोई अपराध बोध, भय अथवा पुश्चिता नहीं होगी।

इस प्रकार व्यक्ति के प्रकार्यों ले रूप में फ्रायड का विचार था कि मनुष्य का अचेतन मन तीन प्रतिस्पर्दा शक्तियों अथवा ऊर्जा से निमित हुआ है। इड, आहे और पराहम की सापेक्षा शक्ति प्रत्येक व्यक्ति की स्थिरता का निर्धारण करती है।


22. असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत मनुष्य के असामान्य व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें आक्रमण एवं हिंसा की अवधारणा पर भी विचार किया जाता है। जब किसी लत्य या वसा को प्राप्त करने के लिए हिंसा को अपनाया जाता है तो उसे आक्रमण कहा जाता है। आक्रमण के निम्नलिखित कारण –

(i) सहज प्रवृत्ति- आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है सहज (अंतजाँत) होती है। जैविक रूप से यह सहज प्रवृत्ति आत्मरक्षा हेतु हो सकती है।

(ii) शरीर क्रियात्मक तंत्र- शरीर-क्रियात्पक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामकताजनिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती है, शरीर-क्रियात्मक भाव प्रचोपन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्रायः आक्रमण के रूपगं अभिव्यक्त हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आई मौसम में।

(ii) बाल- पोषण- किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्राय: उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा चिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते है। ऐसा संभवत: इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अनसन बना दें और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वा इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

(iv) कुंठा- आक्रामण कुंटा को अभिव्ययिता तथा परिणाम हो सकते है, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति हो तब उत्पन्न होती है जाब व्यक्ति को किसी लय तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु विसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यजित किती लक्ष्व के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से पाँचत रह सकता है। यह पाया गया है कि कृतित स्थितियों में नो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों को अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो काँठत नहीं होते। कुंटा के प्रभाव की जांच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बयों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पदं (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप ये बच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन्हें खिलाने उपलब्ध थे, सोल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।


23. निर्धनता को दूर करने के उपाय निम्नलिखित हैं

(i) कृषि तथा उद्योग में अधिक- से-अधिक रोजगार उत्पन्न करना- यदि देश के उद्योग-धन्ध तथा कृषि पर अधिक बल दिया जाता है तो अधिक रोजगारके साधन उपलब्ध होने से बेरोजगारी समाप्त होगी, व्यकिायों की आय बढ़ेगी और निर्धनता पर नियंत्रण होगा। इसके लिए सरकार को सकारात्मक उपाय करने चाहिए।

(i) जनसंख्या नियंत्रण- निर्धनता कम करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण करना आवश्यक है। जनसंख्या वृद्धि से विकास का परिणाम लुप्त हो जाता है तथा निर्धनता बढ़ती है। अत: जनसंख्या को नियंत्रित करने से विकासात्मक उपायों से आय बढ़ेगी।

(iil) काले धन को समाप्त करना- काला धन चोरी करके छुपाई गई आय है जिस पर कर अदा नहीं किया जाता है। यह धन प्रष्ट कयाँ में लगाया जाता है। इससे आर्थिक शोषण बढ़ता है तथा निर्धनता बढ़ती है। अतः निर्धनता को कम करने के लिए काले धन को बाहर निकाला जाना चाहिए।

(iv) वितरणात्मक न्याय- विकास को प्राप्त होने वाले लाभ का यथोचित वितरण होना चाहिए। विकास के लाभ निर्धनों तक पहुँचना चाहिए। धनी व्यक्तियों पर कर (tax) का भार डालकर निर्धनों पर खर्च किया जाना चाहिए।

(v) योजना का विकेन्द्रीकरण तथा कार्यान्वन- सरकार द्वारा गरीबों को भलाई के लिए चलाई गई योजनाओं का विकेन्द्रीकरण नहीं होगा तब तक ग्राम पंचायतों द्वारा निर्धन व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकेगी तथा इन योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुँचेगा।

(vi) मनुष्य भूमि स्वामित्व- भू-स्वामो अपनी जमीन को जीतने के लिए गरीबों को देकर उपज का पर्याप्त भाग अपने पास रख लेते अत: जो जमीन को जोते स्वामित्व उसी का होने से यह शोषण नहीं हो पाएगा।

