14. जैव अणु LONG ANSWER TYPE QUESTIONS

प्रश्न 1. एन्जाइम क्या होते हैं ?

उत्तर⇒ सभी जैव अभिक्रियाएँ कुछ जैव उत्प्रेरकों की सहायता से होती हैं जो एन्जाइम कहलाते हैं। एन्जाइम किसी विशेष अभिक्रिया अथवा विशेष क्रियाधार के लिए विशिष्ट होते हैं। इनका नामकरण सामान्यतया उस यौगिक या यौगिकों के वर्ग पर आधारित होता है। जिन पर ये कार्य करते हैं। जैसे जो एन्जाइम माल्टस को ग्लूकोज में बदलता है। माल्टेस कहलाता है।
C12 H22O11 + H2O → 2C6H12O6
.                                         ग्लूकोस
       जो एन्जाइम एक क्रियाधार का ऑक्सीकरण उत्प्रेरित करते हैं तथा साथ ही दूसरे क्रियाधार का अपचयन करते हैं उन्हें ऑक्सिडोरिडक्टेज का नाम दिया जाता है। उत्प्रेरक की भाँति एन्जाइम कम मात्रा में प्रयोग होता है।

प्रश्न 2. एंजाइम की परिभाषा लिखिए। एंजाइम साधारण रासायनिक उत्प्रेरकों से किस प्रकार भिन्न हैं ?

उत्तर⇒एंजाइम एक प्रकृति सरल अथवा संयुग्मी प्रोटीन है, जो कोशिका की प्रक्रियाओं में विशिष्ट उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। एंजाइम एवं रासायनिक उत्प्रेरक में निम्नांकित अन्तर है।

एंजाइम रासायनिक उत्प्रेरक
1. यह एक कार्बनिक पदार्थ है। 1. यह कार्बनिक या अकार्बनिक दोनों हो सकता है।
2. यह मुख्यतः प्रोटीन का बना होता है। 2. यह प्रोटीन का बना हुआ नहीं होता है।
3. यह अभिक्रिया को 1020 गुणा तक बढ़ा देता है। 3. यह अभिक्रिया को उतना नहीं बढ़ा पाता है।
4. इसे पुनर्निर्माण की दर अति-तीव्र होता है। 4. इसके पुनर्निर्माण की दर कम होती है।
5. यह उदासीन स्थिति तथा शरीर तापक्रम पर कार्य करता है। 5. इसके लिए उच्च तापमान की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 3. कार्बोहाइड्रेट क्या है ? इसके सामान्य सूत्र एवं प्रकार को लिखें। इसके मुख्य प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ कार्बोहाइड्रेट-कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से निर्मित वे रासायनिक यौगिक जो ध्रुवण, घूर्णक, पॉलिहाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड अथवा कीटोन हो, कार्बोहाइड्रेट कहलाता है यह हमारे भोजन का मुख्य अवयव है तथा ऊर्जा के सस्ते स्त्रोत के रूप में जाना जाता है।
        कार्बोहाइड्रेट का सामान्य सूत्र C4 (H2O)n है।
        कार्बोहाइड्रेट को उनके जल-अपघटन तथा उनके फलस्वरूप बने उत्पाद की संख्या के आधार पर तीन वर्गों में बाँटा गया है-
        (i) मोनोसैकेराइड (Monosaccharides)
        (ii) ऑलिगोसैकेराइड (Oligosaccharides)
        (iii) पॉलिसैकेराइड (Polysaccharides)

        (i) मोनोसैकेराइड- कार्बोहाइड्रेट के वे प्रकार जिनको और अधिक सरल यौगिकों में जल अपघटित नहीं किया जा सकता है, मोनोसैकेराइड कहलाता है। सभी कार्बोहाइड्रेट जल अपघटन के फलस्वरूप मोनोसैकेराइड में परिवर्तित हो जाते हैं। ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस मोनोसैकेराइड के उदाहरण हैं।
(i) मोनोसैकेराइड- कार्बोहाइड्रेट के वे प्रकार जिनको

