BSEB class 12th history model paper 2022 Pdf Download With Answer बिहार बोर्ड इतिहास का मॉडल पेपर 2022


1. हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर कौन था ?

(A) मोहनजोदड़ो
(B) लोथल
(C) कालीबंगा
(D) रंगपुर

 Answer ⇒ A

2. धम्ममहामात्रों को किसने नियुक्त किया ?

(A) चंद्रगुप्त मौर्य
(B) अशोक
(C) कनिष्क
(D) बिंदुसार

 Answer ⇒ B

3. ‘हीनयान’ और ‘महायान’ सम्प्रदाय किस धर्म से संबंधित है ?

(A) जैन
(B) बौद्ध
(C) हिन्दू
(D) सिख

 Answer ⇒ B

4. अकबर निम्नलिखित में किस पर अधिकार नहीं कर सका ?

(A) मारवाड़
(B) मेवाड़
(C) जोधपुर
(D) चित्तौड़

 Answer ⇒ C

5. निम्नलिखित में कौन मुगल बादशाह आलमगीर’ के नाम से जाना जाता है ?

(A) जहाँगीर
(B) शाहजहाँ
(C) औरंगजेब
(D) बहादुर शाह

 Answer ⇒ C

6. ‘अर्थशास्त्र’ एवं ‘इंडिका’ से किस राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है ?

(A) मौर्य
(B) गुप्त
(C) कुषाण
(D) सातवाहन

 Answer ⇒ A

7. ‘स्तूप’ का संबंध किस धर्म से है ?

(A) जैन धर्म
(B) बौद्ध धर्म
(C) ब्राह्मण धर्म
(D) ईसाई धर्म

 Answer ⇒ B

8. एलोरा के ‘कैलाश मंदिर’ का निर्माण किस राजवंश ने किया ?

(A) चोल
(B) पल्लव
(C) चालुक्य
(D) राष्ट्रकूट

 Answer ⇒ D

9. बाबर की आत्मकथा का क्या नाम है ?

(A) बाबरनामा
(B) तुजुक-ए-बाबरी
(C) किताबुलहिन्द
(D) रेहला

 Answer ⇒ A

10. ‘आईन-ए–अकबरी’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना किसने की थी ?

(A) अबुल फजल
(B) अकबर
(C) फैजी
(D) अब्दुर्रहीम खानखाना

 Answer ⇒ A

11. 1857 ई. के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ?

(A) रिंग फेंस नीति
(B) लैंप्स का सिद्धांत
(C) चर्बी वाले कारतूस
(D) ईसाई धर्म का प्रचार

 Answer ⇒ C

12. विजयनगर का महानतम शासक कौन था ?

(A) वीर नरसिंह
(B) कृष्णदेवराय
(C) अच्युतराय
(D) सदाशिवराय

 Answer ⇒ B

13. हम्पी नगर किस साम्राज्य से सम्बन्धित है ?

(A) विजयनगर साम्राज्य
(B) बहमनी साम्राज्य
(C) गुप्त साम्राज्य
(D) मौर्य साम्राज्य

 Answer ⇒ B

14. ‘गोपुरम’ का संबंध है

(A) गाय से
(B) नगर से
(C) व्यापार से
(D) मंदिर से

 Answer ⇒ D

15. आईन-ए-अकबरी कितने भागों में विभक्त है ?

(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच

 Answer ⇒ D

16. औरंगजेब ने अपने जीवन का अंतिम भाग बिताया

(A) पूर्वी भारत में
(B) पश्चिमी भारत में
(C) दक्षिणी भारत में
(D) उत्तरी भारत में

 Answer ⇒ C

17. शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह स्थित हैं।

(A) आगरा में
(B) दिल्ली में
(C) अजमेर में
(D) फतेहपुर सीकरी में

 Answer ⇒ C

18. इब्नबतूता किस सुल्तान के शासनकाल में भारत आया था ?

(A) मुहम्मद बिन तुगलक
(B) बलबन
(C) रजिया सुल्तान
(D) सिकन्दर लोदी

 Answer ⇒ A

19. हुमायूँ के दरबार में कौन अफ़्रीकी यात्री भारत आया ?

(A) अब्दुर्रज्जाक
(B) अलबरूनी
(C) बर्नियर
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ D

20. गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण कब हुआ ?

(A) 1910 ई०
(B) 1912 ई०
(C) 1911 ई०
(D) 1914 ई०

 Answer ⇒ C

21. निम्नलिखित में किसका प्रकाशन अबुल कलाम आजाद ने किया ?

(A) न्य इंडिया
(B) अलहिलाल
(C) यंग इंडिया
(D) कॉमरेड

 Answer ⇒ B

22. सिद्ध-कान्हु ने किस विद्रोह का नेतृत्व किया ?

(A) मुंडा विद्रोह
(B) संथाल विद्रोह
(C) संन्यासी विद्रोह
(D) हो विद्रोह

 Answer ⇒ B

23. भारत में स्थायी बंदोबस्त कहाँ लागू किया गया था ?

(A) बंगाल
(B) पंजाब
(C) दक्षिण भारत
(D) इनमें से सभी

 Answer ⇒ A

24. स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल कौन थे ?

(A) सी. राजगोपालाचारी
(B) लॉर्ड माउण्टबेटन
(C) लाल बहादुर शास्त्री
(D) रेडक्लिफ

 Answer ⇒ B

25. भारतीय संविधान के निर्माण में कितने समय लगे ? .

(A) 2 वर्ष 11 माह 11 दिन
(B) 2 वर्ष 11 माह 12 दिन
(C) 3 वर्ष 11 माह 11 दिन
(D) 3 वर्ष 11 माह 18 दिन

 Answer ⇒ A

26. भारत को कब गणतंत्र घोषित किया गया ?

(A) 26 जनवरी, 1950
(B) 26 जनवरी, 1930
(C) 14 अगस्त, 1950
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

27. “तहकीकी-ए-हिन्द” में किसका यात्रा वृतान्त लिखा है ?

(A) अलबरूनी
(B) अब्दुर्रज्जाक
(C) फाह्यान
(D) मार्कोपोलो

 Answer ⇒ A

28. मेगास्थनीज कौन था ?

(A) यात्री
(B) व्यापारी
(C) राजदूत
(D) गुलाम

 Answer ⇒ A

29. बंगाल और बिहार में स्थायी बंदोबस्त शुरू करने का श्रेय किसे दिया जाता है ?

(A) लार्ड कार्नवालिस
(B) लार्ड वेलेस्ली
(C) लार्ड रिपन
(D) लार्ड कर्जन

 Answer ⇒ A

30. अलबरूनी किसके साथ भारत आया ? 

(A) महमूद गजनवी
(B) मोहम्मद गौरी
(C) तैमूर
(D) मोहम्मद बिन कासिम

 Answer ⇒ A

31. कैबिनेट मिशन के सदस्य थे।

(A) पैथिक लॉरेन्स
(B) ए. बी. अलेक्जेण्डर
(C) सर स्टेफोर्ड क्रिप्स
(D) इनमें से सभी

 Answer ⇒ D

32. भारतीय संविधान के अनुसार संप्रभुता निहित है –

(A) राष्ट्रपति में
(B) प्रधानमंत्री में
(C) न्यायपालिका में
(D) संविधान में

 Answer ⇒ D

33. महावीर ने निर्वाण कहाँ प्राप्त किया ?

(A) पावापुरी
(B) वैशाली
(C) चम्पा
(D) नालन्दा

 Answer ⇒ A

34. “दामिन-ई-कोह” क्या था ?

(A) भू-भाग
(B) उपाधि
(C) तलवार
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

35. लखनऊ से 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?

(A) रानी लक्ष्मीबाई
(B) बेगम हजरत महल
(C) वीर कुंवर सिंह
(D) नाना साहेब

 Answer ⇒ B

36. भारत आने वाले प्रथम यूरोपियन कौन थे ?

(A) पुर्तगाली
(B) ब्रिटिश
(C) डच
(D) फ्रांसीसी

 Answer ⇒ A

37. फूट डालकर विजय प्राप्त करने का कार्य सर्वप्रथम किस राजा ने किया ?

(A) अजातशत्रु
(B) पुष्यमित्र शुंग
(C) अशोक
(D) समुद्रगुप्त

 Answer ⇒ A

38. “विक्टोरिया टर्मिनस” किस शैली. की इमारत है ?

(A) नवशास्त्रीय शैली
(B) नव-गॉथिल शैली
(C) इण्डो सारासेनिक शैली
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ B

39. किसी शासक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद परिवर्तित की ?

(A) बलबन
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) बाबर
(D) अकबर

 Answer ⇒ B

40. निम्नलिखित में से कौन-सा एक आंदोलन डांडी मार्च से शुरू हुआ ?

(A) स्वदेशी आंदोलन
(B) सविनय अवज्ञा आंदोलन
(C) असहयोग आंदोलन
(D) भारत छोड़ो आंदोलन

 Answer ⇒ B

41. महात्मा गांधी ने पहला किसान आंदोलन कहाँ शुरू किया ?

(A) बरदोली
(B) चंपारण
(C) डांडी
(D) वर्धा

 Answer ⇒ B

42. समस्त भारत ही नहीं एशिया एवं यूरोप में सर्वप्रथम हूणों को परास्त करने का श्रेय किस शासक को जाता है ?

(A) अशोक
(B) स्कन्दगुप्त
(C) समुद्रगुप्त
(D) नेपोलियन

 Answer ⇒ B

43. साइमन कमीशन भारत कब आया ?

(A) 1925
(B) 1928
(C) 1932
(D) 1935

 Answer ⇒ B

44. 1919 के अधिनियम को कहा जाता है –

(A) रॉलेट ऐक्ट
(B) मार्ले-मिंटो सुधार ऐक्ट
(C) माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार ऐक्ट
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

45. जालियाँवाला बाग हत्याकांड कब हुआ?

(A) 13 अप्रैल, 1919
(B) 6 मार्च, 1919
(C) 30 अप्रैल, 1919
(D) 10 अप्रैल, 1919

 Answer ⇒ A

46. भारत का अंतिम मुगल बादशाह कौन था ?