(vii) विभिन्न उपाय- ऋणदायी संस्थाओं में कम दरों पर ऋण देना, पंचायती राण संस्थाओं को मजबूत करना, युवकों को रोजगार करने योग्य बनाना, आदि उपाय भी सहायक हैं।


24. मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन सिगमंड फ्रायड द्वारा किया गया। मनोगत्यात्मक चिकित्सा ने मानस की संरचना, मानस के विभिन्न घटकों के मध्य गतिको और मनोवैज्ञानिक कष्ट के स्रोतों का संप्रत्ययीकरण किया है। यह उपागम अत: मनोदंद्र का मनोवैज्ञानिक विकारों का मुख्य कारण समझता है। अतः, उपचार में पहला चरण उसो अन्त इन्द्र को बाहर निकालना है। मनोविश्लेषण ने अंत:द्वंद्र को बाहर निकालने के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधियों मुक्त साहचर्य विधि तथा स्वप्न व्याख्या विधि का आविष्कार किया। मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है। सेवार्थी को एक विचार को दूसरे विचार से मुक्त रूप से संबद्ध करने के प्रोत्साहित किया जाता है और उस विधि को मुस्त साहचर्य विधि कहते हैं। जब सेवार्थी एक आरामदायक औरविश्वसनीय वातावरण में पन में जो कुछ भी आए बोलता है तब नियंत्रक पराहम तथा सार्क अहं को प्रसुप्तावस्था में रखा जाता है। चूँकि चिकित्सक चीच में हस्तक्षेप नहीं करता इसलिए विचारों का मुस्त प्रवाह, अचेतन मन की इच्छाएँ और द्वंद्र जो अहं द्वारा दमित किए जाने रहे हों वे सचेतन मन में प्रकट होने लगते हैं।

उपचार की प्रावस्था : अन्यारोपण (uransference) तथा व्याख्या या निर्वचन (interpretation) रोगी का उपचार करने के उपाय हैं। जैसे ही अचेतन राक्तियाँ उपरोक्त मुका साहचर्य एवं स्वप व्याख्या विधियों द्वारा सचेतन जगा में लाई जाती है, सेवार्थी चिकित्सा की अपने अतीत सामान्यतः बाल्यावस्था के आप्त व्यक्तियों के रूप में पहचान करने लगता है। चिकित्सक एक अनिर्णयात्मक तथापि अनुज्ञापत अभिवृत्ति बनाए रखता है और सेवार्थी को सांवगिक पहचान स्थापित करने की उस प्रक्रिया को जारी रखने का अनुमति देता है। यही अन्यारोपण की प्रक्रिया है। चिकित्सक उस प्रक्रिया को प्रोत्साहन देता है क्योंकि उससे उसे सेवार्थी के अर्थतन वंदों को सम्झाने में मदद मिलती है सेवार्थी अपनी कुंठा, क्रोध, भय और अवसाद जो उसने अपने अतीत में उस व्यक्ति के प्रति अपने मन में रखी थी लेकिन उस समय उनकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाया था को चिकित्सक के प्रति जास्त करने लगता है उस अवस्था को अन्यारोपण कहते हैं। सकारात्मक अन्यारोपण में सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगा है या उससे प्रेम करने लगता है कि चिकित्सक का अनुमोदन चाहता है।नकारात्मक अन्यारोपण तब प्रदर्शित होता है जब सेवार्थी में चिकित्सक के प्रति शत्रुता, कोच अप्रसन्नता की भावना होती है। अन्यारोपण प्रक्रिया में प्रतिरोध भी होता

निर्वचन मूल चुक्ति है जिसमें परिवर्तन को प्रभावित किया जाता है। प्रतिरोध एवं स्पष्टीकरण निबंधन की दो विश्लेषणालाक तकनीक है। प्रतिरोध में चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवाओं को अवश्य करना चाहिए। स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केन्द्र बिन्दु में लाता है। यह घटना के महत्त्वपूर्ण विस्तृत वर्णन को महत्वहीन वर्णन से अलग करके तथा विशिष्टता प्रदान करके किया जाता है। निर्वचन एक अधिक सूक्ष्म प्रक्रिया है। प्रतिरोध, सष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत्ति प्रक्रिया को समाकलन कार्य कहा जाता है। समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्याओं के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है।