      (ii) ऑलिगोसैकेराइड– कार्बोहाइड्रेट का वह प्रकार जो जल द्वारा अपघटित होकर एक से ज्यादा (लगभग 2-10) मोनोसैकेराइड अणु देते हो, ऑलिगोसैकेराइड कहलाता है।
      वैसे ऑलिगोसैकेराइड जो मोनोसैकेराइड के दो अणुओं के संयोग से बना होता है, डाइसैकेराइड कहलाता है। तनु अम्लों या एंजाइमों द्वारा जल अपघटित होने पर ये समान अथवा भिन्न मोनोसैकेराइड के दो अणु बनाते हैं।
C12H22O11 + H2O निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए- C6H12O6 + C6H12O6
.                                        ग्लूकोस        फ्रक्टोस
       (iii) पॉलिसैकेराइड– कार्बोहाइड्रेट का वह प्रकार जिसमें हजारों मोनोसैकेराइड इकाइयाँ ग्लाइकोसिडिक बंधन द्वारा जुड़े होते हों, पॉलिसैकेराइड कहलाता है। स्टार्च, सेलूलोस, ग्लाइकोजीन तथा डेक्सीड्रीन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
(C6H10O5)n → (C6H10O5)n →C12H22O11 → C6H12O6
स्टार्च                                                माल्टोस           D-ग्लूकोस

प्रश्न 4. विभिन्न प्रकार के विटामिनों की कमी से होने वाले रोग तथा विटामिन के स्रोत को सारणीबद्ध करें।

उत्तर⇒विभिन्न प्रकार के विटामिन, उनकी कमी से होने वाले रोग तथा उनके स्रोत निम्नलिखित है-

विटामिन स्रोत हीनताजनित रोग
1. विटामिन-A मछली का तेल, गुर्दा जोरोफलमिया
2. विटामिन-B1

(थायोमील)

यीस्ट, दूध, हरी सब्जियाँ बेरी-बेरी
3. विटामिन-B2
(राबोफ्लौविन)
यीस्ट, सब्जियाँ दूध, अंडे की
सफेदी
त्वचाशोथ, गाढ़ी,

लाल जीभ, तथा ओष्ठ विदारता कीलोसिस

4. विटामिन-B6
(पिरिडॉक्सिन)
अन्न, चना, शीरा यीस्ट, अंड-पीत तथा माँस तीव्र त्वचाशोथ, आक्षेप।
5. विटामिन-B12 बैल, भेड़, मछली आदि का यकृत प्राणी रक्ताल्पता
6. विटामिन-C नींबू जाति के फल, हरी सब्जियाँ स्कर्वी
7. विटामिन-E गेहूँ, सोयाबीन, तेल बंध्यता
8. विटामिन-K अन्न-पत्तेदार सब्जियाँ रक्तस्रावीय अवस्था

 प्रश्न 5. मोनोसैकेराइड क्या है ? ग्लूकोस के निर्माण एवं गुणों का प्रकाश डालें।

उत्तर⇒ कार्बोहाइड्रेट के वे प्रकार जिन्हें जल अपघटन द्वारा और सरल यौगिकों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, मोनोसैकेराइड कहलाता है।
          ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस ऐल्डोहैक्सोस तथा सेल्डोकीटोज के विशिष्ट उदाहरण हैं।
          ग्लूकोस (Glucose)-
          (i) उपस्थिति- प्रकृति में ग्लूकोस स्वतंत्र तथा संयुक्त दोनों रूपों में पाया जाता है। मीठे फल, शहद तथा पके अंगूरों में ग्लूकोस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ग्लूकोस को Instant form of energy कहा जाता है क्योंकि यह शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है।
          (ii) निर्माण-विधि- ग्लूकोस का निर्माण शर्करा तथा स्टार्च द्वारा निम्न प्रकार से किया जाता है।
          (a) सूक्रोस अर्थात् शर्करा द्वारा- सूक्रोस एक डाइसैकेराइड कार्बोहाइड्रेट है। इसके जलीय अपघटन के फलस्वरूप ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस प्राप्त होता है। सूक्रोस के ऐल्कोहॉलीय विलयन को तनु HCl तथा H2SO4 के साथ उबालने पर ग्लूकोस तथा फ्रक्टोज समान मात्रा में प्राप्त होता है।
C12H22O11 + H2O निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए- C6H12O6 + C6H12O6
          (b) स्टार्च द्वारा- औद्योगिक स्तर पर ग्लूकोस का निर्माण स्टार्च द्वारा किया जाता है। स्टार्च का जल अपघटन तनु H2SO4 के साथ 393 K तापमान पर उबालने से होता है। जल अपघटन के फलस्वरूप ग्लूकोज का निर्माण होता है।
(C6H12O5)n + n H2O निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए- nC6H12O6
    स्टार्च                                             ग्लूकोस
(iii) ग्लूकोस के गुण-
(a) ऐसीटिक एन्हाइड्राइड द्वारा अभिक्रिया- ग्लूकोस ऐसीटिक एन्हाइड्राइड द्वारा अभिक्रिया कर पेंटाएसिटेट का निर्माण करता है। यह अभिक्रिया इस बात को साबित करता है कि ग्लूकोस में पाँच हाइड्रॉक्सिल समूह उपस्थित हैं।OHC – (CHOH)6– CH2OH (i) मोनोसैकेराइड- कार्बोहाइड्रेट के वे प्रकार जिनको
OHC – (CHOCOCH3) – CH2OOCHCH3