(A) शाहजहाँ
(B) मुहम्मद शाह
(C) औरंगजेब
(D) बहादुरशाह जफर

 Answer ⇒ D

47. “पाकिस्तान” शब्द किसने दिया ?

(A) जिन्ना
(B) लियाकत अली
(C) चौधरी रहमत अली
(D) इकबाल

 Answer ⇒ A

48. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष कौन थी ?

(A) एनी बेसेन्ट
(B) विजयलक्ष्मी पण्डित
(C) सरोजिनी नायडू
(D) अरुणा आसफ अली

 Answer ⇒ A

49. फ्रांसिस बुकानन के विवरणों से किस जनजाति के बारे में पता चलता

(A) गौड़
(B) संथाल
(C) कोल
(D) हम्मार

 Answer ⇒ A

50. स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?

(A) जवाहरलाल नेहरू
(B) लालबहादुर शास्त्री
(C) राजेन्द्र प्रसाद
(D) बी. आर. अम्बेडकर

 Answer ⇒ C

51. 1857 के विद्रोह के बिहार के नेता वीर कुँवर सिंह कहाँ से जमींदार थे ?

(A) गया
(B) दरभंगा
(C) जगदीशपुर
(D) मुंगेर

 Answer ⇒ C

52. निजामुद्दीन औलिया किस सूफी सिलसिले से सम्बन्धित है ?

(A) चिश्ती
(B) सुहरावर्दी
(C) कादिरी
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

53. भारत का प्रथम मुगल शासक कौन था ?

(A) बाबर
(B) अकबर
(C) शेरशाह सूरी
(D) बलबन

 Answer ⇒ A

54. पुराणों की संख्या कितनी है ?

(A) 16
(B) 18
(C) 19
(D) 20

 Answer ⇒ B

55. जवाहरलाल नेहरू के भारत प्रथम प्रधानमंत्री बने –

(A) 1946 में
(B) 1947 में
(C) 1948 में
(D) 1949 में

 Answer ⇒ A

56. ‘गेट वे ऑफ इण्डिया’ किस शैली का उदाहरण है ? .

(A) नवशास्त्रीय शैली
(B) नव-गॉथिक शैली
(C) इण्डो-सारासेनिक शैली
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

57. बिहार में चम्पारण सत्याग्रह कब हुआ ?

(A) 1905
(B) 1912
(C) 1917
(D) 1925

 Answer ⇒ C

58. फतेहपुर सीकरी को किसने राजधानी बनाया ?

(A) बाबर
(B) अकबर
(C) जहाँगीर
(D) शाहजहाँ

 Answer ⇒ B

59. सात द्वीपों का नगर किसे कहा जाता है ?

(A) कोलकाता
(B) शिमला
(C) गोवा
(D) बम्बई

 Answer ⇒ D

60. लोथल किस नदी के किनारे स्थित है ?

(A) सिन्धु
(B) व्यास
(C) भोगवा
(D) रावी

 Answer ⇒ C

61. लोथल स्थित है –

(A) गुजरात में
(B) पश्चिम बंगाल में
(C) राजस्थान में
(D) पंजाब में

 Answer ⇒ A

62. मौर्यकालीन टकसाल’ का प्रधान कौन था ?

(A) कोषाध्यक्ष
(B) मुद्राध्यक्ष
(C) पण्याध्यक्ष
(D) लक्षणाध्यक्ष

 Answer ⇒ D

63. अर्थशास्त्र और इंडिका से किस राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है ?

(A) मौर्य वंश
(B) कुषाण वंश
(C) सातवाहन वंश
(D) गुप्त वंश

 Answer ⇒ A

64. कैप्टन हॉकिन्स किस मुगल शासक के दरबार में आया था ?

(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) औरंगजेब
(D) शाहजहाँ

 Answer ⇒ B

65. बंगाल के प्रसिद्ध सेन कौन थे ?

(A) चैतन्य महाप्रभु
(B) गुरुनानक
(C) कबीर
(D) बाबा फरीद

 Answer ⇒ A

60. तलवंडी में किस प्रसिद्ध संत का जन्म हुआ था ?

(A) कबीर
(B) रैदास
(D) गुरुनानक
(C) मीरा

 Answer ⇒ D

67. सुभाषचन्द्र बोस ने हिन्दुस्तान की अस्थायी सरकार की स्थापना की घोषणा सिंगापुर के कैलोहाल में कब की ?

(A) 4 अक्टूबर, 1913
(B) 3 अक्टूबर, 1943
(C) 2 अक्टूबर, 1943
(D) 5 अक्टूबर, 1943

 Answer ⇒ C

68. जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है –

(A) सम्पूर्ण विश्व का स्वामी
(B) विष्णु एवं शिव का अवतार
(C) सभी का हितैषी
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

69. भारतीय संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन के अंतर्गत किस वर्ष हुआ ?

(A) 1942
(B) 1944
(C) 1946
(D) 1948

 Answer ⇒ C

70. 1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था ?

(A) लार्ड क्लाइव
(B) लार्ड बाटक
(C) लार्ड कैनिंग
(D) लार्ड डलहौजी

 Answer ⇒ C

71. साँची स्तूप को संरक्षित रखने में अहम् भूमिका थी

(A) एच. एच. कौल
(B) शाहजहाँ बेगम
(C) सुल्तानजहाँ बेगम
(D) इनमें से सभी की

 Answer ⇒ D

72. राँची मध्य प्रदेश के किस जिले में स्थित है ?

(A) विदिशा
(B) रायसेन
(C) सागर
(D) भोपाल

 Answer ⇒ B

73. निम्न में से गौतम बुद्ध के शिष्य थे –

(A) आनन्द एवं उपालि
(B) कश्यप
(C) सारिपुत्र एवं गौद्रलायन
(D) इनमें से सभी

 Answer ⇒ D

74. कुण्डलवन (कश्मीर ) में चतुर्थ बौद्ध संगीति किस शासक के काल में हुई ?

(A) अजातशत्रु
(B) कनिष्क
(C) अशोक
(D) कालाशोक

 Answer ⇒ B

75. सल्लेखन (कायाक्लेश) द्वारा मृत्यु का विधान किस धर्म में है ?

(A) जैन धर्म
(B) बौद्ध धर्म
(C) शैव धर्म
(D) वैष्णव धर्म

 Answer ⇒ A

76. कौटिल्य की कृति है।

(A) मेघदूत
(B) अर्थशास्त्र
(C) मालविकाग्निमित्र
(D) ऋत संहार

 Answer ⇒ B

77. मेगास्थनीज भारत में किसके दरबार में आया ?

(A) चन्द्रगुप्त मौर्य
(B) बिन्दुसार
(C) अशोक
(D) पुष्पमित्र शुंग

 Answer ⇒ A

78. समुद्रगुप्त की जानकारी होती है –

(A) मथुरा अभिलेख
(B) प्रयाग प्रशस्ति
(C) बंसखेरा अभिलेख
(D) एहौल अभिलेख

 Answer ⇒ B

79. कालीबंगा स्थित है –

(A) गुजरात में
(B) बंगाल में
(C) राजस्थान में
(D) सिन्ध में

 Answer ⇒ C

80. पाटलीपुत्र की स्थापना किसने की थी ?

(A) अजातशत्रु
(B) उदयिन
(C) अशोक
(D) समुद्रगुप्त

 Answer ⇒ B

81. क्लीमेंट एटली ने यह घोषणा कब की कि ब्रिटिश शासन जून 1948 ई. तक भारत छोड़ देगा ?

(A) 20 जनवरी, 1947 ई०
(B) 20 फरवरी, 1947 ई०
(C) 20 मार्च, 1947 ई०
(D) 22 दिसम्बर, 1947 ई०

 Answer ⇒ B

82. भूमि अनुदान से सम्बन्ध किस शासक से है ?

(A) वैदिक काल
(B) सातवाहन काल
(C) कुषाण काल
(D) गुप्तकाल

 Answer ⇒ B

83. प्रयाग प्रशस्ति का सम्बन्ध किस शासक से है ?

(A) चन्द्रगुप्त मौर्य
(B) अशोक
(C) समुद्रगुप्त
(D) चन्द्रगुप्त द्वितीय

 Answer ⇒ C

84. महात्मा बुद्ध का जन्म स्थान कहाँ है ?

(A) नालन्दा
(B) पावापुरी
(C) बोधगया
(D) कपिलवस्तु

 Answer ⇒ D

85. हुमायूँ का भाई कौन था ?

(A) कामरान
(B) असकरी
(C) हिन्दाल
(D) ये सभी

 Answer ⇒ D

86. रजानामा के नाम से किस ग्रन्थ का फारसी अनुवाद किया गया ?

(A) रामायण
(B) महाभारत
(C) गीता
(D) उपनिषद्

 Answer ⇒ B

87. मुमताज एवं शाहजहाँ की पुत्री का नाम था

(A) जहाँआरा
(B) रोशनआरा
(C) गौहरआरा
(D) ये सभी

 Answer ⇒ D

88. गुलबदन बेगम ने किसके आग्रह पर हुमायूँनामा लिखा ?

(A) अकबर
(B) हुमायूँ
(C) बाबर
(D) अबुल फजल

 Answer ⇒ A

89. बादशाहनामा किसने लिखा ?

(A) फैजी
(B) अबुल फजल
(C) अब्दुल हमीद लाहौरी
(D) निजामुद्दीन अहमद

 Answer ⇒ C

90. यास्सा (राजकीय नियम) किसने लागू किए थे ?

(A) तैमूर
(B) चंगेज खाँ
(C) बाबर
(D) अकबर

 Answer ⇒ B

91. ‘हुमायूँनामा’ का अंग्रेजी अनुवाद किसने किया ?

(A) हेनरी बेवरीज
(B) जैरेट
(C) ब्लाकमैन
(D) ग्राण्ड डफ

 Answer ⇒ A

92. लाडली बेगम किसकी पुत्री थी ?

(A) नूरजहाँ
(B) मुमताज
(C) अस्मा बेगम
(D) जहाँआरा

 Answer ⇒ A

93. फतेहपुर सीकरी को राजधानी किसने बनाया ?