25. पूर्व धारणा को दूर करने को तीन विधियों निम्नलिखित हैं-

(i) शिक्षा एवं सूचना के प्रसार के द्वारा विशिष्ट लक्षण समूह से संबद्ध रूह धारणाओं को संशोधित करना एवं प्रजत अंत:समूह अभिन्न की समस्या से निपटना।

(ii) अंत:समूह संपर्क को बढ़ाना प्रत्यय सम्प्रेषण समूहों के मध्य अविश्वास को दूर करने तथा बाह्य समूह के सकारात्मक गुणों की खोज करने का अवसर प्रदान करना है। ये युक्ति तभी सफल होती है जब

(a) दो समूह प्रतियोगी संदर्भ के स्थान पर एक सहयोगी संदर्भ में मिलते हैं।
(b) समूह के मध्य घनिष्ठ अन्तःक्रिया एक दूसरे को समझने या जानने में सहायता करती है।
(c) दोनों समूह शक्ति या प्रतिष्ठा में भिन्न नहीं होते हैं।

(iii) समूह अनन्यता की जगह व्यक्तिगत अनन्यता को विशिष्टता प्रदान करता अर्थात् दूसरे व्यक्ति के मूल्यांकन के आधार के रुप में समूह के महत्त्व को बलहीन करना।

अतः पूर्वाग्रह नियंत्रण की युक्तियाँ तब अधिक प्रभावी होंगी जब उनका प्रयास होगा-

(a) पूर्वाग्रहों के अधिगमन के अवसरों को कम करना।
(b) ऐसी अभिवृत्तियों को परिवर्तित करना।
(c) अन्तःसमूह पर आधारित संकुचित सामाजिक अनन्यता के महत्व को कम करना तथा
(d) पूर्वाग्रह वे शिकार लोगों में स्वत: साधक भविष्योक्ति की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना।


26. मनोविज्ञान के क्षेत्र में साक्षात्कार की उपयोगिता में प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। साक्षात्कार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है। साक्षात्कार को अन्य प्रकार के वार्तालाप की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण संज्ञा दी जा सकती है। क्योंकि उसका एक पूर्व निर्धारित उद्देश्य होता है तथा उसकी संरचना केन्द्रित होती है। साक्षात्कार अनेक प्रकार के होते हैं जैसे परामर्शी साक्षात्कार, रेडियों साक्षत्कार, कारक परीक्षक साक्षात्कार, उपचार
साक्षात्कार, अनुसंधान साक्षात्कार आदि। साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को विभिन्न चरणों से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-

(i) प्रारंभिक अवस्था- यह साक्षात्कार की सबसे पहली अवस्था है। वास्तव में साक्षात्कार की सफलता उसकी प्रारंभिक तैयारी पर ही निर्भर होती है। यदि इस अवस्था में गलतियाँ होगी तो साक्षात्कार का सफल होना संभव नहीं है।

(ii) प्रश्नोत्तर की अवस्था- साक्षात्कार की यह सबसे लंबी अवस्था है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछता है और साक्षात्कारदाता उसके प्रश्नों को सावधानीपूर्वक सुनता है और कुछ रकफर उसे समझता है, उसके बाद उत्तर देता है। उसके उत्तर देते समय साक्षात्कारकर्ता उसके हाव भाव, मुखाकृति का भी अध्ययन करता है।

(iii) समापन की अवस्था- साक्षात्कार का यह सबसे अतिम चरण है। जब साक्षात्कारकर्ता को सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाय और ऐसा अनुभव हो कि उसे महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है तो साक्षात्कार का समापन किया जाना है। इस अवस्था में साक्षात्कारदाता के मन में बननेवाली प्रतिकूल अवधारणा का निराकरण करना चाहिए। साक्षात्कारदाता भी जब यह कहता है कि और कुछ पूछना है तो उसे प्रसन्नतापूर्वक समापन की सूचना देनी चाहिए तथा सफल साक्षात्कार के लिए उसे धन्यवाद भी देना चाहिए।


 

You might also like