        (b) हाइड्रॉक्सिल ऐमीन के साथ अभिक्रिया- ग्लूकोस हाइड्रोक्सिल ऐमीन के साथ अभिक्रिया कर मोनो ऑक्सीजन देता है। यह हाइड्रोजन साइनाइड के एक अणु से अभिक्रिया कर साइनोहाड्रिन बनाता है। ये अभिक्रियाएँ ग्लूकोस में एक कार्बोनिल समूह की उपस्थिति सिद्ध करती है।
(i) मोनोसैकेराइड- कार्बोहाइड्रेट के वे प्रकार जिनको        (iv) सिल्वर नाइट्रेट विलयन से अभिक्रिया- ग्लूकोस एमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट विलयन से अभिक्रिया कर सिल्वर धातु देता है। यह ग्लूकोस में एक ऐल्डिाइडिक समूह की उपस्थिति को दर्शाता है।
HOCH2 – (CHOH)4 – CHO + Ag2
.                                                               HOCH2 – (CHOH)4 – CHO + 2Ag
         (v) नाइट्रिक अम्ल द्वारा अभिक्रिया- ग्लूकोस नाइट्रिक अम्ल द्वारा ऑक्सीकृत होकर सैकेटिक अम्ल का निर्माण करता है।
HOCH2 – (CHOH)4 – CHO (v) नाइट्रिक अम्ल द्वारा अभिक्रिया-
.                                                  HOOC – (CHOH)4 – COOH
       (vi) हाइड्रोजन आयोडाइड से अभिक्रिया– ग्लूकोस HI के साथ लम्बे समय तक गर्म करने पर n-हेक्सेन बनाता है। यह प्रदर्शित करता है कि ग्लूकोस में 6 कार्बन परमाणु एक ऋजु-श्रृंखला में आबंधित है।
HOCH2 – (CHOH)4 – CHO (v) नाइट्रिक अम्ल द्वारा अभिक्रिया-
.                                H3C – CH2 – CH2 – CH2 – CH2 – CH3

प्रश्न 6. प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या है ?

उत्तर⇒प्रोटीन की द्वितीयक संरचना-किसी प्रोटीन की द्वितीयक संरचना का संबंध उस आकृति से है जिसमें पोलिपेप्टाइड शृंखला विद्यमान रहती है। यह दो भिन्न प्रकार की संरचनाओं में विद्यमान होती है। α-हेलिक्स
         तथा β-प्लीटेड शीट संरचना में संरचनाएं पेप्टाइड आबंध के तथा – प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या है – तथा – NH – समूह के मध्य हाइड्रोजन बंध के कारण पॉलिपेप्टाइड की मुख्य शृंखला के नियमित कुंडलन में उत्पन्न होती है। α-हेलिक्स संरचना एक ऐसी संरचना है। जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला दक्षिणावर्ती पेंच के समान जुड़ी रहती है। फलस्वरूप प्रत्येक ऐमीनों अम्ल का अवशिष्ट का -NH समूह, कुंडली के अगले मोड़ पर स्थित प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या है = O समूह के साथ हाइड्रोजन आबंध बनाता है।