(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) बाबर

 Answer ⇒ A

94. दरबार में अभिवादन का तरीका निम्न में से कौन-सा था ?

(A) कोर्निश
(B) सजदा
(C) पायबोस
(D) ये सभी

 Answer ⇒ D

95. अकबर ने अबुल फजल से अपने स्वयं के काल का इतिहास लिखवाया। प्राचीन काल में ऐसी परम्परा कहाँ थी ?

(A) चीन
(B) यूनान
(C) रोम
(D) इंग्लैण्ड

 Answer ⇒ A

96. ‘अकबरनामा’ एवं ‘आइन-ए-अकबरी’ के अनुवादक कौन थे ?

(A) वेबरीज
(B) जैरेट
(C) ब्लाकमैन
(D) ये सभी

 Answer ⇒ D

97. तम्बाकू का सेवन सर्वप्रथम किस मुगल सम्राट ने किया ?

(A) अकबर
(B) जहाँगीर
(C) शाहजहाँ
(D) औरंगजेब

 Answer ⇒ A

98. किस ग्रन्थ में आदम से लेकर अकबर के काल तक का इतिहास मिलता है ?

(A) बाबरनामा
(B) अकबरनामा
(C) जहाँगीरनामा
(D) सभी में

 Answer ⇒ B

99. सागर में 1 जुलाई, 1857 को विद्रोह का आरंभ किसने किया ?

(A) शेख रमजान
(B) बख्तवली
(C) मर्दन सिंह
(D) बोधन दौआ

 Answer ⇒ A

100. सागर में अंग्रेज पुरुष, महिलाओं एवं बच्चों को कितने दिन किले में शरण लेकर रहना पड़ा ?

(A) 50 दिन
(B) 11 दिन
(C) 222 दिन
(D) 150 दिन

 Answer ⇒ C

खण्ड-ब (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 30 तक लघु उत्तरीय हैं। इनमें से किन्हीं 15 प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। अधिकतम 50 शब्दों में दें।

1. हड़प्पा सभ्यता के विस्तार की विवेचना करें।

2. हड़प्पा सभ्यता के पतन के मुख्य कारण क्या थे ?

3. आप वैदिक संस्कृति के बारे में क्या जानते हैं ?

4. “महाभारत एक गतिशील ग्रंथ है।” समझाइए।

5. महावीर के उपदेशों का वर्णन करें।

6. ‘जातक’ पर एक टिप्पणी लिखिए।

7. गांधार कला की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

8. मौर्य प्रशासन की जानकारी दें।

9. आयगार व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?

10. आइना-ए-दहशाला पर अति संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

11. अलबरूनी के यात्रा का उद्देश्य क्या था ?

12. भारतीय परम्परा में भक्ति का क्या स्थान था ?

13. विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

14. बुकानन कौन था ?

15. संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया ?

16. 1857 ई० की क्रांति के प्रभाव पर प्रकाश डालिए।

17. ब्रिटिश चित्रकारों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?

18. चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे ?

19. संक्षेप में रॉलेट एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया का विवेचना कीजिए।

20. गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

21. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?

22. लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन को योजना को लागू करने में क्या भूमिका बनाई?

23. “सांप्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की ? इसके प्रावधान क्या थे ?

24. ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ पर टिप्पणी लिखें।

25. वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र को स्पष्ट करें।

26. भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?

27. 14 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को संविधान सभा में जो नेहरू जी ने भाषण दिया उसके एक महत्वपूर्ण अंश की संक्षिप्त व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।

28. असहयोग आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालें।

29. पूना समझौता क्या था ? विवेचन कीजिए।

30. भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया ?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 31 से 38 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 4 प्रश्नों का उत्सर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित हैं। अधिकतम -100 शब्दों में उत्तर दें।

31. हड़प्पा सभ्यता के नगर-निर्माण की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।

32. वैदिकोत्तर काल की वर्ण व्यवस्था का वर्णन करें। उस व्यवस्था में शूद्रों का क्या स्थान था ?

33. महावीर के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।

34. विजयनगर राज्य का ‘चरमोत्कर्ष और पतन’ नामक विषय पर एक निबंध लिखिए।

35. भारत का विभाजन क्यों हुआ ?

36. भारत छोड़ो आन्दोलन के कारणों और परिणामों का मूल्यांकन करें।

37. सविनय अवज्ञा आंदोलन पर टिप्पणी लिखें।

38. आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की देनों का मूल्यांकन कीजिए।

खण्ड-ब (गैर वस्तुनिष्ठ प्रश्न)

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. हड़प्पा सभ्यता प्राचीन सभी सभ्यताओं में विशालतम थी। यह उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी तक पश्चिम में ब्लूचिस्तान मकरान तट से लेकर पूर्व में अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक फैली हुई थी। कुल मिलाकर यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण लगभग 1200 किमी. तक विस्तृत थी।

2. हड़प्पा सभ्यता के पतन के मुख्य कारणों की चर्चा निम्नलिखित रूप से की जा सकती है –
(i) बाढ़ – इस मत के अनुसार हडप्पा सभ्यता के प्रमुख नगर नदियों के ही किनारे थे। अतः बाढ़ द्वारा इनका पतन हुआ होगा। खुदाई में मिली बालू की मोटी परतें इस मत की पुष्टि करती है।

(ii) अग्निकांड – खुदाई में जली हुई मोटे स्तरों की प्राप्ति से कुछ विद्वान अग्निकांड से इस सभ्यता के पतन की बात करते हैं।’

(iii) बाह्य (आर्य) आक्रमण – खुदाई से प्राप्त नरकंकालों, वेदों में दस्युओं दुर्गों के विनाश का वर्णन के आधार पर बाह्य आक्रमण द्वारा पतन के विचार को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

(iv) लगातार गेहूँ उत्पादन से भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी से भी इस सभ्यता के पतन के विचार को बल मिलता है।
इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन, नदियों द्वारा मार्ग बदलने, जलप्लावन के सिद्धान्त भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं।

3. वैदिक साहित्य विशेषकर चार वेद-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद जिस संस्कृत भाषा में लिखे (या रचे) गए थे वह वैदिक संस्कृत कहलाती है। यह संस्कृत उस संस्कृत से कुछ कठिन एवं भिन्न थी जिसका प्रयोग हम आजकल करते हैं। वस्तुत: वेदों को ईश्वरीय ज्ञान के तुल्य माना जाता था यह शुरू में मौखिक रूप में ही ब्राह्मण परिवारों से जुड़े लोगों तथा कुछ अन्य विशिष्ट परिवारजनों को ही पढ़ाया-सुनाया जाता था। महाकाव्य काल में रामायण तथा महाभारत की रचना के लिए जिन संस्कृत का प्रयोग किया गया वह वैदिक संस्कृत से अधिक सरल थी। इसलिए वह संस्कृत और अधिक लोगों में लोकप्रिय हुई थी।

4. महाभारत एक गतिशील ग्रंथ – महाभारत का विकास संस्कृत के पाठ के साथ ही समाप्त नहीं हो गया। शताब्दियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्तर भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गये। ये सब उस संवाद को दर्शाते थे, जो इनके लेखकों, अन्य लोगों और समुदायों के बीच कायम हुए। अनेक कहानियाँ, जिनका उद्भव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका खास लोगों के बीच प्रसार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में समाहित कर ली गई। साथ ही इस महाकाव्य की मुख्य कथा की अनेक पुनर्व्याख्याएँ की गईं। इसके प्रसंगों को मूर्तिकला और . चित्रों में भी. दर्शाया गया। इस महाकाव्य ने नाटकों और नृत्य कलाओं के लिए भी विषय-वस्तु प्रदान की।

5. महावीर के उपदेश निम्नलिखित हैं –

(i) सत्य-सत्य बोलना, झूठ न बोलना।
(ii) अहिंसा-हिंसा न करना।
(iii) अस्तेय-चोरी न करना।
(iv) अपरिग्रह-सम्पत्ति का संग्रह न करना।
(v) ब्रह्मचर्य-इन्द्रियों को वश में करना।
महावीर ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे परंतु आत्मा, कर्मफल तथा पुनर्जन्म को मानते थे।

6. जातक – बौद्ध साहित्य में जातकों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इन ग्रन्थों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ दी गई हैं। इस दृष्टि से इनका महत्व धार्मिक व्यक्तियों के लिए है! इसके अतिरिक्त जातकों में अनेक ऐसी कथाएँ मिलती हैं जिनसे उस समय के लिए राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है। डॉ. विण्टरनिट्ज के विचारानसार, “जातक कथाओं का महत्व अमूल्य है। यह केवल इसलिए नहीं कि वे साहित्य और कला का अंश हैं, उनका महत्व तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की भारतीय सभ्यता के दिग्दर्शन कराने में है।” यद्यपि मौलिक जातक-संग्रह ती विलुप्त हो गया है परन्तु जातकों का ज्ञान हमें इस ग्रंथ पर लिखित एक टीका ‘जातक ट्ठावष्ण’ द्वारा होता है शायद इसे किसी बौद्ध भिक्षु ने लिखा था। जातकों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक दोनों प्रकार की साहित्यिक शैलियों का प्रयोग किया गया है। विद्वानों के अनुसार उनकी गद्य शैली अधिक सरल है। सम्भवतः इसे पद्य शैली की अपेक्षा रचनाकारों द्वारा पहले अपनाया गया था।

7. महायान बौद्ध धर्म के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ। इनका विकास गांधार क्षेत्र (अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ इसलिए इसे गांधार कला कहा गया। इस पर यूनानी कला-शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया।

8. मौर्य प्रशासन अत्यंत ही उच्च कोटि का था! राजा सर्वोपरि था। राजा का मंत्री आमात्य कहलाता था। मौर्य शासकों ने कठोर दंड का प्रावधान कर समाज को भय मुक्त प्रशासन प्रदान किया।

9. विजयनगर राज्य ने प्रचलित स्थानीय प्रशासन में परिवर्तन कर आयागार व्यवस्था आरंभ की प्रत्येक ग्राम को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में गठित कर प्रशासन 12 व्यक्तियों के समूह को दिया गया। यह समूह आयगार कहलाता था। ये व्यक्ति राजकीय अधिकारी थे इनका पद आनुवंशिक था। वेतन के रूप में लगान और कर मुक्त भूमि दी जाती थी। आयगार ग्राम प्रशासन की देखभाल . करते एवं शांति-व्यवस्था बनाए रखते थे।

10. अकबर ने टोडरमल की सहायता से भूमि की नपाई करवाकर उपज के आधार पर लगान निर्धारित किया। लगान के लिए उसने दहशाला प्रबंध लागू किया। इसके अनुसार किसानों से उपज का 1/3 भाग लगान के रूप में लिया गया।

11. अलबरूनी के मन में भारतीयों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। भारतीय चिन्तन एवं संस्कृति के साथ जुड़ी उनकी सहानुभूति का सही ठोस कारण दिया जाता है। अलबरूनी विशुद्ध बौद्धिक एवं वैज्ञानिक जिज्ञासा से प्रेरित हुआ था। वह यह समझना चाहता था कि वह कौन-सा तत्व है जिसने भारतीयों की चिन्तन पद्धति को निर्धारित किया था। उन्होंने स्वयं स्पष्ट करने की कोशिश की है कि जिस चीज ने उन्हें भारतीयों के दार्शनिक वैज्ञानिक और धार्मिक विचारों को अध्ययन के लिए प्रेरित किया। वह ‘तुलनात्मक धर्म’ के अध्ययन में दिलचस्पी लेता था। अलबरूनी को भारतीय धर्म एवं दर्शन की गहरी रुचि थी। उसकी यात्रा का प्रमुख उद्देश्य भारतीय धर्म एवं दर्शन का अध्ययन करना था एवं उसे सटीक रूप में प्रस्तुत करना था।

12. भक्ति आंदोलन को अधिकांशतः इस्लाम के समानतावादी संदेश तथा निम्न जातियों में उसके विस्तार के खिलाफ हिन्दुओं का जवाब समझा जाता है लेकिन यह आकलन अपूर्ण है, क्योंकि हिन्दू व्यवस्था में भक्ति साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह श्वेताम्बर उपनिषद तथा भगवद्गीता में लिखा है, जिसमें भगवान कृष्ण कहते हैं कि एक आम भक्त भी उनतक भक्ति के रास्ते पहँच सकता है।
छठी शताब्दी में भक्ति आंदोलन की शुरुआत तमिल क्षेत्र से हुई है जो कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में फैल गई तथा 15वीं शताब्दी के आस-पास यह उत्तर भारत एवं बंगाल पहुँची। इसकी विशेषता थी भक्त तथा उसके भगवान के बीच एक प्रेमपूर्ण संबंध पर जोर। भक्ति आंदोलन के नेता समाज के सभी वर्गों में से थे। इस आन्दोलन का विकास बारह अलवार वैष्णव सन्तों एवं तिरसठ नयनार शैव सन्तों ने किया। भक्ति आंदोलन के महान सन्त थे समबन्दर तथा मणिक्कवसागर।
भक्ति आंदालन को अक्सर शंकराचार्य का प्रत्युत्तर माना जाता है, लेकिन शंकर ने स्वयं अनेक भक्तिपूर्ण कार्यों की रचना की। इस आन्दोलन के विशिष्ट नेताओं में से एक रामानुज थे जो श्री वैष्णववाद के संस्थापक के रूप में लोकप्रिय हैं। दक्षिण में भक्ति आन्दोलन के प्रमुख प्रचारकों में माधव का भी नाम है।

13. विजयनगर साम्राज्य के अधिकांश शासक कला प्रेमी थे। उन्होंने वस्तुकला के क्षेत्र में अनेकों मंदिर बनवाए। उनमें से हजारा मंदिर और विट्ठल स्वामी के मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं। विट्ठल स्वामी के मंदिर का निर्माण देवराज द्वितीय के शासन समय में आरंभ हुआ और अच्युत देवराय के शासन काल तक भी पूरा न हो सका। यह मंदिर 135 फुट लंबा, 86 फूट चौड़ा और 25 फुट ऊँचा है। इसके दो द्वार हैं तथा 56 स्तम्भ। हजारा मंदिर का निर्माण विरुपाक्ष द्वितीय ने करवाया। इस मंदिर के चारों ओर अनेक छोटे-छोटे, देवी-देवताओं के मंदिर बनाए गए हैं। इन मंदिरों की दीवारों पर भगवान रामचंद्र के जीवन से संबंधित अनेक दृश्यों को चित्रित किया गया है। यह साम्राज्य मंदिरों की संख्या की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि उनके ढाँचे, सुन्दर कला तथा संगठन सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस काल में अनेक पुराने मंदिरों का विस्तार हुआ। हिन्दू देवियों के लिए भी इस काल में अलग मंदिर बनाए गए। इस काल के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनमें अनेक स्तंभों के अतिरिक्त विशाल हाल बनाए गए। इस काल में मंदिरों के अतिरिक्त अनेक मूर्तियाँ भी बनाई गईं। कृष्णदेव और उसकी दो पत्नियों की मूर्तियाँ शिल्पकला की दृष्टि से बहुत ही प्रशंसनीय हैं। चित्रकला और संगीतकला में भी उन्नति की गई।

14. बुकानन एक फ्रांसीसी चिकित्सक था, जो भारत में 1794 ई. में आया। उन्होंने 1794 ई. से 1815 ई. तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। कुछ वर्षों तक वे भारत के गवर्नर जनरलं लॉर्ड वेलेजली के शल्य चिकित्सक रहे। उन्होंने अपने प्रवास के दौरान कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक चिड़ियाघर की स्थापना की, जो अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। वे कुछ समय के लिए वानस्पतिक उद्यान के प्रभारी रहे। उन्होंने बंगाल सरकार के अनुरोध पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया। वे 1815 ई० में बीमार हो गए और इंग्लैंड चले गए। बुकानन अपनी माताजी की मृत्यु के पश्चात् उनकी जायदाद के वारिस बने और उन्होंने उनके वंश का नाम ‘हैमिल्टन’ को अपना लिया। इसलिए उन्हें अक्सर बुकाननहैमिल्टन भी कहा जाता है। ।

15. 1855-56 ई. में संथाल परगना में संथालों ने सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार, जमींदारों तथा महाजनों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इन्होंने अपनी जमीन वापस करने को स्वतंत्र जीवन जीने की माँग रखी। यद्यपि विद्रोह दबा दिया गया परंतु सरकार ने इस क्षेत्र में विशेष भूमि कानूनों का निर्माण कर इन्हें संतुष्ट करने का प्रयास किया।

16. 1857 ई. की क्रांति के प्रभाव –1857 ई० भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी वर्ष ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के विरुद्ध भारतीयों का असंतोष क्रांति के रूप में प्रकट हुआ। इसे ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ कहा जाता है। इसी के बाद 1858 ई० में एक घोषणा के द्वारा यह कहा गया कि अब भारत का शासन ब्रिटिश महारानी के नाम से होगा।

17. ब्रिटिश पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, कार्टूनों में 1857 के विद्रोह के दो बिन्दुओं पर बल दिया गया-हिन्दुस्तानी सिपाहियों की बर्बरता और ब्रिटिश सत्ता की अजेयता का प्रदर्शन।
टॉमस जोन्स वर्कर के 1859 के रिलीज ऑफ लखनऊ इन मेमोरियम, न्याय जैसे चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश प्रतिरोध की भावना और उनकी अजेयता के भाव ही प्रदर्शित होते हैं।

18. चम्पारण आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे
(i) चम्पारण में नील के खेतों में काम करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहे बहुत अत्याचार करते थे।
(ii) गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका के संघर्षों की कहानी सुनकर चम्पारण के कई किसानों ने उन्हें वहाँ आकर उनकी समस्याओं को सुना एवं उनके हितों के लिए सत्याग्रह शुरू कर दिया।

19. (i) मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) से भारतीय राष्ट्रीय नेताओं में घोर निराशा व असंतोष देखकर सरकार बुरी तरह घबरा उठी। सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अपना दमनचक्रं चला दिया।

(ii) सरकार ने 1919 ई. के प्रारंभ में रॉलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट में सरकार को दो व्यापक अधिकार मिले
(a) इस एक्ट के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए • तथा दोषी सिद्ध किए जेल में बंद कर सकती है।
(b) सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के अधिकार को स्थगित कर सकती थी।

(iii) इस एक्ट के कारण लोगों में रोष की लहर दौड़ गई। अत: देश में विरोध होने लगा। देश भर में विरोध सभाएँ, प्रदर्शन और हड़तालें हुई। सेंट्रल लेजिस्लेटिव कौंसिल से तीन भारतीय सदस्यों-मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहरूल हक ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने दमन शुरू किया। कई स्थानों पर उसने लाठी-गोली आदि का सहारा लिया। इस एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने सत्याग्रह किया। पंजाब के जालियाँवाला बाग में इसी एक्ट के विरुद्ध, शांतिपूर्ण जनसभा हो रही थी जिससे क्रुद्ध होकर जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियों की वर्षा करवा दी थी।

20. गाँधीजी का रचनात्मक कार्यक्रम – गाँधीजी, के नेतृत्व में काँग्रेस ने रचनात्मक कार्यक्रम को बहुत बढ़ावा दिया। वह केवल राजनैतिक स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे अपितु जनता की आर्थिक-सामाजिक और आत्मिक उन्नति चाहते थे। इस भावना से उन्होंने समाज में शोषण समाप्त करने के लिए भूमि और पूँजी का समीकरण नहीं माँगा, अपितु आर्थिक क्षेत्र के विकेंद्रीयकरण द्वारा इस प्रश्न को हल करना चाहा। उन्होंने कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन के लिए काम किया। खादी उनके आर्थिक तंत्र का आधार थी।

21. भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमें यह बताती है कि वास्तव में संविधान का क्या उद्देश्य है। यह घोषणा करता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों तथा आदर्शों पर बल देता है –
            (i) न्याय – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
            (ii) स्वतंत्रता – विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा पूजा-अर्चना की।
            (iii) समानता – प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता।
            (iv) भ्रातृत्व – व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना तथा आपसी बन्धत्व बढ़ाना।