चित्र : प्रोटीन की       कुंडलिनी संरचना

चित्र : प्रोटीन की           -सहित संरचना
         β-संरचना में सभी पोलिपेप्टाइड शृंखलाएं लगभग अधिकतम विस्तार तक खिंची रह कर एक-दूसरे के पार्श्व में स्थित होती हैं तथा आपस में अंतराआण्विक हाइड्रोजन आबंध द्वारा जुड़ी रहती हैं। यह संरचना वस्त्रों में लकीर के समान होती है। अतः इसको β-प्लीटेड शीट कहते हैं।

प्रश्न 7. एन्जाइम क्या होते हैं ? एन्जाइम कैसे कार्य करते है ?

उत्तर⇒ (क) एन्जाइम- ऐन्जाइम एक उत्प्रेरक है। लगभग सभी एन्जाइम गोलिकाकार प्रोटीन होते हैं। एन्जाइम किसी विशेष अभिक्रिया अथवा विशेष क्रियाधार के लिए विशिष्ट होते हैं। इसका नामकरण सामान्यतया उपयोगिक या यौगिकों के वर्ग पर आधारित होता है। जिस पर ये कार्य करते हैं। जैसे उस एन्जाइम का नाम माल्टेस है। जो माल्टोज के ग्लूकोस में जल अपघटन को उत्प्रेरित करता है।
                                C12H22O11 → 2C6H12O6
.                                                            ग्लूकोज
कभी-कभी एन्जाइम का नाम उप अभिक्रिया के आधार पर दिया जाता है। जिसमें इसका उपयोग होता है। जैसे जो एन्जाइम एक क्रियाधार का ऑक्सीकरण उत्प्रेरित करते हैं तथा साथ ही दूसरे क्रियाधार का अपचयन उन्हें आक्सिडोरिडक्टेस नाम दिया जाता है। एन्जाइम के नाम के अंत में ऐसा आता है।
          किसी अभिक्रिया की प्रगति के लिए एन्जाइम की बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक उत्प्रेरक की क्रिया के समान कहा जाता है कि एन्जाइम सक्रियण ऊर्जा के परिमाण को कम कर देते हैं। जैसे सूक्रोज के अम्लीय जलअपघटन के लिए सक्रियण ऊर्जा 6.22kJ/ मोल है। जबकि सूक्रेस एन्जाइम द्वारा जल अपघटित होता है तो सक्रियण ऊर्जा केवल 2.15 kJ/ मोल होती है।
           (ख) विटामिन- भोजन में कुछ कार्बनिक यौगिकों की आवश्यकता सूक्ष्म मात्रा में होती है। परन्तु उनकी कमी के कारण विशेष रोग हो जाते हैं। इन यौगिकों को विटामिन कहते हैं। ये कार्बनिक यौगिक विशिष्ट जैविक क्रियाओं के संपन्न होने के लिए हमारे आहार में आवश्यक वे पदार्थ हैं जिनसे जीव की इष्टतम वृद्धि एवं सवास्थ्य का सामान्य रख-रखाव होता है। विटामिनों को A, B, C, D आदि अक्षरों के द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। इनमें से कुछ को पुनः 34 वर्गों उदाहरणार्थ B1, B2, B6 तथा B12 आदि के नाम दिया जाता है। विटामिन का आधिक्य भी हानिकारक होता है। अतः चिकित्सक के परामर्श बिना विटामिन की गोली नहीं लेनी चाहिए।
जल या वसा में घुलनशील के आधार पर विटामिनों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
                  (i) वसा विलेय विटामिन-इस वर्ग में उन विटामिनों को रखा गया है जो वसा तथा तेल में विलेय होते हैं परंतु जल में अविलेय । ये विटामिन A, D, E तथा K हैं। ये यकृत तथा ऐडिपोस ऊत्तक में संग्रहित रहते हैं।
                 (ii) जल में विलेय विटामिन-B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय होते हैं। अतः इन्हें एक साथ इस वर्ग में रखा गया है। जल में विलेय विटामिनों की पूर्ति हमारे आहार में नियमित रूप से होनी चाहिए। क्योंकि ये आसानी से मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं। इन्हें हमारे शरीर में (B12 विटामिन के अतिरिक्त) संचित नहीं किया जा सकता है।

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