22. लॉर्ड माउंटबेटन के प्रयास – भारत विभाजन की योजना को लागू करने और उस पर काँग्रेस तथा लीग की सहमत करने में सबसे बड़ी भूमिका लॉर्ड
और लेडी माउंटबेटन ने निभायी। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ, कूटनीति तथा व्यक्तिगत-प्रभाव द्वारा एक ही मास में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। अपने साथियों को हथियार फेंकते देखकर गाँधीजी ने भी दु:खी मन से विभाजन स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।

23. 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने एक घोषणा की जो मेकडॉनल्ड निर्णय या सांप्रदायिक पंचाट के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रावधान – इसके अनुसार दलितों को हिंदुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया।

24. भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन और गतिविधियों से संबद्ध यह पाँचवीं रिपोर्ट थी जिसे 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश किया गया। इसे एक
प्रवर समिति ने तैयार किया था। रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इनमें मुख्यत: जमींदारों, रैयतों की अर्जियाँ, कलक्टर की रिपोर्ट बंगाल-मद्रास के राजस्व और न्यायिक
और न्यायिक अधिकारियों पर टिप्पणियाँ थी। रिपोर्ट द्वारा ब्रिटिश संसद में लम्बी बहस हुई।

25. वयस्क मताधिकार में प्रत्येक स्त्री-पुरुष को, जिसकी आयु 18 वर्ष हो गई है, मत देने का अधिकार है। वह इस अधिकार द्वारा अपना मनचाहा प्रतिनिधि
तथा दल चुन सकता है। किसी दल विशेष को बहुमत प्राप्त होने पर उस दल की सरकार बनती है। इसी प्रक्रिया को राज्यों और केन्द्र में दोहराया जाता है। अतः इस तरह से बनने वाली सरकार लोकतांत्रिक होती है।

26. धर्म-निरपेक्ष-निरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन 1976 ई. में जोड़ा गया। इसका तात्पर्य यह है कि भारत किसी धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता तथा न ही किसी धर्म का विरोध करता है। प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता होगी। धर्म को व्यक्तिगत मामला माना गया है। अतः राज्य लोगों के इस कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

27. 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को संविधान सभा में बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू ने अपना एक प्रसिद्ध भाषण दिया था। इस भाषण का एक हृदयस्पर्शी अंश निम्न प्रकार है-

“बहुत समय पहले हमने नियति से साक्षात्कार किया था और अब समय आ चुका है कि हम अपने उस संकल्प को न केवल पूर्ण से या समग्रता में बल्कि उल्लेखनीय रूप से साकार करें। अर्धरात्रि के इस क्षण में जब दुनिया सो रही है, भारत जीवन और स्वतंत्रता की ओर जाग रहा है।”
उपर्युक्त भाषण का सार यह है कि भारत के लोगों ने अनेक वर्षों तक ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति एवं स्वतंत्रता प्राप्ति तथा स्वराज्य स्थापना का एक स्वप्न देखा था। सौभाग्यवश भारत के लोगों का वह निर्णय एवं संकल्प पूरा हो चुका है। अब भारत की जनता को देश की स्वतंत्रता को न केवल पूर्णयता सँभाल कर रखना है बल्कि उन सभी अच्छे कल्याणकारी स्वप्नों को साकार रूप भी देना है जो यहाँ के लाखो-करोड़ों लोगों ने देखा है। कहने को तो अर्धरात्रि है, सारी दुनिया सो रही है उन्हें सोने दो। भारतवर्ष को स्वाधीनता ने नया जीवन दिया है तो साथ ही साथ नई जिम्मेदारी भी दी है। हम जागकर अपने देश को विकास के मार्ग पर ले जाये ताकि लोगों को अच्छा जीवन एवं पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो सके।

28. गाँधीजी ने 1920 ई० में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे –
(i) रॉलेक्ट ऐक्ट- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 ई० में रॉलेक्ट ऐक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असन्तुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन चलाया।

(ii) जालियाँवाला बाग की दुर्घटना – रॉलेक्ट ऐक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जालियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलाई गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई। भयंकर हत्याकांड हुआ। महात्मा गाँधी ने इस हिंसात्मक घटना से दु:खी होकर असहयोग आन्दोलन आरंभ कर दिया।

29. पूना समझौता का अर्थ-सांप्रदायिक पंचाट के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिडला, राजगोपालाचारी और डॉ० भीमराव अंबेडकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ. अंबेडकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।

30. भारतीय संविधान आंशिक रूप से 26 नवम्बर, 1949 ई० को लागू किया गया था जबकि पूर्ण रूप से 26 जनवरी, 1950 ई. को लागू किया था। पूर्व में कांग्रेस के द्वारा 26 जनवरी, 1930 को प्रथम स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया गया था जो भारतीयों के लिए, एक महत्त्वपूर्ण दिन था। इसी दिन को हमेशा याद रखने के उद्देश्य से संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

31. हड़प्पा संस्कृति में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिनको सामने रखकर कुछ इतिहासकार अब यह मानने लगे हैं कि अवश्य ही यह सभ्यता, अन्य सभ्यताओं से श्रेष्ठ है और इसकी संसार को बड़ी देन हैं। निम्नलिखित क्षेत्रों में सिन्धु घाटी के लोगों की उन्नति उनकी श्रेष्ठ सभ्यता का स्पष्ट प्रमाण हैं –

(i) श्रेष्ठतम तथा सुनियोजित नगर (Best and Well Planned City) – हड़प्पा के नगरों की स्थापना ऐसे मनोवैज्ञानिक तथा सुनियोजित ढंग से की गई थी जिसका उदाहरण प्राचीन संसार में कहीं नहीं मिलता। आज की भाँति आवश्यकतानुसार सड़कें व गलियाँ छोटी और बड़ी दोनों प्रकार की बनाई गई थीं। डॉ. मैके जैसे लोग भी इन नगरों की प्रशंसा किये बिना न रह सके। उनके कथनानुसार गलियाँ एवं बाजार इस प्रकार के बनाये गये थे कि वायु अपने आप ही उनको साफ कर दे।

(ii) श्रेष्ठतम, सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित निकास व्यवस्था (Best and Well Planned Drainage) –  सफाई का जितना ध्यान यहाँ के लागे रखते थे, शायद ही किसी दूसरे देश के लोग रखते हों। इतनी पक्की और छोटी-छोटी नालियाँ आजकल भी हमें आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहतीं।

(iii) श्रेष्ठतम व निपुण नागरिक प्रबन्ध (Best and the Most Efficient Civil Organization) – नगर प्रबन्ध भी सर्वोत्तम ढंग का था। ऐसा संसार के किसी दसरे प्राचीन देश में देखने में नहीं आता। स्थान-स्थान पर पीने का पानी का विशेष प्रबन्ध था। नलियों में प्रकाश का भी प्रबन्ध था। यात्रियों के लिए सराएँ और ध र्मशालाएँ बनी हुई थीं और नगर की गन्दगी को बाहर ले जाकर खाइयों में डलवा दिया जाता था। वे लोग आधुनिक युग की भाँति स्वास्थ्य के नियमों से अच्छी तरह परिचित थे। इसीलिये तो उन्होंने बर्तन बनाने की भट्टी को भी नगर के अन्दर नहीं बनने दिया था।

(iv) सुन्दर और उपयोगी कला (Art-both with Beauty and Utility) – यहाँ की कला में दो विशेष गुण थे, जो अन्य देशों की कला में एक साथ देखने को कम मिलते हैं- (i) इस सभ्यता में बनावटीपन लेशमात्र को भी न था। इसके धारों अथवा भवनों का निर्माण लोगों की उपयोगिता या आराम को ध्यान में रखते हए हुआ था। (ii) उपयोगिता के साथ-साथ मकानों में सुन्दरता भी थी। मेसोपोटामिया के माकन चाहे अधिक सुन्दर व अच्छे हों, परन्तु उनमें कृत्रिमता अधिक थी और वे इतने उपयोगी भी नहीं थे। उधर, मिस्त्र में भवन तो अनेक थे परन्तु उनमें कला का अभाव है।

32. वैदिकोत्तर काल की वर्ण व्यवस्था – इस काल में जाति-प्रथा और दृढ़ हो गई। जन्म के आधार पर जातियाँ निश्चित होने लगीं। चाहे जैन और बौद्ध धर्म ने जाति-प्रथा का बड़ा विरोध किया, फिर भी तत्कालीन समाज में जाति-प्रथा प्रचलित थी। उस समय समाज चार वर्गों में बँटा हुआ थाः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। अब धर्मसूत्रों ने प्रत्येक वर्ग के कर्मों को स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया था। दीवानी एवं फौजदारी कानून का आधार भी अब वर्ण-व्यवस्था ही बन गई थी। जो व्यक्ति जितने ऊँचे वर्ण से सम्बन्धित होता था उससे उतने अधिक ऊँचे नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती थी। धीरे-धीरे शूद्रों पर अनेक निर्योग्यताएँ थोप दी गई। उन्हें विभिन्न कानूनों तथा धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया और सबसे निचले स्थान पर फेंक दिया गया।
परन्तु धीरे-धीरे जैन और बौद्ध धर्म के प्रचार के कारण ब्राह्मणों का प्रभुत्व कम हुआ और क्षत्रियों की प्रधानता प्राप्त हुई। वैश्य लोग बड़े धनी होने लगे परन्तु शूद्रों की दशा और भी शोचनीय होती गई। बौद्ध साहित्य में चाण्डालों का भी उल्लेख है जो नगरों के बाहर रहते थे। लोग इनके स्पर्श मात्र से डरते थे। समाज में दास भी थे। वे गृह-कार्य करते थे परन्तु उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता था।
जैन और बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ब्राह्मण धर्म की आश्रम-प्रणाली काफी शिथिल हो गई थी। संन्यास और तप के स्थान पर शुद्ध तथा पवित्र जीवन और आचरण पर अधिक बल दिया जाने लगा था। इस काल में भी परिवार समाज की इकाई थी। संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी।
यद्यपि समाज में स्त्रियों का सम्मान था, परन्तु वैदिक काल की अपेक्षा उनकी दशा अब गिर चुकी थी। स्वयं महात्मा बुद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश के विरुद्ध थे। परन्तु स्त्रियों के साथ आदर का व्यवहार किया जाता था। उन्हें उचित शिक्षा देने का प्रवन्ध किया जाता था। समाज में पर्दा-प्रथा नहीं थी। स्त्रियों को धार्मिक और सामाजिक कार्यों में भाग लेने की स्वतंत्रता थी। वे मेलों और उत्सवों में शामिल होती थी। उत्तर-पश्चिमी भारत में सती-प्रथा प्रचलित हो चुकी थी। समाज में वेश्यायें भी होती थीं। आम्रपाली इस युग की वैशाली की प्रसिद्ध वैश्या थी। साधारण व्यक्ति एक ही स्त्री से विवाह करते थे, परन्तु राज-परिवारों और धनियों में बहु-विवाह प्रथा भी प्रचलित थी। बाल-विवाह प्रथा नहीं थी। लड़के-लड़कियों के विवाह माता-पिता द्वारा निश्चित किए जाते थे। राजकुमारियों के विवाह स्वयंवर की प्रथा के अनुसार होते थे।

33. छठी शताब्दी ई० पू० भारत में धार्मिक क्रांति हुई, उसके फलस्वरूप दो नये धर्मों का उदय हुआ-जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म। पहले के संस्थापक महावीर तथा दूसरे के गौतम बुद्ध थे। इन धर्मों ने वैदिक कर्मकांड के विरुद्ध आवाज उठाई तथा मानव कल्याण के लिए सीधा रास्ता बतलाया।
जैनधर्म के प्रमुख प्रवर्तक महावीर थे। उनके बचपन का नाम वर्द्धमान था। उनका जन्म बिहार के वैशाली के निकट कुण्डिग्राम में हुआ था। उनके पिता क्षत्रिय थे और मातृक कुल के सरदार थे। इनका नाम सिद्धार्थ था। इनका विवाह लिच्छवि सरदार की बहन त्रिसला से हुआ था। इनका जन्म पार्श्वनाथ की मृत्यु के 250 वर्षों के बाद 540 ई० पू० में हुआ था। प्रारंभ में वर्द्धमान का जीवन राजकीय समृद्धि और विलासिता के साथ व्यतीत हुआ। उन्हें हरेक प्रकार की राज्योचित विद्याओं की शिक्षा दी गई। युवा होने पर उनका विवाह यशोदा नामक सुन्दर राजकुमारी से कर दिया गया। इस विवाह से उन्हें प्रियदर्शना नाम की पुत्री भी पैदा हुई।
प्रारंभ में ही महावीर चिन्तनशील प्रवृत्ति के युवक थे। 30 वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया। पिता की मृत्यु के पश्चात् उनकी निवृत्तिमार्गी प्रवृत्ति और भी बढ़ गयी। उन्हें राज-पाट से कोई सम्बन्ध नहीं रहा। अपने बड़े भाई का आज्ञा से उन्होंने एक दिन अपना घर-द्वार छोड़ दिया और संन्यासी बनकर सत्य का खाज में निकल पड़े। कल्पसूत्र के अनुसार घर छोड़ने के 11 मास बाद उन्हान वस्त्र पहनना छोड़ दिया और नग्न भ्रमण करने लगे। 12 वर्षों तक उन्होंने घोर तपस्या की। भोजन और शरीर का ध्यान न रखने से शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया। उनके नग्न शरीर पर कीट-कीटाणु चढ़ने लगे और उन्हें काटने लगे, परन्तु उन्हें इनकी जरा भी परवाह नहीं थी। उनके पीछे दुष्ट लड़कों के झुण्ड घूमते थे और उन्हें डण्डों से पीटते थे, परन्तु वर्द्धमान इन कठिनाइयों से जरा भी नहीं घबराये।
इस प्रकार 12 वर्षों तक वे कठिन तपस्या करते रहे। 42 वर्ष की आयु में जुम्मिका ग्राम के निकट राजुपलिका नदी के तट पर वर्द्धमान को एक शाल वृक्ष के निकट कैवल्य अथवा ‘पूर्ण ज्ञान’ की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपनी इन्द्रियों पर विजय भी प्राप्त कर ली थी, अतः वे ‘जिन’ भी कहलाये। अतुल पराक्रम दिखलाने के चलते वे महावीर भी कहलाये। बौद्ध ग्रंथों में उन्हें निगण्ठ नाटपुत्र भी कहा गया।
कैवल्य प्राप्ति के बाद महावीर विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर अपने धर्म का प्रचार करने लगे। वे वर्ष के आठ महीने धर्म का प्रचार करते थे तथा बरसात के दिनों में किसी नगर में विश्राम करते थे। चम्पा, वैशाली, राजगृह, मिथिला आदि जगहों का दौरा कर अपने धर्म का प्रचार लोगों में करते रहे। उनके अनुयायी जैन कहलाने लगे। इस प्रकार अपने धर्म का प्रचार करते हुए 72 वर्ष की आयु में (463 ई० पू०) उन्हें राजगीर के समीप पावापुरी में निर्वाण प्राप्त हुआ।
महावीर ने किसी धर्म की स्थापना नहीं की। उन्होंने पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया तथा उसे स्थायित्व प्रदान किया। जैनियों के अनुसार इनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे। उनसे लेकर पार्श्वनाथ तक अन्य कई तीर्थकर हुए। पार्श्वनाथ जैनियों के 23वें तीर्थंकर थे तथा महावीर 24वें। महावीर ने पार्श्वनाथ के मूल सिद्धांतों सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह (सम्पत्ति का त्याग और उसका संग्रह नहीं करना) तथा अस्तेय (चोरी नहीं करना) को तो बनाये रखा ही साथ-साथ इसमें ब्रह्मचर्य का सिद्धांत भी जोड़ दिया।
जैनदर्शन हिन्दू सांख्यदर्शन के बहुत निकट है। ईश्वर में विश्वास, संसार दुखमय है, मनुष्य को कर्म के अनुसार फल प्राप्त होता है और जीव के आवागमन का सिद्धांत जैनदर्शन में प्रमुख स्थान रखते हैं। जैनदर्शन का विश्वास द्वैतवादी तत्त्वज्ञान में है। उनके अनुसार प्रकृति और आत्मा दो तत्त्व हैं। मनुष्य का व्यक्तित्व इन तत्त्वों से मिलकर बना है जिसमें प्रथम तत्त्व नाशवान है तथा दूसरा तत्त्व अनन्त और विकासशील है। द्वितीय तत्त्व की प्रगति करने से अन्त में मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

        जैनदर्शन के सात तत्त्व अर्थात् सत्य हैं-
        (i) कोई ऐसी चीज है जिसे जीवन या आत्मा कहते हैं।
        (ii) कोई ऐसी चीज है जिसे अजीव, प्रकृत या पुद्रल कहते हैं।
        (iii) जीव और अजीव का मिलन होता है।
        (iv) इन दोनों के मिलने से कुछ शक्तियों का निर्माण होता है।
        (v) इन दोनों के मिलन को रोका जा सकता है।
        (vi) संचित शक्तियों को नष्ट किया जा सकता है।
        (vii) निर्वाण या मोक्ष प्राप्ति संभव है।
इन सात तत्त्वों के आधार पर जैनदर्शन बतलाता है कि पहले मनुष्य को बुरे कर्मों से बचना चाहिए। उसके बाद कर्म बन्द कर देना चाहिए। इसके लिए उपर्युक्त वर्णित जैन धर्म के 5 सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। निर्वाण प्राप्ति के लिए उसे तीन रत्नों-सत्य, विश्वास या श्रद्धा, सत्य ज्ञान और सत्य कर्म करना चाहिए। इनका पालन करने से ही मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है तथा मनुष्य के कष्टों का अंत हो सकता है।
जैनधर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया गया है। जैन पशु-पक्षी, वनस्पति आदि ही नहीं, बल्कि जल, पहाड़ आदि में भी जीवन मानते हैं। फलतः आखेट, कृषि एवं युद्ध पर पाबन्दी लगा दी गई। महावीर को यह विश्वास था कि गृहस्थाश्रम में रहकर मोक्ष प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसके लिए संन्यासी का जीवन जीना आवश्यक था। जैन संन्यासियों को इन्द्रिय दमन हेतु कठोर नियमों का पालन आवश्यक था। जैसे-वस्त्र नहीं पहनना, सिर के बालों को जड़ से उखाड़ देना, अपना कोई निश्चित आवास नहीं रखना, सिर्फ दिन में ही यात्रा करना, जीव हत्या से बचना, अपनी प्रशंसा एवं दूसरे की बुराई नहीं करना तथा स्त्रियों के संसर्ग से बचना आदि। इन कठोर नियमों द्वारा जैनियों के कर्मों को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया गया।
जैनधर्म के ब्राह्मण धर्म के वेदवाद, यज्ञ, बलि एवं कर्मकाण्ड का विरोध किया। निर्वाण की प्राप्ति श्रद्धा, ज्ञान एवं कर्म से ही हो सकती है। इसके लिए पुरोहितों एवं यज्ञों को आवश्यकता नहीं थी। जैनधर्म के देवताओं के अस्तित्व को तो स्वीकार किया, परन्तु यह जिन से बड़ा नहीं है। जैनधर्म ने जाति-व्यवस्था पर भी बहुत कठोर प्रहार नहीं किया, बल्कि बाद में उससे समझौता नहीं कर लिया। महावीर के अनुसार पूर्व जन्म में किये गये कर्मों के आधार पर ही उच्च जाति या निम्न वर्ग में जन्म होता है। शुद्ध एवं सदाचारी जीवन व्यतीत करने से निम्न जाति के मनुष्य भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। प्रारंभ में जैन धर्म में मूर्त्ति-पूजा भी आ गयी, जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा की जाने लगीं। मनुष्य की साधारण दिनचर्या में भी जैन धर्म में परिवर्तन नहीं किया। जन्म, विवाह, मृत्यु आदि के विभिन्न संस्कारों जैनियों में हिन्दुओं की भाँति होते रहे। इसी प्रकार जैन धर्म हिन्द धर्म से अपने-आपको बहत दर नहीं ले जा सका। इसी कारण न तो इस धर्म का पूर्ण प्रसार हो सका और न ही यह पूर्णतया नष्ट हो सका।

34. विजयनगर साम्राज्य का चरमोत्कर्ष – राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे। पहला राजवंश, जो संगम वंश कहलाता था, ने 1485 ई. तक नियंत्रण रखा। उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 ई० तक सत्ता में रहे। इसके बाद ( तुलुवों ने उनका स्थान लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।
कृष्णदेव राय के काल में विजयनगर-कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और दृढीकरण था। इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) हासिल किया गया (1512), उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी
तरह पराजित किया गया था (1520)। हालाँकि राज्य हमेशा सामरिक रूप से – तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शांति और समृद्धि की स्थितियों – में फला-फूला। कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण तथा कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है। उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी। विजयनगर के संदर्भ में सबसे विस्तृत विवरण कृष्णदेव राय के या उसके तरंत बाद के कालों से प्राप्त होते हैं।

विजयनगर कृष्णदेव राय की मृत्यु के उपरान्त – कृष्णदेव की मृत्यु के पश्चात् 1529 ई. में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधि कारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। 1542 ई. तक केन्द्र पर नियंत्रण एक अन्य राजकीय वंश, अराविदु के हाथों में चला गया, जो सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्ता पर काबिज रहे। पहले को ही तरह इस काल में भी विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों की सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे। अंततः यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री-समझौते के रूप में परिणत हुई।

विजयनगर का पतन – 1565 ई. में विजयनगर की प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के – युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरि (तिरुपति के समीप) से शासन किया।

35. कई नेताओं के न चाहने पर भी भारत विभाजन को रोका नहीं जा सका। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे –

(i) सन् 1909 के कानून में मुसलमानों के लिए निर्वाचन का अधिकार देकर अंग्रेजों ने उन्हें हिन्दुओं से अलग करने का प्रयास किया। ‘फूट डालो
और शासन करो’ की नीति से मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग भी और तेजी से बढ़ती गई।

(ii) काँग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ सदा समझौता करने को नीति अपनाई। इससे मुस्लिम लीग को यह आशा हो गई कि यदि वह अपनी माँग पर डटी रही, तो एक न एक दिन पाकिस्तान की माँग मान ली जाएगी।

(iii) मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की हठधर्मिता के कारण हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे, अत: विवश होकर भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया गया।

(iv) साम्प्रदायिक दंगों ने स्थान-स्थान पर नेताओं और जनता को अत्याचार बंद करने को लाचार कर दिया था, अन्यथा पूरा देश रक्त के सागर में डूब जाता।

(v) सन् 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल होने पर मुस्लिम लीग ने काँग्रेस की योजनाओं में रुकावट डालनी प्रारम्भ कर दी। काँग्रेस के नेताओं को भी लगने लगा कि वे मुस्लिम लीग पार्टी के साथ मिलकर सरकार नहीं चला पाएँगे।

(vi) लार्ड माउंटबेटन भारत में राजनैतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए यहाँ का वायसराय बनकर आया था। उसने अपने प्रभाव से काँग्रेस पार्टी को विभाजन के लिए. तैयार कर लिया था। इन परिस्थितियों में हम कह सकते हैं कि भारत का विभाजन अनिवार्य था।

36. भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण – सन् 1942 ई० में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं, जिसके कारण काँग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन चलाया

(i) क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को भारत के सभी दलों ने अस्वीकार कर दिया था। क्रिप्स महोदय ने इंगलैंड वापस जाकर काँग्रेस के विरुद्ध काफी झूठी बातें कहीं। भारतीयों को यह विश्वास नहीं था कि क्रिप्स भी इतना झूठ बोल सकता है। डी. क्वेंसी ने लिखा है कि-“चालाक क्रिप्स महज धोखेबाजी, छल-कपट, विश्वासघात और दोहरी चालों से काम ले रहे थे और उनको इस बात का जरा भी पश्चाताप नहीं था।” अतः क्रिप्स के वापस लौटने पर भारतीयों ने यह स्पष्ट रूप से अनुभव कर लिया कि सरकार कभी भी भारतीयों को स्वतंत्रता अपनी इच्छा से नहीं देगी। अतः उन्होंने एक विशाल आन्दोलन चलाने की तैयारियां शुरू कर दी।

(ii) काँग्रेस ने भावी आन्दोलन का कार्यक्रम तैयार करने के उद्देश्य से अप्रैल 1942 में इलाहाबाद में अपनी कार्य समिति की एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में सरकार की नीति की कटु आलोचना की गई और यह निश्चित किया गया कि युद्ध के सम्बन्ध में काँग्रेस सरकार के मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगी। किन्तु वह युद्ध में सरकार के साथ कोई सहयोग भी नहीं करेगी। इसी बैठक में श्री राजगोपालाचारी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित करने का सुझाव दिया। लेकिन इस प्रस्ताव को काँग्रेस ने अस्वीकार कर दिया।

(iii) अब गाँधीजी के विचारों में परिवर्तन आना शुरू हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि अंग्रेजों को अब तत्काल ही भारत छोड़कर चले जाना चाहिये क्योंकि भारत पर जापानी आक्रमण को भारत में उनकी उपस्थिति प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। उन्होंने अंग्रेजों को भारत विभाजन के लिये उत्तरदायी समझा और इस कारण उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशक्त आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया।

आंदोलन का प्रारंभ और सरकारी दमन – सरकार पहले से ही काँग्रेस की तरफ से आशंकित होकर उनकी गतिविधियों पर निगाह रखे हुए थी। 9 अगस्त, 194.? की तड़के सुबह को महात्मा गाँधी वर्किंग कमिटी के सदस्य तथा अन्य अनेक नेता बम्बई में तथा देश के अन्य भागों में गिरफ्तार कर लिए गए। गाँधी जी को पूना में आगा खां पैलेस में सरोजिनी नायडू के साथ रखा गया, अनेक नेता अहमदनगर किले में बंद कर दिए गए। राजेन्द्र प्रसाद पटना में नजरबंद कर लिए गए। जयप्रकाश नारायण को भी गिरफ्तार कर हजारीबाग केन्द्रीय कारा में रखा गया।
इन घटनाओं ने जनता को अचंभित और क्रोधित कर दिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी से उनमें गुस्से की लहर दौड़ गई। उनकी भावनाएँ अनियंत्रित हो गई। सारे नेता जेल में थे, अतः उनको रोकनेवाला भी कोई नहीं था। फलतः गुस्से में जनता ने हिंसा और विरोध का सहारा लिया। जगह-जगह हड़ताल और प्रदर्शन किये गये। अंग्रेजों के विरोध में जुलूस निकाले गए। गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की माँग सर्वत्र गूंजने लगी। इस आंदोलन में छात्रों, मजदूरों, किसानों, जनसाधारण सभी ने हिस्सा लिया। सरकार की दमनात्मक कार्रवाइयों ने गुस्से की लहर और भी तीव्र कर दी। फलस्वरूप क्रुद्ध जनता ने कहीं-कहीं पर अंग्रेजों की हत्या भी कर दी। डाकखानों में आग लगाना, रेल की पटरियों को उखाड़ना, टेलीफोन के तारों को काट देना इत्यादि आंदोलनकारियों के नियमित कार्य बन गए। अनेक जगहों पर आंदोलनकारियों ने अपना अधिकार कर वहाँ समान्तर सरकारें स्थापित कर ली।

ब्रिटिश शासन का नामो – निशान उत्तर प्रदेश, बिहार, प. बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के अनेक भागों से कुछ समय के लिए मिट गया। जयप्रकाश नारायण हजारीबाग जेल से फरार होकर अपने सहयोगियों के साथ, ‘आजाद दस्ता’ बनाकर सशस्त्र संग्राम की तैयारी एवं जनक्रांति का कार्य करने लगे।
सरकार इन घटनाओं को शांत बैठकर नहीं देख रही थी, बल्कि अपनी दमनात्मक कार्रवाई तेजी से चला रही थी। निहत्थी लेकिन उग्र भीड़ को शांत करने के लिए अनेक स्थानों पर पुलिस और सेना को लाठी और गोली का सहारा ‘लेना पड़ा। अनेक जगहों पर जनता की निहत्थी भीड़ पर हवाई जहाज से मशीनगन द्वारा गोलियाँ चलाई गई एवं बम बरसाये गये। अनुमानतः पुलिस की गोलियों से करीब 10,000 व्यक्ति मौत के घाट उतार दिए गए। हजारों व्यक्ति गिरफ्तार कर . लिए गए। जनता पर अमानुषिक और अमानवीय अत्याचार किए गए। प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई। गांवों पर सामूहिक जुर्माने लगाए तथा ग्रामीणों की कोड़ो से पिटाई की गई। ‘भारत छोड़ो आंदोलन पर टिप्पणी करते हुए. इतिहासकार विपिनचन्द्र, अमलेश त्रिपाठी और वरुण लिखते हैं, “अलग-अलग व्यक्तियों ने आक्रोश भरी चुनौती के रूप में जो कार्रवाई शुरू की, वह बढ़कर एक आंदोलन में बदल गई और फिर आंदोलन ने विद्रोह का रूप ले लिया । सरकार ने अपना गुस्सा दिखाया और आतंक तथा जोर-जुल्म की बागडोर ढीली कर दी गई। देश एक पुलिस राज्य में बदल गया। पुलिस और सेना की गोलियों से 10 हजार से अधिक लोगों को मार डालने के बाद देश में 1857 ई० के बाद इतना भयंकर और देशव्यापी दमन नहीं हुआ था।”
जिस समय काँग्रेस के आह्वान पर जनता अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर रही थी, उस समय देश के कुछ प्रमुख व्यक्ति और राजनीतिक दल इस आंदोलन के विरोधी बन गए। मुस्लिम लीग इस आंदोलन से अलग रही। इतना ही नहीं, कुछ समय पश्चात् उसने काँग्रेस के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के जवाब में ‘बांटो और भागो’ का नारा दिया। रूसी प्रभाव में आकर कम्युनिस्ट पार्टी भी आंदोलन की विरोधी बन गई। उसने अपने-आपको आंदोलन से अलग रखा और सरकार की हिमायती बन गई। देशी रियासतें भी इससे अलग रही। फलतः, पूर्ण समर्थन के अभाव में और सरकारी दमन के कारण 1942 ई. की क्रांति असफल हो गई। आंदोलन को सरकार ने बर्बरतापूर्ण ढंग से कुचल दिया।

आंदोलन का परिणाम – यद्यपि 1942 ई. का आंदोलन कुचल दिया गया, यह असफल हो गया; परंतु इससे इसका महत्व कम हो जाता है। इस आंदोलन की दो महान उपलब्धियाँ थीं। प्रो. बिपिन चन्द्र के अनुसार, “उसने (आंदोलन ने) साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारत के आक्रोश और स्वतंत्र होने के संकल्प को प्रभावशाली और सुनिश्चित ढंग से व्यक्त किया। उसने जीवन्त तरीके से गोरों को यह बता दिया कि देश में राष्ट्रीयता की भावना उस सीमा के पार पहुंच चुकी है जहाँ पर जनता अपनी स्वतंत्रता के अधिकार के लिए बड़ी-से-बड़ी तकलीफ उठाने और बलिदान करने को तैयार है। 1942 ई. के विद्रोह के बाद ब्रितानी शासकों के दिमाग में यह बात बहुत अच्छी तरह आ गई कि भारत में उनके साम्राज्यवादी शासन के सिर्फ गिने-चुने दिन रह गए हैं। 1942 ई. का आंदोलन एक अर्थ में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की समाप्ति का परिचायक है।” श्री जयप्रकाश नायारण ने अगस्त क्रांति के महत्व की विवेचना करते हुए 1946 ई० में ही कहा था, “सन् बयालिस की क्रांति इस देश के इतिहास में उस समय तक वही स्थान रखती है जो फ्रांस या रूस की क्रांतियों का अपने-अपने देश में है। जिस पैमाने पर 1942 ई० की क्रांति हुई थी, वह इतिहास को अपना सानी नहीं रखती। इतने बड़े जनसमुदाय ने दूसरी किसी क्रांति में भाग नहीं लिया था। सन् 1942 ने देश की कायापलट कर दी, एक नये भारत का निर्माण किया। उसकी राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की। बयालीस में लड़ाई ने जनक्रांति का रूप लिया। अंग्रेजी राज्य का किला, जो अब तक इतना सुदृढ़ और दुर्लभ दीख रहा था। अकस्मात टूटने लगा। कहीं दीवार टूटी तो कहीं कंगूरा, कहीं कुछ पाए तो कहीं मेहराब। “जनता ने समझ लिया कि यह बालू की भीतों का बना हुआ किला है। और उसने सीख लिया उन भीतों को ढाह देने का एक नया तरीका।”

37. 1929 ई० में काँग्रेस के लाहौर अधिवेशन में गाँधीजी के नेतृत्व में पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया गया।

कार्यक्रम – सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित कार्यक्रम थे –
(i) प्रत्येक गाँव में नमक कानून तोड़कर नमक बनाया जाए। (ii) शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर धरना (विशेषकर महिलाओं द्वारा) दिया जाए। (iii) विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाएँ। (iv) हिन्दु छुआछूत को पूर्णतया छोड़ दें। (v) विद्यार्थियों को सरकारी स्कूल व कॉलेजों में पढ़ना बंद कर देना चाहिए। (vi) सरकारी कर्मचारियों को सरकारी नौकरियाँ छोड़ देनी चाहिए।

(क) आंदोलन का प्रथम चरण –
(i) डांडी यात्रा – 12 मार्च, 1930 का गाँधीजी ने डांडी यात्रा आरम्भ की तथा डांडी के तट पर पहुँचकर समुद्र के जल से नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया।
(ii) आंदोलन में तीव्रता – सारे देश में सरकारी कानूनों का उल्लंघन शुरू हो गया। लोगों ने कर देना बंद कर दिया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।

(iii) सरकार की दमन-नीति – सरकार की दमन नीति शुरू हुई। गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। 1931 ई० के आरंभ में लगभग 90,000 व्यक्ति जेलों में थे।

(iv) प्रथम गोलमेज सम्मेलन – पेशावर में भारतीय सिपाहियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। स्थिति खराब होते देखकर लंदन में 1930 ई० में गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया किन्तु, काँग्रेस ने इसका बहिष्कार किया।

(v) गाँधी-इरविन समझौता – जनवरी 1931 में गाँधीजी एवं दूसरे अन्य नेता रिहा कर दिए गए। मार्च 1931 में गाँधी-इरविन समझौता हो गया। सभी राजनैतिक बंदियों के मुकदमें वापस ले लिए गए और गाँधीजी द्वारा आंदोलन स्थगित कर दिया गया।

(ख) आंदोलन का दूसरा चरण – (i) भारत के लिए नया संविधान बनाने । हेतु द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गाँधीजी ने भाग लिया। लेकिन कोई खास नतीजा न निकला। गाँधीजी निराश होकर भारत लौटे।

(ii) पुनः आंदोलन प्रारंभ – गाँधीजी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन शरू कर दिया। यह आंदोलन दो वर्षों तक चला।

(iii) दमनचक्र – इस बार सरकार का दमनचक्र पहले से भी भयानक था। गाँधीजी सहित लगभग एक लाख बीस हजार व्यक्तियों को जेलों में बंद कर दिया गया।

38. डॉ. भीमराव अंबेडकर उस तेजपुंज का नाम है जो प्रकाश ही प्रकाश देता है, लेकिन जलाता नहीं। जीवन को समरसता से ग्रहण करते एवं विसंगतियों से संघर्ष करते हुए अपनी निन्दा एवं स्तुति से आत्मशोध की यात्रा में सदा अग्रसर होने वाले महान सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतक बाबा साहब अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई० में महाराष्ट्र के महू नामक गाँव में हआ था। इनके पिता का नाम रामजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। ये अपने माता-पिता के चौदहवीं संतान थे। ये महार जाति के थे और उस समय महार” को अछूत समझा जाता था। अम्बेडकर ने बचपन से ही अछूत होने की पीडा को भोगा था और उनका बाल-मन उसी काल से इस दुर्व्यवस्था से आक्रांत हुआ था। मानवमात्र की सेवा में अपने को समर्पित करने वाला व्यक्तित्व दलितों, दुखियों, शोषितों एवं पीड़ितों की दर्दभरी मूक भाषा को अमर स्वर प्रदान करने वाला महामानव समाज में कभी-कभी ही आविर्भूत होता है और वह जन-जन के मन में परमेश्वर की तरह आराध्य बन जाता है। अम्बेडकर उन्हीं प्रतिभाओं में से एक थे।
बचपन से ही ये मेधावी और गहन चिंतक छात्र थे। चौदह वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह रामाबाई से हो गया। इसके बाद. वे पिता के साथ 1905 ई. में मुम्बई आ गए और 1907 ई. में मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1912 ई. में इन्होंने बी. ए. की परीक्षा पास की। ये उच्च शिक्षा के लिए लालायित थे पर आर्थिक कठिनाई रास्ते में रूकावट बनी हुई थी। बड़ौदा नरेश ने मेधावी छात्र की प्रतिभा को कुंठित होते हुए देखा, तो उन्होंने आर्थिक सहायता देना स्वीकार किया। 1913 ई. में अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की सहायता से अमेरिका चले गये। 1915 में इन्होंने वहाँ एम० ए० की डिग्री प्राप्त की और 1916 ई० में इन्हें पी०-एच० डी० की डिग्री से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे इंगलैण्ड और जर्मनी भी गए जहाँ उन्होंने डी. एस. और ‘बार एट लॉ’ की डिग्री प्राप्त की। यहीं पर अम्बेडकर ने संसदात्मक प्रजातंत्र उदारवादी प्रजातंत्र पर गहन अध्ययन किया। इसी अध्ययन-क्रम में वे संसारभर के देशों के संविधानों से परिचित हुए।
अपने देश लौटने पर इन्होंने 1920 ई० में कोल्हापुर के महाराजा की सहायता 1 से ‘मूक नन्ह’ नामक पत्रिका का सम्पादन आरंभ किया, जिसमें सामाजिक विकृतियों पर करारा प्रहार किया। सन् 1923 से 1931 तक का समय अम्बेडकर के लिए कठोर संघर्ष और अभ्युदय का था। इसी बीच वे दलितों के नेता एवं – प्रवक्ता के रूप में उभरकर सामने आए। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया और अंग्रेज शासक से दलितों की गई माँग भारतीय दलितों को इन्होंने कहा-शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो।
1935 ई० में इनकी धर्मपत्नी का देहांत हो गया। इसी साल इन्होंने धर्म परिवर्तन की घोषणा की। इन्होंने बहिष्कृत हितकारी सभा, सिद्धांत महाविद्यालय
एवं स्वतंत्र मजदूर की स्थापना की। 1946 ई. तक अम्बेडकर की ख्याति देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैल गयी थी। 1947 ई० में नेहरूजी के मंत्रिमंडल 7 में इन्हें कानून मंत्री बनाया गया। 21 अगस्त, 1950 ई० को इन्होंने भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया। इसी साल वे कोलम्बो गए और दिल्ली में अम्बेडकर भवन का शिलान्यास किया। 1956 ई० में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया और 6 दिसम्बर, 1956 ई० को ही इस महामानव का महापरिनिर्वाण हुआ।
वे अछूतों और दलितों के मसीहा, उद्धारकर्ता और पथ-प्रदर्शक थे। 1990-91 ई० में इनकी जन्म-शताब्दी धूम-धाम से मनायी गयी और भावभीनी श्रद्धांजलि
अर्पित की गई। दलितों को समान अधिकार देना और उनका यथोचित उत्थान करना ही बाबा साहब की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। भारत के दलितों एवं पीड़ितों को उन्होंने जो जीवन-संदेश दिया था-‘उठकर आगे बढ़ो’ आज उससे सबों के हृदयतंत्र झंकृत हो रहे हैं और उनमें से मधुर संगीत का स्वर फुट रहा है।


 

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